अंध विश्वास को ठेंगा दिखा कर मुख्यमंत्री निवास में प्रवेश कर त्रिवेन्द्र रावत ने पछाड़ा हरीश रावत को
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देहरादून(प्याउ)। 29 मार्च को जैसे ही उत्तराखण्ड के 9वें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सुबह देहरादून के कैंट रोड पर मुख्यमंत्री के आधिकारिक आधिकारिक बंगले में प्रवेश करके जहां एक तरफ अंध विश्वास को ठेंगा दिखाया वहीं उन्होने इस बंगले को अपशकुनी मानते हुए इसमें रहने के लिए प्रवेश करने की हिम्मत न जुटा सकने वाले प्रदेश के अब तक के सबसे दबंग समझे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी पछाड़ दिया। पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने न केवल इस भव्य बंगले का स्विमिंग पुल को पानी की बर्बादी मानते हुए बंद करने का फरमान सुनाया। वहीं उन्होने 60 कमरों में से केवल 5 कमरों को ही अपने पास लिया। मुख्यमंत्री आवास को अपशकुनि व भूतों का वास मानने वाली धारणा का मजाक उड़ाते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि वे जहां भी जाते हैं वहां से भूत भाग जाते है। परन्तु शायद त्रिवेन्द्र रावत को इस बात का भान हो या न हो उनके इस अपशकुन समझे जाने वाले बंगले में प्रवेश करने से ही भाजपा में मुख्यमंत्री बनने की हसरत दिल में छुपाने वालों के चेहरे खिल गये। उनको विश्वास है कि इस बंगले में रहने वाले खंडूडी, निशंक व बहुगुणा की तरह त्रिवेंन्द्र रावत भी शायद ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाये।
इसी अंध विश्वास की बदोलत उनको अपनी मुख्यमंत्री बनने की हसरत पूरी होती नजर आ रही है।
क्यो बना है उत्तराखण्डी मुख्यमंत्री के आवास के प्रति लोगों में यह धारणा। जिसके भय से हरीश रावत जैसे दंबंग मुख्यमंत्री भी अंध विश्वास में घिर कर इस बंगले में जाने का साहस नहीं जुटा पाये।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री का यह उत्तराखण्डी शैली में 60 कमरो व आधुनिक स्वीमिंग पुल से युक्त 30 करोड़ लागत का बना भव्य बंगला और किसी ने नहीं अपितु प्रदेश में सबसे सादगी व ईमानदार समझे जाने वाले भुवन चंद खण्डूडी ने लम्बे समय तक रहने की मंशा से खुद के लिए बनाया था। परन्तु जेसे यह बन कर तैयार होने को था और खण्डूडी जी इस भव्य मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश करने ही वाले थे कि भाजपा में उनके खिलाफ कोश्यारी के नेतृत्व में विद्रोह हुआ। इसके बाद खण्डूडी ने अधिकांश विधायकों का समर्थन होने के बाबजूद कोश्यारी को मुख्यमंत्री न बनने देने के लिए निशंक की ताजपोशी करायी। निशंक इस बंगले में एक साल (मई 2011 से सितम्बर 2011 ) भी नहीं रह पाये। उनके खिलाफ खण्डूडी व टीपीएस ने विद्रोह कर दिया। भाजपा नेतृत्व ने सितम्बर 2011 में कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय पुन्न खण्डूडी को मुख्यमंत्री बना दिया।
इस आवास में जाने से पहले निशंक ने भी गृह प्रवेश के दिन विशेष पूजा अर्चना की थी। परन्तु अप्रत्याशित रूप से सत्ता च्युत होने के कारण उन्हें इस मुख्यमंत्री आवास को खाली करना पड़ा। दूबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद खण्डूडी (सितम्बर 2011 से मार्च 2012)तक ही मुख्यमंत्री रह सके। वे चुनावों में हारने के कारण मुख्यमंत्री का यह अपना पंसीदा आवास भी मजबूरी में छोड़ना पड़ा। इसके बाद कांग्रंेसी सरकार में हरीश रावत व सतपाल महाराज के बीच चली मुख्यमंत्री बनने के संघर्ष में मुख्यमंत्री का ताज कांग्रेस के दिल्ली आकाओं के आशीर्वाद से विजय बहुगुणा को मिला। मुख्यमंत्री के रूप में विजय बहुगुणा इस मुख्यमंत्री आवास में सबसे अधिक समय तक (मार्च 2012 से जनवरी 2014) तक रहे। परन्तु केदारनाथ त्रासदी को निपटने में बुरी तरह से असफल साबित हुए विजय बहुगुणा को बदल कर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री प्रदेश के सबसे दबंग व जनता से जुडे नेता समझे जाने वाले हरीश रावत को बनाया। परन्तु हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने तक प्रदेश में यह अंधविश्वास बडे जोरों से फेल चूका था कि जो भी इस मुख्यमंत्री आवास में रहता है वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है। उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ता है।
इस अंधविश्वास से घिरे हरीश रावत ने मुख्यमंत्री के इस बंगले में प्रवेश करने की हिम्मत जुटाने के बजाय मुख्यमंत्री आवास के समीप ही बने बीजापुर अतिथि गृह को ही मुख्यमंत्री आवास बना दिया।
यह सच्चाई जग जाहिर है पर इसमें बंगला नहीं अपितु उत्तराखण्ड में सत्तासीन रहे भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली में बैठे आकाओं की थोपशाही अपशकुन रही। जो जातिवाद में इतने अंधे रहते है कि वे साफ छवि, पार्टी में लोकप्रिय व प्रदेश के चहुमुखी विकास करने में सक्षम नेता के बजाय मात्र जातिवादी नेताओं को थोपते रहे। जनांकांक्षाये पूरी न होते देख कर जहां जन प्रतिनिधी में अपने भविष्य पर ग्रहण लगता नजर आता वहीं जनता में भी असंतोष फैलता है।
भले ही त्रिवेन्द्र रावत ने भी गृह प्रवेश करते हुए साधारण सा पूजा पाठ किया परन्तु जिस प्रकार के ज्योतिषी, तांत्रिक, मौलवियों व पूजारियों से हरीश रावत आये दिन घिरे रहते थे उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने न केवल अंध विश्वास को मात दिया अपितु प्रदेश के सबसे दंबग मुख्यमंत्री समझे जाने वाले हरीश रावत को भी मात दे दी है। भले ही उनके इस अपशकुनी समझे जाने वाले मुख्यमंत्री आवास में गृहप्रवेश करने से प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की हसरत पाले हुए भाजपाई नेता मन ही मन खुश हैं पर जनता मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के इस साहस को सलाम कर रही है।