भ्रष्टाचार के खिलाफ ताउम्र लम्बी जंग लडने वाले योद्धा को नहीं मिला डीटीसी व उच्च न्यायालय से भी न्याय
भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूती से लड़ने के कारण गंवाई 12 साल की डीटीसी की नौकरी, सब्जी बेचने रिक्शा चलाने व निजी कम्पनी में नौकरी करके भी नहीं मानी हार
देवसिंह रावत
क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, दिल्ली परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने के कारण सेवा से बर्खास्त किये गये संवाहक तुलसी राम मौर्य को न्याय दिला पायेंगे। क्या देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी जनांदोलन करने वाले अरविंद केजरीवाल व उनकी दिल्ली सरकार दिल्ली परिवहन विभाग व उच्च न्यायालय से न्याय न मिलने से निराश भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाले तुलसीराम मौर्या को दिला पायेंगे न्याय?
यह सवाल मेरे दिलो दिमाग में उस समय क्रोंधा जब 10 दिसम्बर को शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू की मूर्ति के समीप शहीद पार्क में मुझे तुलसीराम मौर्य मिले।
बस कंडक्टर तुलसी राम का चलान न करने के लिए जांच दस्ता केवल 500 रूपये मांग रहा था। परन्तु ताउम्र भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले तुलसीराम ने दो टूक शब्दों में कहा मैने जब कोई गलत कार्य किया ही नहीं तो मैं क्यों दूॅं आपको 500 रूपये। आपने जो करना है करलो मैं आपको एक पैसे घूस नहीं दूंगा। अगर जांच दस्ते को तुलसी राम 500 रूपये दे देता तो उसका चलान नहीं होता। नहीं वह डीटीसी की सेवा से बर्खास्त किये जाते। हालांकि डीटीसी के उच्च अधिकारी उसके खिलाफ एकजूट थे। इसी के कारण उसका सेवा रिकार्ड जानबुझ कर खराब किया गया। उसका बार बार तबादला किया गया।
500 रूपये की घूस न देने से 12 साल से दिल्ली परिवहन निगम में संवाहक के पद पर स्थाई नौकरी से सड़क पर दर दर भटकने के लिए मजबूर रहा। अपने परिवार का लालन पालन के लिए मैने 1995 से 2013 तक रिक्शा में सब्जी बेची, रिक्शा में माल ढो कर अपने परिवार का लालन पालन किया। डीटीसी से बर्खास्त हुई अपने रोजगार की प्राप्ति के लिए मजदूर न्यायालय से उच्च न्यायालय में चले लम्बे मुकदमों को झेलता रहा। परन्तु जब 2014 की एक रात को जब एक कार से हुए टक्कर में वह बुरी तरह से घायल हो गये तो परिवार की सलाह पर तुलसी राम ने रिक्शा चलाना तो छोड़ दिया।
तुलसीराम के घायल होने के बाद जिस चप्पल फेक्टरी का वह माल रिक्शे में ढौता था, उसके मालिक ने उसको अपनी फेक्टरी में सुपरवाइजर के रूप में नियुक्ती दी। तुलसी राम को भले ही वेतन कम मिलता परन्तु परिवार की सलाह पर उसने चप्पल फेक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी स्वीकार कर ली। आज तुलसीराम को अगर न्याय मिलता तो वह डीटीसी में संवाहक के पद पर ही 60000 रूपये का वेतन लेता। परन्तु फेक्टरी में उसे मात्र 9000 रूपये मिलते। इतनी प्रताडना सहने के बाबजूद तुलसीराम को इस बात का कोई प्रायश्चित नहीं है कि उसने जांच दस्ते को 500 रूपये का घूस नहीं दिया। उसे आज भी संतोष है कि उसने भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं दिया। भले ही दिल्ली परिवहन निगम व न्यायालय से उसको न्याय नहीं मिला परन्तु उसे परमात्मा पर विश्वास है। जिन्होने उसको गलत कार्य करने से रोकने की बुद्धि दी। अपने घर, आसपास व फेक्ट्री में साफ सफाई पर विशेष ध्यान देने वाले तुलसी राम, किसी प्रकार के नशे व गलत आचरण से दूर रहते है। मानवता के लिए समर्पित तुलसीराम बचपन से ही भ्रष्टाचार व आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाते रहे। इसी कारण वे जैसे ही डीटीसी में नियुक्त हुए तो उन्होने देखा कि केशव पुरम डिप्पो में डिप्पो प्रमुख के संरक्षण में उनके प्यादे, वहां स्थित मंदिर के नाम पर अवैध वसूली करते थे। इसके खिलाफ तुलसीदास ने जब उच्च स्तर पर शिकायत की तो आरोप सही पाये गये। विभागीय गाज गिरी प्यादों व डिप्पो मनेजर पर। डिप्पो मनेजर का तबादला हुआ। परन्तु इसके बाद उसका बार बार बहाने बना कर उसका सेवा रिकार्ड खराब कर दिया गया। बार बार तबादला किया गया। उसकी बढ़ोतरी तक रोकी गयी। एक अधिकारी की शिकायत कर दण्डित कराने से डीटीसी के अधिकारी उसके खिलाफ हो गये। उसी कारण उसके खिलाफ हुए चलान पर सुनवायी में भारी पक्षपात कर उसे बर्खास्त किया गया। उसके बाद भी तुलसी राम आज भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रिय है। भले ही परिवार वाले व समाज उसे पागल या सनकी कह कर उपहास उडाये परन्तु नैतिक मूल्यों व देश समाज के लिए जीने वाले तुलसी राम के इस त्याग व संघर्ष की बदोलत उसकी बेटी किसी बडी कम्पनी में मनेजर है और बेटा बीटेक करके सेवारत है। हर ंिकसी के दुख सुख में हाथ बंटाने के लिए तत्पर रहने वाले तुलसी राम के आदर्शमय व्यक्तित्व को सादर नमन्
मात्र 500 रूपये की घुस न देने के कारण डीटीसी की 12 साल की नौकरी गंवाने वाले भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में घिरे तुलसीराम की कहानी तुलसीराम की जुबानी
15 अप्रैल 1962 में जन्मा, मैं तुलसी राम मौर्य , दिल्ली में मुण्डका गांव के समीप स्वर्ण पार्क के सी-1/73 नम्बर मकान में अपने परिवार के साथ रहता हॅू। मेरा दूरभाष नम्बर 9266590619 है। मै 1983 में दिल्ली परिवहन निगम में संवाहक के पद पर भर्ती हुआ था। दिल्ली परिवहन निगम में संवाहक के पद पर नियुक्ति के समय मेरा डीटीसी का बेज नम्बर 19645 व टोकन नम्बर 43146 था। दिपनि में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर मुझे प्रताडित किया गयां एक डिपो से दूसरे में बारबार तबादला किया गया। छोटी-छीटी बातों को तुल देकर मेरा सेवा रिकार्ड खराब किया गया। 1995 में मुझ पर जालसाजी का झूटा आरोप लगा कर बर्खास्त कर दिया गया।
तब से मैं न्याय के लिए दर दर की ठोकरें खा रहा हॅू। इस केस में घटना इस प्रकार थी।
मैं 1995 में दिल्ली से चण्डीगढ़ के रूट पर ड्यूटी पर था। रात का समय था ड्राइवर ने अंदर की लाइट इसलिए वंद कर दी थी ताकि सड़क पर सामने स्पष्ट नजर आ सके। अम्बाला से चलकर डेरा बसी से कुछ पहले रास्ते में कुछ यात्री मिले तो ड्राईवर ने इंसानियत के नाम पर उन्हें बिना स्टेण्ड के बस में बिठा लिया और मैने उन्हें टिकटं दे दी। जैसे ही मैने उनका बैलेंश वापिस किया, उसी समय बस डेरा बसी पर पंहुच चुकी थी। परिवहन विभाग का जांच दस्ता, डेरा बसी से बस में सवार हुए और बस की चैंकिंग शुरू की। मैने उन्हें बताया कि ये यात्री रास्ते में बिना स्टाफ के बस में चढ़े थे और चूंकि किराया अम्बाला से ही नियमानुसार लागू होता है, लिया गया है। किन्तु उन्होने इस बात को नहीं माना और चालान बना दिया। ग्यारह महीने निलम्बित रखकर मुझे बर्खास्त कर दिया गया। पूछताछ आयोजन में मेरे साथ काफी भेदभाव बरता गया।(1) इस केस में न तो चालक की गवाही ली गयी व नहीं उसे पूछताछ आयोजन में बुलाया गया। (2) यात्रियों की भी न तो गवाही ली गयी व नहीं उनको भी पूछताछ आयोजन में बुलाया गया। (3)मेरा कैश तक चैक नहीं किया गया। (4) मेरे टिकट अनपंच नहीं ली गयी। (5) चैकिंग स्टाफ के बयानों में पूछताछ आयोजन के समय भिन्नता पाई गई। (6) चैकिंग स्टाफ का आरोप था कि मैने यात्रियों को भड़काया और जांच चैंकिग कार्य में रूकावटें डाली तो ऐसी स्थिति में बस को थाने ले चलने के लिए ड्राइवर को नहीं कहा गया। (7) किसी भी स्वतंत्र यात्री की गवाही तक नहीं ली गयी। (8) चालान पर मैने अपनी असहमति लिखकर ही हस्ताक्षर किया थ। क्योंकि मुझ पर लगाये गये सभी आरोप झूठे थे। (9) अम्बाला से चण्डीगढ़ के लिए चढ़े यात्रियों की टिकट वेबाउचर में और उससे पहले की भी सभी टिकटें वे बाउचर में प्रविष्टी की हुई है जांच की जा सकती है। (10) दुव्र्यवहार का आरोप लगाने पर चैंकिग स्टाफ ने स्पष्ट नहीं किया। पछताछ आयोजन में उन्प्होने कोई स्पष्ट उतर नहीं दिया। डीटीसी से मुझे बर्खास्त कर दिया गया।
इसके खिलाफ मैं श्रमिक न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक न्याय की आश में 2009 तक दर दर भटकता रहा। परन्तु अधिकारियों द्वारा मेरी सेवा रिकार्ड व पक्षपात के कारण न्यायालय से भी मुझे न्याय नहीं मिला।
12 साल की डीटीसी की नौकरी से बर्खास्त होने से मै जहां बेरोजगार हो गया था वहीं मेरा परिवार दो जून की रोटी के लिए लाचार हो गया। मेरा पूरा परिवार मेरी नौकरी पर ही अपना जीवन बसर करते थे। मैं गरीबी, बेरोजगारी व अभावग्रस्त की जिंदगी लम्बे समय तक झेलता रहा हॅू। न्याय के लिए दर दर की ठोकरें खा रहा हॅू। मैं चाहता हॅू और ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि मुकदमों की एक समय सीमा तय हो, निर्धारित हो। ताकि फिर कोई दूसरा कोई निर्दोष व्यक्ति न्याय की आश में इस तरह न सताया जाय। इसी को लक्ष्य मानकर मैं 2014 से प्रतिवर्ष 14 मई से श्री बदरीनाथ धाम से दिल्ली राजघाट तक सदभावना पदयात्रा करता हॅू।
भगवान ऐसी सजा किसी को न दे। वर्तमान समय में मैं एक चप्पल की फेक्ट्री में मात्र 9000रूपये के वेतन पर कार्यरत हॅू। अन्याय से इतना प्रताडित होने के बाबजूद 2014 में मेने देशहित में सदभावना पदयात्रा करने का लक्ष्य रखा। 14 मई को इस पृथ्वी में भगवान विष्णु के सर्वोच्च धाम श्री बदरीनाथ धाम से चलकर दिल्ली राजघाट तक लगभग 15 दिन में पूरी करता हॅू। मैं चाहता हॅू कि 1) मुकदमों की समय सीमा निर्धारित हो। 2) जाति व धर्म के नाम पर आरक्षण की गंदी राजनीति व आरक्षण बंद हो । (3) महिला सुरक्षा कानून सशक्त हो ताकि बलात्कार, यौन उत्पीड़न व छेड़छाड़ बंद हो। 4) देश की नदियों को आपस में जोड़ दिया जाय। जिससे देश को बाढ़ व अकाल से मुक्ति मिल सके। (5) तिब्बत व ब्लूचिस्तान की आजादी का समर्थन करने के साथ सीमाओं पर चीन-पाकिस्तान की नापाक हरकतें रोकने के लिए। (6) गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा दिया जाय। (7) अधर्म व अपराधों के नाश व धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु के पुन्नः अवतार हो।
मेरे परिवार में मेरी पत्नी, दो बेटियां व एक बेटा है। बेटियों का विवाह हो गया। बेटा बीटेक करके किसी निजी फर्म में सेवारत है। मेरी विवाहित बेटी मुम्बई में प्रतिष्ठित निजी कम्पनी में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है। मेरे पूर्वजों का गांव उप्र के फेजाबाद जनपद के मलेथू बुजुर्ग गांव था। मेरे पिता दिल्ली में सेवारत थे।