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भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने के बजाय केवल अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा देने के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी सहित अन्य की अलौकतांत्रिक तुगलकी सनक पर तुरंत अंकुश लगाकर भारत की रक्षा करें मोदी सरकार!

नेहरू जी के जन्म दिन पर, अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी में जकडे भारत को मुक्त करने का संकल्प लें प्रधानमंत्री मोदी!   

नवम्बर माह के दूसरे सप्ताह को भी  संसद की चैखट जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर भारतीय भाषा आंदोलन ने दिया ज्ञापन
नई दिल्ली (प्याउ)।  नवम्बर माह के दूसरे सप्ताह को भी भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में संसद की चैखट  से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर देश के प्रधानमंत्री से अविलम्ब देश को अंग्रेेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करके देश का नाम भारत व भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित करने हेतु हर कार्य दिवस को ज्ञापन सौंपा। 15नवम्बर 2019 को प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करने के बाद जो ज्ञापन दिया उसमें प्रधानमंत्री से आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने आंध्र की सरकारी विद्यालयों में सभी विषयों को पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम अंग्रेजी कर देने की तुगलकी घोषणा से पूरा राष्ट्र स्तब्ध है। अब आंध्र के बच्चे किसी भी विषय को अपनी भारतीय भाषाओं यानी तेलुगु,हिंदी,उर्दू माध्यम में पढ़ना  चाहें तो उसे वे नहीं सीख सकेंगे। इस नई व्यवस्था को लागू करने के पीछे मुख्यमंत्री का वहीं भारतघाती कुतर्क है,जिसके दम पर देश के अंग्रेजों के अंध गुलाम साबित हो रहे भारत के हुक्मरानों नेै अंग्रेजी को भारत में 73 सालों से थोपा है। यह कुतर्क है कि अंग्रेजी विश्वभाषा है और उसके माध्यम से ऊंचे रोजगार पाना देश और विदेशों में भी आसान होता है। सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों को इस लाभ से वंचित क्यों रखा जाए ? जगन रेड़्डी ने विरोध करने वाले नेताओं से पूछा कि आप अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से क्यों पढ़ाते हो। यह कृत्य केवल आंध में ही नहीं देश के अधिकांश प्रदेशों में सरकारी व निजी विद्यालय बेशर्मी से कर रहे हैं और भारत सरकार नीरों की तरह सत्ता की बंदरबांट करने में ही मस्त है।
देश में अंग्रेजों के जाने के 73 सालों तक अंग्रेजी का गुलाम बनाने वाले सहित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड़्डी सहित तमाम अंग्रेजी के दुमछल्ले जो अंग्रेजी को ही विश्व की एकमात्र ज्ञान, विकास व विज्ञान की भाषा बताने वालों ने देश की आंखों में धूल झोंका हुआ है। उनके पास इस सवाल को कोई जवाब नहीं है कि जब  रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी विकसित व सम्मानित देश अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो भारत क्यों अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी अंग्रेेजों की ही भाषा  अंग्रेजी व उनके थोपे गये  इंडिया नाम  का गुलाम बना हुआ है ?आखिर भारत की क्या मजबूरी है कि अपनी दर्जनों प्राचीन व समृद्ध भारतीय भाषायें एवम अपना गौरवशाली नाम भारत होते हुए भी आक्रांता अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे गये बदनुमा नाम इंडिया की गुलामी को  ढो कर खुद को मिटा रहा है?
भारत सरकार को चाहिए कि देश में हर हालत में हर विद्यालय को शिक्षा भारतीय भाषाओं में देने के लिए मजबूर किया जाय।  इसका उल्लंधन करने वाले विद्यालयों को राष्ट्रद्रोह के अपराध में बंद किया जाय। इस कृत्य को करने को उतारू नेता व उसके दल पर भी प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यही नहीं देश में शिक्षा के साथ हर रोजगार, न्याय व शासन केवल भारतीय भाषाओं में ही प्रदान की जाय।
वहीं 14 नवम्बर को  देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के जन्म दिवस पर भी संसद की चैखट जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करने के बाद  भारतीय भाषा आंदोलन ने  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  से भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने का संकल्प लेने का पुरजोर अनुरोध युक्त ज्ञापन दिया। देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषायें लागू करने के लिए 21 अप्रैल 2013 से ऐतिहासिक सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री को आगाह किया कि जब तक देश से अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति नहीं मिलेगी और भारत व भारतीय भाषायें देश की व्यवस्था आत्मसात नहीं करेगी तब तक देश की चहुंमुखी विकास व भारतीय संस्कृति की रक्षा की बात तो रही दूर  देश न तो आजाद होगा व नहीं देश में लोकशाही ही स्थापित होगी।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन को 79 महीने हो गये परन्तु भारत सरकार अपने दायित्व का निर्वहन करने के बजाय आंदोलनकारियों का दमन करने का अलौकतांत्रिक कृत्य कर रही है। प्रधानमंत्री को दिये गये ज्ञापन में दो टूक शब्दों में कहा गया कि ‘शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाने से ही मिलेगी अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति। अंग्रेजी अनिवार्यता मुक्त व भारतीय भाषायुक्त  राष्ट्रीय  शिक्षा नीति लागू की जाय। भाषा आंदोलन की मांगों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया कि (1) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय(2) अंग्रेजी अनिवार्यता मुक्त व भारतीय भाषाओं में भारतीय मूल्यों युक्त सरकार द्वारा पूरे राष्ट्र में एक समान निशुक्ल शिक्षा प्रदान की जाय (3)संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाएं अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ली जाय। (4) शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में संचालित किया जाय। (5) देश के  नाम पर लगे इंडिया के कलंक से मुक्ति दिला कर देश का नाम केवल भारत (इंडिया नहीं) ही रखा जाय।(5) राष्ट्रीय धरनास्थल जंतर मंतर पर सतत्(प्रातः11 बजे से सांय 4 बजे तक) धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाय।
प्रधानमंत्री  को सौंपे इस ज्ञापन में कहा गया कि मान्यवर आज 14 नवम्बर को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी का जन्म दिवस भी है। जिन्होने अंग्रेजों से मुक्ति के बाद देश की दिशा की नींव रखी। 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में जन्में जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों के जाने के बाद यानी 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आधुनिक भारत की नींव रखी। इसमें देश के संविधान से लेकर, रियासतों में बंटे देश को एक मजबूत देश के रूप में संगठित करना, शिक्षा, उद्योग, रक्षा, चिकित्सा, विज्ञान,सहकारिता, जल को पेयजल, सिंचाई व विद्युत हेतु बांध निर्माण, कृषि व विदेश नीति सहित सभी महत्वपूर्ण संस्थानों की नींव रखने के साथ दिशा भी तय की। नेहरू के नेतृत्व में तय की गयी भारत की दिशा से जहां भारत संसार का एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया वहीं मोहम्मद जिन्ना के नेतृत्व वाला पाकिस्तान आज अपने आर्थिक ढ़ांचे के ढहने के साथ विश्व में आतंकीस्थान सा बन गया है। नेहरू जी की इन महत्वपूर्ण भूमिका के बाबजूद उनके कार्यकाल में हुई  कश्मीर, अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी को जारी रखने की हिमालयी भूलें, नेहरू के बाद की भी सरकारों ने समाधान करने के बजाय यथास्थिति बनाये रखने के कारण आज  अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद विकराल हो कर देश की एकता अखण्डता व लोकशाही पर ग्रहण लगा रही है। जहां ंतक कश्मीर समस्या का समाधान करने में वर्तमान आपके नेतृत्व वाली मोदी सरकार ने साहसिक कार्य कर इसके निदान किया। इसके अलावा सबसे गंभीर कलंक जो भारत के माथे पर अंग्रेजों के जाने के बाद आज 73 साल तक लगा हुआ है। वह है देश में अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व अंग्रेजों द्वारा भारत को गुलाम बनाये रखने के लिए थोपे गये इंडिया नाम की गुलामी से भारत का नाम, आजादी, लोकशाही,मानवाधिकार,संस्कृति,सम्मान,सुरक्षा व विकास को रौंद रहे है।
नेहरू जी द्वारा टर्की के कमाल पाशा की तरह अंग्रेजों से मुक्ति पाने के तत्काल बाद भारत में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन की भाषा के रूप में अंग्रेजी  को हटा कर भारतीय भाषाओं को लागू करके देश की आजादी व लोेकशाही का सूर्योदय से रोशन करना था। परन्तु नेहरू जी की शिक्षा व लालन पालन पूरी तरह अंग्रेजी व अंग्रेजीयत के माहौल में हुई। इसी कारण उन पर अंग्रेजीयत ही हावी रही। भले ही अंग्रेजी को चंद सालों के लिए राजकाज की भाषा बनायी थी परन्तु उसके बाद न नेहरू जी ने व नहीं उनके बाद के हुक्मरानों ने देश को न तो अपनी भारतीय भाषायें दी व नहीं भारत को अपना नाम भारत ही दिया। दुर्भाग्य स अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी चाहे सरकारें भारतीय भाषाओं के समर्थक महात्मा गांधी का नाम जपने वाली कांग्रेस की सरकार रही हो या सम्पूर्ण क्रांति व भारतीयता के साथ सर्वहारा की बात करने वाले जय प्रकाश, लोहिया व वामपंथी दलों की तीसरे मोर्चे की सरकार रही हो या भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक कहने वाली संघ पोषित भाजपा की अटल व मोदी सरकारें आसीन रही हो सभी सरकारें न तो देश को अपना नाम भारत दे पायी व नहीं देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषायें ही प्रदान कर पायी। इस प्रकार से देश आज भी अंग्रेजी के माध्यम से अंग्रेजों का ही गुलाम बना हुआ है।
देश ही नहीं पूरे विश्व का प्रबुद्ध जन भी हैरान है कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने के 73 साल बाद भी भारत अपने नाम भारत तथा अपनी भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित करने के बजाय बेशर्मी से उन्हीं अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी व अंग्रेजों द्वारा थोपे गये इंडिया नाम का गुलामी ढोते हुए खुद का नाम, संस्कृति, सम्मान, मानवाधिकार व विकास को रौंद रहा है।
भारतीय भाषा आंदोलन का संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक ऐतिहासिक आंदोलन  का विवरण-
(क) -21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर अखण्ड धरना (खद्ध30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक  धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ)  28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक  पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन  किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन  जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर ज्ञापन आंदोलन जारी  (च)ष्अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास
भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 21 अप्रेल 2013 से यानी 79 माह से संसद की चैखट  से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक सत्याग्रह कर रहे हैं। परन्तु देश की सरकार के कान में जूं तक नहीं रैंग रही है। देश की इस प्रथम मांग को तत्काल स्वीकार करने के बजाय देश की सरकार, पुलिस प्रशासन से सत्याग्रहियों का दमन कर आंदोलन को कूचलने का अलोकतांत्रिक कृत्य कर रही है। इसके बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन के सत्याग्रही संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मंदिर/शहीद पार्क/संसद मार्ग पर धरना और जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा) पर सतत् शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहा है। आशा है आपकी सरकार नेहरू जी की जयंती पर भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करने का संकल्प लेंगे ।

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