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भवन उपनियमों में बदलाव कर राहत देने हेतु अध्यादेश लाया जाए – जगदीश ममगांई

सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (विशेष प्रावधान) को रद्द करने की संभावना को देखते हुए

नई दिल्ली (प्याउ)। एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व चेयरमैन जगदीश ममगांई ने अवैध निर्माण पर कार्रवाई पर लगी अस्थायी रोक, 31 दिसम्बर 2020 तक संरक्षित करने हेतु संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (विशेष प्रावधान) पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सवालिया निशान लगाए जाने पर चिन्ता जताई है। वर्ष 2007 में यूपीए सरकार के केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने अनधिकृत कालोनी, गांव एवं झुग्गी-झोपडी क्षेत्र में हुए अवैध निर्माण पर एक वर्ष के लिए कार्रवाई रोकने के लिए अधिसूचना जारी की थी। तबसे लगातार कभी एक वर्ष तो कभी तीन वर्ष तक कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगती रही पर स्थायी समाधान के प्रति सार्थक प्रयास नहीं हुए। वर्ष 2007 में 8 फरवरी 2007 तक बने अवैध निर्माण पर कार्रवाई को अस्थायी संरक्षण मिला जो बढते-बढते अब 30 जून 2014 तक बने अवैध निर्माण पर कार्रवाई रोकने तक पहुंच गया। इससे इस बात को बल मिलता है कि केन्द्र सरकार किसी भी दल की हो अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने को तैयार नहीं है, हर किसी को लगता है कि नगर निगम कर्मियों से सांठगांठ कर कैसा भी अवैध निर्माण कर लो राजनैतिक कारणों से कार्रवाई तो होगी ही नहीं। इससे भूमाफिया के हौंसले बुलंद हुए हैं, अवैध निर्मित कालोनियों में रहने वालों के मन में डर बनाए रख राजनैतिक दल वोट बैंक बनाए रखना चाहते हैं।

नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व चेयरमैन जगदीश ममगांई  ने कहा कि अवैध निर्माण करने व सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर बेचने में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने एवं अंकुश लगाने के प्रति नगर निगमों व सरकारी एजेंसियों की शिथिलता के कारण ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (विशेष प्रावधान) को दिसम्बर 2020 तक विस्तार देने व अवैध निर्माण पर कार्रवाई की कट ऑफ डेट 8 फरवरी 2007 से 30 जून 2014 तक करने के औचित्य को केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में स्थापित करने में कमजोर साबित हो रही है। वर्तमान में दिल्ली में निर्मित 44 लाख से अधिक आवासीय व व्यवसायिक इकाईयों में से करीब दो लाख के करीब के ही नक्शे पारित(स्वीकृत) हैं। इतने बडे पैमाने पर हुए अवैध निर्माण पर कोई कार्रवाई न होने से बिल्डर माफिया व सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों ने पूरी दिल्ली को स्लम में तब्दील कर दिया। अप्रैल 2006 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों एवं व्यक्तियों को नामजद कर कार्रवाई करने हेतु सीबीआई जांच के आदेश दिए पर अब तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अवैध व्यवसायिक गतिविधियों पर कार्रवाई रोकने हेतु वर्ष 2007 में ऐसे ही सडकों को अधिसूचित कर राहत देने के अस्थाई प्रबन्धन किया गया लेकिन दोबारा सीलिंग प्रारम्भ होने से इसकी कलई खुल गई है।

एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व चेयरमैन ममगांई ने कहा कि 351 अतिरिक्त सडकों को व्यवसायिक गतिविधियों के लिए अधिसूचित करने पर तो नगर निगम व दिल्ली सरकार आपसी रस्साकशी करने में लगे हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट में तो पूर्ववर्त्ती 2534 अधिसूचित सडकों की वैधानिकता पर ही सवाल उठ रहा है, 28 अगस्त 2007 के आदेश के मद्देनजर तो 140 अधिसूचित सडकों को निरस्त करना पड सकता है। दिल्ली में लागू भवन उपनियम (बिल्डिंग बॉय-लॉज) में ग्राउंड कवरेज (आवृत भूक्षेत्र) में कोई छूट नहीं, सब डिवीजन(उपखंड) प्लाट व मिले हुए(अमैल्गमैटिड) प्लाटों पर निर्माण की अनुमति नहीं है। भवन उपनियम नौकरशाहों द्वारा बनाए गए, इसमें जनता को राहत प्रदान करने की व्यवहारिक सोच नहीं है। डीडीए द्वारा समय-समय पर मास्टर प्लान 2021 में अधिसूचित किए गए विभिन्न संशोधनों को तक भवन उपनियम में सम्मिलित नहीं किया गया है। दिल्ली के गांवों व फार्म हाऊस समूहों को कम घनत्व वाले आवासीय क्षेत्र के रूप में विकसित करने की अधिसूचना होने के बावजूद क्रियान्वित नहीं हो रही है।

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