अमेरिका के कोरियाई चक्रव्यूह में फंसने से भारत को युद्ध के ललकारने वाले चीन के उडे होश
भारत पर चीन के हमला करते ही अमेरिका करेगा उत्तरी कोरिया को तबाह
देवसिंह रावत
कोरिया विवाद के जन्म से जुडे चीन भले ही खुद को विश्व की महाशक्ति समझ कर अपने तमाम पडोसियों के साथ साथ अमेरिका को भी गरिया रहा है। परन्तु इस बार अमेरिका के चक्रव्यूह में कहो या चीन के अंध अहंकार ने चीन को ऐसे भंवर में फंसा दिया है जहां उसके अस्तित्व पर सवालिया निशान लग सकता है। अमेरिका चाहता है कि चीन, जैसे ही भूटान की जमीन पर काबिज होने वाले विवाद पर जैसे ही भारत पर हमला करे तो उसी समय अमेरिका, उत्तर कोरिया पर ताडब तोड़ हमला कर, उसके शासक का खात्मा कर सके। अमेरिका की इस रणनीति को चीन भांप कर चीन के होश उड़ गये है।
चीन की यह रणनीति थी कि भारत उसकी युद्ध की धमकी के आगे आत्मसम्र्पण करके भूटान वाले क्षेत्र में चीन को मोटर मार्ग बनाने देगा। परन्तु चीन की आशाओं पर पानी फेरते हुए भारत ने चीन की युद्ध की धमकी को गीदड़ धमकी बता कर विवादस्थ जगह के साथ चीन से लगी पूरी सीमा पर सेना की भारी तैनातगी कर दी। भारत के इस दाव से चीन अपने ही बनाये गये चक्रव्यूह में बुरी तरह घिर गया है। वह कैसे एक तरफ कोरिया क्षेत्र में अमेरिका व उसके सहयोगी देशों से लड़ने के साथ भूटान से लगी सीमा पर भारत से एक साथ लडेगा। अपने को फंसे देख कर चीन के होश ही उडे हुए है। उसे अब इस चक्रव्यूह में आकंण्ठ फंसने के बाद भारत, की बढ़ी ताकत का व अमेरिका के खौपनाक चक्रव्यूह में फंस कर अपनी दुर्गति का अहसास हो गया है। चीन की इसी आत्मघाती भूल ने उसके सम्राज्य ही नहीं अपितु उसके अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिये है। भले ही चीन के साथ उत्तर कोरिया व पाक का साथ हो परन्तु जब चीन जबरदस्ती भारत पर युद्ध थोपेगा और कोरिया युद्ध में उलझेगा तो उसे न केवल भारत से भारी चुनौती मिलेगी अपितु उसे अमेरिका व उसके मित्र देशों के साथ अब जापान से भी भारी ऐसी चुनौती मिलेगी कि चीन के सारे सपने बिखर जायेंगे।
चीन ने महाशक्ति के गरूर में एक तरफ अमेरिका को चुनौती दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ 1950 से 1953 तक चले ं कोरिया युद्ध में सम्मलित हुए चीन के खिलाफ अमेरिकी गठबंधन के साथ हुए समझोता कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उस भारत को कोरियाई युद्ध मे ंतटस्थ रहे, उस भारत को चीन भूटान की जमीन पर बलात कब्जा करने की आत्मघाती कृत्य करते हुए बार बार युद्ध की धमकी दे रहा है। चीन की यह धमकी उसके लिए ताबूत के कील की तरह साबित होने वाली है।
अब 64 साल बाद फिर चीन व अमेरिका कोरिया विवाद के कारण ही आमने सामने है। इस बार भले ही न केवल चीन खुद को विश्व की महाशक्ति बता रहा है अपितु उत्तरी कोरिया भी अपने को ऐसी ही सामरिक ताकतवर देश मान रहा है जो विश्व की स्थापित महाशक्ति अमेरिका को खुले आम हमले की धमकी दे कर अपने महाविनाश को आमंत्रण दे रहा है। असल में यह दुशाहस उत्तर कोरिया केवल अपनी मिसाइलों के दम पर नहीं कर रहा है अपितु यह हुंकार उत्तरी कोरिया विश्व की सबसे बड़ी सामरिक व आर्थिक महाशक्ति समझने वाले चीन की शह पर ही भर रहा है।
यह केवल ख्याली दोस्ती नहीं है उत्तर कोरिया व चीन के बीच अपितु वर्तमान वामपंथी चीन की स्थापना से लेकर आज दिन तक उत्तर कोरिया व चीन दोनों गाढे वक्त के दोस्त है। चीन पर वामपंथी शासन स्थापना में उत्तर कोरिया के हजारों सैनिकों ने अपना योगदान दिया था। वहीं उत्तरी कोरिया व चीन केे बीच 1961 में एक ऐसी मित्रता भरा समझोता हो रखा है। इसके तहत चीन और उत्तर कोरिया में से किसी भी देश पर अगर कोई अन्य देश हमला करता है तो दोनों देशों को तुरंत एक-दूसरे का साथ दे कर हमलावर के खिलाफ जंग लडेंगे।
इसी समझोते को ढाल समझ कर उत्तर कोरिया बार बार अमेरिका को उकसा रहा है खुद पर हमला करने के लिए। पर यह उत्तर कोरिया का भाग्य है कि इस समय अमेरिका की सत्ता बुश जैसे हमला करने वाले राष्ट्रपति आसीन नहीं है। अपितु वर्तमान में अमेरिका में ट्रम्प सत्तासीन है। भले ही ट्रंप ने चुनाव में कोरिया आदि उन देशों को करारा सबक सिखाने की बातें की थी जो अमेरिका की राह में अवरोधक खडा कर रहे हैं या चुनौती देने का दुशाहस कर रहे है। अगर बुश के होते उत्तर कोरिया, अमेरिका को इतना गरियाता तो बुश कोरिया का हाल भी अफगानिस्तान की तरह करके बर्बाद कर देता।
रही बात चीन की तो अमेरिका के पास इतना सामथ्र्य है कि चीन को विश्व शांति के लिए खतरा बता कर इसके खिलाफ विश्व में आर्थिक प्रतिबंद्ध या इसको घेरने कर कमजोर करने का काम बखुबी से कर सकता है।
यानी कि अमेरिका ने अगर उत्तर कोरिया के खिलाफ कोई सैन्य विकल्प आजमाएगा तब चीन को इसका जवाब देना ही होगा. इस तरह से कोरियाई प्रायद्वीप तकरीबन सात दशक बाद फिर महादेशों के समर्थन-सहयोग से एक युद्ध में उलझ जाएगा.
उल्लेखनीय है कि संयुक्त कोरिया 1910 से 1945 तक जापान का गुलाम रहा। उस दौरान भारत ब्रिट्रेन की गुलामी का दंश झेल रहा था। दूसरे विश्व युद्ध के समापन के अंतिम दिन रूस ने जापानी सम्राज्य पर कोरिया में हमला कर दिया। दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका व रूस दोनों मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व करते हुए जापान, जर्मनी आदि शत्रु राष्ट्रों के खिलाफ लड रहे थे। मित्र राष्ट्रों की तय नीति के तहत जापान के हार के बाद कोरिया को जनता के भारी विरोध के बाबजूद दो हिस्सों में बांटा गया। दक्षिण कोरिया पर अमेरिका व उत्तर कोरिया पर रूस समर्थक सरकार आसीन रही। दूसरे विश्व युद्ध के समापन के बाद रूस व अमेरिका के बीच जो वर्चस्व जी जंग छिडी उसके तहत पूरे विश्व में लगातार शीत युद्ध के दंश में बर्बाद हुआ। इसी के तहस रूस के तत्कालीन शासक स्टालिन की शह पर 25 जून, 1950 को दक्षिण कोरिया पर अचानक आक्रमण कर दिया. कुछ ही दिनों के भीतर दक्षिण कोरिया का एक बड़ा हिस्सा कब्जा कर लिया।
उत्तरी कोरिया जब दक्षिण कोरिया पर हमला कर पूरी तरह काबिज होने लगा तो अमेरिका ने आनन फानन में सुरक्षा परिषद से प्रस्ताव पारित कर सुयंक्त राष्ट्र की अगुवायी में अपने मित्र देशों की 10 लाख सैनिकों ने सितम्बर 1950 को आक्रमणकारी उत्तर कोरिया पर प्रचण्ड हमला कर उसे
दक्षिण कोरिया के बडे भू भाग से खदेड़ दिया। जैसे ही अमेरिका नेतृत्व वाली सेना ने उत्तर कोरिया की सीमाओं में बढ़ने लगे तो नवंबर 1950 में चीन ने अमेरिका के खिलाफ युद्ध में उत्तर कोरिया की तरफ से जंग में उतर आया। यह देख कर इस युद्ध में पहली बार अमेरिकी सेना को पीछे हटना पड़ा।
अमेरिका ने उत्तर कोरिया गठबंधन के करीब पौने दो लाख सैनिकों को बंदी बना लिया। था। चीन के उतर जाने से यह युद्ध लम्बा खिचना तय था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सहित तटस्थ देशों की पहल पर युद्ध विराम कराने में सफलता अर्जित की। 27 जुलाई, 1953 को दोनों देशों के बीच चला आ रहा तीन साल लंबा युद्ध खत्म हुआ ।
चीन ने यह स्थिति अपने अहंकार से खुद बनायी है। विश्व की सर्वाधिक आबादी वाले देश चीन की 14 देशों के साथ सीमाएं मिलती हैं और सीमा को लेकर पाकिस्तान को छोड़कर लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ चीन की तनातनी है। कुल मिलाकर चीन का 23 देशों के साथ विवाद चल रहा है। भारत से जमीनी और समुद्री तथा जापान, वियतनाम और फिलीपींस के साथ
समुद्री सीमा को लेकर उसका गहरा विवाद है। पड़ोसी देशों के साथ तो उसका सीमा विवाद है ही, साथ में हजारों किलोमीटर दूर स्थित दूसरे देशों के साथ भी उसका विवाद ही है। चीन का इंडोनेशिया, सिंगापुर,मलेशिया, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, अफगानिस्तान,रूस, जापान, मंगोलिया,दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, कम्बोडिया, फिलीपींस, कम्बोडिया, पाकिस्तान, भारत, ताइवान, वियतनाम के साथ विवाद है। हाॅ अमेरिका के साथ टकराव में हो सकता है चीन को रूस का आंशिक समर्थन मिले। परन्तु चीन तिब्बत, ताइवान, कोरिया, भारत सहित कई देशों के प्रकरण पर इतना उलझा हुआ है कि यही उलझन अब उसकी फांस बन सकती है। खासकर अमेरिका उसे अब विश्व के लिए सबसे बडा खतरा मान गया है। तिब्बत पर चीन ने जिस प्रकार से मानवाधिकारों का हनन व लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन कर रखा है उससे अमेरिका के नेतृत्व में कभी भी चीन पर आर्थिक प्रतिबंद्ध लगा कर उसके पूरे आर्थिक सम्राज्य की हवा निकाली जा सकेगी। विश्व शांति पर ग्रहण लगाने वाले पाक व उसके आतंकियों को को जिस शर्मनाक ढंग से चीन संरक्षण दे रहा है उससे देर सबेर चीन के खिलाफ अमेरिका निर्णायक कदम उठा सकता है। यह कदम चीन के प्यादे उत्तर कोरिया पर हमले से प्रारम्भ हो कर चीन पर आर्थिक व सामरिक प्रतिबंद्ध संयुक्त राष्ट्र के द्वारा लगाये जाने तक उठेंगें। यह तय है कि चीन की राहे कोरिया व भारत प्रकरण के बाद आसान नहीं होगी। चीन का अहंकार ही उसके इस पूरे सम्राज्य को ढाहने का कारण बनेगा। चीन सहित सभी को यह बात समझ लेना चाहिए कि अहंकार व अन्याय हमेशा पतन का कारण बनता है। उसके यह कृत्य देर सबेर उसका विनाश करता है। अमेरिका हो यह रूस दोनों के भले ही अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए कई देशों पर हमले व तबाह करे। परन्तु दोनों देशों ने सुझबुझ से काम किया। परन्तु चीन ऐसा देश है जो अपने मित्र व पडोसी देशों को ही हडपने में लगा रहता है। चीन को इस बात का अहसास होना चाहिए था कि अगर उसको अमेरिका की चुनौतियों का सामना करना है तो उसे अपने आस पडोसी, व विश्व में उसका भला चाहने वाले भारत जैसे उभरती हुई व विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश से नाहक ही दुश्मनी नहीं लेनी चाहिए। खासकर जिस भारत ने 1953 में कोरियाई युद्ध में अमेरिका के साथ युद्ध बिराम कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जिस भारत से संयुक्त राष्ट्र में मिली सुरक्षा परिषद की स्थाई सीट को उसको तोहफे में दी हो। उस भारत से चीन ने नाहक ही दुश्मनी लेकर चीन ने अपने सर्वनाश को आमंत्रण दिया है। जो भारत उसके लिए सबसे बडा बाजार हो उससे दूश्मनी लेकर चीन ने अपने आर्थिक सम्राज्य की खुद ही चूलें हिला दी। इसी को कहते हैं विनाशकाले विपरित बुद्धि। चीन का पतन व विनाश को खुद चीन ने तय कर लिया है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।