जम्मू कश्मीर में शहीद हुए दो जांबाजों का शव गांव पंहुचने से शोक में डूबा उतराखण्ड
देश की रक्षा में हर दिन शहीद हो रहे जांबाज,पर नीरो बने भारतीय हुक्मरान बजा रहे है पाक से मित्रता की बीन
श्रीनगर (प्याउ)। 3 दिसम्बर को देश की रक्षा में शहीद हुए उतराखण्ड के दो जांबाज सपूतों के शव उनके गांवों में पंहुचने से उनके परिजनों का रो रो कर हाल बेहाल है वहीं पूरा उतराखण्ड अपने लालों की शहादत के शोक में डूब गया।
’जम्मू-कश्मीर में देश की रक्षा में तैनात उत्तराखंड के दो और सपूत शहीद हुए 30 वर्षीय जांबाज सुरजीत सिंह राणा व सूरजसिंह भाकुनी 1 दिसम्बर को जम्मू-कश्मीर के अखनूर तहसील के पलांवाला सेक्टर की एक फायरिंग रेंज में हो रहे युद्धाभ्यास के दौरान एक बम गोले के फटने से शहीद हो गए। दोनों शहीदों के शव जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचने के बाद उनके पैतृक गांवों के लिए शहीद सम्मान दस्तों के साथ भेज दिये गये। राज्यपाल व मुख्यमंत्री सहित अनैक नेताओं ने शहीदों की शहादत को नमन किया।
शहीद हुए 30 वर्षीय सुरजीत सिंह राणा चमोली जिले के दशोली ब्लाक के स्यूण गांव के रहने वाले थे। पिछले साल ही उनकी पत्नी का देहांत भी हो गया था। 22 साल पहले सुरजीत के पूर्व सैनिक पिता . प्रेम सिंह राणा का निधन हो गया था। अपने चार भाई-बहनों में पुत्र स्व. प्रेम सिंह राणा सबसे छोटा था।
शहीद हुए दूसरे 23 वर्षीय जवान सूरज सिंह भाकुनी अल्मोड़ा की भनोली तहसील के पलड़ी खुठ गांव के रहने वाले थे। तीन साल पहले ही इसी पखवाडे वह छूट्टी काट कर गांव से गये थे।
दोनों शहीदों के शव के उनके पैतृक गांव पंहुचने से परिजनों का रो रो कर बुरा हाल हो गया। पूरे सैन्य सम्मान के साथ परिजनों व सैकडों लोगों ने देश के लिए कुर्वान हो गये अपने लाडलों को अंतिम विदाई दी।
आये दिन शहीदों की शहादत के देश स्तब्ध है कि वर्षों से भारत को हर हाल में तबाह करने में लगे आतंकी पाक के हमलों से हर दिन देश की सुरक्षा में लगे जांबाज शहीद हो रहे है। पर देश के हुक्मरान, आतंकी पाक से सभी संबंध तोडकर उसे शत्रु राष्ट्र घोषित करके मुंहतोड़ जवाब देने के बजाय बेशर्मी से दोस्ती की बीन बजा रहे है। हर दिन अपने लालों को शहीद होने से मर्माहित मातायें पूछ रही है कि क्या हमारे सपूतों की शहादत की कोई कीमत नहीं है? क्यों देश के सपूतों का खून देश के हुक्मरान पानी समझ रहे है? क्यों भारत में हर दिन आतंकी भेज कर तबाही मचाने वाले पाकिस्तान को दिया सबसे मित्र राष्ट्र का दर्जा तक नहीं हटा रहे हैं। क्यों आतंकी पाक पर विश्वासकर उसके साथ करतारपुर कोरिडोर बना कर दोस्ती की पंींगे बढा रहे है। देश की रक्षा के लिए आये दिन कुर्वान हो रहे जांबाज शहीदों के परिजन व देश के जागरूक लोग हैरान हो कर स्वयं से यही सवाल पूछ रहे है कि आखिर देश के हुक्मरानों को अब देश की सुरक्षा करने के अपने दायित्व का बोध होगा?आखिर कितनी शहादतों के बाद कब देश के हुक्मरानों के सर से आतंकी पाकिस्तान की दोस्ती का भूत उतरेगा?