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विश्व के महान जांबाज योद्धा दरबान सिंह नेगी स्मृति को नमन करेंगे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

प्रथम विश्वयुद्ध के जांबाज महान योद्धा प्रथम विक्टोरिया क्रास सम्मान विजेता भारतीय, दरबान सिंह नेगी (गांव -कफारतीर-कडाकोट- चमोली) की स्मृति में आयोजित शौर्य महोत्सव में सम्मिलित होंगे देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

23 से 25 नवंबर 2019 को आयोजित होगा नारायणबगढ़ के कफारतीर में शौर्य महोत्सव

 

क्या अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले जांबाज़ सैनिकों का भी सम्मान किया जाना चाहिए ? हां वीरों का दुनिया सम्मान करती है ।

 

देवसिंह रावत

इसी नवंबर मास की 22 से 25 तारीख को विश्व के महान जांबाज योद्धा व विक्टोरिया क्रॉस पदक से सम्मानित दरबान सिंह नेगी की स्मृति में उनके पैतृक गांव कफारतीर, में विशाल शौर्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है ।इस समारोह में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत सम्मलित होंगे ।

जैसे ही मुझे इस खबर की भनक लगी तो मेरे मन में पहला प्रश्न यह था कि अंग्रेजो की तरफ से लड़ने वालों को एक स्वतंत्र राष्ट्र को नमन करना चाहिए ? क्योंकि अंग्रेज तो इस देश में आक्रांता थे उन्होंने लाखों भारतीयों का कत्लेआम किया था। देश को लूटा था ।देश के आत्मसम्मान को रौंदा था ।तो फिर उन अंग्रेजों की फौज के सैनिकों का एक स्वतंत्र राष्ट्र को सम्मानित करें ।यही प्रश्न कई बार मेरे मन और मेरे जैसे तमाम लोगों के दिलों दिमाग में भी उठता था कि जब भी हम इंडिया गेट पर दर्ज ब्रिटिश साम्राज्य को बनाए रखने वाली जांबाज सैनिकों की स्मृतियों को स्वतंत्र भारत में भी सम्मानित होते हुए देखता हूं ।तब भी इसी प्रकार की प्रश्न उठते रहते हैं।
इस प्रश्न का उत्तर मेरे दिलो दिमाग में आया कि बहादुरों का दुनिया सम्मान करती है बहादुर विरोधी पक्ष का हो या अपने पक्ष को उसकी वीरता को दुनिया सदैव नमन करती है यही नहीं चीन हो या पाकिस्तान की जंग में भी भारतीय जांबाज सैनिकों का सम्मान के साथ उल्लेख पाकिस्तान और चीन भी करते हैं हां इस मामले में एक बात साफ है कि विदेशी फौज या अपनी फौज के क्रूर अत्याचारी सैनिक का सम्मान नहीं होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि प्रथम विश्व युद्ध में अपनी वीरता का परचम लहरा कर भारत का नाम रोशन करने वाले विक्टोरिया क्रास पदक से सम्मानित दरवान सिंह नेगी की वीरता के किस्से पूरे विश्व की सेनाओं के लिए आज भी प्रेरणादायक व अनुकरणीय है।ं
जिसमें प्रथम विश्वयुद्ध में सन 2014 को अपनी वीरता से हिटलर की नाजी सेना से फ्रांस के फेस्टुबर्ट को मुक्त कराकर विश्व में भारत की वीरता का ऐसा परचम लहराया था, जिसके आगे संसार की सबसे बड़ी महाशक्ति ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज पंचम भी नतमस्तक हो गए थे और उन्होंने फ्रांस में ही युद्ध क्षेत्र में जाकर स्वयं ऐसी महान जांबाज योद्धा दरबान सिंह नेगी को अपने हाथों से ब्रिटेन का सर्वोच्च शौर्य पदक विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया था। ब्रिटिश फौज गढ़वाल राइफल के जांबाज नायक दरबान सिंह नेगी की इस अदम्य वीरता से पूरे विश्व में भारतीयों की वीरता का डंका ही बज गया।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान २३ नवम्बर 1914 को इनकी बटालियन को फेस्तुबर्त में जर्मनों द्वारा कब्जे में किये गये मोर्चे को पुनः हासिल करना था। इस मोर्चे को अपने कब्जे में करने के सारे प्रयास असफल हो रहे थे। हिटलर की जर्मन सेना ने मोर्चे के एक हिस्से को चारों और से घेर लिया था। इसी बीच गढ़वाली बटालियन ने मोर्चे को अपने हाथ में लेते हुए एक किनारे से आगे बढ़ना शुरू किया और २४ नवम्बर की सुबह ३ बजे से बटालियन आगे बढने लगी। दुश्मनों को पीछे धकेलती रही इस दौरान दुश्मनों के नियंत्रण में सुरंग को भी फतह करने में सफल रही। जिसमे दरबान सिंह नेगी सबसे आगे थे। उन्होने दुश्मनों का डटकर सामना किया। उन्होंने कई दुश्मनों को मौत की नींद सुलझा दिया था। वे आगे बढ़ते रहे। इस दौरान उनके सिर पर दो जगह और बांह में एक जगह गोली लगने से घाव हो गया था। जिससे अत्यधिक रक्तस्राव होने लगा था। फिर भी दरबान सिंह नेगी ने लड़ाई जारी रखी और विजय प्राप्त करके ही दम लिया। जब लड़ाई खत्म हुई तो हर कोई दरबान सिंह नेगी की वीरता और पराक्रम को देख हतप्रभ था। दरबान सिंह नेगी ने अपनी जान की परवाह न करते हुये अकेले ही जर्मन सेना पर भारी पडे थे। इस दौरन दरबान सिंह सिर से लेकर पाँव तक खून से लथपथ थे। युद्ध के बाद उन्हें उपचार के लिए भर्ती किया गया।

05 दिसम्बर 1914 को किंग जॉर्ज पंचम ने परम्पराओं व प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए लंदन के पैलेस एवं देश की सीमाओं से बाहर मित्र राष्ट्र फ्रांस के युद्ध के मैदान में स्वयं जाकर दरबान सिंह नेगी को देश का सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया।

विक्टोरिया क्रॉस देने के लिए प्रोटोकॉल और परम्परायें ही नहीं तोड़ी गयी बल्कि उन्हें विक्टोरिया क्रॉस देने के 2 दिन बाद विक्टोरिया क्रॉस देने की राजाज्ञा जारी करना भी गोपनीयता के हिसाब से अद्वितीय घटना है। जिसमें उनकी प्रशस्ति में लिखा है—
“23-24 नवंबर की रात, फ्रांस के फेस्तुबर्त के निकट जब रेजिमेंट दुश्मन से अपनी खाइयों को वापस लेने का प्रयास कर रही थी उस दौरान, और दो बार सिर और बांह में घाव लगने और निकट से हो रही राइफलों की भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच होने के बावजूद खाइयों में घुसकर उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराने में दिखाई गई उनकी अनुपम वीरता के लिए”

जार्ज पंचम दरबान सिंह नेगी से इतने प्रभावित हुए उनसे दो चीजें मांगने को कहा। दरबान सिंह नें कर्णप्रयाग में मिडिल स्कूल और दूसरा हरिद्वार-ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन की मांग जार्ज पंचम के सामनें रखी।दोनों मांगें फ्रांस की धरती पर ही किंग जॉर्ज पंचम ने स्वीकार कर ली। सन 1914 से सन 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध चला। युद्ध के अंतिम समय में 26 अक्टूबर 1918 को कर्णप्रयाग में वार मेमोरियल एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की स्थापना हुई। जिसके उदघाटन के लिए गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर जोसेफ क्ले अपनी पत्नी सहित पहुँचे थे जबकि रेलवे लाइन का भी सर्वे सन 1919 से सन 1924 के बीच पूरा कर लिया गया था।
24 जून 1950 को सूबेदार बहादुर, दरवान सिंह नेगी विक्टोरिया क्राॅस नें अपनें पैतृक गाँव कफारतीर में अंतिम सांसे ली।
विक्टोरिया क्रास विजेता स्व. दरबान सिंह नेगी के तीन बेटे है। बड़ा बेटा स्व पृथ्वी सिंह नेगी, उप जिलाधिकारी से सेवानिवृत्त होने के बाद देहरादून मेें बस गये।
दुसरा बेटा डा. दलवीर नेेगी, जो अमेरिका में वरिष्ठ वैज्ञानिक रहे और सेवानिवृत्ति के बाद अमेरिका में ही रहते हैं। तीसरे बेटा ब्रिगेडियर बलवीर सिंह नेेगी जो सेवानिवृत के बाद लखनऊ में है। ब्रिगेडियर बलवीर के बेटे नितिन नेगी भी सेना में कर्नल हैं।

कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से भारत के रक्षा मंत्री भारत के इस विश्व प्रसिद्ध जांबाज योद्धा दरबान सिंह नेगी की पावन स्मृति को उनके गांव में ही जाकर सादर नमन करेंगे ।उनके साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी उत्तराखंड के इस जांबाज लाल को नमन करेंगे।
इस अवसर पर आयोजित शौर्य महोत्सव में गढ़वाल राइफल के जांबाज सैनिक, गायत्री परिवार सहित अनेक सामाजिक संगठन भी इस शौर्य महोत्सव में सम्मलित होंगे।
4 मार्च 1883 को कफारतीर गांव के कलम सिंह नेगी जी के घर में प्रथम विक्टोरिया क्रॉस नायक दरबान सिंह नेगी का जन्म हुआ था। ३ बहिनों और दो भाइयों में ये दूसरे नम्बर के थे। उस समय पूरी कड़ाकोट पट्टी सहित पिंडर घाटी में कोई भी विद्यालय नहीं था।
४ मार्च १९०२ को वे महज १९ साल की उम्र में ३९ गढ़वाल राइफल्स में राइफल मेन के रूप में भर्ती हो गये।

अपनी वीरता के लिए पूरा उतराखण्ड संसार में प्र्रसिद्ध है। प्रदेश के हर गांव की भागेदारी देश की सुरक्षा के लिए समर्पित जांबाजों के गांव के रूप में विख्यात है। विश्व युद्धों में सीमान्त जनपद चमोली जनपद के देवाल विख के जांबाज सैनिकों का गांव सवाड, नारायणबगड के रैंस,कफातीर, कोठुली, चिरखून, घाट ब्लाक में पगनों गांव, दशोली ब्लाक में लुंहा आदि गांव के जांबाजों की उल्लेखनीय भागेदारी रही। सवाड़ व रैस में जांबाज सैनिकों की वीरता के स्मृति स्थल भी बने है। परन्तु कोठुली के नड़ी सिंह रावत व चिरखून के कलम सिंह रावत सहित प्रदेश में असंख्य ऐसे जांबाज विश्व युद्धों के जांबाज रहे जो आज भी अपनों के बीच गुमनाम हैं। परन्तु कफारतीर के महान सपूत दरवान सिंह नेगी ने चीन की जंग में सुनभी के कल्याण सिंह सौंरियाल व कर्ण सिंह सौंरियाल बंधुओं की वीरता की यशोगाथा हो या कोथरा के लाल कुर्ती के नाम से प्रसिद्ध नायब सुबेदार गुमान सिंह नेगी की वीरता के किस्से लोगों की स्मृति में आज भी ताजा है।

प्रथम विश्व युद्ध में अपनी वीरता परचम लहरा कर प्रथम विक्टोरिया सम्मान पदक से सम्मानित दरवार सिंह नेगी ने विश्व विख्यात होने के बाबजूद सीमान्त जनपद के सबसे पिछडे विकासखण्ड नारायणबगड स्थित अपना गांव कफातीर नहीं छोड़ा। जहां सड़क, बिजली, स्वास्थ्य आदि सभी सुविधाओं से वंचित था। उनका गांव कफातीर कड़ाकोट पट्टी व परगना बधाण का सीमावर्ती क्षेत्र का गांव है। कडाकोट पट्टी में कफारतीर के अलावा, खैंतोली, सैंज, जाखपाट्टियों, चिरखून, कोठुली, कोथरा,सुनभी, केदारकोट,सदगड़, भुलक्वाणी, ग्वाड़, भट्टियाणा, कोट, चमतोली, मदनपुर के अलावा लोदला, व्यथरा, डडोगाड़, रैस, तुनेड़ा, चोपता, भंगोटा, कुश, आलियों, चलपाणी, सरो,आलियों,डूंगरी, जाख, ज्यूनियोर, असेड़, सिमली आदि गांव हैं।
स्थानीय लोगों को विश्व के महान जांबाज दरवान सिंह नेगी से इस बात की सदा शिकायत रही कि उन्होने अपने क्षेत्र को मोटर मार्ग से जोड़ने की मांग नहीं की। अपने क्षेत्र में विद्यालय व चिकित्सालय की मांग क्यों नहीं की? यह शिकायत केवल दरवान सिंह नेगी जी तक नहीं रही। दरवान सिंह नेगी के जेष्ठ पुत्र पृथ्वी सिंह नेगी जो जनपद चमोली में भी सहायक जिलाधिकारी रहे उनसे भी लोगों की यही शिकायत नहीं रही। भले ही आम लोगों को यह नहीं मालुम रहा कि उन्होने कर्णप्रयाग हाई स्कूल व कर्णप्रयाग तक रेल मार्ग की भी मांग की थी। आज इस महान सपूत की स्मृति में हो रहे इस शौर्य महोत्सव में देश के रक्षामंत्री के आने की बात सुन कर लोगों को इस बात का भान लग रहा है कि जांबाज दरवान सिंह नेगी को कितना बडा कद रहा। इसका अहसास मुझे भी खुद उस समय हुआ जब गढवाल लोकसभा के विख्यात उपचुनाव के दौरान उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्व नाथ प्रताप सिंह हेलीकप्टर से इस क्षेत्र के केन्द्र स्थल कोठुली गांव में उतरे तो उतरते ही विश्वनाथ प्रताप सिंह को कांग्रेसी प्रत्याशी चंद्र मोहन सिंह नेगी ने लोगों से पूछकर बताया कि वीसी दरवान सिंह नेगी के गांव कफातीर सामने है।

मुझे भले ही दरवान सिंह नेगी का मेरे इस देह में अवतरण होने से वर्षों पहले ही निधन हो चूका था। परन्तु दो तीन दशक पहले मुझे दिल्ली आते हुए कोठुली से नलगांव पैदल जाते समय, कफारतीर से नलगांव तक दरवान सिंह नेगी के मंझोले पुत्र डा दलबीर सिंह जो उस समय अमेरिका में वैज्ञानिक थे, के साथ चलने का अवसर मिला। परन्तु दुखद बात यह है कि जिस गांव कफारतीर को संसार में वीरता का उस समय सबसे बड़ा सम्मान विक्टोरिया क्रास पाने के बाद भी विश्व के जांबाज दरवान सिंह नेगी ने नहीं छोडा था, वे जीवन की अंतिम सांस तक अपने ही गांव में रहे। उस कफारतीर गांव को उनके बेटे छोड़ चूके हैं। दरवान सिंह नेगी जी के संग साथी तो सब इस दुनिया से विदा हो गये। हाॅ गांव में रह गये उनके कुटम्ब के लोग। जो इस अवसर पर संसार के महान जांबाज दरवान सिंह नेगी की वीरता के किस्से अपने नौनिहालों व लोगों को सुना कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते है। इस शौर्य महोत्सव के अवसर पर मैं जांबाज वीर दरवान सिंह नेगी की पावन स्मृति को नमन् करते हुए केवल एक ही बात कहना चाहता हॅू कि वीरता को कभी किसी जाति, क्षेत्र, धर्म व लिंग व नस्ल के दायरे में नहीं बांधना चाहिए वीर तो पूरे संसार का होता है। दरवान सिंह नेगी की व्यापक दृष्टि का प्रतीक है उनके द्वारा जार्ज पंचम से विद्यालय व रेल लाइन की मांग करना। इसीलिए वीरों को पूरा संसार नमन करता है। हाॅ उनके परिजनों का यह नैतिक दायित्व है कि वे अपने पैतृक गांव में अपने वीर परिजन दरवान सिंह नेगी की स्मृति को सदा रोशन करे। भारतीय सेना तो अपने स्तर से अपने जांबाजों का सम्मान तो करती ही है परन्तु परिजनों का भी एक दायित्व होता है।

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