देश

12 फरवरी को बिहार में खेला करेगे लालू व तेजस्वी या चलता रहेगा भारतीय राजनीति के अजूबे नीतीश कुमार का रेला?

  1. बिना बहुमत के बार बार विरोधी दलों से गठबंधन कर बने हुये है कई वर्षो से मुख्यमंत्री !

क्यों बने भाजपा व राजद के साथ बिहार की मजबूरी?

 

देवसिंह रावत-
आज झारखण्ड में चंपई सरकार द्वारा विधानसभा पटल पर बहुमत सिद्ध करने के बाद देश की नजर 12 फरवरी 2024 को बिहार विधानसभा में होने वाले नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली भाजपा व जदयू गठबंधन की सरकार पर लगी है।
हालांकि बिहार विधानसभा के वर्तमान सत्ता समीकरण को देखते हुये भाजपा व जदयू गठबंधन की सरकार पूरी तरह से सुरक्षित लग रही है। उसके पास पर्याप्त बहुमत है। वर्तमान 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा की स्थिति ( राजद-79,भाजपा-78, जदयू-45, कांग्रेस-19, हम-4) है। सत्तारूढ जदयू भाजपा गठबंधन के पास 128 तथा विपक्ष में राजद व कांग्रेस 114 विधायक है।
परन्तु जैसे ही नीतीश कुमार ने जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर जदयू व राजद गठबंधन की सरकार को गिराकर उसी दिन भाजपा के साथ गठबंधन करके फिर से सांयकाल मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर पूरे देश को झकझोर दिया था। उसी दिन राजद नेता व तत्कालीन सरकार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने दो टूक शब्दों में नीतीश भाजपा गठबंधन की सरकार पर कटाक्ष  करते हुये कहा था कि अब होगा बिहार में खेला। वहीं दूसरी तरफ बिहार की राजनीति के अजूबे नेता नीतीश कुमार ने ताल ठोक कर कहा कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। बिहार की वर्तमान सत्ता की उठापटक में निर्णायक मोड तब आया जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राजद गठबंधन की सरकार को गिरा कर भाजपा  के साथ नई सरकार का गठन कर दिया हो परन्तु बिहार विधानसभा के अध्यक्ष ने अपने पद से इस्तीफा न देकर एक प्रकार नीतीश कुमार व भाजपा को एक बडी चुनौती खडी कर दी है। नीतीश सरकार सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने से पहले पिछली सरकार के कार्यकाल में बने विधानसभाध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को हटाना चाहते हैं। जो अध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव के बाबजूद अपने पद से इस्तीफा नहीं दे रहे है। इसी कारण नीतीश सरकार को सदन में बहुमत साबित करने से पहले वर्तमान अध्यक्ष को हटाना होगा । जो एक प्रकार का सीधा शक्ति परिक्षण के रूप में ही देखा जा रहा है। नीतीश के बदले रंगढंग से विपक्षी इस बार सतर्क हैं। खासकर जिस प्रकार से नीतीश समर्थक कांग्रेस के विधायकों में टूटने की खबर उडा रहे थे। इसको देखते हुये कांग्रेस ने अपने विधायकों को हेदराबाद भेज कर सुरक्षित करने का कदम उठाया। वहीं राजद भी सतर्क है। तेजेस्वी की हुंकार से नीतीश कुमार भी अंदर से आशंकित है कि कहीं नीतीश की जदयू या भाजपा  गठबंधन (माझी, पासवान व  कुशवाह )में लालू यादव सेंघ न लगा दे। पूरे देश की नजरें बिहार के इस घटनाम पर लगी हैं कि बिहार में लालू कर पायेगे क्या खेला या चलता रहेगा नीतीश कुमार का रेला?उल्लेखनीय है कि इस बार भी इसी पखवाडे  28 जनवरी 2024को फिर देश की राजनीति में नीतीश कुमार ने एक अजूबे का सफल मंचन किया। सुबह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद व कांग्रेस गठबंधन वाली अपनी सरकार का इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा।  फिर कुछ ही देर बाद नीतीश कुमार ने अपने विरोधी दल भाजपा के समर्थन से साथ सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के समक्ष करने के बाद सांय 5 बजे फिर मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेकर सुबह तक के सहयोगी दल राजद व कांग्रेस को अपना विरोधी बना  दिया। ऐसा करिश्मा पहली बार बिहार में नहीं हुआ। ऐसा करिश्मा नीतीश कुमार ने बिहार में कई बार कर देश की राजनीति में एक अजूबा कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। जिसे शायद ही कोई तोड पाये। बिहार में ही नहीं पूरे देश में उनको पलटूराम, गिरगिट व विश्वासघाती के नाम से उनके विरोधी दल ही नहीं उनके समर्थक दल  भी पुकारते है। आज के दिन वे ऐसे राजनेता हो गये है जिसके बारे में कहा जाता है कि उनका ऐसा कोई सगा नहीं जिसको उन्होने डसा नहीं। भले ही उनको उनके विरोधी पलटुराम कह रहे हैं।
लोग हवा में ऐसी बात नहीं कहते अपितु लालू, शरद, फर्नाडिस से लेकर अनैक नेता हैं जिनके साथ नीतीश का ऐसा व्यवहार रहा। 1 मार्च 1951 में बिहार में स्वतंत्रता सैनानी के घर बख्तियारपुर में जन्में नीतीश कुमार ने यांत्रिकी यानि इंजीनियरिग की शिक्षा ग्रहण की। उनका घर का नाम मुन्ना है।  छात्र जीवन में वे इंदिरा गांधी के आपातकाल के विरोध जयप्रकाश नायरायण के देशव्यापी आंदोलन में जुडे। वे १९७४ एवं १९७७ में जयप्रकाश बाबू के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में शामिल रहे थे एवं उस समय के महान समाजसेवी एवं राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे। नीतीश कहते हेें कि मुझे लोकनायक जयप्रकाश नारायण, छोटे साहब सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जननायक कर्पूरी ठाकुर के चरणों में जानने और सीखने का मौका मिला हैं।
वे पहली बार बिहार विधानसभा के लिए १९८५ में चुने गये थे। १९८७ में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष बने। १९८९ में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया और उसी वर्ष वे नौंवी लोकसभा के सदस्य भी चुने गये थे।
१९९० में वे पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में बतौर कृषि राज्यमंत्री शामिल हुए। १९९१ में वे एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गये और उन्हें इस बार जनता दल का राष्ट्रीय सचिव चुना गया तथा संसद में वे जनता दल के उपनेता भी बने। १९८९ और 2000 में उन्होंने बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। १९९८-१९९९ में कुछ समय के लिए वे केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे और अगस्त १९९९ में गैसाल में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्रीपद से अपना इस्तीफा दे दिया।
परन्तु इन दो दशकों में वे बिहार के ऐसे पहले नेता हैं जो घोर जातिवाद की दलदल में बंटे बिहार में मात्र 4  प्रतिशत से कम का प्रतिनिधित्व करने वाली कुर्मी जाति में जन्में,  बिना बहुमत के, बार बार एक बिरोधी को छोड कर दूसरे बिरोधी के साथ सरकार बनाने का कीर्तिमान वह भी बिना भष्टाचार के आरोप में घिरे रह कर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के साथ देश के रेल, कृर्षि आदि मंत्री रहे नीतीश कुमार ने ही बनाया। यह उनकी राजनैतिक कुशलता है या भाग्य का प्रबल वेग। वे अपने इसी कला से प्रदेश से देश की राजनीति में चमकने वाले पहले राजनेता हैं। इन दो तीन दशको में बिहार को जंगलराज, भ्रष्टाचार व हिंसा की दलदल से निकाल कर विकास की किरण दिखाने वाले मुख्यमंत्री के रूप में उनके समर्थक ही नहीं उनके विरोधी भी उनको याद करते है। भले ही कभी देश में उनके साथी राम विलास पासवान को ही लोग सत्ता के करीब रहने की महारथ यानि सत्ता गठबंधन में रहने के कारण मौसम वैज्ञानिक लालू सहित देश कहता था। परन्तु चंद दिन पहले ही नीतीश कुमार ने अपने घोर विरोधी भाजपा से गठबंधन से हाथ मिला कर बिहार की सरकार गिराकर फिर भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गये। उस भाजपा के साथ जिसके साथ जाने से बेहतर वे मर जाने की कसमें चंद महिने पहले तक खा रहे थे। उसके तत्काल बाद जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह जो तिकडम नीतीश ने पूरे देश को दिखाई उससे उन्होने पासवान को भी मात दे दिया। पूरा देश उनको अवसरवादी व पलटूराम ऐसे नहीं कह रहा है। उन्होने अपने राजनैतिक सफर में यह पहली बार नहीं अपित आधा दर्जन बार यह करिश्मा कर चूके हैं। 1994 में नीतीश ने जद छोड कर समता पार्टी बनाई फिर  2013 भाजपा से नाता तोड दिया। फिर 2015-राजद कांग्रेस के साथ ंगठबंधन किया। इसके बाद दो साल बाद ही 2017 में राजद से नाता तोड कर भाजपा से गठबंधन दिया। बार बार वे अब नहीं पलटने की बात कहने वाले नीतीश ने 2022 में भाजपा से नाता तोड कर राजद के साथ गठबंधन कर दिया। फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का सांझा मोर्चा इंडिया का गठन करने वाले नीतीश कुमार गिरगिट को मात देते हुये अचानक 28 जनवरी 2024 को राजद गठबंधन की सरकार को गिरा कर भाजपा के समर्थन से फिर मुख्यमंत्री बनकर मोदी व भाजपा को भारत की लोकशाही के लिये खतरा बताने वाले नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी नेतृत्व वाले भाजपा गठबंधन के सारथी बन गये। इस बार भी वह यही कह रहे हैं कि अब कहीं और जाने का सवाल ही नहीं होता। परन्तु इससे अब राजनीति में नीतीश कुमार की विश्वसनीयता पूरी तरह समाप्त हो गयी। जो व्यक्ति, दल व देश के लिये उचित नहीं है। इस प्रकरण के बाद बिहार में ही नहीं देश  में न केवल नीतीश कुमार भले ही पलटूराम के रूप में जाना जा रहा है। पर इस प्रकरण से भाजपा, राजद व कांग्रेस सहित देश की चल रही सत्ता के लिये मूल्य रहित राजनीति को भी पूरी तरह से बेनकाब कर दिया। हो सकता हो नीतीश इससे बिहार का भला कर रहे हो जो भी उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडने के लिये कहते वे तत्काल उचित समय पर उस गठबंधन को छोड देते। बिहार में वे प्रथम बार 7 दिन के लिये मुख्यमंत्री बने 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक। दूसरी बार वे 24 नवम्बर 2005 से 24 नवम्बर 2010 मुख्यमंत्री रहे। तीसरी बार वे 26 नवम्बर 2010 से  17 मई 2014 तक । फिर 22 फरवरी 2015 से 9 अगस्त 2022 तक। इसके बाद 10 अगस्त 2022 से 28 जनवरी 2024 मुख्यमंत्री रहे। 28जनवरी 2024 को राजद गठबंधन को तोड कर वे भाजपा के सहयोग से फिर मुख्यमंत्री बने। इस बार की बिहार सरकार में
मुख्यमंत्री -नीतीश कुमार, ेतथा उप मुख्यमंत्री-सम्राट चौधरी  व विजय कुमार सिन्हा बने। इसके पीछे माना जा रहा है भाजपा का 2024 का गणित जो बिहार की 40 लोकसभा सीट में 2019 के चुनाव में भाजपा जदयू गठबंधन ने 39 सीटें जीती थी। भाजपा 17(23.58प्रतिशत), जदयू16(21.81), व लाजपा 6(7.86) मत मिले थे। इसी को दुबारा जीवंत करने के लिये भाजपा ने नीतीश को गले लगाया।
जातिवाद की राजनीति के तहत देश में घोर जातिवाद व संप्रदायवाद का जहर आम जनता के बीच में फैलाने के लिये दोषी राजनैतिक दलों की नजर भी  बिहार की जातिवादी समीकरण पर है। बिहार में अत्यंत पिछडा वर्ग -13.07करोड़ (36.01प्रतिशत),
नीतीश कुमार की जाति (कुर्मी-2.87) व सम्राट चौधरी की जाति ( कोइरी-4.21)बिहार में अजा-19.65प्रतिशत( पासवान-5.31, रविदासी-5.25, मसहर-3),अगडी जातियां- (भूमिहार-2.86, ब्राहमण- 3.65 व राजपूत-3.45 प्रतिशत) है। राजनैतिक दल इन्ही राजनैतिक जातिवादी समीकरण को ध्यान में रखते हुये उम्मीदवारी व सरकार में पद भी देते है।

About the author

pyarauttarakhand5