हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024
5 अक्टूबर को नतीजे, 8 अक्टूबर को घोषित होंगे
-देवसिंह रावत-
देश की राजधानी दिल्ली को तीन तरफो से घेरे हुये हरियाणा प्रदेश विधानसभा के चुनाव इसी पखवाडे 5 अक्टूबर 2024 को सम्पन्न होंगे। हरियाणा के 2.03 करोड़ मतदाता प्रदेश के 90 विधायकों वाली विधानसभा में नई सरकार के गठन के लिये मतदान करेंगें। 8 अक्टूबर को इनकी मतगणना होगाी। देश के अन्य चुनावों की तरह ही हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीतने के लिये के लिये भाजपा की तरफ से भाजपा के शीर्ष नेता प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व उप्र के मुख्यमंत्री योगी भी चुनावी सभाओं से प्रदेश भाजपा के क्षत्रपों को विजय श्री दिलाने के लिये कमर कसे हुये हैं। वहीं कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी व प्रियंका गांधी सहित दिग्गज नेता चुनावी प्रचार में उतर चूके है। वहीं आप प्रमुख केजरीवाल, चौटाला परिवार, सहित अनैक वरिष्ठ नेता इस दंगल में चुनावी प्रचार में उतर कर अपने अपने उम्मीदवारों को जीताने के लिये दिन रात पसीने बहा रहा है। इस बार भी यहां मुख्य मुकाबला लोकसभा चुनावों की तरह सत्तारूढ़ भाजपा व मुख्य विरोधी दल कांग्रेस के बीच में हो रहा है। हालांकि भाजपा व कांग्रेस दोनो ही 89-89 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे है। भले चुनावी दंगल में दो गठबंधन के अलावा आप भी चुनावी समर में उतरी हुई है।
परन्तु मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच में सिमट कर रह गया है। यहां हरियाणा में कांग्रेस का जाट, अजा व मुस्लिम रूपि राजनैतिक समीकरण तथा भाजपा का पिछडे, पंजाबी अन्य जाति का अघोषित राजनीति का समीकरण को लोकसभा चुनाव 2024 में जनता द्वारा ध्वस्थ किये जाने के बाद राजनैतिक दलों के आका सहमें हुये है। प्रधानमंत्री मोदी व अमित शाह के नेतृत्व में भले ही भाजपा मुख्यमंत्री सैनी व खट्टर की युगल जोड़ी के दम पर हरियाणा में भी केंद्र की तरह तीसरी बार भाजपा सरकार बनाने के लिए पूरा दमखम लगा रही है। वहीं राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस , अपने मुख्यमंत्री के प्रबल क्षत्रप भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ कुमारी सैलजा व रणजीत सिंह सुरजेवाले ने हरियाणा में भाजपा के पसीने निकाल दिये हैं। इन चुनाव में प्रदेश में दस सालों से भाजपा के शासन से जनता नाखुश है। किसान आंदोलन, बेरोजगारी का मामला, अग्निवीर, खिलाडियों के संघर्ष के अलावा निरंकुश नौकरशाही आदि मुद्दे भाजपा के मार्ग ्रमें भारी अवरोधक व कांग्रेस को सत्तासीन कराने में सहायक साबित हो रहे है। इसके कारण जनता तमाम जातिवादी चक्रव्यूह को ध्वस्थ कर लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी राजनैतिक दलों को लोकशाही का सबक सिखाने का मन बना चूकी है।
तमाम स्थितियों को भांपते हुये कांग्रेस को जाटों की पार्टी कह कर गरियाने वाली भाजपा ने इस बार बडी संख्या में जाट व मुस्लिम समुदाय को भी अपना प्रत्याशी बना कर सभी समाजों का समर्थन अर्जित करने का दाव चला। इस बार भाजपा ने जाट समुदाय को 16 पिछडों -24 ,ब्राह्मण-11 ,पंजाबी-10, वैश्य-6, राजपूत-3 व मुस्लिम समुदाय के 2 प्रत्याशियों को उतारा। अब तक मुस्लिम से दूरी रखने वाली भाजपा ने दक्षिण हरियाणा के मेवात के नूंह जिले में दो मुस्लिमों को अपना प्रत्याशी बनाया। 80 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाले फीरोजपुर झीरका से नसीम अहमद व 88 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाले पुनहना विधानसभा सीट से ऐजाज खान को प्रत्याशी बनाया ।
वहीं प्रदेश में दस साल से राज करने वाली भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सत्तासीन होने की हुंकार भरने वाली कांग्रेस ने इन विधानसभा चुनाव में 35 जाट, 20 ओबीसी, 17 दलित, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 6 पंजाबी, दो वैश्य और एक राजपूत समुदाय से प्रत्याशी उतारा है। गौरतलब है कि 7 फीसदी के करीब मुस्लिम कांग्रेस का विश्वसनीय वोटबैंक माना जाता है।
हालांकि इन चुनावों में अन्य दल भी ताल ठोक रहे है। गत विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा पूरी तरह से नक्कारी गयी दिल्ली व पंजाब विधानसभा में सत्तासीन अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने 90 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हुये हैं। इनके अलावा हरियाणा विधानसभा में इंडियन नेशनल लोकदल व बसपा गठबंधन के अलावा जननायक जनता पार्टी व आजाद समाज पार्टी का गठबंधन भी चुनावी समर में हुंकार भर रहे हैं। जननायक जनता पार्टी 70 व आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड रही है।
बीजेपी और कांग्रेस 89-89 सीट पर चुनाव लड़ रही। कांग्रेस ने एक सीट सीपीआई-एम के लिए छोड़ी है जबकि बीजेपी के एक कैंडिडेट ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। आम आदमी पार्टी के अति महत्वाकांक्षा के कारण कांग्रेस व आप का गठबंधन होते होते परवान नहीं चढ़ पाया।
भले ही देश के अन्य भागों की तरह हरियाणा में भी राजनैतिक दल अपने स्वार्थ के लिये जातीय दाव खेल कर देश के सामाजिक तानाबाना पर कुठाराघात करते हैं। परन्तु हरियाणा की राजनीति में भाजपा के इन दस सालों का शासन छोड कर हमेशा जाट समुदाय का ही दबदबा रहा। जाट समुदाय के अधिकांश बडे राजनेता कांग्रेस में थे। इसीलिए भाजपा ने यहां हरियाणा की जनसंख्या के 30 -35 प्रतिशत का हिसा रखने वाले पिछडे समुदाय की अगुवायी में नया राजनैतिक समीकरण के तहत जाट इतर 36 बिरादरी को एकजूट कर विधानसभा व लोकसभाई जंग जीती। इसी के तहत खट्टर व सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना कर जाट समुदाय के बर्चस्व को खुली चुनौती दी। जिसके बाद जनसंख्या के लगभग 25 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रदेश का दूसरा सबसे बडा जाट समुदाय जिसका 1966 से राज्य गठन के बाद दबदबा बरकरार रहा।, उसने भाजपा के शासन में अपने समुदाय की उपेक्षा को अपना अपमान मानते हुये भाजपा को प्रदेश की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिये कमर कस ली। हालांकि इस दौरान भाजपा ने कई जाट समुदाय के दिग्गज नेताओं को अपने पाले में लाने में भले ही सफल रही। परन्तु इन नेताओं को भाजपा की राजनीति व सत्ता ़मेें सम्मानजनक भागेदारी न पा कर इनमें से अधिकांश का भाजपा से मोह भंग हो गया। या तो अधिकांश कांग्रेस में वापस लोट आये या भाजपा में उपेक्षित पडे है। हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय की तरह ही हरियाणा की जनसंख्या में 20-22 प्रतिशत की भागेदारी रखने वाला दलित समुदाय का मजबूत समर्थन रहता है। कांग्रेस की इसी मजबूती में दरार डालकर ध्वस्थ करने के लिये भाजपा बडे जोरशोर से सैलजा कुमारी व दलित समाज का अपमान करने का आरोप कांग्रेस पर लगाते रहे। हरियाणा में जनसंख्या के आधार पर अन्य समाजों की भागेदारी इस प्रकार से है। हरियाणा में पंजाबी और ब्राह्मण 8-8 प्रतिशत, मुस्लिम 7 प्रतिशत, वैश्य 4 प्रतिशत व 2 प्रतिशत राजपूत समाज है। भाजपा की इन चुनाव में हर संभव कोशिश यह हो रही है कि कांग्रेस से उसका मजबूत समर्थक रहे जाट,अजा, मुस्लिम व ब्राहमण को दूर किया जाय।
इन सबके बाबजूद हरियाणा प्रदेश की 35 सीटे जिन्हे जाट बाहुल्य या प्रभावित क्षेत्र माना जाता है । उनमें ें रोहतक, सोनीपत, पानीपत, जींद, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी सहित लगभग 35 विधानसभा सीटों को जाटलैंड के नाम से राजनैतिक क्षेत्रों में जाना जाता है। यहां हार जीत में जाट समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है।
इस बार के चुनाव में भी महिलाओं को 33 प्रतिशत राजनैतिक भागेदारी देने की हुंकार भरने वाले सभी राजनैतिक दलों को उनके द्वारा चुनावी समर में उतारी गयी महिला प्रत्याशियों से खुद ही बेनकाब हो रहे है। इस बार के विधानसभा चुनाव में 51 महिलाएं चुनावी मैदान मे हैं, कांग्रेस ने 12 भाजपा ने 11, आम आदमी पार्टी ने 10 महिला प्रत्याशी उतारे। 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा राज्य बनने के बाद से विधानसभा में अभी तक केवल 87 महिलाएं चुनकर पहुंची हैं। यहां अभी तक एक भी महिला मुख्यमंत्री नहीं बनी।
भले ही इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा व कांग्रेस के मध्य कडे मुकाबले का हो रहा है। पर इस बार विधानसभा चुनाव में दिल्ली व पंजाब के राज्य की सत्ता में आसीन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी सभी 90 सीटों पर ताल ठोक रही है। इनके अलावा हरियाणा विधानसभा के चुनावी रण में बसपा के साथ गठबंधन करने वाली इनेलो के अलावा हरियाणा में भाजपा की प्रदेश सरकार में भागेदार रही जननायक जनता पार्टी ने चंद्र शेखर आजाद के नेतृत्व वाले आजाद समाज पार्टी का गठबंधन कर चुनावी समर में उतरी हुई है। जननायक जनता पार्टी 70, व आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड रही है।
चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार हरियाणा में किसी भी गठबंधन का असर शायद ही होगा। इस बार यहां सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस में दिखाई दे रही है।इसके बाबजूद भाजपा व कांग्रेस के क्षत्रप सहित आला नेतृत्व लोकसभा चुनाव 2024 में जनता द्वारा जातीय चक्रयूह के ध्वस्थ करके भाजपा व कांग्रेस को 5-5 सीटे दे कर दोनों को लोकशाही का आइना दिखाया। इन चुनाव में भाजपा को 46.3 व कांग्रेस को43.8 प्रतिशत मत अर्जित हुए पर दोनों को ही लोकसभा की 5-5 सीटें मिली। यह भाजपा के लिये किसी झटके से कम नहीं था। इसी से भाजपा सहमी हुई है।
हालांकि गत विधानसभा चुनाव में 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में कोई भी दल को 46 सीटों का स्पष्ट बहुमत का आंकडा नहीं छू पाया। हॉ 36.49 प्रतिशत मत अर्जित कर भाजपा 40 सीटें अर्जित कर सबसे बडे दल के रूप में उभरी तथा उसने 14.80प्रतिशत मत अर्जित कर 10 सीटें जीतने वाली जननायक जनता पार्टी से गठबंधन कर पांच साल सरकार चलाई। पर अब 2024 में हो रहे विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति कमजोर मानते हुये जननायक जनता पार्टी ने गठबंधन तोडकर चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली पार्टी से गठजोड कर लिया। वहीं गत विधानसभा चुनाव में 28.08 प्रतिशत मत अर्जित कर कांग्रेसने 31 सीटें जीती । पर चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोकदल 21.67 प्रतिशत मत अर्जित कर भले ही संख्या की दृष्टि से विधानसभा में मजबूत स्थान अर्जित नहीं कर पायी पर वह अपना अस्तित्व बचाने में सफल रही। देखना है कि इस बार के चुनाव में हरियाणा की जनता 5 अक्टूबर को कैसा जनादेश देती है । इसका खुलाशा तो 8 अक्टूबर को मतगणना से ही उजागर होगा। इसी पर सारे देश की नजरे लगी हुई है।