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बलिदानियों को शहीद का दर्जा देने की मांग को लेकर शहीदी पार्क में 5 दिन अनशन पर सरकार, समाचार जगत व जनता का शर्मनाक मौन


भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद सहित सभी आजादी के बलिदानों को शहीदों का दर्जा देने की मांग  को लेकर  दिल्ली के शहीदी पार्क में 23 मार्च से शहीदों के परिजन अनशन पर

प्रधानमंत्री मोदी से  भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद सहित सभी क्रांतिकारी बलिदानियों को शहीद का दर्जा प्रदान करने की मांग

देश की आजादी के लिए शहीद हुए भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव के सपनों को साकार करने के लिए भारत को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करे सरकार


प्रधानमंत्री मोदी से  भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद सहित सभी क्रांतिकारी बलिदानियों को शहीद का दर्जा प्रदान करने की  मांग


नई दिल्ली। भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद सहित सभी आजादी के बलिदानों को शहीदों का दर्जा देने की मांग  को लेकर  दिल्ली के शहीदी पार्क में 23 मार्च से शहीदों के परिजन अनशन कर रहे हैं।  दुर्भाग्य  है कि आजादी के 71 साल बाद भी आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले शहीदे आजम भगतसिहं, राजगुरू व सुखदेव  के साथ चंद्र्रशेखर आजाद सहित सभी हुतात्माओं को सरकार द्वारा शहीदों का दर्जा न दिये जाने से आहत शहीदों के परिजन शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव की शहादत दिवस पर दिल्ली के शहीदी पार्क में आमरण अनशन कर रहे है। परन्तु  शहीदों के परिवारों के अनशन की सुध ले कर अपने राष्ट्रीय दायित्व निभाने के बजाय सरकार ने शर्मनाक मौन साधी हुई है। देशभक्त हैरान है कि सरकार की शर्मनाक मौन के साथ लोकशाही के चोथे के स्तम्भ व जनता ने भी देश के आत्मसम्मान के इस गंभीर मुद्दे पर मौन साधा हुआ है।  26 मार्च की रात 7 बजे रामलीला अण्णा आंदोलन से आइ्रटीओं को वापस आते समय सांयकाल भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत व समाजसेवी श्रीओम आर्जब जैसे ही शहीदो को नमन करने को शहीदी पार्क के समीप पंहुचे तो वहां शहीद परिवारों को आंदोलन करता देख कर हैरान रह गये।
उल्लेखनीय है कि
23 मार्च को शहीदे आजम भगतसिहं, राजगुरू व सुखदेव की शहादत दिवस पर शहीदों के परिजनों सहित अनैक संगठनों ने सरकार से भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद सहित सभी क्रांतिकारी बलिदानियों को शहीद का दर्जा प्रदान करने की
मांग की। इस अवसर पर हुसैनीवाला, शहीद पार्क दिल्ली सहित अनैक स्थानों पर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।दिल्ली में शहीदी पार्क में शहीद भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव की मूर्ति पर अण्णा हजारे, भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, शहीदों के परिजनों व अरविन्द गौड की नाट्य मंडली सहित सैकडों लोगों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर   देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व  भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए 60 महीने से ऐतिहासिक आंदोलन कर रहे  भारतीय भाषा आंदोलन ने अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव की शहादत दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी को ज्ञापन दिया। इस ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिला कर शहीदों के देश को आजाद करने के सपने को पूरा करने की मांग की। 23 मार्च को भारतीय भाषा आंदोलन ने शहीद पार्क में शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव की मूर्ति को नमन करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर शहीदों के भारत को आजाद करने के सपने को साकार करने का संकल्प लिया। इसके साथ भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला व दिनेश शर्मा के नेतृत्व में एक शिष्टमण्डल ने प्रधानमंत्री कार्यालय में एक ज्ञापन दिया। इस ज्ञापन में भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी से अविलम्ब  शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव  सहित चंद्रशेखर आजाद आदि सभी शहीदों को भारत सरकार से अमर शहीद  घोषित करने की पुरजोर मांग की।
भारतीय भाषा आंदोलन ने ज्ञापन मे प्रधानमंत्री को दो टूक शब्दों मे ंलिखा कि  आज देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव जी की शहादत दिवस पर उनकी पावन स्मृति को नमन करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन, देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर शहीदों के आजादी के सपने को साकार करने के लिए भारतीय भाषाओं को लागू कर देश को आजाद करने की पुरजोर मांग करती है।  अंग्रेजों को जाने के 71 साल बाद भी देश को अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का गुलाम बनाये रखने के लिए देश के हुक्मरानों को धिक्कारती है। इसके साथ भारतीय भाषा आंदोलन अमर शहीदों भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद सहित आजादी के सभी शहीदों को शहीदों का दर्जा प्रदान कर प्रायश्चित करें। आजादी के अमर शहीदों को आज भी सरकार शहीद नहीं मान रही है। देश की जिस आजादी के लिए 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर शहीदे आजम भगत सिंह तथा इनके दो क्रांतिकारी साथियों सुखदेव व राजगुरु ने ‘मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग देय,मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला’ का क्रांतिकारी गीत गाते हुए फांसी के फंदे पर झूल गये थे, उस आजादी को देश के हुक्मरानों ने अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी देश में अंग्रेजों की ही भाषा थोप कर बंधक बना रखा है। दुर्भाग्य है कि देश के लाखों सपूतों ने विदेशी आक्रांताओं की गुलामी से  मुक्त कराने के लिए शताब्दियों को लम्बा संघर्ष व बलिदान देकर 15 अगस्त 1947 को जो आजादी हासिल की, उस आजादी को, देश के हुक्मरानों ने विदेशी आक्रांता अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी भारतीय भाषाओं में देश की व्यवस्था संचालित करने के बजाय अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी में ही संचालित जारी रख कर देश को अंग्रेजों के बाद अंग्रेजी का गुलाम बना दिया। सवा सौ करोड़ भारतवासियों को अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी शिक्षा, रोजगार, न्याय, सम्मान व शासन बलात अंग्रेजी में दे कर देश की संस्कृति, लोकशाही, मानवाधिकार व देश की प्रतिभाओं का निर्ममता से गला घोंटा जा रहा है। पूरे विश्व में षडयंत्र के तहत भारत की भाषाओं, प्रतिभाओं के साथ देश के अपने नाम भारत को जमीदोज कर   आक्रांता ं अंग्रेजों द्वारा थोपे गये इंडिया नाम से भारत का नाम परिचय करा रहे है।  
भारत के माथे पर लगे इसी गुलामी के कलंक को मिटाने के लिए  भारतीय भाषा आंदोलन विगत 60 महीनों देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व देश की व्यवस्था को भारतीय भाषाओं से संचालित करने की मांग को लेकर संसद की चैखट(जंतर मंतर/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर आजादी की जंग छेडे हुए है।  देश का हर स्वाभिमानी देशभक्त व जागरूक इंसान यह देख कर व्यथित व अपमानित महसूस कर देश के हुक्मरानों से सीधे सवाल करता है कि अगर रूस, चीन, जापान, फ्रांस, इटली, जर्मन, इजराइल, टर्की, कोरिया व इंडोनेशिया आदि संसार के सभी विकसित व स्वाभिमानी देश बिना अंग्रेजी की गुलामी ढोये अपनी अपनी भाषा में चहुमुखी विकास कर सकता है तो हमारा देश भारत, अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी अपनी भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन चलाने के बजाय क्यों अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का बेशर्मी से गुलाम बना हुआ है। जबकि भारत की अनैक अपनी भाषायें  विश्व की सबसे प्राचीन ज्ञान विज्ञान की अपनी समृद्ध भाषाओं में एक एक है।
क्या शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी, गांधी जी,लाल, पाल, बाल, सवारकर जैसे लाखों सपूतों ने अपना सर्वस्व बलिदान देश को अंग्रेजी का गुलाम बनाने के लिए दिया था? क्या किसी आजाद देश में अपनी भाषाओं को जमीदोज करके बलात विदेशी भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित करना राष्ट्रद्रोह नहीं है? आखिर देश में एक भी सपूत ऐसा नहीं हुआ जो टर्की के कमाल पाशा व इंजराइल के हुक्मरानों की तरह अपने देश में अपने देश की भाषा में शासन संचालित कर देश को गुलामी से मुक्त कर सके। क्या भारत में बलात अंग्रेजी भाषा थोपना भारतीय संस्कृति, लोकशाही, मानवाधिकार, आजादी व एकता अखण्डता को रौंदने का कुकृत्य नहीं है? कहां गया भारतीयों का स्वाभिमान? लाखों सपूतों की शहादत के भय से अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने के बाद से  71 सालों गुजर गये। परन्तु देश को अपने नाम व अपनी भाषा से बलात वंचित किया गया है। यह कौन सी देशभक्ति व राष्ट्र सेवा है। जार्ज पंचम के वंशजों की स्तुतिगान करने व  उनकी भाषा अंग्रेजी से देश को गुलाम बनाने के अलावा देश के हुक्मरानों ने क्या किया? आखिर  बेशर्मी से कब तक देश अंग्रेजी का गुलाम बना रहेगा? इस गुलामी के कलंक को मिटाने का साहस भारत की सरकारें कब कार्य करेगी? आखिर कब भारतीय हुक्मरान यह साहस करेंगे कि अंग्रेज गये अंग्रेजी भी जाये, भारतीय भाषा राज चलाये।

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