25सालों से 2 अक्टूबर को संसद की चौखट पर काला दिवस मना कर देश के हुक्मरानों व उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों को धिक्कारते हुये गुनाहगारों को सजा देने के लिए विशेष जांच आयोग बनाने की मांग करते हैं उत्तराखंडी
नई दिल्ली(प्याउ )।फिर 2 अक्टूबर को उत्तराखंडी काला दिवस मनाएंगे । विगत 25 साल से उत्तराखंड 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन काला दिवस मनाते हैं ।
मुख्य आयोजन संसद की चौखट जंतर मंतर पर काला दिवस के रुप मेें मनाया जाता है ,जहां पर उतराखंड राज्य गठन के समर्पित आंदोलनकारी व उतराखंड़ी समाज देश के हुक्मरानों और उत्तराखंड के 19 साल के मुख्यमंत्रियों को धिक्कारते हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे और वर्तमान केंद्र और उत्तराखंड की सरकार से इस कांड के गुनाहगारों को सजा देने की फिर पुरजोर मांग करेंगे।
गौरतलब है कि 2 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड राज्य गठन जनांदोलन के दौरान आहूत लाल किला रैली में भाग लेने आने वाले शांतिप्रिय उत्तराखंडी मां बहनों और युवाओं को उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ने केंद्र की नरसिंह राव सरकार की शह पर जो नरसंहार दुराचार दमन पुलिस प्रशासन ने किया उसे भारत की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई मानवाधिकार आयोग महिला आयोग को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखकर दोनों सरकारों को गुनाहगार घोषित किया था और इस कांड के गुनहगार पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को गुनाहगार बताया था।
परंतु 1994मेें उत्तराखंड राज्य गठन जनांदोलन को कुचलने वाले इन गुनाहगारों को सजा देने में भारत की न्याय व्यवस्था व उत्तराखंड राज्य की 19 सालों की सरकारें,पूरी तरह असफल रही। यही नहीं बेशर्मी से देश के हुक्मरानों और उत्तराखंड की 19 सालों की सरकारों ने इन गुनाहगारों को सजा देने के बजाय उनको उच्च पदों पर आसीन करके संविधान का निर्मम गला घोंटते हुये इन अपराधियों को उच्च पदों पर आसीन किया। यही नहीं उत्तराखंड की सरकारों ने तो कमजोर पैरवी करके इन गुनाहगारों को बरी कराने का कुकृत्य किया और उत्तराखंड में आए इन गुनाहगारों को सजा देने के बजाय लाल कालीन बिछा कर हैवानियत भरा कृत्य किया। उत्तराखंड से विश्वासघात करने वाला कुकृत्य किया।
2019 को उत्तराखंड आंदोलनकारियों के साथ उत्तराखंड समाज के नौजवान भी आयोजन में सम्मिलित होंगे। उत्तराखंड के नौजवानों का एक संगठन फर्स्ट यूके इस बात से बेहद हैरान है कि मुजफ्फरनगर कांड के 25 साल बाद भी गुनहगारों को सजा क्यों नहीं मिली । वे इस बात से भी आक्रोशित हैं कि उत्तराखंड के शहीदों के गुनाहगारों को सजा न देने पर उत्तराखंड का समाज और उत्तराखंड की सरकार है क्यों मौन रही?
इसीलिए ये पुरजोर मांग कर रहे हैं कि मुजफ्फरनगर कांड के गुनाहगारों को सजा देने के लिए विशेष जांच आयोग बनाया जाए, जो गुनाहगारों को कड़ी से कड़ी सजा दे।
उत्तराखंड की जनता और उत्तराखंड के नौजवानों को इस बात का शायद ही भान हो कि इस कांड के गुनाहगारों को सजा नहीं दिए जाने के लिए और कोई नहीं
अपितु देश,उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सत्ता में आसीन रहे नेता व उनकी पार्टियां ही जिम्मेदार है।
1994 से लगातार संसद की चौखट जन्तर मंतर पर काला दिवस मनाते हुए इस कांड के गुनाहगारों को सजा दिलाने की पुरजोर मांग करने वाले उत्तराखंड आंदोलन के ध्वजवाहक देव सिंह रावत ने कहा कि आंदोलनकारी 1994 से लगातार काला दिवस वाले कार्यक्रम सहित हर प्रमुख आयोजनों में इस कांड के गुनाहगारों को कड़ी सजा देने के लिए ‘गुजरात व 84 के दंगों पर बने आयोगों की तरह आयोग गठन की मांग करते आए हैं ।
उत्तराखंड के हर मुख्यमंत्री से इस की पुरजोर मांग की गई ।भारत के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक इसके लिए अनेक बार गुहार लगाई गई । इस कांड के गुनाहगारों को कड़ी सजा देने के लिए विशेष जांच आयोग बनाने की मांग करने वाले दर्जनों ज्ञापन भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों को दिए गए, वे इस बात की गवाही चीख चीख कर दे रहे हैं कि देश की न्याय व्यवस्था दम तोड़ चुकी है।
पर शर्मनाक बात है इस प्रकरण पर संसद पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले व सड़कों पर इसके गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए पुतला दहन करने वाले नेताओं की सरकारें आई, तो वह स्वयं ही इस कांड की गुनाहगारों को बचाने में लग गए। उन्हें इस बात का भय था कि कहीं इस कांड की स्वतंत्र जांच हुई तो उनका काला चेहरा सामने आ जाएगा। इसलिए अपना गुनाह बेनकाब हो जाने के भय से सपा,बसपा, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने अपने कार्यकाल के दौरान इस कांड के गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए न कोई आयोग बनाया और ना ही सजा देने के लिए ईमानदारी से मजबूत पैरवी ही न्यायालयों में की।
इन्होंने बेशर्मी से इस कांड के अभियुक्तों को महत्वपूर्ण पदों में आसीन करने का कुकृत्य भी किया।
इस कांड के गुनाहगारों को बचाने के लिये जितने गुनाहगार, मुलायम,राव व उतराखंड की 19 सालों के मुख्यमंत्री रहे । उससे अधिक गुनाहगार भाजपा व कांग्रेस रही है। विश्वासघाती रही है।
उत्तराखंड के अन्य विपक्षी दल भी कम गुनाहगार नहीं रहे।
सही जानकारी के अभाव में या राजनीतिक दलों के मोह में ग्रसित होकर सामाजिक संगठनों ने भी इस प्रकरण को उतनी मजबूती से नहीं उठाया जितना जरूरी रहा।
अपने हक हकूकों, राज्य गठन की जनाकांक्षाओं व सम्मान के प्रति उदासीन उत्तराखंड में समाज के कारण आज उत्तराखंड की सरकारें उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को रौंदने में लगी हुई है। उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलनकारियों और शहीदों की भावना के अनुरूप प्रदेश की राजधानी गैरसैण बनाने के बजाय वे बेशर्मी से देहरादून में कुंडली मारकर, उत्तराखंड को शराब व भ्रष्टाचार से बर्बाद करने में तुले हुए हैं।
उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन कि समर्पित आंदोलनकारी जानते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलनकारियों व शहीदों का एक ही सपना था, पृथक उतराखण्ड राज्य मेें, राजधानी गैरसैण बने ओर खुशहाल हो उत्तराखंड अपना।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के समर्पित आंदोलनकारियों को विश्वास है
भले ही भारत की न्याय व्यवस्था और उत्तराखंड के विश्वासघाती हुक्मरानों के साथ गुनाहगारों को महाकाल, हर हाल में सजा देगा ।
उत्तराखंड के समर्पित आंदोलनकारी निरंतर इनके कलुषित चेहरों को बेनकाब करने और उत्तराखंड के शहीदों के अरमानों को साकार करने के लिए राजधानी गैरसैण बनाकर उत्तराखंड को खुशहाल बनाने के लिए समर्पित रहेंगे।