सत्तामद में उत्तराखंड को रौंद कर कश्मीर से बद्तर बनाने की भंयकर भूल कर रहे अब तक के हुक्मरान बने भाजपाई व कांग्रेसी नेहरू
देवसिंह रावत
आज 8 दिसम्बर 2023 को अब से कुछ देर बाद प्रधानमंत्री मोदी देहरादून में उत्तराखण्ड वैश्विक निवेशक सम्मेलन-2023 का शुभारंभ करेगे। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी 8 व 9 नवम्बर 2023 को देहरादून के भारतीय वन विभाग ‘एफआरआई’ में आयोजित इस भूमंडलीय निवेशक सम्मेलन में तीन लाख करोड़ रूपये से अधिक के निवेश उतराखण्ड में करने में लिये 5000 से अधिक उ़द्यमी/व्यवसायिक प्रतिष्ठान/बहुराष्ट्रीय संस्थान के शीर्ष व प्रतिनिधि इसमें भाग ले रहे है। भले ही भारतीय संस्कृति के झंडेबरदार समझे जाने वाली भाजपा की प्रांत सरकार इसे वैश्विक निवेशक सम्मेलन-2023 कहने के बजाय बहुत ही प्रमुखता से देश के खबरिया चैनलों व समाचार पत्रों में करोड़ों रूपये का विज्ञापन पानी की तरह बहा कर इसे उत्तराखण्ड, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2023 के नाम से प्रचार प्रसार कर रही है। देश की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर दिये गये पूरे पेज के विज्ञापन के अनुसार इसमें 3 लाख करोड़ रूपये से अधिक के समझोता ज्ञापन हस्ताक्षरित होगे। इसमें 50000 से अधिक व्यवसायक प्रतिनिधि एवं विभिन्न देशों के राजदूत प्रतिभाग करेंगे। इसमें 44000करोड़ रूपये से अधिक की परियोजनाओं का वहीं पर ब्रेकिंग समारोह होगा।
अभी तक ढ़ाई लाख करोड़ से अधिक के करार हो चुके हैं। इसमें प्र्र्र्रदेश के सभी 27 से अधिक निवेशक-अनुकूल नीतियां लागू की जायेगी प्रतिस्पर्धी प्रात्साहन, सब्सिडी और अनुकूल व्यावसायिक वातावरण के जरिये राज्य के निवेश में बढावा दिया जायेगा।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराखण्ड दौरे एवं वैश्विक निवेशक सम्मेलन के शुभारंभ समारोह हेतु की जा रही सभी तैयारियां की समीक्षा की।
करारों की ग्राउडिंग के लिए तेजी से कार्य किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में निवेश आने से स्थानीय लोगों के रोजगार में तेजी से वृद्धि होगी। राज्य में ऐसे करारों को शीर्ष प्राथमिकता दी जा रही है, जिनसे राज्य में रोजगार के अवसर बढ़े।
इस सम्मेलन के बारे में मुख्यमंत्री धामी ने कहा यह आयोजन राज्य के लिए बड़ी समिट है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए भी राज्य सरकार निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। हमारी सरकार निवेश के माध्यम से राज्य में रोजगार सृजन एवं स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने हेतु निरंतर कार्य कर रही है।
हमारा मानना है कि सरकार का यह सराहनीय कार्य है। प्रदेश में विनिवेश बढाने से विकास के रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। परन्तु सवाल यहां पर हमारा केवल इतना है कि राज्य गठन के 23 सालों में सरकारी आंकडों में प्रदेश के विकास के जो आसमानी दावे किये जा रहे है, उससे प्रदेश की स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर क्यों हो रही है। सरकारी दावे जनता व प्रदेश की धरातल पर क्यों नहीं दिखाई दे रहे हे। सरकारी आंकडे ही प्रदेश के इन दावों की हकीकत को बेनकाब कर रहे हे। राज्य गठन के इन 23 सालों में उतराखण्ड के पर्वतीय व सीमान्त जनपदों के गांव क्यों विरान हो रहे है। लाखों की संख्या में पलायन हो गया है। घर खेत बंजर पड गये है। प्रदेश के विकाश के नाम पर 13 में से मात्र 3-4 मेदानी जनपदों में चमक व पर्वतीय जनपदों में विरान क्यों है?पर्वतीय जनपदों में विद्यालय, चिकित्सालय व रोजगार के अभाव के साथ सरकारी तंत्र की उपेक्षा के कारण पर्वतीय जनपद के खेत खलिहान व घर गांव उजड रहे है।
राज्य गठन से पहले ही राज्य गठन के ध्वजवाहकों को इसकी आशंका थी कि राज्य गठन के बाद उतराखण्ड में भी तंत्र को संचालित करने वाली नौकरशाही व जनप्रतिनिधी भी विलासिता भरी लखनवी मानसिकता से अभ्यस्त प्रदेश के सीमान्त पर्वतीय जनपदों के प्रति पहले की तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर सोतेला व्यवहार करके पर्वतीय क्षेत्रों के बजाय देहरादून जैसे मैदानी क्षेत्रों में कुण्डली मार कर प्रदेश गठन की जनांकांक्षाओं पर ग्रहण लगा देंगे। ऐसी मानसिकता से ग्रसित नौकरशाही व जनप्रतिनिधियों को लोकशाही का पाठ पढाने व उतराखण्ड की जनभावनाओं का सम्मान करते हुये प्रदेश का समग्र चहुमुखी विकास करने के लिये ही प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को बनाने की सर्वसम्मति से गहन मंथन के बाद निर्णय लिया था। जिसे प्रदेश गठन से पूर्व अविभाजित उतरप्रदेश की सरकार ने अपनी मुहर लगाई थी। परन्तु राज्य गठन के बाद प्रदेश की भाजपा-कांग्रेस की सरकारों ने जिस बेशर्मी से प्रदेश के चहुमुखी विकास पर ग्रहण लगा दिया। उससे प्रदेश की दिशा व दशा दोनों पतन के गर्त में चली गयी। प्रदेश के दिशाहीन जनप्रतिनिधी व नौकरशाही जहां विलासिता व भ्रष्टाचार में आकंठ फंस गयी है। इससे प्रदेश में पर्वतीय क्षेत्र में विकास की किरणों से रोशन होने के बजाय पलायन, घुसपेठ व प्राकृतिक आपदाओं की विपदाओं से कहार रहा है।
भारी जनदवाब में आकर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाली राजधानी गैरसैंण में देश का सबसे मनोहारी विधानसभा भवन वर्षों पहले बन चूका है। इसमें बजट, ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन सत्र सहित सभी महत्वपूर्ण सत्र हो चूके है। अरबों रूपये से बनी इस विधानसभा भवन में सुचारू रूप से विधानसभा सत्र संचालित होने के बाद भी प्रदेश के पंचतारा सुविधाभोगी हुक्मरान देहरादून में डेरा डाले रहने के मोह में गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित नहीं कर रहे है। देहरादून में ही पंचतारा विलासिता को भोगने के मोह में रह कर ये अपने दिल्ली के आकाओं को खुश करने के लिये गैरसैंण को शीतकालीन राजधानी घोषित करा कर देहरादून में फिर से अरबों रू का विधानसभा भवन इत्यादि भवन बनाने का षडयंत्र कर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने का काम कर रहे है।
प्रदेश के इन दिशाहीन हुक्मरानों की इसी कुनीति के कारण ये उतराखण्डियों की राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने, सीमांत प्रांत की सुरक्षा के लिये यहां भू-मूल निवास को हिमाचल की तर्ज पर लागू करने व प्रदेश के युवाओं को रोजगार प्रदान करने के साथ प्रदेश के हक हकूकों के प्रति जनभावनाओ के अनरूप नजरिया रखने का त्वरित निर्णय लेने के बजाय इन्होने इसके खिलाफ कार्य किया। अपने दुराग्रह के लिये प्रदेश में बलात भूगोल बदलने के साथ उपरोक्त सभी जनांकांक्षाओं को रौंद कर देहरादून में डेरा डाला गया। इनके उतराखण्ड विरोधी मनोवृति के कारण प्रदेश में बलात जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोपा गया। इसके साथ यहां पलायन, घुसपेठ व सरकार की पहाड विरोधी मनोवृति के कारण जोशीमठ व उतरकाशी जैसी विकराल त्रासदी झेलनी पड रही है। बिना सुरक्षा मापदण्डों का अक्षरशः पालन करने के कारण प्रदेश में टिहरी सहित अनैक विशालकाय बांधों व सेकडों जन विद्युत परियोजनाओं से लाखों लोगों को विस्थापन कराया जा रहा है। टिहरी जैसे बांध का लाभ उतराखण्ड के बजाय उप्र व केंद्र सरकार को बलात मिल रहा है। प्रदेश के हक हकूकों के प्रति यहां की सरकारें मूक है। इसके साथ प्रदेश सरकार ने न तो यहां व जनभावनाओं के तहत वन व जंगली जानवरों के कानून को बनाया। इससे प्रदेश में भारी नुकसान उठाना पड रहा है। प्रदेश के जनप्रतिनिधियों खासकर मुख्यमंत्रियों व विधानसभाध्यक्षों के साथ नौकरशाही ने प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने के बजाय अपने प्यादों को भर कर प्रदेश को गहरी निराशा के गर्त में धकेल दिया है। प्रदेश में जनहितों व समाजसेवा में दशको से लगे जनप्रतिनिधियों के बजाय भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली आका यहां पर उतराखण्ड विरोधी, समाजसेवा में अनुभवहिन व अपने जनता द्वारा ठुकराये गये प्यादों को प्रदेश का भाग्य विधाता बना दिया है। इसके कारण यह हिमाचल की तर्ज पर विकास की कूचालें भर सकने वाला उतराखण्ड आज देश में घुसपेठियों, अपराधियों का अभ्यारहण बन चूका है। प्रदेश सरकारें जनभावनाओं के अनुरूप काम नहीं किया इसके कारण यहां हल्द्धानी, देहरादून आदि घुसेपेठ की विकराल समस्या को झेलने के लिये विवश हो गया है। अगर सरकारें समय पर यहां राजधानी गैरसैंण,, भू-मूल निवास कानून बनाती तो आज प्रदेश को घुसपेठ कर समस्या से नहीं जुझना पडता। सत्ता के मोह में उतराखण्ड की शांत वादियों को घुसपेठियों का अभ्यारण बनाने को उतारू राजनैतिक दल उतराखण्ड को कश्मीर से बदतर बना कर छोड़ेंगे। जिस प्रकार से पूरे सीमांत प्रदेश में घुसपेठ हो रही है, चारधाम यात्रा मार्ग हरिद्वार से रिषिकेश आदि में जिस प्रकार से खानपान व यात्रा से संबध चीजों पर षडयंत्र के तहत काबिज हो रहे है। इस पर अंकुश लगाने वाला सरकारी तंत्र पूरा उदासीन है।
इससे हमारा प्रधानमंत्री मोदी से एक ही अनुरोध है कि ये निवेश सम्मेलन का स्वागत है परन्तु प्रदेश की सरकारों की दिशाहीनता के कारण आज यह चीन की सीमा से लगे सीमांत प्रांत उतराखण्ड घुसपेठियों व अपराधियों का अभ्यारण बन चूका है। अगर प्रांत की सरकार बिना दुराग्रह के प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर राजधानी गैरसैंण, भू-मूल निवास से समय पर आत्मसात करती तो आज प्रदेश में हल्द्धानी व देहरादून आदि शहरों की विकराल समस्या से नहीं झुझना पडता। गृहमंत्री अमित शाह भले ही इसी शीतकालीन संसद सत्र को संबोधित करते हुये सही कह रहे थे कि नेहरू की भयंकर भूलों से कश्मीर समस्या बनी हुई है। ऐसे ही उतराखण्ड में यहां के भाजपा व कांग्रेस के सत्तासीन नेहरूओं की वजह से प्रदेश आज कश्मीर सा बन गया है। यहां पर समान नागरिक संहिता के अधिक जरूरी है राजधानी गैरसैंण, हिमाचल की तर्ज पर मूल निवास -भू कानून । इसके बिना यहां न प्रदेश का समग्र विकास होगा व शांत वादियांं में अमन चैन स्थापित होगा। इसलिये देश के हुक्मरानों को चाहिये कि यहा ंपर की जा रही दुराग्रह पूर्ण भूलों को सुधारने का काम कर अपने दायित्व का निर्वहन करे। सबसे दुखद बात है कि प्रदेश के तथाकथित बुद्धिजीवी भी इस मामले को प्रमुखता से उठाने के बजाय तमाशबीन बने है।
अभी तक ढ़ाई लाख करोड़ से अधिक के करार हो चुके हैं। इसमें प्र्र्र्रदेश के सभी 27 से अधिक निवेशक-अनुकूल नीतियां लागू की जायेगी प्रतिस्पर्धी प्रात्साहन, सब्सिडी और अनुकूल व्यावसायिक वातावरण के जरिये राज्य के निवेश में बढावा दिया जायेगा।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराखण्ड दौरे एवं वैश्विक निवेशक सम्मेलन के शुभारंभ समारोह हेतु की जा रही सभी तैयारियां की समीक्षा की।
करारों की ग्राउडिंग के लिए तेजी से कार्य किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में निवेश आने से स्थानीय लोगों के रोजगार में तेजी से वृद्धि होगी। राज्य में ऐसे करारों को शीर्ष प्राथमिकता दी जा रही है, जिनसे राज्य में रोजगार के अवसर बढ़े।
इस सम्मेलन के बारे में मुख्यमंत्री धामी ने कहा यह आयोजन राज्य के लिए बड़ी समिट है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए भी राज्य सरकार निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। हमारी सरकार निवेश के माध्यम से राज्य में रोजगार सृजन एवं स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने हेतु निरंतर कार्य कर रही है।
हमारा मानना है कि सरकार का यह सराहनीय कार्य है। प्रदेश में विनिवेश बढाने से विकास के रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। परन्तु सवाल यहां पर हमारा केवल इतना है कि राज्य गठन के 23 सालों में सरकारी आंकडों में प्रदेश के विकास के जो आसमानी दावे किये जा रहे है, उससे प्रदेश की स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर क्यों हो रही है। सरकारी दावे जनता व प्रदेश की धरातल पर क्यों नहीं दिखाई दे रहे हे। सरकारी आंकडे ही प्रदेश के इन दावों की हकीकत को बेनकाब कर रहे हे। राज्य गठन के इन 23 सालों में उतराखण्ड के पर्वतीय व सीमान्त जनपदों के गांव क्यों विरान हो रहे है। लाखों की संख्या में पलायन हो गया है। घर खेत बंजर पड गये है। प्रदेश के विकाश के नाम पर 13 में से मात्र 3-4 मेदानी जनपदों में चमक व पर्वतीय जनपदों में विरान क्यों है?पर्वतीय जनपदों में विद्यालय, चिकित्सालय व रोजगार के अभाव के साथ सरकारी तंत्र की उपेक्षा के कारण पर्वतीय जनपद के खेत खलिहान व घर गांव उजड रहे है।
राज्य गठन से पहले ही राज्य गठन के ध्वजवाहकों को इसकी आशंका थी कि राज्य गठन के बाद उतराखण्ड में भी तंत्र को संचालित करने वाली नौकरशाही व जनप्रतिनिधी भी विलासिता भरी लखनवी मानसिकता से अभ्यस्त प्रदेश के सीमान्त पर्वतीय जनपदों के प्रति पहले की तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर सोतेला व्यवहार करके पर्वतीय क्षेत्रों के बजाय देहरादून जैसे मैदानी क्षेत्रों में कुण्डली मार कर प्रदेश गठन की जनांकांक्षाओं पर ग्रहण लगा देंगे। ऐसी मानसिकता से ग्रसित नौकरशाही व जनप्रतिनिधियों को लोकशाही का पाठ पढाने व उतराखण्ड की जनभावनाओं का सम्मान करते हुये प्रदेश का समग्र चहुमुखी विकास करने के लिये ही प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को बनाने की सर्वसम्मति से गहन मंथन के बाद निर्णय लिया था। जिसे प्रदेश गठन से पूर्व अविभाजित उतरप्रदेश की सरकार ने अपनी मुहर लगाई थी। परन्तु राज्य गठन के बाद प्रदेश की भाजपा-कांग्रेस की सरकारों ने जिस बेशर्मी से प्रदेश के चहुमुखी विकास पर ग्रहण लगा दिया। उससे प्रदेश की दिशा व दशा दोनों पतन के गर्त में चली गयी। प्रदेश के दिशाहीन जनप्रतिनिधी व नौकरशाही जहां विलासिता व भ्रष्टाचार में आकंठ फंस गयी है। इससे प्रदेश में पर्वतीय क्षेत्र में विकास की किरणों से रोशन होने के बजाय पलायन, घुसपेठ व प्राकृतिक आपदाओं की विपदाओं से कहार रहा है।
भारी जनदवाब में आकर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाली राजधानी गैरसैंण में देश का सबसे मनोहारी विधानसभा भवन वर्षों पहले बन चूका है। इसमें बजट, ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन सत्र सहित सभी महत्वपूर्ण सत्र हो चूके है। अरबों रूपये से बनी इस विधानसभा भवन में सुचारू रूप से विधानसभा सत्र संचालित होने के बाद भी प्रदेश के पंचतारा सुविधाभोगी हुक्मरान देहरादून में डेरा डाले रहने के मोह में गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित नहीं कर रहे है। देहरादून में ही पंचतारा विलासिता को भोगने के मोह में रह कर ये अपने दिल्ली के आकाओं को खुश करने के लिये गैरसैंण को शीतकालीन राजधानी घोषित करा कर देहरादून में फिर से अरबों रू का विधानसभा भवन इत्यादि भवन बनाने का षडयंत्र कर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने का काम कर रहे है।
प्रदेश के इन दिशाहीन हुक्मरानों की इसी कुनीति के कारण ये उतराखण्डियों की राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने, सीमांत प्रांत की सुरक्षा के लिये यहां भू-मूल निवास को हिमाचल की तर्ज पर लागू करने व प्रदेश के युवाओं को रोजगार प्रदान करने के साथ प्रदेश के हक हकूकों के प्रति जनभावनाओ के अनरूप नजरिया रखने का त्वरित निर्णय लेने के बजाय इन्होने इसके खिलाफ कार्य किया। अपने दुराग्रह के लिये प्रदेश में बलात भूगोल बदलने के साथ उपरोक्त सभी जनांकांक्षाओं को रौंद कर देहरादून में डेरा डाला गया। इनके उतराखण्ड विरोधी मनोवृति के कारण प्रदेश में बलात जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोपा गया। इसके साथ यहां पलायन, घुसपेठ व सरकार की पहाड विरोधी मनोवृति के कारण जोशीमठ व उतरकाशी जैसी विकराल त्रासदी झेलनी पड रही है। बिना सुरक्षा मापदण्डों का अक्षरशः पालन करने के कारण प्रदेश में टिहरी सहित अनैक विशालकाय बांधों व सेकडों जन विद्युत परियोजनाओं से लाखों लोगों को विस्थापन कराया जा रहा है। टिहरी जैसे बांध का लाभ उतराखण्ड के बजाय उप्र व केंद्र सरकार को बलात मिल रहा है। प्रदेश के हक हकूकों के प्रति यहां की सरकारें मूक है। इसके साथ प्रदेश सरकार ने न तो यहां व जनभावनाओं के तहत वन व जंगली जानवरों के कानून को बनाया। इससे प्रदेश में भारी नुकसान उठाना पड रहा है। प्रदेश के जनप्रतिनिधियों खासकर मुख्यमंत्रियों व विधानसभाध्यक्षों के साथ नौकरशाही ने प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने के बजाय अपने प्यादों को भर कर प्रदेश को गहरी निराशा के गर्त में धकेल दिया है। प्रदेश में जनहितों व समाजसेवा में दशको से लगे जनप्रतिनिधियों के बजाय भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली आका यहां पर उतराखण्ड विरोधी, समाजसेवा में अनुभवहिन व अपने जनता द्वारा ठुकराये गये प्यादों को प्रदेश का भाग्य विधाता बना दिया है। इसके कारण यह हिमाचल की तर्ज पर विकास की कूचालें भर सकने वाला उतराखण्ड आज देश में घुसपेठियों, अपराधियों का अभ्यारहण बन चूका है। प्रदेश सरकारें जनभावनाओं के अनुरूप काम नहीं किया इसके कारण यहां हल्द्धानी, देहरादून आदि घुसेपेठ की विकराल समस्या को झेलने के लिये विवश हो गया है। अगर सरकारें समय पर यहां राजधानी गैरसैंण,, भू-मूल निवास कानून बनाती तो आज प्रदेश को घुसपेठ कर समस्या से नहीं जुझना पडता। सत्ता के मोह में उतराखण्ड की शांत वादियों को घुसपेठियों का अभ्यारण बनाने को उतारू राजनैतिक दल उतराखण्ड को कश्मीर से बदतर बना कर छोड़ेंगे। जिस प्रकार से पूरे सीमांत प्रदेश में घुसपेठ हो रही है, चारधाम यात्रा मार्ग हरिद्वार से रिषिकेश आदि में जिस प्रकार से खानपान व यात्रा से संबध चीजों पर षडयंत्र के तहत काबिज हो रहे है। इस पर अंकुश लगाने वाला सरकारी तंत्र पूरा उदासीन है।
इससे हमारा प्रधानमंत्री मोदी से एक ही अनुरोध है कि ये निवेश सम्मेलन का स्वागत है परन्तु प्रदेश की सरकारों की दिशाहीनता के कारण आज यह चीन की सीमा से लगे सीमांत प्रांत उतराखण्ड घुसपेठियों व अपराधियों का अभ्यारण बन चूका है। अगर प्रांत की सरकार बिना दुराग्रह के प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर राजधानी गैरसैंण, भू-मूल निवास से समय पर आत्मसात करती तो आज प्रदेश में हल्द्धानी व देहरादून आदि शहरों की विकराल समस्या से नहीं झुझना पडता। गृहमंत्री अमित शाह भले ही इसी शीतकालीन संसद सत्र को संबोधित करते हुये सही कह रहे थे कि नेहरू की भयंकर भूलों से कश्मीर समस्या बनी हुई है। ऐसे ही उतराखण्ड में यहां के भाजपा व कांग्रेस के सत्तासीन नेहरूओं की वजह से प्रदेश आज कश्मीर सा बन गया है। यहां पर समान नागरिक संहिता के अधिक जरूरी है राजधानी गैरसैंण, हिमाचल की तर्ज पर मूल निवास -भू कानून । इसके बिना यहां न प्रदेश का समग्र विकास होगा व शांत वादियांं में अमन चैन स्थापित होगा। इसलिये देश के हुक्मरानों को चाहिये कि यहा ंपर की जा रही दुराग्रह पूर्ण भूलों को सुधारने का काम कर अपने दायित्व का निर्वहन करे। सबसे दुखद बात है कि प्रदेश के तथाकथित बुद्धिजीवी भी इस मामले को प्रमुखता से उठाने के बजाय तमाशबीन बने है।