आप हो या हमें, किरण राव व आमिर आदि इस मायावी दुनिया के कलाकारों के बनते बिगडते सम्बंधों से चिंतत होने की जरूरत नहीं है। स्वच्छंदता व उन्मुक्तता की दुनिया के प्रतीक फिल्मी दुनिया में दौलत के अलावा किसी भी सम्बंधों का कोई महत्व नहीं होता है। यहां तक की यहां के वासी शादी व तलाक का यहां एक नाटक की तरह लेते है। इस दुनिया में ताक झांक करने से अपना मन दुषित करके अपने अंदर इनके अवगुणों को संचार करने के समान है। इनको पर्दे तक ही सीमित रहने दो। दुभाग्र्य यह है कि आज देश की सरकारों की दिशाहीनता के कारण लोगों में फिल्मी दुनिया के कलाकार एक आदर्श की तरह स्थापित हो गये है। भारत जहां युगों से आदर्श जीवन मूल्यों, मानवता, सत, न्याय के लिए अपना जीवन समर्पित रहने वाले वीरों, कुशल प्रशासकों, चिंतकों व जनकल्याण की विद्याओं में महारथ हासिल करने वालों को अपना आदर्श मानते रहे, वहां आज सरकार की अंग्रेजी की लूट खसौट वाली शिक्षा के कारण लोग इस मायावी दुनिया के कलाकारों को ही अपना आदर्श मान बैठे है।
सरकारों की ंअदूरदर्शिता के कारण आज देश के नौनिहालों व समाज का पथप्रर्दशक फिल्मी व बुद्धु डिब्बा यानी टीबी की दुनिया बन गयी है। इंटरनेटी माध्यम बन गया है। इस बुद्धुबाक्स जो देश के बडे वर्ग के लिए सबसे बडा विश्वविद्यालय व जीवन का आदर्श का माध्यम बन गया है। उसमें फिल्मी दुनिया की उन्मुक्त सम्बंधों, दुरगुणों के अनैतिक रिश्तों, पारिवारिक तानाबाना को तोड़ने वाले, हिंसक, भ्रष्टाचारियों को महिमामण्डित करके परोसा जाता है। जिसके कारण नयी पीढ़ी इसी मायावी दुनिया के पात्रों की तरह जीवन जीना चाहती हैं इससे देश व समाज का घौर पतन हो रहा है।
मोदी सरकार भले ही स्वच्छता के नाम पर देश में करोड़ों रूपये खर्च कर रही है। परन्तु देश का ताना बाना व संस्कृति को तबाह करने वाले बुद्ध बाॅक्स को भारतीय संस्कृति का संदेश प्रसारक बनाने का इनको अभी तक भान नहीं है। वहीं समाज को पतन के गर्त में धकेलने वाले धारावाहिक कांग्रेसी राज की तरह आज भी जारी है। इन्हीं धारावाहिकों के कारण देश में राष्ट्रद्रोह संस्कारहीन, भ्रष्टाचार, हिंसा व उन्मुक्ता वाली निकृष्ठ प्रवृति निरंतर बढ़ रही है। ऐसा नहीं कि सभी धारावाहिक या सभी कलाकार पथभ्रष्ट है, इनमें कुछ बहुत ही प्रेरणादायक हैं, परन्तु अधिकांश पतनोमुख है। सही धारावाहिकों के बजाय पथभ्रष्ट धारावाहिकों को वरियता इसके नियंता प्राथमिकता देते हैं व लोगों को परोसते है।
सरकारें शराब, कत्लगाह व भारतीयता को नष्ट करने वाली फिरंगी शिक्षा को थोप कर देश को कहां ले जायेगी। सेवा, न्याय, त्याग,दान, परोपकार व दया की संस्कृति वाले भारत में आज सरकारों ने शिक्षा, चिकित्सा, न्याय को अंध व्यापाररूपि कसाईखाने में तब्दील कर दिया है। ऐसी ही लूट खसौट की संस्कृति देश को अपने शिकंजे में जकड़ चूकी है। इससे बचने के लिए सत्तांध सरकारों को झकझोरना होगा।