उत्तराखंड की गंभीर समस्याओं के समाधान के लिये जरूरी है भू-मूल निवास-कानून व गैरसैंण राजधानी बनाना
ठण्ड का बहाना बनाकर गैरसैंण के बजाय देहरादून में ही बजट सत्र कराने वाले हैं उतराखण्ड की लोकशाही के गुनाहगार
देवसिंह रावतउतराखण्ड का बजट सत्र अब विधानसभा गैरसैंण के बजाय पंचतारा सुविधाओं युक्त देहरादून में ही किये जाने के निर्णय से साफ हो गया है कि हल्द्वानी भीषण कांड के बाबजूद प्रदेश सरकार,जनप्रतिनिधियों व दलों को न तो प्रदेश की सुरक्षा की कोई चिंता है व नहीं उनको देश की सुरक्षा की।
अगर उतराखण्ड सरकार व जनप्रतिनिधी लोकशाही के प्रति जरा से भी संवेदनशील होते, उनको उतराखण्ड व देश से तनिक सा भी प्रेम होता तथा उनको अपने दायित्वों का बोध होता तो वे हल्द्वानी काण्ड के बाद तत्काल गैरसैंण में विधानसभा सत्र आहुत करते । इस सत्र में जिस तत्परता से समान नागरिक संहिता कानून बनाया उसी तर्ज पर राज्य गठन की जन भावनाओं का सम्मान करते हुये गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने, सन् 1950 को आधार वाला मूल निवास व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह मूल निवास का मजबूत कानून बनाने का ऐतिहासिक काम करते, तो उतराखण्ड का जनमानस उतराखण्ड सहित देश विदेश में सरकार के इस कार्य के लिये उनको अपने दिल से नमन करता। परन्तु प्रदेश के सतारूढ दल व विपक्ष के दर्जनों विधायक ने प्रदेश के मुखिया के शह पर भीषण संकट में घिरे उतराखण्ड व देश की रक्षा करने के लिये जनभावनाओं के तहत गैरसैंण में बजट सत्र आहुत कर उपरोक्त तीनों जनांकांक्षाओं को साकार करने का काम करते परन्तु इन्होने अपने पंचतारा सुविधाओं की मोह में उतराखण्ड की लोकशाही को लखनवी मानसिकता से ग्रसित हो कर देहरादून में आयोजन कराने का निर्णय लेकर जनांकांक्षाओं पर बज्र्रपात करने का कृत्य किया। खबर है कि यह निर्णय शासन ने प्रदेश के विधायकों द्धारा गैरसैंण में ठण्ड का बहाना बना कर देहरादून में विधानसभा सत्र का आयोजन करने का अभियान चलाया था। पर अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री जरा भी अपने दायित्व का भान होता तो वे गैरसैंण में ही इसी सत्र का आयोजन करते। इस प्रकरण को जान कर उतराखण्ड सहित देश के जागरूक लोग हैरान है कि देश के जांबाज एक तरफ सियाचीन, लेह लदाख में भारी हिमपात में महिनों उट कर देश की रक्षा करते हैं दूसरी तरफ ये कैसे जनप्रतिनिधी हैं जो गैरसैंण जैसे रमणीक विधानसभा में तीन चार दिन का प्रवास करने के लिये तैयार नहीं है? ऐसे सुविधा भोगी आखिर क्यों जनप्रतिनिधी बनते है व इनके राजनैतिक दल ऐसे लोकशाही को रौंदने वालों को जनप्रतिनिधी का टिकट भी किस मुंह से देते है? ऐसे जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तत्काल निरस्त कर उन पर ताउम्र चुनाव लडने का प्रतिबंध लगाने के साथ अब तक के तमाम उनके द्धारा अर्जित किये गये वेतन व भत्तों की भी वसुली की करनी चाहिये।
गैरसैंण में बजट सत्र न कराने की प्रदेश सरकार व जनप्रतिनिधियों की शर्मनाक नौटंकी ऐसे समय होती है जब प्रदेश व देश को स्तब्ध करने वाला भीषण हल्द्धानी काण्ड हुआ। गौरतलब है कि इसी पखवाडे प्रदेश सरकार ने उतराखण्ड की विधानसभा में समान नागरिक संहिता का कानून पारित कर देश की जनता को इस बात का अहसास दिलाया था कि उसे प्रदेश व देश की सुरक्षा की गहरी चिंता है। इसी लिये उसने समान नागरिक संहिता का कानून बनाया है। परन्तु इसी कानून के बनाने के चंद दिनों बाद अवैध अतिक्रमण हटाने के एक मामले में हल्द्धानी में ऐसा भीषण हिंसा का तांडव दंगाईयों ने किया कि पूरा देश स्तब्ध हो गया कि उतराखण्ड की शांत वादियों में ऐसी घटना कैसे हो रही है? इस हिंसा में दंगाईयों ने अतिक्रमण हटाने गये पुलिस प्रशासन पर पथराव के अलावा पेटोल बम, आगजनी का तांडव मचाया कि इसमें 6लोग मारे गये, सेकडों घायल हो गये, पुलिस थाना, दर्जनों वाहन इत्यादि को जला कर हिंसा का भीषण तांडव मचाया कि पुलिस प्रशासन को हल्द्वानी के इस बनभूलपुरा क्षेत्र के अलावा पूरे हल्द्धानी में कफ्य्र लगाना पडा
यहां आरजकता तब हुई जब पुलिस प्रशासन का दल अवैध अतिक्रमण हटाने के लिये हल्द्वानी के थाना बनभूलपुरा क्षेत्र में मलिक के बगीचे पहुंची.। जब दल ने वहां पर हुये ं अवैध अतिक्रमण कर बनाये गये मदरसे और नमाज स्थल को जेसीबी से तोड़ने का काम शुरू ही किया कि वहां पर दंगाईयों की भीड़ ने चारों तरफ से जबदस्त पथराव कर अराजकता फैला दी। अराजक तत्वों ने पुलिस प्रशासन और पत्रकारों पर भी हिंसक पथराव किया। इसमें प्रशासन के उच्चाधिकारी सहित 200 अधिक पुलिसकर्मी और पत्रकार सहित 300 लोग घायल भी हुए है। यही नहीं उपद्रवियों ने बनभूलपुरा थाने को से घेरकर भारी पथराव करते हुये कई वाहनों व. ट्रांसफार्मर में भी आग लगा दी । सवाल यह है कि लोग यह भी नहीं समझ पाये कि यह अवैध निर्माण है। जिसको तोड़ना शासन का अधिकार है। ऐसे में लोगों को गुमराह कर हिंसा पर उतारने वालों पर कडी कार्यवाही करनी चाहिये। वहीं यहां पर बस्तियों में रह रहे लोगों की मांग है कि दशकों से बसी उनकी बस्तियों को सरकार उजाडे नहीं वैध करे।
हल्द्धानी प्रकरण गत वर्ष भी सामने आया था। तब भी बडा तनाब है। मामला यह है कि हल्द्धानी में भारी संख्या में लोगों को बसाया गया और प्रशासन ने समय रहते अपनी सम्पति की रक्षा करने का दायित्व नहीं निभाया। राज्य गठन के बाद उतराखण्ड की तराई क्षेत्रों के साथ हल्द्धानी में भी अन्य राज्यों व बहारी लोगों की बसावत हुई। राजनैतिक दलों की उदासीनता व मिली भगत से यहां पर समस्या बिकराल हो गयी। यहां विवाद ये है कि यहां पर बडे स्तर पर अवैध अतिक्रमण हुआ है। गत वर्ष भी यह मामला तब सामने आया जब उच्च न्यायालय ने शासन को रेलवे की जमीन पर हुये अवैध अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया। इससे पूरे हल्द्धानी में अवैध अतिक्रमण बस्तियों में रहने वाले अवैध अतिक्रमण हटाने की किसी भी कार्यवाही का विरोध इसलिए करने के लिए एकजूट व हिंसक हो जाते हैं कि उनको लगता है उनके विरोध से उनका अवैध अतिक्रमण बच जायेगा। हल्द्धानी में रेलवे जमीन पर अवैध बस्तियां बस गयी है। रेलवे व बस्तियों के निवासियों की दलीलें स हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2022 को अतिक्रमणकारियों को हटाने का निर्देश दिया। हल्द्धानी में 78 एकड पर अवैध अतिक्रमण का मामला है इसमें 29 एकड पर गफूर बस्ती।
रेलवे अपने पक्ष में अपने उसके पास पुराने नक्शे,1959 का नोटिफिकेशन,1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड व 2017 की सर्वे रिपोर्ट है। लोगों का आरोप है कि पहले उच्च न्यायालय में 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण का मसला था..जो रेलवे के दलीलों के बाद 78 एकड़ से अधिक की जमीन पर अवैध अतिक्रमण का विवाद है।अभी 9 फरवरी की सुबह प्रशासन ने किसी प्रकार की ढील नहीं दी।
उतराखण्ड जैसे शांत वादियों में इस प्रकार की अराजक घटना से लोग स्तब्ध है। ऐसी ही घटनाओं से बचने के लिये उतराखण्ड की जनता मूल निवास व भू कानून के साथ राजधानी गैरसैंण की लगातार मांग कर रहे हैं। परन्तु सताधारी इस मामले को नजरांदाज कर अपने वोट बैंक के लिये उतराखण्ड में अवैध घुसपेठ कराने को संरक्षण करा कर समस्या का निदान नहीं कर रहे है। यही नहीं राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं पर इस मामले में अब तक के सरकारें इसके लिये जिम्मेदार है। जब अवैध अतिक्रमण हटाने पर दंगा पर जो लोग उतर जायें। आखिर ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने के लिसे सरकार क्यों तैयार नहीं है। लोगों को असामाजिक तत्वों व राजनैतिक दलों के भडकावे में नहीं आना चाहिये। हर हालत में प्रदेश में शांति बनानी चाहिये। परन्तु यह साबित हो गया कि हल्द्धानी प्रकरण जैसी विकराल समस्याओं का समाधान मात्र समान नागरिक संहिता जैसे कानूनों से नहीं किया जा सकता। इसके लिये गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने, सन् 1950 को आधार वाला मूल निवास व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह मूल निवास का मजबूत कानून बनाने का ऐतिहासिक काम की नितांत जरूरत है। इन कानूनों के साथ यहां हिमाचल के यशवंत परमार से वीरभद्र जैसे जनहित के लिये समर्पित जनसेवक चाहिये। उतराखण्ड का दुर्भाग्य यह रहा कि यहां के हुक्मरानों ने प्रदेश हित को साकार करने के बजाय अपने निहित स्वार्थ व दलीय हितों को सदैव वरियता दी। आज हल्द्धानी कांड को जो जनंप्रतिनिधी व तथाकथित बुद्धिजीवी नजरांदाज कर रहे है, उनको इस बात का भान होना चाहिये कि इसी प्रकार के षडयंत्र के तहत घुसपेठ व बसावत से कश्मीर, बंगाल व असम का तानाबाना व अमन चैन पर ग्रहण लगाया गया है। हमारे जनप्रतिनिधी व समाजसेवी अपने दुराग्रह व निहित स्वार्थों में लिप्त हो कर कबुतरी प्रवृति के कारण भारत के ही नहीं विश्व के अनैक देशों में ऐसे षडयंत्र जगजाहिर है।
यहां पर यह उल्लेख करना जरूरी है कि यहां पर अवैध अतिक्रमण व जबरन षडयंत्र के तहत घुसपेठ का हल्द्धानी अकेला मामला नहीं है। देहरादून से लेकर प्रदेश के अनैक शहरों व क्षेत्रों में जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों की मिली भगत से अपराधियों, माफियाओं ने षडयंत्र के तहत बलात कब्जा व अवैध घुसपैठ व बसावत कराने का कृत्य किया गया। जिसके कारण प्रदेश का अमन चैन व भविष्य पर ग्रहण सा लग गया है। हल्द्धानी कांड एक ऐसा अवसर है पहले की हिमालयी भूलों को सुधारने व भविष्य में ऐसी प्रवृति पर अंकुश लगा कर हिमालय के इस शांत प्रवृति का अक्षुण्ण रखने के लिये प्रदेश में जहां घुसपेठ पर कडा अंकुश लगाने के लिये गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने, सन् 1950 को आधार वाला मूल निवास व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह मूल निवास का मजबूत कानून बनाने का ऐतिहासिक काम बिना समय गंवाये तत्काल करना चाहिये। क्योंकि 23सालों से प्रदेश सरकारों की उदासीनता से उत्तराखंड सहित देश के लिए ऐसी समस्यायें बहुत ही खतरा बन गयी है। खासकर भारत विरोधी तत्व इन विदेशी घुसपेठियों व असामाजिक तत्वों की आड में देश के लिये गंभीर खतरा बन गये है। लोकशाही के नाम पर इस बात से भी लोग हैरान है कि प्रदेश के हुक्मरानों की कथनी व करनी में कितना विरोधाभास केसे? भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुये देश में सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार वाले उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आखिरकार क्यों उतराखण्ड की जनता की दशकों से जारी पुरजोर मांग राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून को क्यों पूर्ववर्ती सरकारों की तरह नजरांदाज कर रहे है? राज्य सरकारों द्वारा राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की 23 सालों से चली आ रही पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से उतराखण्ड व देश की सुरक्षा खतरे में डाल दी है।
जबकि भारत के इस सीमांत प्रांत व हिमालयी राज्य उतराखण्ड के चहुमुखी विकास, राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के साथ देश की सुरक्षा के लिये राजधानी गैरसैंण, अन्य हिमालयी राज्यों की तरह ही भू-मूल निवास कानून की नितांत जरूरत है। प्रदेश की जनता इन मांगों के लिये निरंतर सडकों पर संघर्ष कर रही है। देहरादून, दिल्ली, बागेश्वर, भिक्यासैंण, हल्द्वानी व टिहरी में विशाल जन सैलाब उमडने के साथ आम जनमानस दलगत राजनीति से उपर उठ कर इन मांगों का समर्थन कर रहा है। परन्तु लोकशाही में प्रांत के प्रथम सेवक यानि मुख्यमंत्री का क्या दायित्व होता है शायद इसको वे भूल गये। वे जनता की पुरजोर मांगों को नजरांदाज करके जिस प्रकार से प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार मुख्यमंत्री की ताजपोशी से आज तक समय समय पर भरते रहे उससे यही साफ होता है कि प्रांत का प्रथम सेवक अपने प्रथम दायित्व को भूल गये है। लोकशाही में जनता सर्वोपरि होती है। जनता मांग कर रही है राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून बनाने की। परन्तु मुख्यमंत्री पूरे दमखम से ऐलान कर रहे हैं कि हमारी सरकार प्रांत में समान नागरिक संहिता का कानून बना कर रहेंगे। अब तक तो देश की आम जनता में यह धारणा है कि दिल्ली देर से सुनती है परन्तु अब उनको यह देख कर हैरानी हो रही है कि उनका प्रथम सेवक तो सुनता ही नहीं जनता की पुकार। यह कैसी लोकशाही है। ऐसी हटधर्मिता करने वाले कैसे भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं? यही नहीं इनके सत्ताधारी दल के प्रांत अध्यक्ष तो जनहित व प्रांतहित की मांग करने वालों को वामपंथी यानि भारतीय संस्कृति को न मानने वाले ही बता कर जनता का उपहास उडाने की धृष्ठता कर रहे हैं? यह सब लोकशाही के नाम पर किया जा रहा है। यह सत्तामद में चूर हो कर किया जा रहा है या लोकशाही को रौंदते हुये। परन्तु इतना साफ है कि यह प्रवृति न लोकशाही के लिये हितकर है व नहीं उतराखण्ड व देश के लिये। भगवान राम तो मर्यादाओं व जनभावानाओं का सम्मान करने की सीख देते थे। परन्तु ऐसी प्रवृति किसी भी सूरत में भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक हो ही नहीं सकती। लोगों को आज भी आशा है कि देर सबेर प्रधानमंत्री मोदी जी, प्रांत की सत्ता में आसीन अपने भरत को भारतीय संस्कृति की उदगम स्थली उतराखण्ड में भी भगवान राम की तरह मर्यादाओं का पालन करते हुये महिलाओं का अपमान करने वाले रावणों को दण्डित कराने के साथ जनभावनाओं का सम्मान करत हुये समान नागरिक संहिता के साथ राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तरह भू-मूल निवास कानून बनाने का कार्य करेंगे।
अगर उतराखण्ड सरकार व जनप्रतिनिधी लोकशाही के प्रति जरा से भी संवेदनशील होते, उनको उतराखण्ड व देश से तनिक सा भी प्रेम होता तथा उनको अपने दायित्वों का बोध होता तो वे हल्द्वानी काण्ड के बाद तत्काल गैरसैंण में विधानसभा सत्र आहुत करते । इस सत्र में जिस तत्परता से समान नागरिक संहिता कानून बनाया उसी तर्ज पर राज्य गठन की जन भावनाओं का सम्मान करते हुये गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने, सन् 1950 को आधार वाला मूल निवास व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह मूल निवास का मजबूत कानून बनाने का ऐतिहासिक काम करते, तो उतराखण्ड का जनमानस उतराखण्ड सहित देश विदेश में सरकार के इस कार्य के लिये उनको अपने दिल से नमन करता। परन्तु प्रदेश के सतारूढ दल व विपक्ष के दर्जनों विधायक ने प्रदेश के मुखिया के शह पर भीषण संकट में घिरे उतराखण्ड व देश की रक्षा करने के लिये जनभावनाओं के तहत गैरसैंण में बजट सत्र आहुत कर उपरोक्त तीनों जनांकांक्षाओं को साकार करने का काम करते परन्तु इन्होने अपने पंचतारा सुविधाओं की मोह में उतराखण्ड की लोकशाही को लखनवी मानसिकता से ग्रसित हो कर देहरादून में आयोजन कराने का निर्णय लेकर जनांकांक्षाओं पर बज्र्रपात करने का कृत्य किया। खबर है कि यह निर्णय शासन ने प्रदेश के विधायकों द्धारा गैरसैंण में ठण्ड का बहाना बना कर देहरादून में विधानसभा सत्र का आयोजन करने का अभियान चलाया था। पर अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री जरा भी अपने दायित्व का भान होता तो वे गैरसैंण में ही इसी सत्र का आयोजन करते। इस प्रकरण को जान कर उतराखण्ड सहित देश के जागरूक लोग हैरान है कि देश के जांबाज एक तरफ सियाचीन, लेह लदाख में भारी हिमपात में महिनों उट कर देश की रक्षा करते हैं दूसरी तरफ ये कैसे जनप्रतिनिधी हैं जो गैरसैंण जैसे रमणीक विधानसभा में तीन चार दिन का प्रवास करने के लिये तैयार नहीं है? ऐसे सुविधा भोगी आखिर क्यों जनप्रतिनिधी बनते है व इनके राजनैतिक दल ऐसे लोकशाही को रौंदने वालों को जनप्रतिनिधी का टिकट भी किस मुंह से देते है? ऐसे जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तत्काल निरस्त कर उन पर ताउम्र चुनाव लडने का प्रतिबंध लगाने के साथ अब तक के तमाम उनके द्धारा अर्जित किये गये वेतन व भत्तों की भी वसुली की करनी चाहिये।
गैरसैंण में बजट सत्र न कराने की प्रदेश सरकार व जनप्रतिनिधियों की शर्मनाक नौटंकी ऐसे समय होती है जब प्रदेश व देश को स्तब्ध करने वाला भीषण हल्द्धानी काण्ड हुआ। गौरतलब है कि इसी पखवाडे प्रदेश सरकार ने उतराखण्ड की विधानसभा में समान नागरिक संहिता का कानून पारित कर देश की जनता को इस बात का अहसास दिलाया था कि उसे प्रदेश व देश की सुरक्षा की गहरी चिंता है। इसी लिये उसने समान नागरिक संहिता का कानून बनाया है। परन्तु इसी कानून के बनाने के चंद दिनों बाद अवैध अतिक्रमण हटाने के एक मामले में हल्द्धानी में ऐसा भीषण हिंसा का तांडव दंगाईयों ने किया कि पूरा देश स्तब्ध हो गया कि उतराखण्ड की शांत वादियों में ऐसी घटना कैसे हो रही है? इस हिंसा में दंगाईयों ने अतिक्रमण हटाने गये पुलिस प्रशासन पर पथराव के अलावा पेटोल बम, आगजनी का तांडव मचाया कि इसमें 6लोग मारे गये, सेकडों घायल हो गये, पुलिस थाना, दर्जनों वाहन इत्यादि को जला कर हिंसा का भीषण तांडव मचाया कि पुलिस प्रशासन को हल्द्वानी के इस बनभूलपुरा क्षेत्र के अलावा पूरे हल्द्धानी में कफ्य्र लगाना पडा
यहां आरजकता तब हुई जब पुलिस प्रशासन का दल अवैध अतिक्रमण हटाने के लिये हल्द्वानी के थाना बनभूलपुरा क्षेत्र में मलिक के बगीचे पहुंची.। जब दल ने वहां पर हुये ं अवैध अतिक्रमण कर बनाये गये मदरसे और नमाज स्थल को जेसीबी से तोड़ने का काम शुरू ही किया कि वहां पर दंगाईयों की भीड़ ने चारों तरफ से जबदस्त पथराव कर अराजकता फैला दी। अराजक तत्वों ने पुलिस प्रशासन और पत्रकारों पर भी हिंसक पथराव किया। इसमें प्रशासन के उच्चाधिकारी सहित 200 अधिक पुलिसकर्मी और पत्रकार सहित 300 लोग घायल भी हुए है। यही नहीं उपद्रवियों ने बनभूलपुरा थाने को से घेरकर भारी पथराव करते हुये कई वाहनों व. ट्रांसफार्मर में भी आग लगा दी । सवाल यह है कि लोग यह भी नहीं समझ पाये कि यह अवैध निर्माण है। जिसको तोड़ना शासन का अधिकार है। ऐसे में लोगों को गुमराह कर हिंसा पर उतारने वालों पर कडी कार्यवाही करनी चाहिये। वहीं यहां पर बस्तियों में रह रहे लोगों की मांग है कि दशकों से बसी उनकी बस्तियों को सरकार उजाडे नहीं वैध करे।
हल्द्धानी प्रकरण गत वर्ष भी सामने आया था। तब भी बडा तनाब है। मामला यह है कि हल्द्धानी में भारी संख्या में लोगों को बसाया गया और प्रशासन ने समय रहते अपनी सम्पति की रक्षा करने का दायित्व नहीं निभाया। राज्य गठन के बाद उतराखण्ड की तराई क्षेत्रों के साथ हल्द्धानी में भी अन्य राज्यों व बहारी लोगों की बसावत हुई। राजनैतिक दलों की उदासीनता व मिली भगत से यहां पर समस्या बिकराल हो गयी। यहां विवाद ये है कि यहां पर बडे स्तर पर अवैध अतिक्रमण हुआ है। गत वर्ष भी यह मामला तब सामने आया जब उच्च न्यायालय ने शासन को रेलवे की जमीन पर हुये अवैध अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया। इससे पूरे हल्द्धानी में अवैध अतिक्रमण बस्तियों में रहने वाले अवैध अतिक्रमण हटाने की किसी भी कार्यवाही का विरोध इसलिए करने के लिए एकजूट व हिंसक हो जाते हैं कि उनको लगता है उनके विरोध से उनका अवैध अतिक्रमण बच जायेगा। हल्द्धानी में रेलवे जमीन पर अवैध बस्तियां बस गयी है। रेलवे व बस्तियों के निवासियों की दलीलें स हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2022 को अतिक्रमणकारियों को हटाने का निर्देश दिया। हल्द्धानी में 78 एकड पर अवैध अतिक्रमण का मामला है इसमें 29 एकड पर गफूर बस्ती।
रेलवे अपने पक्ष में अपने उसके पास पुराने नक्शे,1959 का नोटिफिकेशन,1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड व 2017 की सर्वे रिपोर्ट है। लोगों का आरोप है कि पहले उच्च न्यायालय में 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण का मसला था..जो रेलवे के दलीलों के बाद 78 एकड़ से अधिक की जमीन पर अवैध अतिक्रमण का विवाद है।अभी 9 फरवरी की सुबह प्रशासन ने किसी प्रकार की ढील नहीं दी।
उतराखण्ड जैसे शांत वादियों में इस प्रकार की अराजक घटना से लोग स्तब्ध है। ऐसी ही घटनाओं से बचने के लिये उतराखण्ड की जनता मूल निवास व भू कानून के साथ राजधानी गैरसैंण की लगातार मांग कर रहे हैं। परन्तु सताधारी इस मामले को नजरांदाज कर अपने वोट बैंक के लिये उतराखण्ड में अवैध घुसपेठ कराने को संरक्षण करा कर समस्या का निदान नहीं कर रहे है। यही नहीं राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं पर इस मामले में अब तक के सरकारें इसके लिये जिम्मेदार है। जब अवैध अतिक्रमण हटाने पर दंगा पर जो लोग उतर जायें। आखिर ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने के लिसे सरकार क्यों तैयार नहीं है। लोगों को असामाजिक तत्वों व राजनैतिक दलों के भडकावे में नहीं आना चाहिये। हर हालत में प्रदेश में शांति बनानी चाहिये। परन्तु यह साबित हो गया कि हल्द्धानी प्रकरण जैसी विकराल समस्याओं का समाधान मात्र समान नागरिक संहिता जैसे कानूनों से नहीं किया जा सकता। इसके लिये गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने, सन् 1950 को आधार वाला मूल निवास व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह मूल निवास का मजबूत कानून बनाने का ऐतिहासिक काम की नितांत जरूरत है। इन कानूनों के साथ यहां हिमाचल के यशवंत परमार से वीरभद्र जैसे जनहित के लिये समर्पित जनसेवक चाहिये। उतराखण्ड का दुर्भाग्य यह रहा कि यहां के हुक्मरानों ने प्रदेश हित को साकार करने के बजाय अपने निहित स्वार्थ व दलीय हितों को सदैव वरियता दी। आज हल्द्धानी कांड को जो जनंप्रतिनिधी व तथाकथित बुद्धिजीवी नजरांदाज कर रहे है, उनको इस बात का भान होना चाहिये कि इसी प्रकार के षडयंत्र के तहत घुसपेठ व बसावत से कश्मीर, बंगाल व असम का तानाबाना व अमन चैन पर ग्रहण लगाया गया है। हमारे जनप्रतिनिधी व समाजसेवी अपने दुराग्रह व निहित स्वार्थों में लिप्त हो कर कबुतरी प्रवृति के कारण भारत के ही नहीं विश्व के अनैक देशों में ऐसे षडयंत्र जगजाहिर है।
यहां पर यह उल्लेख करना जरूरी है कि यहां पर अवैध अतिक्रमण व जबरन षडयंत्र के तहत घुसपेठ का हल्द्धानी अकेला मामला नहीं है। देहरादून से लेकर प्रदेश के अनैक शहरों व क्षेत्रों में जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों की मिली भगत से अपराधियों, माफियाओं ने षडयंत्र के तहत बलात कब्जा व अवैध घुसपैठ व बसावत कराने का कृत्य किया गया। जिसके कारण प्रदेश का अमन चैन व भविष्य पर ग्रहण सा लग गया है। हल्द्धानी कांड एक ऐसा अवसर है पहले की हिमालयी भूलों को सुधारने व भविष्य में ऐसी प्रवृति पर अंकुश लगा कर हिमालय के इस शांत प्रवृति का अक्षुण्ण रखने के लिये प्रदेश में जहां घुसपेठ पर कडा अंकुश लगाने के लिये गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने, सन् 1950 को आधार वाला मूल निवास व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह मूल निवास का मजबूत कानून बनाने का ऐतिहासिक काम बिना समय गंवाये तत्काल करना चाहिये। क्योंकि 23सालों से प्रदेश सरकारों की उदासीनता से उत्तराखंड सहित देश के लिए ऐसी समस्यायें बहुत ही खतरा बन गयी है। खासकर भारत विरोधी तत्व इन विदेशी घुसपेठियों व असामाजिक तत्वों की आड में देश के लिये गंभीर खतरा बन गये है। लोकशाही के नाम पर इस बात से भी लोग हैरान है कि प्रदेश के हुक्मरानों की कथनी व करनी में कितना विरोधाभास केसे? भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुये देश में सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार वाले उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आखिरकार क्यों उतराखण्ड की जनता की दशकों से जारी पुरजोर मांग राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून को क्यों पूर्ववर्ती सरकारों की तरह नजरांदाज कर रहे है? राज्य सरकारों द्वारा राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की 23 सालों से चली आ रही पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से उतराखण्ड व देश की सुरक्षा खतरे में डाल दी है।
जबकि भारत के इस सीमांत प्रांत व हिमालयी राज्य उतराखण्ड के चहुमुखी विकास, राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के साथ देश की सुरक्षा के लिये राजधानी गैरसैंण, अन्य हिमालयी राज्यों की तरह ही भू-मूल निवास कानून की नितांत जरूरत है। प्रदेश की जनता इन मांगों के लिये निरंतर सडकों पर संघर्ष कर रही है। देहरादून, दिल्ली, बागेश्वर, भिक्यासैंण, हल्द्वानी व टिहरी में विशाल जन सैलाब उमडने के साथ आम जनमानस दलगत राजनीति से उपर उठ कर इन मांगों का समर्थन कर रहा है। परन्तु लोकशाही में प्रांत के प्रथम सेवक यानि मुख्यमंत्री का क्या दायित्व होता है शायद इसको वे भूल गये। वे जनता की पुरजोर मांगों को नजरांदाज करके जिस प्रकार से प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार मुख्यमंत्री की ताजपोशी से आज तक समय समय पर भरते रहे उससे यही साफ होता है कि प्रांत का प्रथम सेवक अपने प्रथम दायित्व को भूल गये है। लोकशाही में जनता सर्वोपरि होती है। जनता मांग कर रही है राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून बनाने की। परन्तु मुख्यमंत्री पूरे दमखम से ऐलान कर रहे हैं कि हमारी सरकार प्रांत में समान नागरिक संहिता का कानून बना कर रहेंगे। अब तक तो देश की आम जनता में यह धारणा है कि दिल्ली देर से सुनती है परन्तु अब उनको यह देख कर हैरानी हो रही है कि उनका प्रथम सेवक तो सुनता ही नहीं जनता की पुकार। यह कैसी लोकशाही है। ऐसी हटधर्मिता करने वाले कैसे भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं? यही नहीं इनके सत्ताधारी दल के प्रांत अध्यक्ष तो जनहित व प्रांतहित की मांग करने वालों को वामपंथी यानि भारतीय संस्कृति को न मानने वाले ही बता कर जनता का उपहास उडाने की धृष्ठता कर रहे हैं? यह सब लोकशाही के नाम पर किया जा रहा है। यह सत्तामद में चूर हो कर किया जा रहा है या लोकशाही को रौंदते हुये। परन्तु इतना साफ है कि यह प्रवृति न लोकशाही के लिये हितकर है व नहीं उतराखण्ड व देश के लिये। भगवान राम तो मर्यादाओं व जनभावानाओं का सम्मान करने की सीख देते थे। परन्तु ऐसी प्रवृति किसी भी सूरत में भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक हो ही नहीं सकती। लोगों को आज भी आशा है कि देर सबेर प्रधानमंत्री मोदी जी, प्रांत की सत्ता में आसीन अपने भरत को भारतीय संस्कृति की उदगम स्थली उतराखण्ड में भी भगवान राम की तरह मर्यादाओं का पालन करते हुये महिलाओं का अपमान करने वाले रावणों को दण्डित कराने के साथ जनभावनाओं का सम्मान करत हुये समान नागरिक संहिता के साथ राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तरह भू-मूल निवास कानून बनाने का कार्य करेंगे।