हिमाचल व उतराखण्ड मेें बादल फटने, अतिवर्षा व भूस्खलन से मची भारी तबाही, 300 से अधिक लोग मरे , 11000 मकान ढहे
देवसिंह रावत
इस वर्षा के मौसम में विनासकारी वर्षा से जहां देश सहित पूरे विश्व में भारी तबाही मची हुई है। वहीं हिमालयी राज्य हिमाचल व उतराखण्ड में जिस प्रकार से अतिवर्षा, बादल फटने के कारण भूस्खलन से हो रही प्रलंयकर त्रासदी को देख कर पूरा देश स्तब्ध व सहमा हुआ है। इस तबाही के दंश की चित्कार से हिमालयी राज्यों के अलावा पूरे देश में सुनाई दे रही है। 16 अगस्त को मेरी देश की राजधानी दिल्ली में संसद की देहरी पर स्थित प्रेस क्लब में देश के प्रमुख चिंतक व भाजपा नेता जगदीश मंमगाई व अनैक पत्रकार साथियों से इस त्रासदी पर गहन चर्चा हुई। इस अनौपचारिक चर्चा में इस त्रासदी पर अपना विचार प्रकट करते हुये श्री मंमगाई ने कहा कि उतराखण्ड के लिये सर्वकालीन सडक मार्ग(आल वेदर रोड) काफी विनाशकारी साबित हो रही है। श्री मंमगाई ने सर्वकालीन सडक मार्ग का अंधाधुंध कटाव इस हिमालयी क्षेत्र के लिये विनाशकारी भूस्खलन के कारक साबित हो रहा है। श्री मंमगाई न चीन से लगी इस मोटर मार्ग का चैडीकरण देश की सुरक्षा के लिये निर्माण के तर्कों को सिरे से नकार दिया।
श्री मंमगाई ने कहा कि जिस प्रकार प्रदेश के टिहरी बांध आदि जल संसाधनों पर राज्य निर्माण के 23 सालों बाद भी सर्वोच्च न्यायालय के उतराखण्ड के पक्ष में आये फैसले को भी प्रदेश की सरकारें अपने कर्तव्य का पालन भी नहीं कर पा रही है। इससे प्रदेश की सरकारों के प्रदेश के प्रति उदासीनता की उजागर होती है। श्री मंमगाई ने कहा कि कि जिस प्रकार सरकारों का नजरिया जन व देश प्रदेश कल्याण नहीं रह गया हे। उससे इस प्रकार की आपदाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। इसके लिये जनता व जनप्रतिनिधियों को सजग व एकजूट होना चाहिये।
इस विनाश की खबरों के अनुसारइस विनाशकारी वरसात में हिमाचल में 214-उत्तराखंड में 52 मौतें, 11000 से अधिक मकान तबाह… हो गये। हजारों करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान हो चूका है।हिमाचल में 24 जून से अब तक 214 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि 38 लोग लापता हैं. राज्य में बारिश-भूस्खलन से जुड़ी घटनाओं में 10 हजार घरों को नुकसान को नुकसान पहुंचा है. वहीं, उत्तराखंड में मॉनसून आने के बाद से अब तक 52 लोगों की मौत हुई है. जबकि 19 लोग लापता हैं. राज्य को करीब 650 करोड़ रुपये का नुकसान होने का आंकलन किया गया।
हिमाचल में शिमला, सोलन समेत कई जिलों में भूस्खलन से भारी तबाही हुई। शिमला में समर हिल में शिवमंदिर,फगली और कृष्णानगर भूस्खलन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. राज्य में बारिश और भूस्खलन से तीन दिन में ही छह दर्जन लोगों की मौत हुई है. जबकि दो दर्जन के करीब लोग लापता हैं.।
हिमाचल में कृष्णानगर भूस्खलन से करीब 8 घर एक के बाद एक कर ढह गए थे। इसका वीडियो देख कर पूरा देश सहमा हुआ है।
मोसम विभाग के सुत्रों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में इस साल मानसून के 54 दिनों में 742 मिमी बारिश हो चुकी है, जबकि 1 जून से 30 सितंबर के बीच इस मौसम में औसत 730 मिमी बारिश होती है.। हिमाचल के मंडी, कुल्लू, शिमला में भारी तबाही मची। इससे विकास का पूरा आधारभूत ढांचा तहस नहस हो गया।
हिमाचल के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की गुहार लगाई। यहां पर बचाव कार्य में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल सहित शासन प्रशासन दिन रात जुटा हुआ है। हिमाचल के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की गुहार लगाई। यहां पर बचाव कार्य में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल सहित शासन प्रशासन दिन रात जुटा हुआ है।
श्री मंमगाई ने कहा कि जिस प्रकार प्रदेश के टिहरी बांध आदि जल संसाधनों पर राज्य निर्माण के 23 सालों बाद भी सर्वोच्च न्यायालय के उतराखण्ड के पक्ष में आये फैसले को भी प्रदेश की सरकारें अपने कर्तव्य का पालन भी नहीं कर पा रही है। इससे प्रदेश की सरकारों के प्रदेश के प्रति उदासीनता की उजागर होती है। श्री मंमगाई ने कहा कि कि जिस प्रकार सरकारों का नजरिया जन व देश प्रदेश कल्याण नहीं रह गया हे। उससे इस प्रकार की आपदाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। इसके लिये जनता व जनप्रतिनिधियों को सजग व एकजूट होना चाहिये।
इस विनाश की खबरों के अनुसारइस विनाशकारी वरसात में हिमाचल में 214-उत्तराखंड में 52 मौतें, 11000 से अधिक मकान तबाह… हो गये। हजारों करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान हो चूका है।हिमाचल में 24 जून से अब तक 214 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि 38 लोग लापता हैं. राज्य में बारिश-भूस्खलन से जुड़ी घटनाओं में 10 हजार घरों को नुकसान को नुकसान पहुंचा है. वहीं, उत्तराखंड में मॉनसून आने के बाद से अब तक 52 लोगों की मौत हुई है. जबकि 19 लोग लापता हैं. राज्य को करीब 650 करोड़ रुपये का नुकसान होने का आंकलन किया गया।
हिमाचल में शिमला, सोलन समेत कई जिलों में भूस्खलन से भारी तबाही हुई। शिमला में समर हिल में शिवमंदिर,फगली और कृष्णानगर भूस्खलन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. राज्य में बारिश और भूस्खलन से तीन दिन में ही छह दर्जन लोगों की मौत हुई है. जबकि दो दर्जन के करीब लोग लापता हैं.।
हिमाचल में कृष्णानगर भूस्खलन से करीब 8 घर एक के बाद एक कर ढह गए थे। इसका वीडियो देख कर पूरा देश सहमा हुआ है।
मोसम विभाग के सुत्रों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में इस साल मानसून के 54 दिनों में 742 मिमी बारिश हो चुकी है, जबकि 1 जून से 30 सितंबर के बीच इस मौसम में औसत 730 मिमी बारिश होती है.। हिमाचल के मंडी, कुल्लू, शिमला में भारी तबाही मची। इससे विकास का पूरा आधारभूत ढांचा तहस नहस हो गया।
हिमाचल के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की गुहार लगाई। यहां पर बचाव कार्य में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल सहित शासन प्रशासन दिन रात जुटा हुआ है। हिमाचल के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की गुहार लगाई। यहां पर बचाव कार्य में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल सहित शासन प्रशासन दिन रात जुटा हुआ है।
बयान में हिमाचल के मुख्यमंत्री ने मकान के ढहने के लिए यांत्रिकी दोष के साथ परंपरागत ढंग से मकान नं बनाने को भी जिम्मेदार माना।
वहीं उतराखण्ड के सीमांत जनपद चमोली के हेलंग में इसी सप्ताह रात के 9 बजे हुये भूस्खलन से एक कमकान में के जमीदोज होने से उसमें रहने वाले 7 लोग इसकी चपेट में आ गये। इसमें 5 लोगों को बचा लिया गया परन्तु 2 ोग काल कल्वित हो गये। वहीं थराली विधानसभा क्षेत्र में भी अतिवर्षा ने अपने विध्वंश की छाप छोेड रखी है। दूसरी तरफ विकासनगर तहसील के जाखन गांव में बुद्धबार दोपहर को हुये भूस्खलन से 9 मकान व 7 गोशालायें जमीदोज हो गयी। इस गांव से उपर से गुजरने वाली सडक के धंसने के खतरे को देखते हुये इस गांव को खाली करा कर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शरण दी गयी। जिससे जान के नुकसान होने से बचाव किया गया। इसके अलावा प्रदेश में देहरादून, गौरीकुण्ड,मोहन चट्टी व रिषिकेश लक्ष्मण झूले क्षेत्र के जोगीयाणा में आयी तबाही में लापता हुये लोगों के शव बरामाद किये गये। रिषिकेश लक्ष्मण झूले पुलिस क्षेत्र में यमकेश्वर विकासखण्ड के जोगीयाणा गांव में नाइट लाइफ पैराडाइज केंप में आये मलवे की चपेट में एक परिवार के छह लोग जमीदोज हो गये। तुरंत प्रशासन के बचाव करने से 10 साल की बालिका तो बचा लिया गया परन्तु परिवार के अन्य पांच लोगों के शव दो दिन के बचाव अभियान के बाद मिले।
डा एमपीएस बिष्ट सहित भू वैज्ञानिकों ंको मानना है कि आपदा से निपटने के लिये राज्य में भवनों के निर्माण से पहले जमीन की जांच अनिवार्य रूप से की जाय। इसके साथ प्रदेा के हिमालयी राज्यों में पर्वतीय क्षेत्र हो या मैदान यहां निरंतर बसावत का दवाब बढ रहा है। जगह सीमित होने के कारण लोग गाढ़ गदेरे,धारों व नदियों के आसपास असुरक्षित जगहों पर भी भवनादि निर्माण कर रहे है। प्रशासन इस खतरे के प्रति उदासीन रहता है।
यही नहीं स्वयं सरकारें भी भू वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों द्वारा हिमालयी क्षेत्र को भूकंप आदि आपदाओं के लिये संवेदनशील क्षेत्र माने जाने के बाबजूद तमाम चेतावनियों को नजरांदाज कर यहां विकास के नाम पर बडे बांध, जल विद्युत परियोजना, सुरंगे, मोटर मार्गो का अंधाधुध चोडीकरण आदि निर्माण कार्य कर रही है। इसमें प्रायः यहां के भूगर्भिय संरचनाओं को नकार कर विभिन्न परियोजनाओं को संचालित कर रही है। इससे जोशीमठ व अतिवृष्टि के समय भूस्खलन आदि से हो रही त्रासदी का दंश आम जनता को जुझना पड़ता है। परन्तु आम जनता के विकास आदि कार्यो में यही प्रशासन पर्यावरण आदि के नियमों का आईना आम जनता के विकास को अवरूद्व करने का काम करता है। जनता इससे वेहद हैरान होती है कि ये पर्यावरण के मानक प्रदेश में बनने वाले विनाशकारी विशाल बांधों व अन्य परियोजनाओं के समय शासन को क्यों नजर आते है। इसके साथ इन परियोजनाओं में विकास के नाम सुरक्षा मानकों व पर्यावरण मानकों का खुला उल्लंधन किया जाता है। सबसे हैरानी यह है कि एक त्रासदी के बाद सरकार जनता के आक्रोश व आंखों में धूल झोंकने के लिये समितियों का निर्माण करती है। पर इन समितियों के सुझाव पर सरकार कभी अमल तक नहीं करती। जिस प्रकार से जोशीमठ त्रासदी के समय 5 दशक पहले एक उच्च स्तरीय समिति ने इस कस्बे की रक्षा के लिये यहां बसावत के लिये नियम बनाने, जल आदि निकासी का उचित प्रबंधन करने सहित इस संवेदनशील क्षेत्र में प्रकृति से खिलवाड करने वाली परियोजनाओं को दूर रखने का सुझाव दिया था। जिसका खुले आम उल्लंधन सरकार द्वारा विभिन्न परियोजनाओं, सुरंगों व यहां पर अनियोजित बसावत का भारी दवाब इस संवदेनशील क्षेत्र में डाला गया। जिसका नतीजा यहां पर प्रकृति द्वारा विनाश के संकेत साफ दिये जा रहे है। सरकारेंों को चाहिये की इस गंभीर आपदा से सबक लेकर इस संवेदनशील हिमालयी राज्यों में तत्कालीन लाभ के लिये यहां के पर्यावरण व जान माल से खिलवाड करने की हटधर्मिता त्याग कर विशेषज्ञ समितियों के सुझावों को साकार कर इस त्रासदी से उबरने का स्थाई प्रबंध करे। अन्यथा हर साल यहां ऐसी ही त्रासदी झेलने के लिये अभिशापित होना पडेगा। खासकर बादल फटने की घटना गतवर्ष उतराखण्ड में अधिक हुये वहीं इस साल हिमाचल मे। यहां पर बढ़ रही बादल फटने, भूस्खलन व गैर जिम्मेदारी सेे गाढ गदेरे-नदियों के किनारे बनाये गये मकानों के ढहने की घटनाओं से हो रही विनाशकारी तबाही पर गंभीरता से चिंतन मंथन कर अंकुश लगाना होगा।
वहीं उतराखण्ड के सीमांत जनपद चमोली के हेलंग में इसी सप्ताह रात के 9 बजे हुये भूस्खलन से एक कमकान में के जमीदोज होने से उसमें रहने वाले 7 लोग इसकी चपेट में आ गये। इसमें 5 लोगों को बचा लिया गया परन्तु 2 ोग काल कल्वित हो गये। वहीं थराली विधानसभा क्षेत्र में भी अतिवर्षा ने अपने विध्वंश की छाप छोेड रखी है। दूसरी तरफ विकासनगर तहसील के जाखन गांव में बुद्धबार दोपहर को हुये भूस्खलन से 9 मकान व 7 गोशालायें जमीदोज हो गयी। इस गांव से उपर से गुजरने वाली सडक के धंसने के खतरे को देखते हुये इस गांव को खाली करा कर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शरण दी गयी। जिससे जान के नुकसान होने से बचाव किया गया। इसके अलावा प्रदेश में देहरादून, गौरीकुण्ड,मोहन चट्टी व रिषिकेश लक्ष्मण झूले क्षेत्र के जोगीयाणा में आयी तबाही में लापता हुये लोगों के शव बरामाद किये गये। रिषिकेश लक्ष्मण झूले पुलिस क्षेत्र में यमकेश्वर विकासखण्ड के जोगीयाणा गांव में नाइट लाइफ पैराडाइज केंप में आये मलवे की चपेट में एक परिवार के छह लोग जमीदोज हो गये। तुरंत प्रशासन के बचाव करने से 10 साल की बालिका तो बचा लिया गया परन्तु परिवार के अन्य पांच लोगों के शव दो दिन के बचाव अभियान के बाद मिले।
डा एमपीएस बिष्ट सहित भू वैज्ञानिकों ंको मानना है कि आपदा से निपटने के लिये राज्य में भवनों के निर्माण से पहले जमीन की जांच अनिवार्य रूप से की जाय। इसके साथ प्रदेा के हिमालयी राज्यों में पर्वतीय क्षेत्र हो या मैदान यहां निरंतर बसावत का दवाब बढ रहा है। जगह सीमित होने के कारण लोग गाढ़ गदेरे,धारों व नदियों के आसपास असुरक्षित जगहों पर भी भवनादि निर्माण कर रहे है। प्रशासन इस खतरे के प्रति उदासीन रहता है।
यही नहीं स्वयं सरकारें भी भू वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों द्वारा हिमालयी क्षेत्र को भूकंप आदि आपदाओं के लिये संवेदनशील क्षेत्र माने जाने के बाबजूद तमाम चेतावनियों को नजरांदाज कर यहां विकास के नाम पर बडे बांध, जल विद्युत परियोजना, सुरंगे, मोटर मार्गो का अंधाधुध चोडीकरण आदि निर्माण कार्य कर रही है। इसमें प्रायः यहां के भूगर्भिय संरचनाओं को नकार कर विभिन्न परियोजनाओं को संचालित कर रही है। इससे जोशीमठ व अतिवृष्टि के समय भूस्खलन आदि से हो रही त्रासदी का दंश आम जनता को जुझना पड़ता है। परन्तु आम जनता के विकास आदि कार्यो में यही प्रशासन पर्यावरण आदि के नियमों का आईना आम जनता के विकास को अवरूद्व करने का काम करता है। जनता इससे वेहद हैरान होती है कि ये पर्यावरण के मानक प्रदेश में बनने वाले विनाशकारी विशाल बांधों व अन्य परियोजनाओं के समय शासन को क्यों नजर आते है। इसके साथ इन परियोजनाओं में विकास के नाम सुरक्षा मानकों व पर्यावरण मानकों का खुला उल्लंधन किया जाता है। सबसे हैरानी यह है कि एक त्रासदी के बाद सरकार जनता के आक्रोश व आंखों में धूल झोंकने के लिये समितियों का निर्माण करती है। पर इन समितियों के सुझाव पर सरकार कभी अमल तक नहीं करती। जिस प्रकार से जोशीमठ त्रासदी के समय 5 दशक पहले एक उच्च स्तरीय समिति ने इस कस्बे की रक्षा के लिये यहां बसावत के लिये नियम बनाने, जल आदि निकासी का उचित प्रबंधन करने सहित इस संवेदनशील क्षेत्र में प्रकृति से खिलवाड करने वाली परियोजनाओं को दूर रखने का सुझाव दिया था। जिसका खुले आम उल्लंधन सरकार द्वारा विभिन्न परियोजनाओं, सुरंगों व यहां पर अनियोजित बसावत का भारी दवाब इस संवदेनशील क्षेत्र में डाला गया। जिसका नतीजा यहां पर प्रकृति द्वारा विनाश के संकेत साफ दिये जा रहे है। सरकारेंों को चाहिये की इस गंभीर आपदा से सबक लेकर इस संवेदनशील हिमालयी राज्यों में तत्कालीन लाभ के लिये यहां के पर्यावरण व जान माल से खिलवाड करने की हटधर्मिता त्याग कर विशेषज्ञ समितियों के सुझावों को साकार कर इस त्रासदी से उबरने का स्थाई प्रबंध करे। अन्यथा हर साल यहां ऐसी ही त्रासदी झेलने के लिये अभिशापित होना पडेगा। खासकर बादल फटने की घटना गतवर्ष उतराखण्ड में अधिक हुये वहीं इस साल हिमाचल मे। यहां पर बढ़ रही बादल फटने, भूस्खलन व गैर जिम्मेदारी सेे गाढ गदेरे-नदियों के किनारे बनाये गये मकानों के ढहने की घटनाओं से हो रही विनाशकारी तबाही पर गंभीरता से चिंतन मंथन कर अंकुश लगाना होगा।