-2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के मजबूत विकल्प के रूप में खुद को रखने के लिए चुनावी मशीन के खिलाफ देशव्यापी माहौल बनाना।
-बिना काम के (बिना मंत्रालय के) मुख्यमंत्री की सुविधाओं का लाभ उठाने पर बडे स्तर पर उठने वाले प्रश्नों से आशंकित होकर।
-पंजाब, गोवा व दिल्ली मेें हार के बाद आप के गिरते मनोबल व विद्रोह को रोकने के लिए।
नई दिल्ली (प्याउ)। दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजों की तस्वीर अब साफ हो गई है. बीजेपी को भारी बहुमत मिलता दिख रहा है, और कांग्रेस और AAP के बीच दूसरे नंबर के लिए ही लड़ाई बची दिख रही है. अभी तक बीजेपी को 180, कांग्रेस ३५, आप 45 और अन्य 10 सीट मिली है।
दिल्ली नगर निगम चुनाव में हारने से पहले ही हार से आशंकित केजरीवाल ने अपनी आगामी रणनीति का संकेत देते हुए। दिल्ली में विरोधियों के खिलाफ सड़क पर उतर कर ईंट से ईंट बजा देने का जो ऐलान किया। उसे भले ही राजनैतिक दल उसका एक हवाई बयान कह कर हवा में उड़ा दे पर यह केजरीवाल का अपना व अपनी पार्टी के गिरते हुए जनाधर को बचाने के साथ भावी रणनीति का स्पष्ट संकेत है।
राजनीति में अपने उदय से अब तक के सफर में केजरीवाल आरोप प्रत्यारोप व सड़क के संघर्ष के लिए जाना जाता है।
राजनीति के मर्मज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि इसके लिए केजरीवाल MCD के चुनाव परिणाम आने के बाद अपनी व आप की रक्षा के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे कर सड़क का संघर्ष शुरू कर सकते हैं। दिननि के चुनाव परिणाम चाहे पक्ष में रहे या विपक्ष में, लगता है केजरीवाल ने इसका मन बना लिया है।
2014 में मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद केजरीवाल की रणनीति अब पूरी तरह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर लगी है। वह इसी की तैयारी के लिए कमर कस चूके है। केजरीवाल जानते है कि अगर अब शांत रहा तो उसका जनाधार निरंतर गिरता ही जायेगा। यही नहीं उसके दल में भी विद्रोह हो सकता है। दिल्ली में बार बार हार के बाद उसके तीन दर्जन से अधिक विधायक भी पाला बदल सकते है, अपनी भावी राजनीति को बचाने के लिए।
केजरीवाल 2019 के चुनाव में देश में विपक्ष का एक सशक्त दावेदार बन कर उभरना चाहता है। इससे पहले नीतीश, ममता व राहुल विपक्ष का सांझा विकल्प बने केजरीवाल इस अवसर को अब हाथ से नहीं गंवाना चाहता है। इसलिए साफ है कि केजरीवाल अपनी नौजवानों की पार्टी को अन्ना आंदोलन की तरह सड़कों पर उतार कर समाचार जगत व अपने आकाओं के बल पर देश की राजनीति में फिर भूकंप लाना चाहता है। केजरीवाल कहां तक सफल होगा यह तो समय बतायेगा। पर केजरीवाल को इस बात का भी अहसास होगा कि इस बार डगर पहले के मुकाबले सरल नहीं है। 2012 के समय केजरीवाल के सामने उसको बढ़ावा देने वाली कांग्रेस का राज था अब के बार उसका सामना देश में जनसमर्थन की आंधी के प्रतीक बन चूके मोदी राज व शाह के नेतृत्व में मजबूत भाजपा के साथ विश्व के सबसे बडे सामाजिक संगठन संघ परिवार से है। देखना यह है केजरीवाल अपनी राजनीति बचाने के इस अग्निपथ पर कहां तक सफल होते है।
इस रणनीति के पीछे केजरीवाल का एक अहम दाव यह भी है कि वह अपनी हार से लोगों का ध्यान हटाने के लिए व देश में चुनाव मशीनों में छेडछाड के खिलाफ उठ रही आवाज को अपने इस्तीफे से मजबूती दे कर देशव्यापी माहौल तैयार करना भी है। 2019 में मोदी के खिलाफ मजबूत प्रतिद्धंदी बन कर सामने रखने का चुनावी दाव है मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना।
दिल्ली सरकार में मंत्री गोपाल राय ने दिल्ली नगर निगम में मिली करारी हार पर इसी रणनीति से हार पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए इसे मोदी लहर या भाजपा की जीत न बता कर चुनावी मशीन की जीत बताया। उन्होने कहा कि उप्र, उत्तराखण्ड, गोवा व मणिपुर के बाद अब दिल्ली में भी चुनावी मशीन की जीत बताया। ऐसा ही आरोप आप के प्रवक्ता आशुतोष सहित तमाम नेता लगा रहे हैं।