उत्तराखंड

देवभूमि उत्तराखण्ड की अमन पर सतपुली सा ग्रहण लगाने के पीछे बाहरी घुसपैठिये

उत्तराखण्ड के हुक्मरानों की अंध सत्तालोलुपुओं की शह व समाज की अदूरदर्शी सोच से उत्तराखण्ड में राज्य गठन के बाद हुआ  भारी घुसपैठ

उत्तराखण्ड के सदियों से उत्तराखण्डी संस्कृति को आत्मसात कर मिलजुल कर रहते है अल्पसंख्यक,

बाहरियों ने किया विषाक्त माहौल

सतपुली (प्याउ)।सतपुली प्रकरण से  जहां पूरा उत्तराखण्ड स्तब्ध है वहीं अमन चैन व सामाजिक सौहार्द के लिए पूरे विश्व में विख्यात देवभूमि उत्तराखण्ड में हुई इस शर्मसार करने वाले प्रकरण से देश के जागरूक लोग भी हैरान है। लोगों की जुबान पर एक ही सवाल है कि देवभूमि उत्तराखण्ड की शांति पर ग्रहण लगाने वाला हैवान कंहा से आया। क्योंकि उत्तराखण्ड में रहने वाले अल्पसंख्यक समाज के लोग सदियों से उत्तराखण्डी संस्कृति को ही आत्मसात करते हैं।
9 जुलाई को सतपुली में नजीबाबाद के एक सब्जी/फल का फडा लगाने वाले युवक वसीम  द्वारा भगवान केदारनाथ की तस्वीर से छेडछाड कर धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालेी एक तस्वीर सोशल मीडिया में डालने से सतपुली की शांति पर ग्रहण लगा दिया। सतपुली की शांति पर ग्रहण लगाने वाला यह युवक व उसका बाप फरार हो गये। खबर है कि   आक्रोशित लोगों ने सतपुली बाजार बंद कर यहां जलूस निकाला और आरोपित की दुकान में तोड़फोड़ की।   लोगों के पहुंचने से पहले आरोपी फरार हो गया। सतपुली में हुए इस बबाल की खबर सुनते ही सतपुली धारा 144 लागू कर शांति बनाये रखने के लिए पुलिस तैनात की गयी।
पुलिस कर रही आरोपित की गिरफ्तारी के लिए कई स्थानों पर छापे मार रही हैं।
पुलिस के अनुसार सतपुली में फड़ लगाकर फल-सब्जी बेचने वाले एक युवक ने फेसबुक पर लंबे समय से चल रहे एक पोस्ट ‘मैं उत्तराखंडी छौ’ में आपत्तिजनक तरीके को एडिट कर दोबारा अपलोड कर दिया। पोस्ट में राज्य के एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल की तस्वीर से आपत्तिजनक छेड़छाड़ की गई। इस घटना के बाद  पौड़ी, कोटद्वार तथा लैंसडोन से भारी तादाद में पुलिस बल बुलाकर सतपुली में तैनात किया गया है। उपजिलाधिकारी कोटद्वार राकेश तिवारी व पुलिस क्षेत्राधिकारी जेआर जोशी ने प्रदर्शनकारियों से वार्ता की और बाजार खोलने को कहा।

सबसे हैरानी की बात यह है पुलिस ने समय रहते हुए इस पर अंकुश नहीं लगा पाया। इस प्रकरण से साफ हो गया कि देशभूमि उत्तराखण्ड में भी ऐसे विषाक्त तत्व पंहुच चूके हैं जो अपने आकाओं के इशारे पर यहां की शांति को भंग करने को तुले है। उत्तराखण्ड की संस्कृति में रमे अल्पसंख्यकों के अमन चैन को भी ऐसे तत्व  ग्रहण लगा रहे है। इसके पीछे कोई और जिम्मेदार नहीं केवल व केवल प्रदेश के अंध सत्तालोलुपु नेता रहे। जिन्होने पहले जिस प्रकार से षडयंत्र करके  प्रदेश में आंदोलनकारियों की मात्र कुम्भ क्षेत्र की मांग को षडयंत्र के तहत रौंदा। प्रदेश में स्थाई निवासी व मूल निवास का झारखण्ड की तर्ज पर न निर्धारण न करके उत्तराखण्ड में घुसपेट करने के लिए खुला छोड़ दिया।
यही नहीं उसके बाद भी जिस प्रकार से यहां पर षडयंत्र की तरह राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून थोपकर उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व करने वालेे पर्वतीय जनपदों को उजाडने का काम किया। गैरसैंण राजधानी न बनाने से प्रदेश के पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा सहित पूरा तंत्र देहरादून, ऊधमसिंह व हरिद्वार जनपदों तक सीमिट कर रह गया। इससे लोग मजबूरन पर्वतीय क्षेत्र से पलायन कर रहे है। यही नहीं जिस प्रकार से यहां के हुक्मरानों की उदासीनता व लोगों की अदूरदर्शिता के कारण षडयंत्र के तहत पूरे उत्तराखण्ड में  नजीमाबाद, सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, बरेली व देश के कई शहरों के संदिग्ध अपराधियों ने ही नहीं बग्लादेश के घुसपेटियों ने उत्तराखण्ड में डेरा बना लिया है। भ्रष्ट नेताओं की शह पर इन्होने पर्वतीय कस्बों तक अपनी पनाहगाह बना ली है। इनके मतदाता कार्ड, पहचान पत्र आदि बना दिये गये। ये केवल पशु खरीददार, सब्जी रेड़डी, कपडे, बर्तन, सुनार व फेरीवाले के भेष में घुसे है। प्रदेश में हो रहे चोरी, डाका, लूटपाट, तस्करी, महिलाओं को भगाना, झूठी शादी का प्रलोभन  आदि मामलों में बड़ी संख्या में ऐसे तत्व संलिप्त पाये जाने के बाद भी प्रदेश सरकार की कुम्भकर्णी नींद नहीं खुली। न ही प्रशासन ने इस पर रोक लगाने का अपना दायित्व नहीं निभाया। इसके पीछे मुख्य कारण यह रहा कि एक तो यहां के नेताओं की अंध सत्तालोलुपता, निहित स्वार्थ में डूबे रहना, अदूरदर्शिता व दलों का बंधुआ मजदूर होने के साथ प्रदेश के विकास के प्रति इनकी कोई सोच का न होना ही जिम्मेदार है।
इसके साथ प्रदेश की नौकरशाही में उत्तराखण्ड पृष्ठभूमि के नौकरशाहों के बजाय बहारी अवसरवादी नौकरशाहों को प्रदेश के हुक्मरानों द्वारा प्रमुखता देने से। इसी कारण प्रदेश की तमाम जनांकांक्षायें राज्य गठन के 17 साल बाद भी साकार होना तो रहा दूर अपितु हुक्मरानों ने जमीदोज कर दिया। प्रदेश में इसी स्थिति का लाभ उठा कर सतपुली प्रकरण के गुनाहगारों की तरह की मानसिकता के तत्वों ने प्रदेश में विष वमन के अपनेे अड्डे बना दिये है। अगर प्रदेश की नौकरशाही की बागडोर उत्तराखण्ड समर्थक नौकरशाहों के पास रहती तो उन्हें प्रदेश के सुख दुख का भान रहता। बाहरी व निहित स्वार्थी नौकरशाहों को यह प्रदेश केवल बंदरबांट का अड्डा मात्र नजर आता।
अभी भी समय है प्रदेश सरकार को पूरे प्रदेश में इस प्रकार के अपराधिक अवांछनीय घुसपैठियों को बाहर खदेड़ कर प्रदेश के अमन शांति की रक्षा के दायित्व का निर्वाह करे। इसके साथ अल्पसंख्यक समाज को चाहिए कि इस प्रकार के भडकाने वाले व विष वमन करने वाले तत्वों के नापाक इरादों को जमीदोज करने में इनका सामाजिक बहिष्कार करके इनकी सूचना प्रशासन तक दें। लोगों को भी जागरूक रहना होगा कि ऐसे जहर फेलाने वालों को प्रदेश कहीं भी पांव रखने भी न दिया जाय।

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