#जनांकांक्षाओं को साकार करने के बजाय उत्तराखण्ड की तमाम सरकारों ने सत्तामद में चूर हो कर रौदती रही प्रदेश की जनांकांक्षाओं को
# हरीश रावत सहित तमाम पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की भूल को सुधारते हुए तत्काल गैरसैंण राजधानी घोषित करें मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत,
देवसिंह रावत-
उत्तराखण्ड राज्य गठन के 14 साल तक की पदलोलुपु सरकारों के द्वारा गैरसैंण राजधानी घोषित न करके बलात देहरादून से ही राजकाज चलाने का लोकशाही का गला घोंटने वाले विश्वासघात से आहत जनता को पहली बार हरीश रावत सरकार द्वारा गैरसैंण में विधानसभा भवन, विधायक निवास, सचिवालय व हेलीपेड बनाने से राज्य गठन की जनांकांक्षायें साकार होने की आशायें जगी थी, उन आशाओं पर बज्रपात किसी और ने नहीं अपितु हरीश रावत ने ही विधानसभा चुनाव से पहले राजधानी गैरसैंण घोषित न करके किया।
पूर्ववर्ती सरकारों की भूलों को सुधारते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में गैरसैंण में राजधानी बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाते हुए गैरसैंण में विधानसभा भवन, विधायक निवास, सचिवालय, हेलीपेड़ इत्यादि बनाने का बडा काम तो किया। पर इस प्रदेश के इतिहास में सबसे बडा दूरगामी प्रभाव डालने वाला काम करने के बाबजूद वे राजधानी गैरसैंण बनाने का ऐलान न करके अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर गये। शराब व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने मामले में हरीश रावत सरकार अन्य सरकारों का चरित्र व कार्य एक सा ही रहा। शराब को प्रोत्साहन देने का। पर गैरसेंण राजधानी बनाने की दिशा में हरीश रावत सरकार ने जो ऐतिहांसिक कदम उठाये थे, उससे प्रदेश की दिशा व दशा बदलने के लिए मील का पत्थर होने वाले प्रदेश के सबसे बडे कार्य की खुद भ्रुण हत्या हरीश रावत ने अति आत्मविश्वास में आकर चुनाव से पहले गैरसेंण राजधानी बनाने की घोषणा न करके कर दी।
अगर राजधानी गैरसैंण घोषित कर देते तो चुनाव में जीत व हारने के बाबजूद उत्तराखण्ड के सच्चे हितैषी उनके इस कार्य के लिए उनको सदा याद रखते। परन्तु लगता है हरीश रावत तुष्टिकरण के मोह मे व चुनावी राजनीति से उपर उठ कर प्रदेश के हित में गैरसैंण राजधानी बनाने की दिशा में सभी महत्वपूर्ण कार्य करने के बाबजूद इसकी घोषणा करने का साहस नहीं जुटा पाये। हरीश रावत सरकार की गैरसैंण को राजधानी घोषित न करने की भयंकर भूल प्रदेश की दिशाहीन राजनीति में प्रदेश के वर्तमान व भविष्य के लिए बड़ा घातक रहा। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत गैरसेंण राजधानी न बनाये जाने का मलाल मुझे ही नहीं अपितु मेरे जैसे तमाम राज्य गठन के आंदोलनकारियों के साथ प्रदेश के हित में काम करने वाले तमाम लोगों को भी है। खुद हरीश रावत के सबसे विश्वसनीय सहयोगी व जागरूक राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा को भी इसका बडा मलाल है। सांसद प्रदीप टम्टा प्रदेश के उन चंद नेताओं में है जो प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने के सबसे प्रबल समर्थक है।
उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन का एक सिपाई होने के नाते मैने खुद मुख्यमंत्री तिवारी, खण्डूडी, निशंक, बहुगुणा व हरीश रावत से कई बार गुहार ही नहीं लगायी अपितु इनको गैरसैंण राजधानी घोषित करने के लिए सार्वजनिक मंचों व प्यारा उत्तराखण्ड में तीखे लेखों को लिख कर झकझोरने का काम भी किया परन्तु दुर्भाग्य प्रदेश व इन नेताओं का रहा इनको न तो प्रदेश का हित दिखाई दिया व नहीं इस नेक काम करने का अपना भाग्य ही दिखाई दिया। लगता है प्रदेश के सत्तासीन होने के बाद प्रदेश के नेताओं को न तो प्रदेश के हित दिखाई देते है व नहीं अपने दायित्व का ही भान।
प्रदेश के इन सत्ता प्रमुख नेताओं को अपने भ्रष्ट व दागदार प्यादों के साथ अपने परिजनों के हित साधने की याद रहती है पर प्रदेश के वर्तमान व भविष्य को बनाने व संवारने वाले जनहित के गैरसैंण जैसे बडे जनहित के कार्य करने की उनको होश तक नहीं रहती। उनकी भूल प्रदेश की दिशाहीन राजनीति में प्रदेश के वर्तमान व भविष्य के लिए बड़ा घातक रहा। ये भूल जाते है कि यह दुर्लभ अवसर फिर कभी लौट कर वापस नहीं आता। हरीश रावत को तो महाकाल ने सरकार बर्खास्त करने के बाद पुन्न सत्तासीन होने का स्वर्णीम अवसर दिया था, उसका सदप्रयोग करने के बजाय हरीश रावत ने भी तिवारी, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा की तरह ही उसको सत्ता की चकाचैध में बर्बाद करने में नष्ट कर प्रदेश की आशाओं पर बज्रपात ही किया। प्रदेश की तमाम सरकारों ने जनभावनाओं का सम्मान करने का प्रथम कार्य करते हुए राजधानी गैरसैंण घोषित करने के बजाय गैरसैण के मार्ग में अवरोध खड़ा करके लोकशाही का गला घोंटते हुए देहरादून में गुपचुप तरीके से भवनों का निर्माण करने की धूर्तता करते रहे।
अब प्रदेश की जनता को आशा है वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत से कि वे अपने हरीश रावत सहित तमाम पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की भूल को सुधारते हुए तत्काल गैरसैंण राजधानी बना कर प्रदेश के दिशा व दशा को सुधारने का ऐतिहासिक काम करेंगे।