देश

भारी महाभारत के बाद पुलिस ने प्रधानमंत्री कार्यालय मेें सौंपा भारतीय भाषा आंदोलन का ज्ञापन

ज्ञापन देने का खुद प्रबंध न करने वाली दिल्ली पुलिस, पदयात्रा कर प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने जा रहे आंदोलनकारियों को सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय ले जाने के बजाय आईटी स्टेट व संसद मार्ग थाने में ले गयी। संसद मार्ग थाने से पुलिस फिर ले गयी प्रधानमंत्री कार्यालय में ज्ञापन दिलाने

भारतीय भाषा आंदोलन ने ज्ञापन में प्रधानमंत्री से पूछा राष्ट्रीय धरना स्थल का पत्ता और अंग्रेजी की गुलामी से देश को अविलम्ब मुक्त करने की मांग
 
नई दिल्ली (प्याउ)। देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति करने के ऐतिहासिक आंदोलन को 55 माह पूरे होने पर भारतीय भाषा आंदोलन ने अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में 21 नवम्बर  की सांयकाल प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया। परन्तु इस ज्ञापन को सौंपने में भारतीय भाषा आंदोलन को पुलिसिया महाभारत का सामना करना पड़ा।
प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने शहीद पार्क से प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए पदयात्रा रहे भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, अनिल पंत व डा रमांइन्द्र को पहले पीसीआर ने दी सलाह स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय जाने की, रास्ता भी बताया आईटीओ से इंडिया गेट होते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय जाने का।  जब आंदोलनकारी पैदल ही जाने लगे तो आईटीओ चैक के समीप पंहुचने वाले थे कि तभी संसद मार्ग थाना प्रमुख के नाम से फोन आया,उन्होने कहा कि आप संसद मार्ग थाना आयें वहीं से दिया जायेगा ज्ञापन। परन्तु जब भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा कि हम सीधे इंडिया गेट होते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ कूच कर रहे हैं। तो फिर संसद मार्ग थाने के नाम से आये फोन पर कहा गया कि आप समझ रहे हो ना मै बोल रहा हॅू। उसके बाद जब आंदोलनकारी प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए पदयात्रा करने को चंद कदम आगे बढ़े ही थे कि तभी वही पीसीआर (जो शहीद पार्क में मिली थी, जिसने प्रधानमंत्री कार्यालय में ज्ञापन सौंपने के लिए कोई पुलिसिया व्यवस्था नहीं कर सकने की मजबूरी बता कर आंदोलनकारियों को खुद ही ज्ञापन देने प्रधानमंत्री कार्यालय जाने की सलाह दी थी) ने हमें रोकते हुए कहा कि अभी हमें संदेश आया है कि आपके नई दिल्ली क्षेत्र में प्रवेश पर लगा दिया गया है प्रतिबंध। अब आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं। आपको अब आईपी स्टेट थाना चलना होगा। तीनों आंदोलनकारियों को पुलिस जीप में बिठा कर हमें आईपीस्टेट थाने में ले जाया गया। वहां के थाना प्रमुख ने थाने के बाहर ही जब हमें व हमारा ज्ञापन देख पढ़ कर कहा कि ये तो राष्ट्रहित का कार्य है। ये कोई अपराधी नहीं। देशहित के कार्य में लगे है। न कोई भीड़  ले जा रहे है। कुछ देर बाद उन्होने हमें कहा आप जा सकते है। उसी दौरान भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के फोन पर तुगलक रोड़ थाने का भी फोन आया। वे भी हमारी वर्तमान स्थान के बारे में जानना चाह रहे थे। जब उनको बताया गया कि उन्हें आईपी स्टेट थाने में लाया गया।  इसके बाद पुलिस की भारी नाकेबंदी को भांपते हुए आंदोलनकारी स्कूटर से आईटीओ से साउथ ब्लाक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए बढें अभी मण्डीहाउस पार ही किया था कि चाणाक्यपुरी थाने से फोन आ गया कि आप किधर है। जब उन्हें बताया कि हम प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने के लिए आ रहे है। उसके बाद जैसे प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर लगे पुलिस अवरोधक के पास पंहुचे तो पुलिस को भारतीय भाषा आंदोलन का नाम लेते ही वे सतर्क हो कर बोले हम आपका ही इंतजार कर रहे थे, ज्ञापन अपने पास मांग कर उन्होने आंदोलनकारियों को पुलिस जीप में बिठा कर कार्यालय में ज्ञापन दिलाने के बजाय वे आंदोलनकारियों को थाना प्रमुख संसद मार्ग के पास संसद मार्ग थाने में ले गये। संसद मार्ग थाने में पंहुच कर जैसे पुलिस अधिकारी ने हमें ले कर थाना प्रमुख के सम्मुख प्रस्तुत किया। तब थाना प्रमुख ने पुलिस कर्मियों को आदेश दिया कि प्रधानमंत्री कार्यालय में ज्ञापन दिलाया जाय। उसके बाद वहां पर संसद मार्ग थाने में बहादूर नामक अधिकारी ने हमारे साथ आये एएसआई को ज्ञापन सौंपने के लिए पुन्न प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ भेजा। वहां पर पंहुच कर बताया गया कि एक ही ज्ञापन को सोंपने प्रधानमंत्री कार्यालय में जा सकेगा। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ज्ञापन देने के लिए आगे बढ़े। बाकी दोनों आंदोलनकारी अनिल पंत व डा रमाइन्द्र पुलिस जीप में ही समान के साथ बैठे रहे। जब पुलिस अधिकारी भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के पुलिसिया अवरोधक पर पंहुचा तो वहां पर प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी ने बताया कि भारतीय भाषा आंदोलन पर अभी तक प्रतिबंध लगाया गया था। तब पुलिस अधिकारी ने उनको थाना प्रमुख के पास ले जाने व वहां से थाना प्रमुख के आदेश पर ज्ञापन देने भेजने की बात बतायी तो उसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से इस सन्दर्भ में नये परिवर्तन से अवगत कराया। फिर वहां से स्वीकृत मिलने पर पुलिस अधिकारी के साथ दूसरी अवरोधक तक पंहुचे। वहां पर तलाशी लेने के बाद वहां से प्रधानमंत्री कार्यालय में नियुक्त कमांडो हमारा मार्गदर्शक बन कर प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ कई अवरोध को पार करते हुए पहुचा। वहां पर अधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। उसके बाद पुलिस कमांडों हमें वापस लाया। उसके बाद पुलिस अधिकारी के साथ जीप में बैठ कर हम संसद मार्ग थाने पर पंहुचे। वहां से हम अपने अपने गंतव्य के लिए अलग अलग बढ़ गये।
इस पूरे प्रकरण पर भारतीय भाषा आंदोलनकारियों ने गहरा आक्रोश प्रकट करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन दिलाने की मांग करने पर पुलिस ने जो भारी महाभारत मचाया वह पूरी तरह अलोकतांत्रिक है।  पुलिसिया तंत्र देशहित के शांतिपूर्ण आंदोलन में सकारात्मक रूख अपनाने के बजाय आंदोलनकारियों को पुलिसिया धमक दिखा कर भयभीत करता है। जबकि ज्ञापन देख कर अधिकांश पुलिस कर्मी भारतीय भाषा आंदोलन की मांग का पुरजोर समर्थन किया।
गौरतलब है कि  भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति कराने के लिए संसद की चैखट पर चलाये अपने आंदोलन के 55 माह पूरे होने पर 21 नवम्बर को प्रधानमंत्री मोदी को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी से 30 अक्टूबर को पुलिसिया दमन से जंतर मंतर से हटाये गये राष्ट्रीय धरना स्थल को रामलीला मैदान या अन्यत्र कहीं घोषित करने व देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए ज्ञापन दिया।
जंतर मंतर से हटाये जाने के बाद शहीद पार्क मे अपने आंदोलन की अलख को जारी रखने वाले भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री को लिखे ज्ञापन में प्रश्न किया कि कहां है देश की लोकशाही का प्रतीक राष्ट्रीय धरना स्थल ?
जंतर मंतर से पुलिसिया दमन के बल पर राष्ट्रीय धरना स्थल 30 अक्टूबर को हटाने के 21 दिन बाद भी क्यों नहीं बना पायी मोदी सरकार  रामलीला मैदान/ शहीद पार्क राष्ट्रीय धरना स्थल ?
(ख)अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी क्यों है भारत, अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम?
हमारी मांगे
(1)संघ लोकसेवा आयोग (2) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों (3) शिक्षा (4) सभी रोजगार की परीक्षाओं     में अंग्रेजी की अनिवार्यता हटा कर भारतीय भाषा लागू करते हुए शासन प्रशासन संचालित करने (5) देश का नाम केवल भारत करने की मांग

ज्ञापन में प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ठ करते हुए भारतीय भाष आंदोलन ने कहा कि भारतीय भाषा आंदोलन ने 21 अप्रैल 2013 से  संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के लिए जो आजादी की जंग छेडी हुई थी। इस आंदोलन को आज 55 माह पूरे हो चूके है। परन्तु  दुर्भाग्य यह देखिये कि  अंग्रेजी की गुलामी मे  अंधी हो चूकी देश की सरकारों के साथ देश की लोकशाही के प्रहरी समाचार जगत व बुद्धिजीवियों की कानों में जूं तक नहीं रेंग रहा है।जंतर मंतर पर देश की जनसमस्याओं को लेकर धरना दे रहे देश के कोने कोने से आये लोकशाही के ध्वजवाहक धरना प्रदर्शन करने वाली की जायज मांगों को स्वीकार करने क अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करने के बजाय सरकार ने 30 अक्टूबर को पुलिसिया दमन से यह कह कर जंतर मंतर से राष्ट्रीय धरना स्थल हटा दिया कि अब रामलीला मैदान में ही राष्ट्रीय धरना स्थल होगा और भविष्य में धरना प्रदर्शन वहीं होगा। परन्तु जब जंतर मंतर से भारतीय भाषा आंदोलन के लोग रामलीला मैदान में गये तो वहां पर सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की थी। नहीं दिल्ली पुलिस को व नहीं रामलीला मैदान का प्रबंधन देख रही नगर निगम को ही इस बात का स्पष्ट निर्देश दिये। जिससे रामलीला मैदान क्षेत्र की पुलिस व्यवस्था को देख रहे मध्य दिल्ली पुलिस उपायुक्त व दिल्ली नगर निगम ने यहां पर धरना प्रदर्शन की इजाजत तक न देकर रामलीला मैदान में व्यवसायिक गतिविधियां ही जारी रखी हुई है। केन्द्र सरकार द्वारा लोकशाही किये गये इस कुठाराघात करने वाली केन्द्र सरकार, दिल्ली पुलिस व दिल्ली नगर निगम यह भूल गये कि राष्ट्रीय धरना स्थल का उतना ही महत्व है जितना संसद का। स्पष्ट निर्णय न होने से दिल्ली पुलिस ने शहीद पार्क में किसान आंदोलनकारियों को 1 से 5 नवम्बर तक धरना आयोजन करने की इजाजत दी। इसके बाद जंतर मंतर से आये आंदोलनकारी शहीद पार्क में बिना बेनर के सुबह से सांय तक ही धरना दे रहे है। धरना धारी प्रश्न कर रहे हैं कि केन्द्र में आसीन भाजपा की सरकार, जो बोट क्लब में धरना स्थल हटाने व आपातकाल लगाने को लोकशाही पर हमला बता कर विरोध करती रही वह अब किस आधार से लोगों के जनहितों के लिए आवाज उठाने के संवैधानिक अधिकार को रौंद रही है। भारतीय भाषा आंदोलन सहित सभी आंदोलनकारी आपसे अविलम्ब राष्ट्रीय धरना स्थल घोषित करने की मांग कर रहे है।     देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने व भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए 56महीने से   आजादी की जंग में छेडी हुई है। इस अवसर पर भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी को देश को अंग्रेजजी गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषायें लागू करने के लिए एक रौषयुक्त ज्ञापन दिया। भारतीय भाषा आंदोलन को आशा है कि आशा है मोदी जी, योगमय भारतीय संस्कृति की कल्याणकारी गंगा को संचारित करने वाली भारतीय भाषाओं व भारत को भी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की बैेडियों से मुक्ति दिला कर भारत को आजादी का परचम लहरायेंगे। ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने  वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, कोषाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला, अनिल पंत, रमाइंन्द्र आदि प्रमुख है।

About the author

pyarauttarakhand5