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अहं की जंग में डूबे आप व भाजपा की सरकारों की लापरवाही से गाजीपुर में हुआ हादसा

भलस्वा, व ओखला के कूडे के पहाड़ों में भी कभी भी हो सकता है गाजीपुर जैसा हादसा
 हरित प्राधिकरण व सर्वोच्च न्यायालय की कडी फटकार के बाबजूद नहीं जागी सरकारें  

 

नई दिल्ली (प्याउ)। गाजीपुर के कूडे के पहाड़ का निपटारा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय व हरित प्राधिकरण की फटकार के बाद भी नहीं किया गया कूडे का निपटारा। इसी कारण 1 सितम्बर को वर्षा से बनी गैस से हुए विस्फोट के बाद अचानक कोंडली नहर में जा गिरा। इस कूडे के पहाड़ से ढहते हुए कूडे की चपेट में नहर के साथ वाली सड़क पर चल रहे 7 वाहन आ गये। कूडे सहित ये बाहन कोंडली नहर में जा गिरे। इसके बाद यहां पर बचाव कार्य चलते रहे। अभी तक एक लडकी सहित दो लोगों की दर्दनाक मौत हो गयी और 4 लोगों को सुरक्षित बचाया गया। इस दुर्घटना के शिकार हुए दर्जन भर घायलों को लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
यह ंबचाव में स्थानीय लोगों ने दुर्घटना होने के तुरंत बाद सरकारी अमला आने की इंतजारी में समय गंवाये बिना तुरंत नहर में उतर कर कई लोगों के प्राणोें की रक्षा की। इस दुर्घटना के बचाव में दिल्ली पुलिस के आला अधिकारी, आग बुझाने वाला दस्ते व बडी संख्या में गौताखोर भी लगे।
इस दुर्घटना की खबर मिलते ही दिल्ली नगर निगम में सत्तासीन भाजपा नेता व दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपने दलबल के साथ घटना स्थल पर पंहुच कर एक दूसरे को इस घटना के लिए दोषी ठहराते रहे। इस दुर्घटना के लिए जहां पूर्वी दिल्ली की मेयर नीमा भगत व पूर्वी दिल्ली के सांसद ने मौके पर पंहुच कर इसके लिए दिल्ली की जनहितों के प्रति लापरवाह आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार को दोषी ठहराया। वहीं केजरीवाल की सरकार व आप नेताओं ने इसके लिए दिल्ली नगर निगम व केन्द्र सरकार में आसीन भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। आप का आरोप है कि वे इस कूडे के निपटारा के लिए नयी जगह की मांग करते रहे। दिल्ली सरकार के पास डीडीए व भूमि दोनों ही नहीं है। दोनों पर भाजपा की सरकार के पास है। वहीं पूर्वी दिल्ली की मेयर ने इस दुर्घटना की जांच के आदेश दे दिये।
हकीकत यह है कि दिल्ली सरकार व दिल्ली नगर निगम के साथ केन्द्र को भी इस गंभीर समस्या के निदान के प्रति रत्ती भर भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई। नहीं तो कोई मजाल नहीं यह काम का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय व हरित प्राधिकरण की पटकार के बाद भी प्रदेश की सरकार नहीं करती।
दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम व केन्द्र सरकार की जनहितों के प्रति उदासीनता के कारण गाजीपुर में कूडा घर उत्तर भारत का सबसे बड़ा कूडा घर बन गया।
हरित प्राधिकरण ने इसी जुलाई में दिल्ली सरकार से दो टूक शब्दों में फटकार लगाते हुए पूछा कि राजधानी में रोजाना 14,100 टन ठोस कचरा निकलता है, लेकिन इसके निस्तारण के लिए दिल्ली सरकार के पास ना तो कोई मूलभूत ढांचा है और न ही कोई तकनीकी ज्ञान। हरित प्राधिकरण ने दिल्ली सरकार से प्रश्न किया कि उसने भलस्वा, गाजीपुर और ओखला में स्थित कूड़ा निस्तारण की साइट पर कचरे के पहाड़ को कम करने के लिए क्या कदम उठाए।
वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस कूडे के पहाड़ पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए दिल्ली सरकार को कडी फटकार लगाते हुए इसके निदान करने के लिए यह कहा था कि इस कूडे घर का शीघ्र निपटारा नहीं किया गया तो यह कूडा घर कुतुब मीनार से ज्यादा ऊंची होगी। सरकार को इसको शीघ्र निपटारा करने के लिए पूरी योजना क्रियान्वयन करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा था कि कचरे का निपटारा नहीं होने से लोग मर रहे हैं। दिल्ली सरकार और सिविक एजेंसियों कार्य योजना बना कर निदान करे।
सर्वोच्च न्यायालय के इस साफ संदेश को भी नजरांदाज दिल्ली सरकार व दिल्ली नगर निगम ने किया। इसी के कारण इस कूडे के चपेट में आ कर अनैक लोगों ने अपना जीवन ही जमीदोज हो गया। अगर हरित प्राधिकरण व सर्वोच्च न्यायालय की फरमान को नजरांदाज नहीं करती तो गाजीपुर में कूडे के ढेंर के ढहने में आज लोगों को नहीं चूकानी पड़ती अपनी जान।  गाजीपुर कुडे के पहाड़ के ढहने से दिल्ली सरकार व दिल्ली नगर निगम के साथ केन्द्र सरकार को भी भलस्वा, व ओखला में खडे हुए कूडे के ऐसे पहाड़ों के कूडे का निपटारा करना होगा नहीं तो वहां भी इस प्रकार के हादसे हो सकते है। जिसकी जिम्मेदारी से भले ही ये सरकारें नकार दें परन्तु इन हादसों के लिए ये ही जिम्मेदार होंगे। परन्तु इन हादसे के बाबजूद नहीं लगता है कि दिल्ली सरकार व भाजपा की सरकार के कान में जूं तक रेंगा हो। वे दोनों मिल कर इस समस्या का निदान करने के बजाय मात्र एक दूसरे को दोषी ठहराने में ही जुटे हुए है।

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