देश

काश बहादूर बस चालक सलीम की तरह हुक्मरान भी देश की रक्षा के लिए अपना दायित्व निभाते

शाबास जांबाज बस चालक सलीम गफूर शेख जिस की बहादूरी पर देश को नाज है

देश अब कड़ी निंदा नहीं, आतंकी पाक को मुंहतोड़ जवाब चाहता  है
देश के हुक्मरानों की परीक्षा है कि वह आतंकी पाक को करारा सबक सिखाते हैं या फिर नपुंसकता का परिचय देते है

देवसिंह रावत

आतंकियों के खौप से सहमी कश्मीर में अंधेरी रात में बस में ड्राइवर व एक सहायक सहित कुल 51 सवारियां थी। बस सडक पर तेज रफ्तार से सुनसान सडक पर अपने गंतव्य के लिए बढ़ रही थी। तभी अचानक  आतंकियों ने बस पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात की। यात्रियों की चिखें निकली। पर इस घटना से भौचंक्के बहादूर बस चालक सलीम गफूर शेख ने बस को रोकने के लिए आगे से गोली चला रहे आतंकियों से भयभीत हो कर बस रोकने के बजाय बहुत ही विवेक से काम लेकर  बस को तेज कर भगा दिया। बस में चढ़ने में असफल आतंकियों द्वारा गोलियां चलाते हुए बस का करते रहे। पर जांबाज बस चालक बस को तेजी से 2 किमी तक तब तक भगाता रहा जब तक सेना का शिविर न मिला। इस हमले में जहां 7 अमरनाथ तीर्थ यात्री मारे गये 19 घायल हुए। अगर बस चालक गोली चलते ही बस रोक देता तो आतंकी 51 के 51 लोगों की निर्मम हत्या कर देते। ऐसे जांबाज बस चालक सलीम शेख पर पूरी मानवता को नाज है। जहां एक तरफ जाहिल आतंकी अंधाधुंध गोलियां चला कर इस्लाम के नाम पर निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ गुजरात का जांबाज बस चालक सलीम शेख, इंसानियत को बचाने के लिए गोलियों की परवाह न करते हुए अपनी जान को दाव लगाते हुए बस को मौत के मुंह से सुरक्षित निकाल लाया। इस्लाम को ही मानने वाले जांबाज बस चालक सलीम शेख की बहादूरी से जहां यह साबित कर दिया कि इस्लाम आतंक का नहीं इंसानित का नाम है। जांबाज बस चालक सलीम शेख के नेक कर्म से खून खराबा कर रहे आतंकियों को इस्लाम का आइना दिखाया। वहीं संदेश दिया कि इंसानियत की रक्षा के लिए हमें खुद को कुर्वान करने से पीछे नहीं रहना चाहिए।
51 वर्षीय सलीम गफूर शेख की बहादूरी की खबर सुन कर गुजरात में उनकी अम्मी, पत्नी व परिजनों के आंखों में खुशी के आंसू थे कि उनके सलीम गफूर शेख ने अपनी जान की परवाह न करते हुए लोगों की जान बचाई। आतंकियों द्वारा बस पर की जा रही गोलियों की बौछार के बीच कैसे बचाई सलीम गफूर शेख ने यात्रियों की जान यह उनकी ही जुबानी। सलीम गफूर शेख के अनुसार रात को उनकी बस का टायर पंक्चर होने के कारण  बस पीछे रह गई थी। अनंतनाग पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया। इसी बीच, गोलियों की आवाज सुनी। तुरंत समझ गया कि आतंकवादी हमला है। मैं सीट पर झुक गया। तभी कांच को चीरते हुए एक गोली आई और मेरे साथ खड़े एक भाई को जा लगी। मौत सामने दिख रही थी। खुद को और यात्रियों को बचाने का एक ही रास्ता था कि बस चलती रहे। मैंने झुके-झुके एक्सेलरेटर जोर से दबा दिया। आतंकी बाइक पर थे। एक आतंकी ने बस में चढ़ने की कोशिश की, लेकिन उसे एक श्रद्धालु ने धक्का दे दिया। सवारियां चिल्ला रही थीं।  मैं बस दौड़ाता रहा। क्योंकि मुझे इस बात का अहसास था कि अगर बस रोकी तो आतंकी सभी को मौत के घाट उतार देंगे।  2 किलोमीटर बस भगाने के बाद जब वहां सेना का बेस कैम्प मिला, तभी मैने वहां पर बस रोकी। शायद आतंकियों को पता था कि नजदीक सेना का कैंप है। इसलिए वहां आतंकी नहीं आये।  वहां रुके तो पता चला कि कुछ लोगों को गोली लगी है। जवानों ने मदद मुहैया करवाई। कुछ श्रद्धालुओं को बचा नहीं पाया, इसका मुझे अफसोस है।

सरकार ने बस चालक की बहादूरी को देखते हुए 5 लाख का इनाम देने की घोषणा की तथा गुजरात सरकार ने सलीम शेख को बहादूरी का पुरस्कार देने के लिए केन्द्र सरकार के पास नाम भेजने का भी ऐलान किया। 10 जुलाई की रात को जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों को लेकर जा रही बस पर हमले के लिए आतंकवादी संगठन लश्करे-तैयबा जिम्मेदार है। 7 तीर्थ यात्रियों की दर्दनाक मौत हुई और 19 अन्य घायल हुए थे। इस हमले के लिए पाक द्वारा संचालित लश्करे-तैयबा का हाथ माना जा रहा है। लश्कर का कमांडर पाकिस्तानी आतंकवादी इस्माइल ने कुछ स्थानीय आतंकियों के साथ इस हमले को अंजाम दिया। हालांकि लश्करे-तैयबा ने हमले में हाथ होने से इनकार किया है। मृतकों के नाम गुजरात के हसुबेन रातिला (वाडोली स्कूल फालिया, वलसाड), सुरखाबेन (उडवाड़ा, वलसाड), पटेल लक्ष्मीबेन (वलसाड), रतन जीनाभाई पटेल (डामन कुन्टा), ठाकुर निर्मलाबेन (धानु पालघर) और महाराष्ट्र की उषा मोहानला सोनकर (दानु, वलडाग) हैं। अब देश के हुक्मरानों की परीक्षा है कि वह आतंकी पाक को करारा सबक सिखाते हैं या पहले की तरह केवल कड़ी निंदा करके शर्मनाक नपुंसकता का परिचय देते है। पर देश अब कड़ी निंदा का शब्द भी सुनने के लिए तैयार नहीं है। देश आतंकी पाक को मुहतोड़ जवाब देते देखना चाहता है।

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