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केन्द्रीय जांच ब्यूरों के निदेशक आलोक वर्मा को जबरन छूट्टी पर भेजने का फैसला रद्द

नियुक्ति कमेटी को भेजना चाहिए था आलोक वर्मा को जबरन छूट्टी पर
भेजने की कार्यवाही करने के लिए 

जनवरी में सेवामुक्त होने वाले आलोक वर्मा नहीं ले सकें बडे फैसले
सर्वोच्च न्यायालय को विपक्ष ने बताया करारा तमाचा, भाजपा ने विपक्ष के आरोपों को नकारा
नई दिल्ली (प्याउ)। 8 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई,  न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदसीय पीठ ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए केन्द्रीय जांच ब्यूरों के निदेशक को जबरन छूट्टी पर भेजे जाने को असंवैधानिक बताते हुए रद्द किया। 8 जनवरी को 10.41 बजे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अवकास पर होने के बाबजूद न्यायमूर्ति एके कौल नहीं यह फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकार इस प्रकार से जबरन छुट्टी पर भेजना व हटाया नहीं जा सकता है। इसके लिए केन्द्रीय जांच ब्यूरों के निदेशक को हटाने व छूट्टी पर भेजने का निर्णय भी केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक के लिए चयन समिति ही ले सकती है। वही उनके खिलाफ कार्यवाही कर सकती है। चयन समिति की अनुमति/सलाह से ही केन्द्रीय जांच ब्यूरों के प्रमुख के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।
इसके साथ सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा केन्द्रीय जांच ब्यूरों के प्रमुख आलोक वर्मा पर लगाये गये गंभीर आरोपों को देखते हुए चयन समिति को निर्देश दिया है कि वे एक सप्ताह के अंदर इस मामले पर निर्णय लें। तब तक सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि आलोक वर्मा कोई नीतिगत फैसला नहीं ले सकेेगें। सर्वोच्च न्यायालय ने विनित नारायण मामले का हवाला देते हुए कहा कि सलेक्ट कमेटी की सहमति लेनी चाहिए।

गौरतलब है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरों के प्रमुख की नियुक्ति के लिए जो सर्वोच्च चयन कमेटी बनी है। उस चयन कमेटी में भारत के  मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री व लोकसभा में विपक्ष का नेता सामिल होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले में केन्द्रीय जांच ब्यूरों के वरिष्ठ अधिकारियों पर हुए विवाद को देखते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि केन्द्रीय जांच ब्यूरों के प्रमुख का पद गरिमा मय होना चाहिए। उसकी गरीमा बनाये रखने का दायित्व भी निदेशक का है। जरूरत पडी तो वर्मा पर भी कार्यवाही हो सकती है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा लगाये आरोपों की गंभीरता देखते हुए नियुक्ति कमेटी से एक सप्ताह के अंदर फैसला लेने का भी निर्देश दिया।
गौरतलब है सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला  तब दर्ज हुआ जब सरकार द्वारा केन्द्रीय जांच ब्यूरो के के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिडी शर्मनाक जंग व जग हंसाई को रोकने के नाम पर केन्द्र सरकार ने 23 अक्टूबर 2018 को  उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने का निर्णय किया था।  संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को जांच एजेन्सी के निदेशक का अस्थाई कार्यभार सौंप दिया था। छुट्टी पर भेजे गए केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। केन्द्रीय जांच ब्यूरों के निदेशक को जबरन छुट्टी पर भेजने के खिलाफ कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने इस प्रकरण पर मोदी सरकार को लोकशाही का गला घोंटने का आरोप लगा कर संसद से लेकर सडकों पर प्रचण्ड प्रर्दशन किया। वहीं सरकार ने इस संवैधानिक संस्थाओं को बचाने के लिए यह आपात निर्णय लिया।
केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक सर्वोच्च न्यायालय ने विनित नारायण मामले का हवाला देते हुए कहा कि सलेक्ट कमेटी की सहमति लेनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से जहां विपक्ष मोदी सरकार को करारा तमाचा बता रहा है वहीं सत्तासीन भाजपा इसे सरकार के खिलाफ फैसला नहीं मान रही है।

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