जब उत्तराखण्ड के कबीना मंत्री प्रकाश पंत के प्यारा उत्तराखण्ड की कुशल क्षेम पूछने पर याद आये कबीर
देवसिंह रावत
इस बुढापे में मोबाइल पर क्यों उलझे हो रावत जी? जैसे ही दिल्ली के उत्तराखण्ड सदन में मेरी बगल में बेठे उत्तराखण्ड के वित्तमंत्री प्रकाश पंत जी ने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के साथ हरीश रावत के नेतृत्व में हो रही आंदोलनकारियों की हो रही वार्ता के समय मुझ पर मुस्कराते हुए व्यंग किया तो मै भी खिलखिला कर हंस पड़ा। सडकों पर संघर्ष करते हुए कब जीवन यात्रा में जीवन के पांच दशक से अधिक की बीत गये। कब बचपन से युवा अवस्था व कब बुढापा की तरफ पदार्पण हो गया, इसका मुझे कभी भान ही नहीं रहा।
मैने देखा मेरे से कुछ साल बडे प्रकाश भाई के बाल व दाड़ी पूरी काली है। उम्र में उनसे शायद एक या आध दशक छोटा होने के बाबजूद मेरे बाल कब सफेद हो गये । इसका मुझे भान भी नहीं रहा। इसका कारण मुझे समझ में नहीं आया। मुझे लगता है प्रकाश पंत जी का मधुर व संयमित व्यवहार से उनके बाल अभी काले नहीं हुए या उन्होने भी आज के जमाने के आधुनिक लोगों की तरह बाल रंगे हुए है। प्रकाश भाई जहां दशकों से विधायक, मंत्री व विधानसभाध्यक्ष यानी सत्ता की चकाचैंध में रहे। वहीं मेरा पूरा जीवन इस गुलाम व कुव्यवस्था के खिलाफ संघर्ष व आक्रोश में सड़क की धूल, धूप, लू, वर्षा, अभाव, उपेक्षा, पुलिस प्रशासन के दमन व उपेक्षा से उपजे आक्रोश में बीता। इसके बाबजूद मैं बचपन से कभी आईना के सामने सजना संवरना तो रहा दूर प्रायः बालों पर कंघी तक नहीं करने की मेरी आदत रही। हाॅ जब नाई से बाल कटाता हॅू तो तब देखता हॅू कि बाल अधिकांश सफेद हो गये है।
प्रकाश पंत जी से सम्पर्क लगता है राज्य गठन से पहले से है पर करीबी जान पहचान राज्य गठन के बाद विभिन्न समारोहों, भगत सिंह कोश्यारी व अन्य नेताओं के आवास में हुई। प्रकाश पंत भी दशकों से मुख्यमंत्री की दौड़ में रहे। परन्तु तिकडमी व बडे आका का आशीर्वाद न होने के कारण वे खण्डूडी, निशंक व त्रिवेन्द्र से मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ गये। इसके बाबजूद वे अपने मर्यादित व संयमित व्यवहार के लिए पूरे प्रदेश में जाने जाते है। भ्रष्टाचार में बदरंग प्रदेश की राजनीति में अपने दल में भी बेहतर राजनेता माने जाते है।
29 जून की सांयकाल आठ बजे के करीब दिल्ली के उत्तराखण्ड सदन में हुई एक घण्टे की मुलाकात के दौंरान कबीना मंत्री प्रकाश पंत ने मुझसे पूछा रावत जी अब अखबार कैसे चल रहा है। मैने हंसते हुए कहा प्रकाश भाई कबीर ने कह गये ‘ सांच कहे तो मारन धावे……………..। 1993 से जब से प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया तब से ही मै सत्तासीनों व कुव्यवस्था के खिलाफ प्रचण्ड ढंग से समाचार प्रकाशित करता हॅू। ऐसे समाचार पत्र किसी भी शासक को पंसद नहीं होते अपितु यह कहें कि ऐसे अखबार शासकों की आंखों में खटकता है। सरकार किसी की भी रहे प्यारा उत्तराखण्ड के लिए दूर की कोड़ी ही साबित हुई।
लगता है प्रकाश पंत सहित अन्य नेताओं को लगता होगा कि शायद हरीश रावत की सरकार में प्यारा उत्तराखण्ड में जम कर विज्ञापन मिले होंगे या मै भी अन्य समाचार पत्रों की तरह विज्ञापन बटोरने के लिए समाचार पत्र निकालता होंगा। शायद उन्हें नहीं मालुम की हरीश रावत के कार्यकाल में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केवल एक ही विज्ञापन पूरे तीन साल में दिये। हाॅ तीन या चार, 5 व दस हजार के कुछ छोटे विज्ञापन सुरेन्द्र सिंह नेगी, प्रीतम पंवार ने जरूर दिये। इस पर एक दो बार जब में विधानसभा या आवास में तत्कालीन कबीना मंत्री सुरेन्द्र नेगी व प्रीतम पंवार से मिला तो दोनों की मेरे से एक ही शिकायत रहती थी कि देवसिंह रावत तो विज्ञापन के लिए भी नहीं आते। अपने द्वारा खुद खिंची भ्रष्टाचार रहित जीवन जीने की लक्ष्मण रेखाओं के कारण न तो मैने डीएवीपी में विज्ञापन के लिए समाचार पत्र को पंजीकृत कराया व नहीं दिल्ली व उत्तराखण्ड सरकार से।
यही नहीं देहरादून में प्यारा उत्तराखण्ड के जिस अंक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री आवास के सभागार में 9 नवम्बर 2016 की प्रातः को किया था उसमें मुख्यमंत्री सहित प्रदेश सरकार या केन्द्र सरकार का एक भी विज्ञापन नहीं था। हाॅ तो छोटे मोटे निजी शुभकामनाएं रूपि विज्ञापन थे, वह भी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 8 नवम्बर की रात को पुराने 1000 व 500 रूपये के नोटों पर प्रतिबंद्ध लगाने के कारण वसूल नहीं हो पाये। यानी एक तरफ से नोटबंदी का सबसे पहला शिकार खुद मै रहा। परन्तु परमात्मा ने इस अभिशाप को वरदान में बदल दिया। पर लूट खसोट व सिद्धांतहिन जिंदगी जीने वाले मेरे कई मित्रों को लगता था कि मुझे हरीश रावत या कोई नेता सहयोग देता है। जबकि हकीकत यह है हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश में मुजफ्फरनगर काण्ड के अभियुक्तों को सजा दिलाने, राजधानी गैरसैंण, आंदोलनकारियों के विषय पर एक बार नहीं दो तीन बार बुरी तरह सार्वजनिक ढंग से झपट तक हो चूकी। मेरी इसी बेबाकी से दर्जाधारी सहित अनैक अवसर कुर्वान करने पडे।भगवान श्रीकृष्ण की अपार कृपा सागर में तैरने वाले के लिए इन नश्वर संसार क्या ब्रह्मण्ड का ताज भी धूल के समान है। न कामना है व न चाह केवल प्रभु के बताये मार्ग पर सर्वभूतहिते रता के लिए जीवन जीना। न मुक्ति व न राजपाट, न यश व नहीं श्री, केवल श्रीकृष्ण की कृपाकांक्षी।
परन्तु दुनिया है अपने अपने नजरिये से देखती है, कुछ सोचते हैं कांग्रेस के हैं, कांग्रेसी सोचते संघ के हैं, कुछ कहते हैं महाराज के हैं, कुछ कहते हैं मोदी के है, पर मेरा कहना है मै तो सनातनी हॅू। भगवान श्रीकृष्ण का हॅू। सत, न्याय व सबके कल्याण के लिए हॅू। जो देश, प्रदेश व न्याय का विरोधी है, स्वार्थी है उसका विरोधी हॅू। दल या व्यक्ति से उपर होता है देश व न्याय। मै निहित स्वार्थ के लिए देश, दुनिया व जीवों को रौंदने वाले का दुश्मन हॅू। निर्दोष का शोषण, दमन करने वालों का दुश्मन हॅू।
प्रदेश के हितों की रक्षा के लिए हरीश रावत, तिवारी, खण्डूडी, निशंक, बहुगुणा, हरक व महाराज आदि नेताओं से मेरी समय समय पर 36 का आंकडा रहा। हाॅ मेने इनको जनसेवक मान कर हमेशा इनको प्रदेश के हितों के लिए कार्य करने के लिए मिल कर, सार्वजनिक मंचों से व प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र के साथ अब इंटरनेटी दुनिया के माध्यम से झकझोरता रहा। इसीलिए सबसे दूरी बनी हुई है। मुझे पूरा विश्वास था कि उत्तराखण्ड राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्तासीन होगी तो त्रिवेन्द्र रावत मुख्यमंत्री बनेंगे। पर गैरसैंण मामले में सतपाल महाराज के सकारात्मक विचार के कारण उन्हे भी मैं मुख्यमंत्री के रूप में सामने रख रहा था। परन्तु मोदी व शाह की रणनीति का भान होते हुए मुझे मालुम था कि लोकसभा चुनाव में उप्र जैसे विशाल राज्य में अमित शाह की टीम में सारथी रहे त्रिवेन्द्र रावत को ही मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। हाॅ सतपाल महाराज का नाम मेने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए उछाला। परन्तु त्रिवेन्द्र रावत के गैरसैंण पर प्रकट हुए विचारों ने मुझे ही नहीं प्रदेश के तमाम शुभ चिंतकों को आहत किया। शायद त्रिवेन्द्र भी अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की तरह ही सत्तामद में भूल गये कि देवभूमि के कल्याण के लिए जब राजधानी हर हाल में गैरसैंण ही बननी है तो वे राह में अवरोध बन कर अपनी ही जडें व छवि पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की तरह निश्तेज ही करने की भूल कर रहे है। उन्हें नहीं पता कि महाकाल के प्रवाह को रोकने की सामथ्र्य माटी के माधों में कहां होती है। मुझे ऐसे अवसर पर बरबस याद आते हैं काला बाबा जो अक्सर कहा करते थे देवी, काल कभी लाठी लेकर किसी को मारने नहीं जाता है, कारण बनाता है।