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क्या औचित्य है मोदी सरकार के विरुद्ध पहला अविश्वास प्रस्ताव का

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार

तो नरेन्द्र मोदी सरकार के विरुद्ध पहला अविश्वास प्रस्ताव आ गया है। पहले आंध्रप्रदेश से वाईएसआर कांग्रेस की ओर से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया और उसके बाद कल तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का भाग रही तेलुगू देशम पार्टी या तेदेपा ने भी ऐसी ही घोषणा कर दी। वास्तव में यह अविश्वास प्रस्ताव आंध्र्रप्रदेश की आंतरिक राजनीति की प्रतिस्पर्धा की पैदाइश है। वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी के बारे में कहा जाता था कि वो भाजपा के संपर्क में हैं। राजग से नाता तोड़ते समय तेलुगू देशम पार्टी ने यही कहा कि भाजपा जगनमोहन रेड्डी एवं जनसेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण के माध्यम से उसे कमजोर करने की कोशिश कर रही थी। स्वयं तेलुगू देशम के प्रमुख एवं आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू ने कहा कि इन दोनों नेताओं के माध्यम से भाजपा उनको अपमानित करा रही थी। अगर वाईएसआर कांग्रेस मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे रही है तो यह नहीं कहा जा सकता कि भाजपा से उसके तार अंदर ही अंदर जुड़े हुए थे। अगर ऐसा होता तो वह तेदेपा के जाने के बाद राजग में आने की कोशिश करती। जाहिर है, उसका आचरण इस समय इसके विपरीत है तो साफ है कि चन्द्रबाबू नायडू एवं दूसरे तेदेपा नेताओं के आरोप निराधार है। वे केवल भाजपा को लांछित करने का बहाना बना रहे हैं। वास्तव में अविश्वास प्रस्ताव लाकर कम से कम तत्काल तो जगनमोहन रेड्डी ने भाजपा के साथ गठबंधन का दरवाजा बंद कर दिया है।

सच यह है कि जगनमोहन रेड्डी ने आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य के मुद्दे पर चन्द्रबाबू नायडू की नाकों में दम कर दिया था। उन पर वाईएसआर कांग्रेस लगातार आरोप लगा रही थी कि चन्द्रबाबू नायडू नरेन्द्र मोदी सरकार का भागीदार होते हुए भी आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिलवा पा रहे हैं। वे सत्ता के लिए आंध्र के लोगों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं। हालांकि अभी चुनाव में एक वर्ष से ज्यादा की देरी है, पर दोनों पार्टियों की गलत राजनीति से यह इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि इस मामले में दोनों एक दूसरे को पीछे छोड़ना चाहती हैं। चन्द्रबाबू ने पहले अपने दोनों मंत्रियों को सरकार से हटाया, पर साथ में यह साफ कर दिया कि वे अभी राजग में बने रहेंगे। लेकिन जब वाईएसआर कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया तो उन्हें लगा कि वह कहीं बाजी न मार ले जाए। इस भय से आनन-फानन में चन्द्रबाबू नायडू ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से नेताओं की बैठक की एवं राजग से बाहर जाने के ऐलान के साथ यह भी कह दिया कि उनकी पार्टी अलग से अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। वास्तव में दोनांे आंध्र के लोगांे को यह बताना चाहते हैं कि वे उनके हक के लिए लड़ रहे हैं। इस प्रतिस्पर्धी राजनीति का परिणाम जो हो, लेकिन तत्काल यह प्रश्न तो अवश्य उठेगा कि आखिर अविश्वास प्रस्ताव का औचित्य क्या है? क्या आंध्रप्रदेश के हक के लिए यही एकमात्र रास्ता बचा था? क्या इसका परिणाम आंध्रप्रदेश के लिए लाभकारी होगा?

लोकसभा का जो अंकगणित है उसमें फिलहाल भाजपा के लिए अविश्वास प्रस्ताव कतई चिंता का कारण नहीं है। उसके पास अकेले 273 सांसद हैं। इसलिए मतदान में उसे बहुमत मिल जाएगा। वैसे भी अभी राजग में तेदेपा के 16 सांसदों के जाने के बावजूद शिवसेना के 18, लोजपा के 6, अकाली दल के 4, राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के 3, जद यू के 2, अपना दल के 2 एवं अन्य दलों 4 सांसद शामिल हैं। इनमें शिवेसना को लेकर थोड़ा संदेह हो सकता है, क्योंकि वह लंबे समय से राजग का भाग होते हुए भी विपक्षियों की भाषा ही बोलती है। हालांकि यह आगे का मामला है। फिलहाल तो मोदी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं है।

हां, इसने विपक्षी दलों के लिए एकजुटता का एक प्रसंग अवश्य बना दिया है। इसके बाद संसद के दोनों सदनों में सरकार के लिए परेशानियां बढ़ेंगी। किंतु अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तो तय है। फिर वाईएसआर कांग्रेस या तेदेपा या उनका साथ देने वाली पार्टियां इससे क्या पाना चाहती हैं? कांग्रेस इस समय कह रही है कि मोदी सरकार आंध्र के साथ अन्याय कर रही है। आंध्र एवं तेलांगना दोनों से कांग्रेस का सफाया हो चुका है। दोनों राज्यों मंे पार्टी के सामने अस्तित्व का संकट है। उसे शायद लगता होगा कि अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने से कुछ मात्रा में उसका जनाधार वापस आ जाएगा। किंतु क्या आंध्र की जनता यह भूल जाएगी कि उनके लाख विरोध के बावजूद केन्द्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने उनके प्रदेश को गलत तरीके से बांट ही नहीं दिया, आंध्र को मंझधार में छोड़ दिया? आज आंध्र के सामने जो समस्या है वह कांग्रेस की पैदा की हुई है। जब उसका विभाजन हुआ तो प्रदेश में भी उसकी ही सरकार थी। उसकी अपने मुख्यमंत्री तक ने इसका विरोध किया।

इसलिए कांग्रेस का आज का रुख अवसरवादिता के सिवा कुछ नहीं है। क्या कांग्रेस कल केन्द्र की शासन में आ जाए तो वह आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दे देगी? ऐसा है तो उसने बंटवारे के साथ ही ऐसा क्यों नहीं किया? सच यह है कि कोई पार्टी आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे सकती। यह अब संभव ही नहीं। जिन 11 राज्यों को पहले से विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है उसके बाद किसी अन्य को मिलना खासकर 14 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के बाद असंभव है। वैसे भी व्यावहारिक तौर पर कई राज्य इसकी मांग कर रहे हैं। आंध्र कोई ऐसा गरीब राज्य भी नहीं है कि उसके विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग के साथ कोई सहानुभूति पैदा हो। हां, राजधानी के विकास से लेकर राजस्व में कमी आदि की भरवाई होनी चाहिए और केन्द्र की ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आंकड़े देकर यह बताया कि किस तरह केन्द्र ने आंध्र की वित्तीय मदद की है और आगे भी विशेष राज्य के दर्जा के बाद उसे जिस तरह की सहायता मिलती वैसी सहायता के लिए केन्द्र सरकार तैयार है। तो फिर समस्या क्या है? अगर आप आंध्रप्रदेश की भलाई चाहते हैं तो आपको सहायता स्वीकार करनी चाहिए तथा आगे जहां-जहां वित्तीय सहायता की आवश्यकता हो उसकी रुपरेखा तैयार कर केन्द्र के पास भेजना चाहिए था। यही रास्ता था। इसमें अविश्वास प्रस्ताव की कोई भूमिका हो ही नहीं सकती। ध्यान रखिए, इन्हीं चन्द्रबाबू नायडू के आपको अनेक बयान मिल जाएंगे जिसमें वे कह रहे हैं कि अगर केन्द्र से उनको ज्यादा मिल रहा है तो उसे लेने में हर्ज क्या है। वे विशेष राज्य न मिलने की आलोचना करने वाले दलों का उपहास तक उड़ाते थे। अब अचानक उनका रुख बदला है तो इसका एकमात्र कारण वाईएसआर कांग्रेस द्वारा विशेष राज्य के मुद्दे के आधार पर राज्यव्यापी माहौल बनाने की राजनीति है।

इस प्रकार निष्पक्ष दृष्टिकोण से कोई भी विचार करेगा तो निष्कर्ष यही आएगा कि वर्तमान अविश्वास प्रस्ताव का न कोई औचित्य है और न इसका कोई सार्थक परिणाम आने वाला है। हां, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा के लिए यह चिंता का विषय अवश्य है कि आंध्रप्रदेश में उनका एक साथी तथा एक संभावित साथी विरोध मंे चला गया है। यह आगामी चुनाव की दृष्टि से भाजपा के लिए अभी प्रतिकूल स्थिति दिख रही है। सरकार के लिए यह भी चिंता का कारण है कि इससे विपक्ष की आक्रामकता बढ़ेगी और संसद के संचालन तथा विधेयक पारित कराने में कठिनाइयां आएगी। विपक्षी दल अविश्वास प्रस्ताव के समय या उसके बाद राजग के दूसरे साथियों को भी तोड़ने की कोशिश करेंगे। इनकी ऐसी कोशिशों से राजग को एकजुट रखने की चुनौती भी सरकार के सामने आ रही है। किंतु अविश्वास प्रस्ताव केवल अपनी संकुचित चुनावी राजनीति को साधने के लिए लाया जाए इसका हर हाल में विरोध किया जाना चाहिए। यह तो कोई बात नहीं हुई कि आप अपने राज्य के लिए विशेष दर्जा मांगिए जो संभव नहीं है और न मिले तो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर संदन के कुछ दिन बरबाद करिए। आज वाईएसआर कांग्रेस एवं तेदेपा ही नहीं उनके अविश्वास प्रस्ताव से बांसो उछल रहे दूसरी पार्टियों से भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर आप इससे कौन सा सार्थक लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं? साफ है कि इसका समाधानपरक जवाब किसी के पास नहीं है। हो भी नहीं सकता। सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का कोई ठोस आधार होना चाहिए। किसी राज्य को विशेष राज्या का दर्जा न दिया जाना यह ठोस आधार नहीं है।

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