शताब्दियों से भारत को रौंदने के इस मामले को मध्यस्थता के टोटके से टालने के बजाय भारत के माथे पर लगे कलंक से भारत को मुक्त करे सरकार व न्यायालय
नई दिल्ली (प्याउ)। जैसे ही 10 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने रामजन्म भूमि मंदिर वाद की सुनवायी करते हुए मध्यस्थता के पैनल द्वारा 15 अगस्त तक का समय मांगने पर अगली सुनवायी 15 अगस्त को करने का ऐलान किया तो शताब्दियों से इस मामले की न्याय की राह देख रहे भारतीयों की आशाओं पर फिर बज्रपात हुआ। गौरतलब है कि शताब्दियों पहले भारतीय अस्मिता को रौंदने के लिए विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारतीयों की आस्था व अस्मिता के प्रतीक भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में निर्मित भव्य राममंदिर को ध्वस्थ कर उस पर बलात बाबरी मस्जिद बना दी थी। इस अन्याय, अत्याचार व कलंक से मुक्ति के लिए भारतीयों ने शताब्दियों तक संघर्ष किया और शहादतें दी। 1947 के बाद भारतीयों को आशा थी कि देश की सरकारें देश की जनभावना का सम्मान करते हुए रामजन्म भूमि मंदिर को इस कलंक से मुक्त करेगी। परन्तु न सरकार ने व नहीं न्यायालय ने देश की अस्मिता व जनभावनाओं का सम्मान किया। इससे जनता में गहरी निराशा उत्पन्न हुई। भाजपा की सरकारें सत्तासीन होने के बाद जनता को आशा थी कि इस मामले में न्याय किया जायेगा। परन्तु सरकार व न्यायालय ने जनता को निराश किया।
वर्षों से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के दर पर है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रामजन्मभूमि प्रकरण पर फैसला देते हुए 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा तीन हिस्सों में कर दिया गया था। जिसमें ने एक हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया जिसमें राम मंदिर बनना था। दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था। विवादित स्थल का तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया था।
8 मार्च 2019को इस मामले के समाधान के लिए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की एक संवैधानिक पीठ गठित हुई। पीठ ने सुनवायी करते हुए इस मामले का त्वरित समाधान करने के बजाय मध्यस्थता को प्राथमिकता दी। इसी के तहत मध्यस्थता के लिए न्यायमूर्ति खलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली एक मध्यस्थता कमेटी गठित की गयी। इसमें न्यायमूर्ति इब्राहिम खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल हैं।
न्यायालय शताब्दियों से लटके मध्यस्थता के टोटके से रामजन्म भूमि मंदिर वाद को लटकाये नहीं अपितु तत्काल न्याय करे सरकार व न्यायालय।
अब न्यायालय द्वारा तत्काल सुनवायी करने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय ने रामजन्म भूमि मंदिर वाद में मध्यस्थता की आड में 15 अगस्त तक यह ज्वलंत मुद्दे को लटका दिया गया। इस प्रकरण के समाधान के प्रति सरकार व न्यायालय के इस रवैये से न्याय व भारतीय मूल्यों पर विश्वास करने वाले लोगों को गहरा आघात लगा।