एक दूसरे की राह रोक कर प्रसन्न है धूमल व नड्डा, जयराम की लगी लाटरी
उत्तराखण्ड की तरह बाहर से मुख्यमंत्री थोपने का साहस हिमाचल में नहीं जुटा पायी भाजपा
भले ही भाजपा ने 18 दिसम्बर को हिमाचल विधानसभा के चुनाव में 68 सदस्यीय विधानसभा में 44 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस को धूल चटा दी थी। परन्तु इस भारी विजय मिलने के बाबजूद भाजपा एक सप्ताह तक अपना मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को घोषित करने में जो पसीने बहाने पडे वह किसी महाभारत से कम नहीं था। जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनने से जहां मुख्यमंत्री के दोनों प्रबल दावेदार नड्डा व धूमल दोनों प्रसन्न है। दोनों एक दूसरे की राह रोकने के लिए प्रसन्न है। भले ही एक दूसरे के विरोध करने के लिए दोनों पक्ष सडकों पर नहीं उतरे परन्तु दोनों महारथियों के बीच छिडे अघोषित सियासी महाभारत ने सर्दी के इस मौसम में भी हिमालयी राज्य में भाजपा आला नेतृत्व के पसीने छूडा दिये। नड्डा ने तो इसे नये युग का सूत्रपात तक बता दिया। वहीं भाजपा नेतृत्व जयराम की ताजपोशी का ऐलान कर इसलिए चैन की सांस ले रहा है कि भाजपा में ताजपोशी के लिए छिडे अघोषित सियासी महाभारत में भाजपा पर ग्रहण लगाने के लिए कांग्रेस ने जो सियासी चक्रव्यूह रचा था भाजपा उससे भी उबर चूकी है। ऐसी खबर से भाजपा नेतृत्व परेशान था कि हिमाचल में अगर बाहर से मुख्यमंत्री थोपा गया तो भाजपा के विधायकों का एक बड़ा गुट कांग्रेस की मदद से प्रदेश में सरकार बना सकती है। इसी आशंका को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने विधायकों के बीच से ही मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया।
भाजपा 24 दिसम्बर को जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर सकी। इसके पीछे केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्डा व मुख्यमंत्री के हारे हुए प्रत्याशी प्रेमकुमार धूमल के समर्थकों के बीच जबरदस्त गुटबाजी माना जा रहा है। इसी गुटबाजी के कारण भारी बहुमत से विजयी रही भाजपा एक सप्ताह तक अपने मुख्यमंत्री का नाम का ऐलान तक नहीं कर पायी। मुख्यमंत्री चुनने के लिए हिमाचल पंहुचे केन्द्रीय पर्यवेक्षक काबीना मंत्री निर्मला सीतारमण व नरेंद्र सिंह तोमर के सामने धूमल के पक्ष में जबरदस्त नारेबाजी हुई। धूमल के समर्थन में इतना व्यापक समर्थन देख कर केन्द्रीय नेतृत्व ने नड्डा को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया। भाजपा नेतृत्व को पर्यवेक्षकों ने अधिकांश विधायकों व जन भावना से अवगत करा दिया था कि अधिकांश विधायकों व जनता को दिल्ली से मुख्यमंत्री थोपना पसंद नहीं है। वेसे धूमल के पक्ष में अधिक विधायकों का समर्थन था और तीन विधायकों ने धूमल के लिए अपनी सीट छोड़ने के लिए भी आगे आ गये थे। परन्तु केन्द्र केन्द्रीय नेतृत्व सुजानपुर से विधानसभा चुनाव हार चूके धूमल को किसी भी कीमत पर मुख्यमंत्री की ताजपोशी नहीं करना चाहता था। इसके पीछे हिमाचल के आये चुनाव परिणाम भी है। धूमल न केवल अपनी सीट हारे वहीं उनके गृह जनपद हमीरपुर की 5 में से 3 सीटें हारने के बाद धूमल की मुख्यमंत्री बनने के दावे केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष कमजोर हो चूकी थी। हालांकि केन्द्रीय नेतृत्व पर जेटली व स्मृति इरानी की तहर पराजित होने के बाबजूद केन्द्रीय मंत्री के रूप में की गयी ताजपोशी की तरह हिमाचल में धूमल की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी का दवाब बनाया जा रहा था। समर्थकों का तर्क था कि हिमाचल में जो चुनाव परिणाम आये है उसमें धूमल को मुख्यमंत्री के रूप में जनादेश भी मिला है। हालांकि उनको मुख्यमंत्री घोषित करना भी भाजपा नेतृत्व की मजबूरी रही। इसीलिए उनको मतदान से 10 दिन पहले ही मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित किया गया। माना जा रहा है कि केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा नड्डा को हिमाचल का मुख्यमंत्री बनाने की थी। परन्तु राजनैतिक परिस्थितियां अनुकुल न होने के कारण भाजपा नेतृत्व को अपना इरादा बदलना पडा। जहां तक धूमल को मुख्यमंत्री न बनाये जाने के पीछे नड्डा का ही प्रभाव है। भले ही नड्डा का विरोध कहीं प्रत्यक्ष नहीं हुआ परन्तु उनकी ताजपोशी करने की मंशा हिमाचल में जगजाहिर हो गयी थी इसी कारण धूमल समर्थकों ने केन्द्रीय पर्यवेक्षकों के समक्ष धूमल के पक्ष में नारेबाजी की। केन्द्रीय नेतृत्व को यह भय भी सत्ता रहा था कि अगर नड्डा को मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी की गयी तो कांग्रेस इस पर अपनी राजनैतिक रोटी न सेंक ले। ऐसी भी खबरें प्रदेश की राजनीति में उड रही थी।
6 जनवरी 1965 में हिमाचल के मंडी जनपद के टाड़ी में 52 वर्षीय जयराम ठाकुर हिमाचल के 6 वे मुख्यमंत्री होगे। सिराज विधानसभा क्षेत्र से विजयी रहे जयराम ठाकुर भले ही मतगणना से पहले कहीं मुख्यमंत्री के दावेदारी में नहीं थे। परन्तु मुख्यमंत्री के प्रत्याशी धूमल व प्रदेश अध्यक्ष सत्ती के हारने तथा धूमल गुट के मुख्यमंत्री के लिए जबरदस्त लामबंदी के कारण भाजपा आलाकमान को अपने पंसीदा केन्द्रीय मंत्री नड्डा की ताजपोशी करने की मंशा व धूमल की हारने के बाद मुख्यमंत्री बनने की हसरत पर पानी फेरते हुए संघ समर्पित रहे विद्यार्थी परिषद से जुडे रहे हिमाचल के पूर्व भाजपा अध्यक्ष जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। प्रदेश भाजपा के तेजतरार व 5 बार अजेय नेता जयराम ठाकुर प्रदेश सरकार में भी कबीना मंत्री भी रहे। जयराम ठाकुर की राह आसन तब हुई जब धूमल ने बाहर से मुख्यमंत्री न थोपने के भरोसा मिलने पर खुद को मुख्यमंत्री के दावेदार से हटा दिया । इस प्रकार जयराम ठाकुर हिमाचल के छटे मुख्यमंत्री व मंडी जनपद के पहले मुख्यमंत्री बन गये है।
इसी कारण बीच का रास्ता निकालना पडा। जिसमें नड्डा की राह रोकने वाले धूमल के बजाय संघ, संगठन व सरकार में मजबूत पकड़ रखने वाले 5 बार से विधायक रहे 52 वर्षीय जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी की गयी। इसी कारण नड्डा ने जयराम ठाकुर की ताजपोशी का ऐलान को हिमाचल में नये मुख्यमंत्री बनाये गये।
प्रेम कुमार धूमल को अपनी सीट बदलने व देर से मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित करने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा।
हमीरपुर सीट से चुनाव लड़ने वाले प्रेम कुमार धूमल को जैसे ही भाजपा ने सुजानपुर से चुनाव लडने के लिए उतारा वेसे ही सुजानपुर में उनका विरोध बाहरी प्रत्याशी बता कर किया गया। पूरे प्रदेश भर में भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार में व्यस्त रहने के कारण धूमल नये क्षेत्र होने के बाबजूद पूरे सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र में जनता से रूबरू भी नहीं हो पाये। यहां उनको अपने समर्थकों का मत नहीं मिला, केवल उनको भाजपा के परंपरागत मत ही मिले। चुनाव के ऐलान होते ही समय अगर भाजपा उनको अपना मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित करती तो नजारा ही दूसरा होता। केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा समय पर उनको मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित न करने के पीछेे दिल्ली दरवार में मजबूत पकड़ रखने वाले नाड़ा का यहां पर मुख्यमंत्री बनने की मंशा ही मानी जा रही है। जब कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में यह प्रश्न प्रमुखता से उठाया तो भाजपा में मजबूरन धूमल का नाम मतदान के चंद दिन पहले ही ऐलान करना पड़ा। भाजपा को यह ऐलान करने के पीछे कांग्रेस का यह प्रचार सता रहा था कि अगर भाजपा प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री निर्वाचित विधायकों में से नहीं अपितु दिल्ली से थोपा जायेगा। यह प्रचार जनता के मन को बदलने में असरदार होता देख कर भाजपा को चुनाव से पहले ही धूमल को मुख्यमंत्री का दावेदार ऐलान करना पड़ा। परन्तु सबसे हैरानी की बात यह है कि भाजपा के अंधाधुंध प्रचार के बाबजूद धूमल का प्रचार करने सुजानपुर में मोदी जैसे भाजपा के कोई दिल्ली दरवार के दिग्गज नेता नहीं पंहुचे थे। जबकि सबको मालुम था कि सुजानपुर में साफ छवि के कांग्रेस के प्रत्याशी राजेन्द्र सिंह राणा सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र में मजबूत जनाधर वाले नेता है। वे अपनी संस्था के द्वारा वर्षों से सुजानपुर में लोगों के सुख दुख में सम्मलित होते है। इसी जनाधार के कारण वे 2012 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 14166 मतों से जीते थे। गरीब परिवार में जन्में राजेन्द्र राणा को यहां गरीब लोगों के हमदर्द के रूप में जाना जाता है।
इसी व्यापक जनाधार के बल पर राजेन्द्र राणा ने हिमाचल में भाजपा के पक्ष में माहौल होने व यहां से भाजपा के मुख्यमंत्री के प्रत्याशी धूमल के चुनावी दंगल में उतरने के बाबजूद सुजानपुर की जनता ने अपने जमीनी नेता राजेन्द्र राणा को 1919 मतों से विजय बना कर हिमाचल का ही नहीं पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खिंच लिया। धूमल समर्थकों का ही नहीं प्रदेश की राजनीति के मर्मज्ञों का मानना है कि अगर समय पर यहां पर भाजपा धूमल को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी बना देते या सुजानपुर में भाजपा के मोदी सहित दिग्गज की सभा कराते तो चुनाव परिणाम दूसरे होते। समर्थकों को धूमल को समय पर मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित कर देते व धूमल के समर्थन में दिग्गजों की सभा सुजानपुर में की जाती तो धूमल नहीं हारती। वे इसके पीछे दिल्ली दरवार के नेता का षडयंत्र ही मानते हैं्र। गौरतलब है कि 31 अक्टूबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रायगढ़ में 12 अक्टूबर को हुए चुनाव घोषणा के 19 दिन बाद यानी मतदान से मात्र दस दिन पहले मुख्यमंत्री के प्रत्याशी का ऐलान किया गया। भाजपा नेतृत्व की यही विलम्ब धूमल के लिए हार के प्रमुख कारण के रूप में जानी जा रही है।