उत्तराखंड

गैरसैंण राजधानी बनाये बिना, न हिमालय का संरक्षण होगा, न उत्तराखण्ड का चहुंमुखी विकास

बिना गैरसैंण राजधानी बनाये हिमालय संरक्षण के लिए अर्थहीन हो जायेंगे थ्री सी व पी मुख्यमंत्री जी

देवसिंह रावत
9 सितम्बर को उत्तराखण्ड सरकार के नियोजन विभाग द्वारा हिमालय दिवस के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय सतत् पर्वतीय विकास सम्मेलन का उदघाटन करते हुए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भले ही हिमालय के संरक्षण के लिए जो थ्री सी व थ्री पी नामक मंत्र दिया।  परन्तु मुख्यमंत्री को यह शायद ही भान होगा कि राज्य गठन के बाद जिस प्रकार से हिमालय की तरह प्रदेश की स्थिति दिन प्रति दिन दयनीय हो रही है। राज्य गठन के 17 सालों में प्रदेश की तमाम सरकारें राज्य गठन की जनांकांक्षाओं राजधानी गैरसैंण, मुजफ्फरनगर काण्ड सहित राज्य गठन के जनांदोलन को अमानवीय ढंत्र से रौंदने के गुनाहगारों को सजा दिलाने, प्रदेश के हक हकूकों की रक्षा करने के लिए हिमालयी राज्यों की तरह भू कानून बनाना, प्रदेश में व्याप्त संकीर्ण जातिवाद,क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार में लिप्त राजनीति व नौकरशाही पर अंकुश लगा कर विकासोनुमुख सुशासन प्रदान करना।
प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बना कर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने के अपने दायित्व का निर्वहन करने के बजाय प्रदेश के मुख्यमंत्रियों व उत्तराखण्ड विरोधी नौकरशाही ने मात्र पंचतारा सुविधाओं के अंध मोह में राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को रौंदते हुए बलात देहरादून में ही कुण्डली मार कर बैठ गये। देहरादून में प्रदेश के विकास के बजाय अपनी सम्पतियां बनाने वाले प्रदेश के ये तथाकथित भाग्य विधाताओं की राज्य गठन के बाद इन 17 सालों में खरीदी गयी सम्पतियों की जांच की जाय तो इनके मुखोटे बेनकाब हो जायेंगे। इनमें से अधिकांश के पास आय से अधिक सम्पतियां मिलेगी।
वहीं प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का जो बेसुरा राग अलाप रहे हैं उससे राज्य गठन आंदोलन के शहीदों की आत्मा व राज्य गठन आंदोलनकारियों के जख्मों को कितनी आहत हो रही होगीं। इसका भान इन सत्तामद में चूर नेताओं को शायद ही होगा।
उत्तराखण्ड के चहुमुखी विकास व राज्य गठन आंदोलन की भावना के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय गैरसैंण में ग्रीष्म कालीन राजधानी  के नाम पर ऐशगाह बनाना। यह प्रदेश के भविष्य के साथ जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन को थोपवाने की तरह ही एक बडा विश्वासघात होगा।
सबसे हैरानी की बात है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित तमाम दलों के नेताओं को प्रदेश के हितों व जनांकांक्षाओं का कहीं दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। वे नीरों की तरह सत्तासीन होने के बाद अपने व दलीय निहित स्वार्थो की पूर्ति करने के बाद भूल जाते हैं कि उनका दायित्व प्रदेश गठन की जनांकांक्षाओं को भी साकार करना है।
9 सितम्बर को हिमालय दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने हिमालय संरक्षण के लिए ‘थ्री सी’ और ‘थ्री पी’ का मंत्र दिया। थ्री सी यानी केयर, कंजर्व और को-ऑपरेट एवं थ्रीपी यानी प्लान, प्रोड्यूस और प्रमोट। मुख्यमंत्री ने राज्य में वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से ईको टास्क फोर्स की दो कंपनियां गठित करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इन दो कंपनियों में लगभग 200 पूर्व सैनिक सेवा देंगे और आने वाले वर्षों में इस पर लगभग 50 करोड़ रुपए, व्यय का अनुमान है। हिमालय दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री ने वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और अन्य कर्णधारों से देहरादून की रिस्पना नदी को फिर से पुराने स्वरूप में लाने की अपील भी की। मुख्यमंत्री ने कहा कि रिस्पना नदी जिसे पूर्व में ऋषिपर्णा नदी कहा जाता था, उसे फिर से प्रदूषण मुक्त और निर्मल जल से युक्त करने के लिए लोग अपने सुझाव दें।

मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि गंगा की परिकल्पना बिना हिमालय के नहीं हो सकती है और देश और दुनिया की गंगा के प्रति आस्था यह व्यक्त करती है कि उनकी हिमालय के प्रति भी आस्था है। हिमालय, भारत का भाल तो है ही, सामरिक दृष्टि से भारत की ढाल भी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके द्वारा पिछले 03 माह से जल संचय जीवन संचय और एक व्यक्ति एक वृक्ष का जो अभियान चलाया जा रहा है, वह हिमालय संरक्षण की दिशा में ही एक कदम है। उन्होंने कहा कि हिमालय के गांवों से बाहर निकलकर प्रवासी हो चुके लोगों को ‘सेल्फी फ्रॉम माय विलेज’ और जन्मदिन-विवाह की वर्षगांठ जैसे महत्वपूर्ण समारोह को अपने गांव में मनाने की अपील भी इसी दिशा में एक प्रयास है। इसी बहाने लोग अपने गांव में कुछ दिन गुजारेंगे और पर्वतीय प्रदेश से उनका रिश्ता फिर से मजबूत होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय हमारे जीवन के हर सरोकार से जुड़ा हुआ है। भारतीय संस्कृति का जन्मदाता भी हिमालय है। हिमालय की चिंता सिर्फ सरकार करें यह संभव नहीं है, अधिकतम जन सहभागिता की आवश्यकता है। समाज के हर छोटे बड़े प्रयास की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर नियोजन विभाग द्वारा राज्य की बेस्ट प्रैक्टिसेज को दर्शाने के लिए बनाई गई वेबसाइट ‘‘ट्रांसफॉर्मिंग उत्तराखंड’’ का विमोचन किया। उन्होंने प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ.अनिल जोशी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘‘हिमालय दिवस’’ का भी विमोचन किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद हरिद्वार डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि जल, जंगल, जमीन और जन को एक साथ मिलाकर समन्वित प्रयास करके हिमालय को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हर हिमालयी राज्य की अपनी विशेष आवश्यकताएं होती हैं और उनको ध्यान में रखते हुए योजनाओं को नियोजित किए जाने की जरूरत है।

डॉ.अनिल जोशी ने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे राज्य जो हिमालय की संपदा का अधिक लाभ उठाते हैं, उन्हें भी आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कंज्यूमर को कंट्रीब्यूटर भी होना चाहिए।

आईएमआई के सचिव सुशील रमोला ने कहा कि हिमालय को बचाने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्ज को साथ में मिलकर प्रयास करने होंगे। उन्होंने हिमालयी राज्यों के इंटर रीजनल पार्टनरशिप पर भी बल दिया।

अपर मुख्य सचिव डॉ.रणवीर सिंह ने लोगों का स्वागत करते हुए सतत् पर्वतीय विकास सम्मेलन की आवश्यकता और महत्व को बताया। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग और पलायन जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखे।

कार्यक्रम को परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि ने भी संबोधित किया। उद्घाटन सत्र के कार्यक्रम में शासन के वरिष्ठ अधिकारी, पर्यावरणविद्, शिक्षाविद और गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।

पर्वतीय सहित प्रदेश का चहुमुखी विकास करने की हुंकार भरने वाले तमाम मुख्यमंत्री भूल जाते हैं कि गैरसैंण प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने के साथ राज्य के चहुमुखी विकास की कुंजी है। गैरसैंण प्रदेश की लोकशाही के साथ हिमालय संरक्षण का प्रथम सौपान है। हिमालय या उत्तराखण्ड की बात करने से पहले यहां पर अपनी योजनाओं का धरातल पर उतारने का विवेक व इच्छाशक्ति होनी चाहिए। खासकर प्रदेश की भाषा या देश की भाषा में तो होना ही चाहिए। इस कार्यक्रम में मंच पर तस्वीरों के साथ आ रहा प्रमुख समारोह पट में जिस प्रकार से विदेशी भाषा मेें कार्यक्रम के बारे में लिखा गया। उससे साफ है कि विदेशी भाषा में अगर जनता को जागृत करोगे या संदेश दोगे तो हो गया जागरण। फिर क्या भारत ?क्या हिमालय? व क्या उत्तराखण्ड?

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