भारतीय भाषा आंदोलन ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली(प्याउ)। भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा रहे पुष्पेन्द्र चौहान के पूज्य पिता जी धर्मपाल चौहान जी के निधन का समाचार सुन कर भारतीय भाषा आंदोलन ने दिवंगत आत्मा को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देने वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, देवेन्द्र भगत जी, कोषाध्यक्ष सुनील कुमार, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला, श्रीओम, वेदानंद, मन्नु कुमार, विश्व हिंदु परिषद के दिप्र के प्रवक्ता महेन्द्र रावत, राष्ट्रीय लोकदल के दिल्ली प्रदेश महासचिव मनमोहन शाह, कमल नौटियाल, अनिल पंत, पदम सिंह बिष्ट आदि सम्मलित थे। भारतीय भाषा आंदोलन ने श्रद्धांजलि देते हुए शोक संतप्त परिवार को अपनी संवेदना प्रकट की।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने बताया कि आज 9 जनवरी की सुबह 10.30 बजे को यह शोक समाचार, बागपत क्षेत्र के अग्रणी समाजसेवी देवेन्द्र भगतजी(भगत स्वीट वाले) ने दूरभाष पर दी। देर से मिले शोक समाचार की सूचना देते हुए समाजसेवी देवेन्द्र भगत जी के अनुसार बागपत क्षेत्र के पाली गांव के मूल निवासी भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान के वयोवृद्ध पिता जी स्व. धर्मपाल चौहान का निधन 85 साल की उम्र में 26 दिसम्बर को हुआ। शोकाकुल परिवार में स्व. धर्मपाल के तीन बेटे, बहुयें व पोते पोतियां सहित ईष्ट मित्र है।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने इस शोक समाचार की जानकारी देते हुए बताया कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता से मुक्त करके भारतीय भाषायें लागू करने के लिए विश्व का सबसे लम्बा ऐतिहासिक धरना देने वाले पुप्पेन्द्र चौहान व स्व. राजकरण सिंह को भारतीय भाषाओं के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
इस धरने के संस्थापक पुष्पेन्द्र चौहान ने 10 जनवरी 1991 में इस मांग के प्रति सरकारों की उपेक्षा से आहत होकर संसद की दर्शक दीर्घा से संसद में कूद कर अपनी जिंदगी दाव पर लगा दी थी। इस आंदोलन के समर्थन में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह के नेतृत्व में पूर्व प्रधानमंत्री अटल व विश्वनाथ प्रताप सिह, उपप्रधानमंत्री देवीलाल व लालकृष्ण आडवाणी तथा चतुरानंद मिश्र सहित 4 दर्जन सांसदों ने भारतीय भाषा आंदोलन के समर्थन में संघ लोक सेवा आयोग के द्वार पर चल रहे अखिल भारतीय भाषा संरक्षण समिति के धरने में कई घण्टों तक भाग लेकर समर्थन दिया था। इसी के बाद संसद ने भारतीय भाषाओं को लागू करने का 18 जनवरी 1968 के उस बेजान प्रस्ताव को पुनः 11 जनवरी 1991 को ध्वनिमत से पारित कर किया था। परन्तु खेद है आज तक देश में भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय, शासन व सम्मान नहीं मिलता। पूरे तंत्र पर अंग्रेजों के जाने के 72 साल बाद भी अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का राज चल रहा है।
इसी के खिलाफ 21 अप्रैल 2013 को पुष्पेन्द्र चौहान व देवसिंह रावत ने संसद की चौखट जंतर मंतर पर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं को लागू करने का ऐतिहासिक आदंोलन छेडा। परन्तु लम्बे संघर्ष, समाज की उपेक्षा व पारिवारिक दायित्वों के चलते पुष्पेन्द्र चौहान भले ही इस संघर्ष से शरीर से दूर है , उनके द्वारा प्रज्ज्वलित भारतीय भाषाओं की भाषाई मशाल को भारतीय भाषा आंदोलन देवसिंह रावत के नेतृत्व संसद की चौखट पर 69 माह से पुलिस प्रशासन के दमन को नजरांदाज करके भी पूरे समर्पण से जीवंत रखे हुए है। पुलिस प्रशासन द्वारा सतत् धरने की अनुमति न दिये जाने के बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन सतत् जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर उन्हें ज्ञापन दे रहा है।