मोदी सरकार की बड़ी जीत -सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की रोहिंग्याओं को भारत से म्यांमार भेजने पर रोक लगाने वाली याचिका
- बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को भारत से निकालने का काम शुरू
- सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की रोहिंग्याओं को भारत से म्यांमार भेजने पर रोक लगाने वाली याचिका
नई दिल्ली (प्यारा उत्तराखंड )। सर्वोच्च न्यायालय ने 4 अक्टूबर को रोहिग्या को वापस म्यांमार भेजने पर रोक लगाने वाली याचिका को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खण्ड पीठ ने प्रशांत भूषण की 7 रोहिग्या को वापस म्यांमार न भेजने की गुहार लगाने वाली याचिका को रद्द किये जाने से देश में रह रहे रोहिग्या घुसपेटियों को बाहर भेजने की राह में खडा अंतिम अवरोध भी दूर हो गया। इससे देशभक्तों में आशा जग गई कि भारत में करोड़ों की संख्या में काबिज घुसपेटियों को बाहर किया जा सकेगा।
याचिका खारिज होने के बाद प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने के लिए अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। इसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हम हम जीवन के अधिकार के संबंध में अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से अवगत हैं और किसी को इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं।
इस मामले में केंद्र की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता ने न्यायालय को बताया कि म्यांमार ने इन रोहिंग्याओं को अपना नागरिक मान लिया है। साथ ही वह उन्हें वापस लेने के लिए भी तैयार है। इसी लिए इन रोहिंग्याओं को उनके देश जाने से रोका जाए। जबकि बचाव पक्ष के वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि सरकार, रोहिंग्याओं को जबरन वापस भेज रही है। न्यायालय ने बचाव पक्ष के तमाम तर्कों को सुनने के बाद याचिका को रद्द कर दिया। केंद्र सरकार ने बेंच को बताया कि ये 7 रोहिंग्या 2012 में भारत में घुसे थे और इन्हें फॉरेन ऐक्ट के तहत दोषी पाया गया था। असम के सिलचर स्थित हिरासत केन्द्र में बंद इन 7 रोहिंग्या को मणिपुर की मोरेह सीमा चैकी पर म्यांमार के अधिकारियों को सौंपा जाएगा।
सुरक्षा सुत्रों के अनुसार भारत में 40 हजार रोहिंग्या गैरकानूनी तौर पर रह रहे हैं. ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान इस वक्त जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रहते हैं। भारत में सबसे ज्यादा रोंहिग्या मुस्लिम जम्मू में बसे हैं. वहां करीब 10,000 रोंहिग्या मुस्लिम रहते हैं। यह अपने आप में एक बडे षडयंत्र की तरफ ही खुद संकेत दे रहा है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा सरकार, विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने के लिए मिले अधिकार के आधार पर प्रक्रिया शुरू कर रहा है। ऐसा माना जाता है कि रोहिग्ंया मुस्लमानों को 16वीं शताब्दी में वर्तमान बंग्लादेश से अंग्रेज मजदूरों के रूप में यहां ले गये थे। क्योंकि 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। 1948 में अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद से ही बहुसंख्यक बौधों व रोहिंग्याओं में विवाद जारी है। इस विवाद में विदेशी कटरपंथी मुस्लिमों के हस्तक्षेप से यह समस्या और बिकराल हुई।
म्यांमार के राखिन प्रांत में बसे रोहिंग्या मुसलमानों के बर्चस्व व आतंकी गतिविधियों में लिप्त देखकर म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया. इस कानून के तहत रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई। हालांकि यह विवाद करीब 100 से अधिक पुराना माना जाता है। इन लोगों का म्यांमार के बहुसंख्यक बौधों से हिंसक गतिविधियों व अलग देश मांगने के कारण निरंतर विवाद होता रहा। म्यांमार का आरोप है कि विदेशी ताकतों से हथियार व धनादि समर्थन लेकर रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार में अलग देश बनाने के लिए हिंसक आतंकी कार्यवाही करते है। देश की अखण्डता की रक्षा के लिए म्यामांर सरकार ने रोहिंग्याओं ंकी नागरिकता रद्द की।
देश के नाम, भाषा व हितों के साथ एकता अखण्डता को रोंदने वाली 72 सालों की सरकारों के भारत विरोधी कृत्यों के कारण भारत आज भारत पर काबिज होने के षडयंत्र के तहत घुसपेट करने वाले बग्लादेशी व रोहिग्या घुसपेटियों के साथ आतंकियों का अभ्यारण बन गया है। सर्वोच्च न्यायालय का धन्यवाद जो उन्होने आस्तीन के सांपों को शर्मनाक संरक्षण देने की इस षडयंत्र पर अंकुश लगाया। सरकारों को चाहिए कि वह न केवल रोहिग्या अपितु बग्लादेशी घुसपेटियों को देश से बाहर खदेडने का काम बिना समय गंवाये करे। क्योंकि बग्लादेशी घुसपेटियों ने असम व बंगाल कब्जाने के साथ दिल्ली, हरियाणा, उप्र, मध्यप्रदेश, दक्षिण भारत, महाराष्ट्र व उतराखण्ड सहित देश के अधिकांश प्रांतों में अपने पांव पसार दिये है। यह षडयंत्र इतना खौपनाक है कि आस्तीन के सांपों ने बडी धूर्तता से रोहिंग्या मुस्लिम घुसपेटियों को हजारों किमी दूर जम्मू में बसाया। इनके मतदाता कार्ड, राशन कार्ड व आधार कार्ड सहित तमाम पुख्ता प्रबंध करने वाला समांतर गिरोह संचालित है। इनके पेरवीं कार भी बेशर्मी से हर समय उपलब्ध रहते है। जबकि दोनेों घुसपेटियें शरणार्थी नहीं अपितु अंध कटरपंथी व भारतीय संस्कृति के घोर विरोधी है। इनको अगर देश से बाहर खदेडा नहीं गया तो भारत की स्थिति म्यांमार व सीरिया से भी बदतर हो जायेगी। दिल्ली सहित देश के अधिकांश भंागों में अपराधिक व आतंकी गतिविधियों में इन घुसपेटियों की लिप्तता को देख कर भी देश का शासन प्रशासन आज भी कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है। देश की सुरक्षा सब भगवान भरोसे सा है।