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वाजपेयी की तरह ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टैरसा के लिए भी आत्मघाती साबित हुआ समय से पहले चुनाव कराना

पूर्ण बहुमत व 3 साल का कार्यकाल होने के बाबजूद भारी समर्थन मिलने के झाांसे में आकर बहुमत भी खो गयी ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टैरेसा

देवसिंह रावत

‘सारी छोड़ भारी पर धावे, भारी मिले न सारी पावे’ भारत में प्रचलित यह कहावत ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टैरेसा मैरी पर सटीक बैठती है। जिनके पास ब्रिटेन में शासन करने का अभी 3 साल बाकी था। उनकी कंजरबेटिव पार्टी को 650 सदस्यीय सदन में 331 सदस्य यानी पूर्ण बहुमत से अधिक था। ब्रिटेन में जून 2017 को हुए चुनाव में भारी बहुमत मिलने के आश में चुनाव में उतरी पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही टैरेसा मैरी की कंजरवेटिव पार्टी इस चुनाव में बहुमत भी नहीं जुडा पायी। उसे अब सरकार बनाने के लिए दस सीट जीतने वाली डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी से गठबंधन करना पडेगा।

भारी बहुमत मिलने की आश में तीन साल की पूर्ण बहुमत वाली सरकार भी दाव पर लगा दी। टैरेसा मेरी ने भी ठीक वही भूल कर दी जो भारत में 2004 में छह महिने पहले ही राजग गठबंधन के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘इंडिया साइनिंग नाउ व राइजिंग नाव’ के दीवास्वप्न देखते हुए छह महिने का कार्यकाल अभी बाकी रहने के बाबजूद भारी बहुमत की आश में देश में आम चुनाव की रणभेरी बजा दी। इस चुनाव में भाजपा को सत्ताच्युत कर जनता ने सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस व उनके सप्रंग गठबंधन को सत्तासीन कर दिया। यह ऐसी भूल साबित हुई कि पूरे दस साल कांग्रेस का शासन रहा। यह क्रम तब टूटा जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री का प्रत्याशी बनाया।
वाजपेयी को भी उनकी मंडली ने ऐसा भरमाया था कि जिंदगी भर संघ की पाठशाला में भारत माता की जय कहने वाले वाजपेयी भी भारत का नाम भूल कर इंडिया राइजिंग नाउ व साइनिंग नाव के गीत गाने लगे। जनता ने ऐसी धोबी पाट मारी की भाजपा को दो हिहाई बहुमत मिलने का दावा करने वाली सुषमा स्वराज भी दंभ में कह गयी थी कि अगर कांग्रेस जीती तो वह अपना सर मुडवाऊंगी।

ऐसे ही हालत ब्रिटेन की कंजरबेटिव पार्टी की प्रधानमंत्री टैरसा मैरी ने अपने गलत आंकलन के कारण तीन साल का कार्यकाल बचे होने के बाबजूद भारी बहुमत मिलने के दिवास्वप्न देखते हुए पूरे देश को चुनाव में धकेल दिया। इसका परिणाम सामने है 331 सदस्यों से पूर्ण बहुमत से सरकार चलाने वाली कंजरवेटिव पार्टी को सरकार चलाने के लिए न्यूनतम बहुमत 326 भी हासिल नहीं हुआ। इन चुनावों में 48.9 प्रतिशत मत अर्जित करने वाली कंजरवेटिक पार्टी 318 सीटों पर ही जीत अर्जित कर पायी। उनके प्रबल विरोधी  ‘जेरेमी कोरबिन’ के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी को 40.3 प्रतिशत मत अर्जित कर 262 ‘सीटों पर विजयी रही।
स्कोटिस नेशलिस्ट पार्टी को 35 सीटों पर विजयी रही व उसे 5.4 प्रतिशत मत मिले। लिबरल डेमोक्रेट पार्टी ने 1.8 प्रतिशत मत अर्जित कर 12 सीटों पर विजय हासिल की। इसके अलावा वहीं सरकार बनाने में टैरेसा का समर्थन देने वाली डैमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी को 1.5 प्रतिशत मत ले कर 10 सीट पर विजयी मिली।

उल्लेखनीय है कि 2015 में डेविड कैमरून के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी को 331 सीट यानी पूर्ण बहुमत मिला था। पर डेविड कैमरून ने 2016 में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने के पक्ष में जनमत संग्रह होने पर नैतिक आधार पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया, जिसके बाद ही कंजरवेटिव पार्टी की टैरेसा मेरी ने 2016 ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनी। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री का कार्यकाल 4 वर्ष होता है परंतु ‘टैरेसा मे’ ने अपने कार्यकाल के एक वर्ष बाद ही चुनाव करवाने का आत्मघाती फैसला लेकर देश व कंजरवेटिव पार्टी को संकट में डाल दिया। यह सब टैरेसा ने यूरोपीय संघ से हो रही  ब्रेग्जिट वार्ता में अपनी स्थिति मजबूत करने के प्रयास के तहत निर्धारित समय से तीन साल पहले चुनाव कराए थे। कंजरवेटिव पार्टी के लिए यह सबसे गंभीर चेतावनी यह है कि कंजरवेटिव पार्टी का गढ़ के रूप में जाने जाने वाली लंदन की केंजिंगटन सीट पर भी लेबर पार्टी ने अपना परचम लहरा दिया।

भारत के लिए यह खुशी की बात है कि ब्रिटेन में हुए 2017 मे इस चुनाव में भारतीय मूल के 12 व्यक्ति भी सांसद बनने में सफल रहे। इनमें लेबर पार्टी की प्रीत कौर गिल, तनमनजीत सिंह देसी, वहीं कंजरवेटिव पार्टी से पाॅल उप्पल, प्रीति पटेल, आलोक शर्मा, शैलेश वारा, टोरिस रिषी सुनाक, सुइला फरनानडेल, केंथ वाज व उनकी बहिन वालेरि वाज, लिसा नंदी आदि विजयी रहे।
हारने वाले प्रमुख भारतीय मूल के प्रत्याशियों में पूर्व मेयर व लेबर पार्टी के नीरज पाटिल हैं। इस चुनाव में लेबर पार्टी ने जहां 14  व कंजरवेटिव पार्टी ने 13 भारतीय मूल के लोगों को अपना प्रत्याशी बनाया था। लेबर पार्टी के 7 व कंजरवेटिव पार्टी के 5 प्रत्याशी विजयी रहे। देखना यह है कि अल्पमत की सरकार को चलाते हुए टैरेसा कैसे यूरोपीय संघ से अपनी वार्ता को मुकाम पंहुचाती है।

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