त्रिवेंद्र सरकार के आगे धरा रह गया उतराखण्डी के नेताओं व शासन को नचाने वालेे मृत्युंजल मिश्रा का तिकडम
कहीं मृत्युंजय मिश्रा की गिरफ्तारी का हस्र भी उमेश शर्मा की गिरफ्तारी की तरह न हो!
देहरादून (प्याउ)। आखिरकार उतराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार ने राज्य गठन की अब तक की तमाम सरकारों को नचाने व चंद सालों में ही अध्यापक से कुल सचिव व अपर स्थानिक आयुक्त के पद पर अचम्भित पद्दोन्नति लेने वाले उतराखण्ड के विवादों में छाये रहने वाले अधिकारी मृत्युंजय मिश्रा को 3 दिसम्बर की सांयकाल देहरादून के ईसी रोड स्थित काफी शाॅप से गिरफ्तार कर लिया।
उसके बाद उसके आवास आदि परिसरों में छानबीन की गयी। पुलिस ने मिश्रा व अन्य के खिलाफ 17 नवंबर को ही गुपचुप तरीके से भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 467, 468 व 471 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इसी मामले में प्रशासन से गिरफ्तारी की इजाजत मिलने पर मृत्युंजय मिश्रा की गिरफ्तारी की गयी। पर लोग आशंकित है कि उमेश शर्मा की तरह कहीं मृत्युंजय शर्मा की गिरफ्तारी बे असर साबित न हो। मृत्युंजय मिश्रा भी कहीं ंकुछ ही दिनों में जेल से बाहर आ जायेगा! देखना यह है कि प्रशासन के आरोप न्यायालय में कहां तक साकार होते हैं? परन्तु मृत्युंजय मिश्रा की गिरफ्तारी से उमेश शर्मा भी जरूर आशंकित होगा कि कहीं सरकार मृत्युंजय मिश्रा को उसके खिलाफ हथियार न बना दे। यही नहीं मृत्युंजय को संरक्षण देने वाले नेताओं में भी मचा हडकंप।
मृत्युंजय मिश्रा के खिलाफ 2013 से 2017 आयुर्वेद विवि में कुलसचिव रहते वित्तीय अनियमितता और धोखाधड़ी के आरोप में यह कार्रवाई की गई है। गिरफ्तार मिश्रा पर 2013 से 2017 आयुर्वेद विवि में कुलसचिव रहते वित्तीय अनियमितता और धोखाधड़ी के आरोप में यह कार्रवाई की गई है। उन्हें 4 दिसम्बर को अदालत में पेश किया जाएगा। मिश्रा द्वारा अपने कार्यकाल के दोरान बिना अनुमति के फर्जी यात्राएं दिखाते हुए जाली एयर टिकट भुगतान के लिए विवि में लगाए गए। विवि में सामान की सप्लाई करने वाली कुछ फर्मों से मिलीभगत कर कुछ फर्जी बैंक खाते खुलवाए और उनमें विवि के 32 लाख 15 हजार रुपये डाले गए। इसके अलावा मिश्रा एवं उनके परिजनों के खातों में भी नकद और बैंक ट्रांजेक्शन के जरिए 68 लाख 2 हजार रुपये डाले गए।
गौरतलब है कि उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश समेत अन्य अधिकारियों के स्टिंग के प्रयास को लेकर दर्ज किए गए मुकदमे में नाम आने के बाद मृत्युंजय मिश्रा को आयुर्वेद विविद्यालय के कुलसचिव पद से निलम्बित कर उनके खिलाफ विजिलेंस विभाग में जांच शुरू कर दी थी। मृत्युंजय मिश्रा को विश्वास था कि यह जांच महीनों चलेगी और उसका कोई बाल बांका नहीं कर पायेगा। वह प्रशासन की कार्यवाही से बेखबर था। प्रशासन ने प्रशासन से अनुमति मिलने के बाद
मृत्युंजय मिश्रा की गिरफ्तारी से उनकी अब तक सभी विवादों में बने रहने के बाबजूद एक बाल बांका न हो पाने वाली छवि तार तार हो गयी। गिरफ्तारी से पहले मृत्युंजय मिश्रा को इस बात का भान तक नहीं हो पाया कि उसके खिलाफ मामला भी दर्ज हो चूका है। उमेश शर्मा के स्टिंग प्रकरण में आरोपी बनाये जाने के मामले में पुलिस प्रशासन तमाम कोशिश करने मृत्युंजय मिश्रा पर शिकंजा न जकडी सकी। मृत्युंजय मिश्रा न्यायालय का कवच पहन कर प्रदेश सरकार को बेबश किये हुए था। परन्तु जिस प्रकार से उमेश शर्मा की गिरफ्तारी प्रकरण में त्रिवेन्द्र सरकार अपने आरोपों को अंजाम तक नहीं पंहुचा पायी और उमेश शर्मा जेल से बाहर आकर सरकार पर आरोप लगा रहा है।
भले ही इस गिरफ्तारी होने तक मृत्युंजय मिश्रा को इसकी भनक तक नहीं लगी। उमेश शर्मा प्रकरण की तरह प्रदेश पुलिस प्रशासन ने इस मामले में भी बेहद गोपनियता से इस मामले को दर्ज करके मृत्युंजय मिश्रा को गिरफ्तार किया।
उत्तराखंड राज्य गठन से पहले उतराखण्ड में लेक्चरर के पद पर तैनाती के बाद से ही मृत्युंजय मिश्रा वित्तीय अनियमितताओं और घोटालों को लेकर र्चचा में रहे हैं। यही नहीं मृत्युंजय मिश्रा, चकराता और त्यूणी महाविद्यालयों में प्राचार्य के दोहरे प्रभार, के अलावा एक ही शैक्षिक सत्र में दो-दो डिग्रियां हासिल करने प्रायः विवादों में घिरा रहा। यही नहीं अभी हाल में देश प्रदेश को झकझोरने वाले उमेश कुमार द्वारा कराए गए स्टिंग प्रकरण में भी मृत्युंजय मिश्रा को आरोपी बनाया गया था। परन्तु उन पर कोई हाथ नहीं डाल सका। तमाम विवादों व पुरजोर विरोध के बाबजूद उतराखण्ड की अब तक की सरकारों के चेहते रहे मृत्युंजय मिश्रा एक अध्यापक से विवि के कुल सचिव से लेकर दिल्ली में उतराखण्ड सरकार का अपर स्थानिक आयुक्त के पद पर भी आसीन रहे। परन्तु जैसे ही उनका नाम उतराखण्ड सरकार को अस्थिर करने वाले स्टिंग प्रकरण में जुडे तो उन पर मुख्यमंत्री की वक्रदृष्टि पड गयी। उन पर लगे आरोपों की जांच शुरू हुई। इन्हीं जांचों को अंजाम पंहुचाते हुए यह गिरफ्तारी हुई। इससे साफ हो गया कि प्रदेश के नेताओं ने जनहित व लोक भावनाओं को नजरांदाज करके हमेशा अपने चेहतों को आगे बढाया। कहीं सरकार मृत्युंजय से यह राज उजागर न करा दे। इसी आशंका से मृत्युंजय को संरक्षण देने वाले नेताओं में भी मचा है हडकंप।