दुनिया

70 साल में पहली बार इजराइल यात्रा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने किया भारत की नयी विदेश नीति का सूत्रपात

येरूशलम(प्याउ)। अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र भारत के इतिहास में भारतीय विदेश नीति में नये अध्याय का सूत्रपात हुआ जब भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल के तीन दिवसीय दौरा किया। प्रधानमंत्री मोदी के इजराइल जाने से एक इतिहास यह भी बना कि आजादी के 70 साल में पहली बार भारत के प्रधानमंत्री ने इजराइल का दौरा किया। भले ही इजराइल के साथ भारत के कुटनीतिज्ञ सम्बंध नरसिंह राव के शासनकाल में पटरी पर चढ़ गया था। भारत इजराइल से भले ही हथियार व अन्य व्यापार करता रहा पर देश के किसी सरकार में इतनी हिम्मत नहीं जुटी की वह अपने प्रधानमंत्री को इजराइल का दौरे पर भेज सके। ऐसा नहीं कि इजराइल का दौरा भारत के अन्य प्रधानमंत्री नहीं करना चाहते थे। इजराइल जाना तो सब चाहते थे परन्तु अब तक की सरकारों को भय था अरब देशों से सम्ंबध खराब होने का। यह जग जाहिर है कि अरब देशों का इजराइल से 36 का आंकडा जग जाहिर है। देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के कारण देश के हितों को दरकिनारे करके मात्र मुस्लिम नाराज न हो इसके लिए इजराइल से दूरियां बनाये रखी गयी। जबकि इजराइल आतंकवाद, हथियार, कृषि आदि मामलों में भारत का सबसे विश्वसनीय लाभदायक सहयोगी है। संसार भर के यहुदी भारत को अपना दूसरा सबसे प्रिय घर मानते है। माने भी क्यों नहीं भारत में ही यहुदियों को सुरक्षित सदियों तक जीवन जीने को मिला।
फिलीस्तीन  व इजराइल के तनावपूर्ण विस्फोटक सम्बंधों के कारण पूरे अरब देश ही नहीं दुनिया भर के मुस्लिम देश इजराल के न केवल खिलाफ है अपितु वे दुनिया के नक्शे से मिटाने के लिए कमर कसे हुए है। ऐसे में दुनिया को कोई भी देश अमेरिका व उसके नाटो देशों को छोड़ कर खुल कर इजराइल के साथ खडा नहीं होता। क्योंकि एक तरफ मुस्लिम तुटिळकरण की राजनीति है वहीं दूसरी तरफ अरब देशों से तेल, गैस व मानव रोजगार जैसे बहुत ही महत्वपूर्ण आपूर्ति है। कोई भी आम देश एक देश के लिए पांच दर्जन देशों को नाराज करके अपनी अर्थव्यवस्था पर कुठाराघात नहीं कर सकता। परन्तु भारत का जहां तक सवाल है वह सदैव न्याय के पक्ष में रहा। भारत का साफ मानना है जितना हक इस धरती पर अरब देशों को जीने का है उतना ही हक इस धरती पर इजराइल के लोगों को भी है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए व सभी विकल्पों पर गहरायी से सोच विचार करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल का ऐतिहासिक दौरा किया। आज पाक व चीन सहित इस्लामी आतंकवाद से चैतरफा घिरे भारत को इजराइल जैसा मजबूत व विश्वसनीय सहयोगी की नितांत जरूरत है। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने इजराइल के साथ सार्वजनिक सम्बंध बनाये रखने का साहसिक कदम उठाया।
4 जुलाई से प्रारम्भ हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक इजरायल दौरे का इजराइल बेसब्री से इंतजार कर रहा था। इजराइल के  प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू  सामान्य रस्म को दरकिनारे करके प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने के लिए खुद  हवाई अड्डे  पर जाकर हिंदी में कहा आपका स्वागत है मेरे दोस्त। प्रधानमत्री नेतन्याहू ने कहा कि भारत का इंतजार 70 सालों से कर रहा है इजराइल। यही नहीं प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि रिश्ते तों स्वर्ग में बनते है । भले ही प्रधानमंत्री के दौरे में भारत और इजरायल के बीच कृषि, साइंस ऐंड टेक्नॉलजी, स्पेस और वॉटर मैनेजमेंट जैसे अहम क्षेत्रों में कुल 7 समझौते हुए।  दोनों नेताओं ने आतंक के खिलाफ लड़ाई को एक साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है। इजरायल ने उप्र में गंगा की सफाई और पानी का प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग देने को लेकर समझौता किया है। इजराइल व भारत के दोनों प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को दोनों ने ऐतिहासिक मित्रता के नये इतिहास का सूत्रपात बताया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनके परिवार को भारत आने का न्योता दिया, जिसे इजरायली प्रधानमंत्री ने स्वीकाार कर लिया।
इजराइल के साथ भारत के खुल के मजबूत रिश्तों के बाद देखना यह है कि भारत के मित्रता के दंभ भरने वाले अरब देशों का रूख भारत के प्रति कैसे होता है। इसी रिश्तों पर भविष्य में न केवल भारत की अपितु दुनिया की तस्वीर बनेगी व बिगडेगी।

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