भाजपा व कांग्रेस की विकल्प बन कर उभरी आप पार्टी को ले डूबा केजरीवाल का अहंकार व पदलोलुपता
केजरीवाल की पदलोलुपता व अहं के कारण आप को राष्ट्रीय पार्टी बना सकने वाले स्तम्भों को किया बाहर
नई दिल्ली (प्याउ)। केजरीवाल की हटधर्मिता व अहं के कारण देर सबेर आम आदमी पार्टी का रेत का महल बिखरना तय है। लाभ के पद के कारण सदस्यता गंवाने वाले 20 विधायकों के बाद 17 अन्य आप विधायकों की सदस्यता पर तलवार लटकी हुई है। इस पूरे प्रकरणों पर करीबी नजर रखने वाले राजनीति के मर्मज्ञों का मानना है कि 20 विद्यायकों की सदस्यता रद्द करने को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देने से शुरू हुई आपकी उल्टी गिनती ।
आखिरकार 21 जनवरी को राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग द्वारा लाभ के पद कानून को ठेेंगा दिखा कर मुख्यमंत्री के सचिव बनाये गये 20 आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता को समाप्त करने की अनुशंसा को मंजूरी दे दी है। इस तरह लाभ के पद में विवादों के घेरे में आये आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता को रद्द करने की अधिसूचना जारी कर दी है। इससे राष्ट्रपति के पास फरियाद लगाने की गुहार लगाने में जुटी आम आदमी पार्टी को गहरा झटका लगा। केजरीवाल की पार्टी को केवल 20 विधायकों का नुकसान हुआ अपितु आम आदमी पार्टी के 17 अन्य विधायकों की सदस्यता खत्म होने की तलवार लटकी हुई है। इस प्रकार आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए लाभ का पद एक प्रकार ताबूत की कील साबित हो गया है। कांग्रेस का आरोप है कि इस मामले में कबका फैसला हो जाना चाहिए था परन्तु मोदी की भाजपा ने गुजरात विधानसभा व दिल्ली की राज्यसभा के चुनाव के लिए इन्हें बचाये रखा। नहीं तो आप सरकार ही नहीं दल महिने पहले बिखर गयी होती।
अपने 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने से बौखलाई आम आदमी पार्टी ने इसे लोकतंत्र का गला घोटंने वाला कदम बताया। आप के वरिष्ठ नेता आशुतोष ने कहा, ’आप विधायकों को अयोग्य ठहराने के राष्ट्रपति के आदेश असंवैधानिक और लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। आप को मलाल है कि राष्ट्रपति को किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले हमारी बात सुननी चाहिए थी। आप विधायकों ने भी राष्ट्रपति से वक्त मांगा था।
वहीं कांग्रेस ने कहा कि अगर भाजपा व आप के बीच गठजोड़ नहीं होता तो आप आदमी पार्टी की सरकार कबके टूट चूकी होती। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि दिल्ली सरकार ने नियमों को दरकिनार करते हुए 7 की जगह 21 मंत्री बना दिए। भाजपा के निर्देशों पर चुनाव आयोग ने अपनी अनुशंसा में एक महीने की देरी की और आम आदमी पार्टी की मदद की। राज्य सभा चुनाव से पहले यह अनुशंसा आई होती तो आप अंदरूनी दरार के चलते टूट चुकी होती’। वहीं आप के संस्थापक सदस्य रहे देश के प्रखर राजनैतिक चिंतक योगेन्द्र यादव ने 20 विधायकों की सदस्यता रद्द किये जाने पर विलाप करने वाली आम आदमी पार्टी को ही इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार बताया। श्री यादव ने कहा कि काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती। है।
गौरतलब है कि 19जनवरी को चुनाव आयोग द्वारा लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर इनकी सदस्यता रद्द करने के लिए राष्ट्रपति से भी सिफारिश की थी। चुनाव आयोग के इस कदम से अपने 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने की आशंका से ग्रसित आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग के फेसले पर रोक लगाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के दर पर आननफानन में गुहार लगायी। उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के फेसले पर तुरंत रोक लगाने से इंनकार करते हुए आप के विधायकों को फटकार लगाया कि उन्होने चुनाव आयोग द्वारा बार बार अपना पक्ष रखने के लिए बुलावा आने पर भी संवैधानिक संस्था की अवैहलना क्यों की।
इन 20 विधायकों को खोने के बाद ऐसे ही एक मामले में एक दर्जन से अधिक यानी 17 विधायक ऐसे ही एक अन्य मामले में सदस्यता पर तलवार लटकी हुई है। लाभ के पद का वही कानून है जिसकी चपेट में आ कर मनमोहनी सरकार के तहत कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपनी संांसदी खोनी पडी थी। संविधान के अनुच्घ्छेद 102(1)(।) और 191(1)(।) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई सदस्य अगर लाभ के किसी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है। यह लाभ का पद केंद्र और राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है.। ऐसा नहीं कि केजरीवाल को अपने 21 सचिवों की नियुक्ति के समय इस कानून का भान नहीं था। केजरीवाल को इस कानून का भान था उसने जानबुझ कर या इन विधायकों को सबक सिखाने के लिए उनको संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया।
यानी केजरीवाल ने जानबुझ कर यह काम किया। आप के अस्तित्व पर पूरी तरह से ग्रहण लगाया है। आदमी पार्टी के छह प्रमुख स्तम्भों में अरविन्द केजरीवाल व मनीष सिसौदिया को छोड़कर जो चार अन्य प्रमुख स्तम्भ रहे प्रशांत भूषण, शांति भूषण, योगेन्द्र यादव व कुमार विश्वास या तो आप से बाहर कर दिये गये या हाशिये में धकेल दिये गये है।
इस प्रकरण से दिल्ली के लोग ही नहीं आम आदमी पार्टी को समर्थन करने वाले देश के लाखों लोग ठगे महसूस कर रहे है। उनको शिकायत चुनाव आयोग या उच्च न्यायालय से नहीं है। लोगों की शिकायत और किसी से नहीं अपितु आम आदमी पार्टी के खेवनहार समझे जाने वाले अरविंद केजरीवाल से ही है। अण्णा आंदोलन से लेकर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत से विजयी होने तक के सफर में खेवनहार समझे जाने वाले अरविन्द केजरीवाल आज आम आदमी पार्टी के लिए आत्मघाती खेवनहार साबित हो गये है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया और भाजपा को हासिये में धकेलने वाले केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को दिल्ली में मिले अभूतपूर्व जनादेश के बाद दिल्ली के ही नहीं अपितु देश विदेश के लोगों को आशा थी कि आम आदमी पार्टी दिल्ली की तरह देश में भाजपा व कांग्रेस के कुशासन से जनता को मुक्ति दिलाने वाला मजबूत विकल्प बनेगी। परन्तु दिल्ली के मुख्यमंत्री दुबारा बनने के बाद केजरीवाल ने सत्तामद में हटधर्मिता व अकेले चलों की अवसरवादी राजनीति को परवान चढ़ाते हुए आम आदमी पार्टी के प्रमुख संस्थापकों को एक एक कर बाहर कर दिया या हाशिये में धकेल दिया।
यह जगजाहिर है कि आम आदमी पार्टी में लोकशाही सपा, बसपा, कांग्रेस आदि दलों की तरह आला कमान यानी केजरीवाल तक ही सीमित रह गया। हकीकत यह है कि देश की आम जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये गये अण्णा हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल आंदोलन की कोख से पैदा हुई आम आदमी पार्टी से आशा थी कि वह देश में न केवल भाजपा व कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनेगी अपितु आम आदमी पार्टी से लोगों को आशा थी कि वह व्यवस्था परिवर्तन की ध्वजवाहक भी बनेगी। परन्तु केजरीवाल की पदलोलुपता व अकेला चलो की राजनीति के कारण आप को अखिल भारतीय पार्टी बना सकने की क्षमता वाले सभी प्रमुख स्तम्भों को एक एक कर अपमानित करके आप से बाहर धकेल दिया गया। दिल्ली का जनादेश व देश की जनता की आशा का मूल इन स्तम्भों का योगदान भी रहा। अरविंद केजरीवाल ने भले दिल्ली में शासन के दौरान कई अच्छे कार्य भी किये परन्तु केजरीवाल के कार्यो से जनता की नजरों में उनकी छवि पूरी तरह तार तार हो गयी। खासकर आरोपी विधायकों व मंत्रियों को भाजपा व कांग्रेस की तरह संरक्षण देने के कारण। बिना काम के केजरीवाल सत्ता की जो सभी सुविधाये ले कर अपने ही वचनों की रक्षा तक नहीं कर पाये।
केजरीवाल की इस हटधर्मिता के कारण जब भूषण व यादव को बाहर निकालने से विधायकों में असंतोष को दबाने के लिए केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों की नियुक्ति मार्च 2015 में की, जबकि इसके लिए कानून में जरूरी बदलाव कर विधेयक जून 2015 में विधानसभा से पास हुआ, जिसको केंद्र सरकार से मंजूरी आज तक मिली ही नहीं।
उन्ही की सदस्यता पर ग्रहण लगा हुआ है। ये विधायक हैं- 1. आदर्श शास्त्री, द्वारका 2. जरनैल सिंह, तिलक नगर 3. नरेश यादव, मेहरौली 4. अल्का लांबा, चांदनी चैक 5. प्रवीण कुमार, जंगपुरा 6. राजेश ऋषि, जनकपुरी 7. राजेश गुप्ता, वजीरपुर 8. मदन लाल, कस्तूरबा नगर 9. विजेंद्र गर्ग, राजिंदर नगर10. अवतार सिंह, कालकाजी 11. शरद चैहान, नरेला 12. सरिता सिंह, रोहताश नगर 13. संजीव झा, बुराड़ी 14. सोम दत्त, सदर बाजार 15. शिव चरण गोयल, मोती नगर 16. अनिल कुमार बाजपई, गांधी नगर 17. मनोज कुमार, कोंडली 18. नितिन त्यागी, लक्ष्मी नगर 19. सुखबीर दलाल, मुंडका 20. कैलाश गहलोत, नजफगढ
इन विधायकों की सदस्यता पर ग्रहण लगाने का काम किया अधिवक्ता प्रशांत पटेल ने। जिन्होने इन विधायकों को सचिव बनाने को लाभ का पद बताकर राष्ट्रपति के पास शिकायत करके 21 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। इस मामले में चुनाव आयोग ने आप के इन विधायकों से उनको पक्ष रखने के लिए कई बार समय दिया। परन्तु केजरीवाल ने इनको अपना पक्ष चुनाव आयोग के समक्ष रखने के बजाय उच्च न्यायालय में गुहार लगायी।
गौरतलब है कि 8 सितंबर 2016 को हाइ कोर्ट ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद कर दी थी। इस मामले में चुनाव आयोग लगभग पिछले साल ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर चुका है।
हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के बाद उन्हें कोई लाभ नहीं दिया गया है। इसी के साथ संसदीय सचिवों को प्रोटेक्शन देने के लिए दिल्ली सरकार ने एक विधेयक पास कर राष्ट्रपति के पास भेजा था। मगर राष्ट्रपति ने सरकार के इस विधेयक को मंजूरी देने से इन्कार कर दिया था। इस विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था। केजरीवाल व उनके दल के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि अगर दिल्ली सरकार को लगता था कि उसने इन 21 विधायकों की नियुक्ति सही और कानूनी रूप से ठीक की है, तो उसने नियुक्ति के बाद विधानसभा में संशोधित बिल क्यों पास किया ?दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया था, क्योंकि इन संसदीय सचिवों की नियुक्ति बिना उपराज्यपाल की अनुमति के की गई थी।
पर यहां एक बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि अगर राष्ट्रपति, दिल्ली सरकार के विधेयक को मंजूरी दे देते तो आज इन विधायकों की सदस्यता बची रहती। आप को यही शिकायत है कि भाजपा की सरकार ने जानबुझ कर इस मामले को लटकाया है।
अब जब ताजा घटना क्रम में चुनाव आयोग ने लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है और इसकी सिफारिश राष्ट्रपति से भी कर दी है.। अपने विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए आप ने उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया, वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी।
अब राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद दिल्ली विधानसभा की 20 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव किये जायेंगे। 70 सदस्यीय विधानसभा में 66 सीटों वाली आप अब 20 विधायकों की सदस्यता जाने के बाद 46 सीटें बचेगी।
भले ही आप इसके लिए चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर कार्यवाही करने का आरोप लगा रहा है परन्तु आप की हकीकत उच्च न्यायालय के सक्षम बेनकाब हो गयी कि आप ने चुनाव आयोग के समक्ष अपना पक्ष क्यों नहीं रखा । यानी आप के प्रमुख केजरीवाल की हटधर्मिता के कारण 20 विधायकों को अपनी सदस्यता खोनी पड़ी। न केवल 20 विधायकों को सदस्यता खोनी पड रही है अपितु आप भी रेत की महल की तरह बिखर रहा है।