मनखी बाघ का आतंक, 45 वर्षीया घसियारी भवानी मेहता को बनाया निवाला
आये दिन जंगली जानवरों के हमले से निजात दिलाने में रही असफल सरकारों की उदासीनता से लोगों को आहत
– देवसिंह रावत –
13 दिसम्बर को जैसे ही खबरिया चैनलों से उतराखण्ड का जनमानस को खबर मिली की मनखी बाघ ने शीशम भुजिया निवासी 45 वर्षीया घसियारी भवानी मेहता को अपना निवाला बना दिया तो आम जनमानस जहां मनखी बाघ के आतंक से सहम गया वहीं लोग इस बात से आक्रोशित हैं कि राज्य गठन के 18 सालों की सरकारों ने आये दिन बाघ, रीछ सहित हिंसक जंगली जानवरों का निवाला बन रहे लोगों को इन आदमखोरों से निजात दिलाने का समाधान तक नहीं किया।
खबरों के अनुसार 12 दिसम्बर को 45 वर्षीया भवानी अपने जानवरों को चराने व घास के लिए समीपवर्ती इमलीघाट के जंगल में गयी। परन्तु जब देर सांय तक वह वापस नहीं आयी तो लोगों ने काफी खाजबीन की परन्तु घसियारी का कोई पता नहीं चला। उसके बाद वन विभाग को इसकी खबर दी गयी। वन विभाग ने 13 दिसम्बर के तडके खोज कर जंगल में बाघ द्वारा खाया उसका शव बरामद किया। लालकुआं कोतवाली पुलिस ने शव का पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम के लिए हल्द्वानी भेजा। वन क्षेत्राधिकारी अनिल कुमार जोशी ने बताया कि महिला के गले में गुलदार के दांतों के निशान पाए गए हैं।
प्रशासन ने मृतक के परिजनों को तीन लाख का मुआवजा देकर अपना दायित्व इति समझ लिया। इस प्रकरण से लोगों में बेहद गुस्सा है कि आखिर सरकारें कब तक उतराखण्डियों को आदमखोर जंगली जानवरों को निवाला बनाता रहेगा। क्या मात्र एक इंसान के जीवन की कीमत 3 लाख रूपये मात्र है? क्या उतराखण्ड केवल बाघ व बांधों के लिए है ? क्या सरकार की नजरों में यहां रहने वाले पर्यावरण रक्षकों के जीवन की कोई कीमत नहीं है?
उतराखण्ड बनने से पहले लोगों को इस भ्रम में थे कि उप्र जैसे मैदानी प्रदेश के नीति नियंताओं को उतराखण्ड के भौगोलिक स्थिति व समाज के बारे में अनविज्ञ है। इसलिए वे यहां पर भी मैदानी कानून थोपकर हिमालयी क्षेत्रों के निवासियों का जीना दुश्वार करते है। परन्तु राज्य गठन के बाद यहां की सरकारें में आंखे बंद कर उप्र के कायदे कानूनों को जारी रख कर लोगों की आशाओं पर बज्रपात कर रहे है। लोगों को विश्वास था कि राज्य गठन के बाद यहां की सरकारें मैदानी क्षेत्र के लोेगों के हित में व उनके मनोरंजन के लिए उतराखण्ड को केवल बांध या बाघों शव जंगल में मनखी बाघों का अभ्यारण न बनाकर सदियों से हिमालयी क्षेत्र की रक्षा करने वाले उतराखण्डियों की जनता के हक हकूकों व जीवन की रक्षा करेगी।
लोग हैरान है कि जब प्रदेश की सरकारें ही प्रदेश की जनता की सर्वसम्मत राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को बलात नजरांदाज करके देहरादून में कुण्डली मार कर प्रदेश को उजाडकर देश की सुरक्षा से खिलवाड करने का कुकृत्य कर सकते हैं तो उनके भेजे में यह गंभीर समस्या कहां से आयेगी। प्रदेश की सरकारों का मानसिक विकलांगता तो यह है कि यह हिमालयी पर्यावरण का गलाघोंट कर टिहरी व पंचेश्वर जैसे बांधों से प्रदेश को बर्बाद कर केदारनाथ जैसी त्रासदी को खुला निमंत्रण दे रहे है। लोगों को जबरन विस्थापन कर रहे है।