( देहरादून -प्यारा उत्तराखंड.कॉम )
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने श्रीमद् भगवद् गीता के गढ़वाली में रूपान्तरित पुस्तक ‘‘श्री गढ़गीता जी’’ का लोकार्पण किया
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री आवास में स्व० जगदीश प्रसाद थपलियाल द्वारा श्रीमद् भगवद् गीता के गढ़वाली में रूपान्तरित पुस्तक ‘‘श्री गढ़गीता जी’’ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि गीता के उपदेशों में मनुष्य जीवन की वास्तविक दिशा एवं सार्थकता निर्धारित की गई है। हमारे ऋषियों ने गहन तपस्या व अध्ययन के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। भगवद् गीता में वेदों, उपनिदषदों का सार निहित है, इसीलिये हमारे मनीषियों ने ‘‘भगवद् गीता’’ को मनुष्य मात्र के लिये सबसे उपयोगी ग्रन्थ बताया है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि ‘‘भगवद् गीता’’ मनुष्य को सांसारिक सक्रियता का उपदेश ही नहीं देती बल्कि जीवन के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण व निष्काम कर्म का भी सन्देश देती है। जीवन की उलझनों, हताशा व अनिश्चितताओं से पार पाने में भी भगवद् गीता हमारा मार्गदर्शन करती है। विश्व की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में भगवद् गीता को सम्मिलित होना इस ग्रन्थ की वैश्विक स्वीकार्यता को भी दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रदेश की लोक संस्कृति एवं लोक भाषा को बढ़ावा देने के लिये प्रभावी प्रयास किये जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्व० जगदीश प्रसाद थपलियाल द्वारा भगवद् गीता का गढ़वाली भाषा में पद्यात्मक व गद्यात्मक दोनों रूपों में ‘‘श्री गढ़गीता जी’’ के रूप में लिपिबद्ध करना वास्तव में हमारी लोकभाषा की भी बड़ी सेवा है।
इस अवसर पर पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि स्व० जगदीश प्रसाद थपलियाल महज एक शिक्षक ही नहीं थे, वे गुरू होकर भी जीवन भर जिज्ञासु छात्र जैसा विचारपूर्ण, कर्ममय जीवन बिताने की चेष्टा में संलग्न रहे। गीता ने उनके जीवन में मार्ग दर्शक का कार्य किया और उन्होंने गढ़वाली भाषा पर यह उपकार किया कि उन सूक्तिपरक महान विचारों की प्रस्तुति अपनी लोक बोली में करने की ठानी। यह उनका हम पर उपकार है। उन्होंने कहा कि गढ़वाली भाषा में गीता के श्लोकों का अविकल अनुवाद करके स्व० जगदीश प्रसाद थपलियाल ने विशेष रूप से समाज के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज की है।