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छावला नजफगढ दिल्ली की दामिनि की हत्या-दुष्कर्म के मामले में पुनर्विचार याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द करने से पूरा देश स्तब्ध

यह कैसा लोकतंत्र व न्याय प्रणाणी, जहां फरियादी अपनी फरियाद तक नहीं सुना सकता व गुनाहगारों का संरक्षण किया जाता-पीडिता के परिजन
 
देवसिंह रावत-सर्वोच्च न्यायालय ने इसी सप्ताह छावला नजफगढ दिल्ली क्षेत्र की 19 वर्षीय युवती के साथ सामुहिक दुराचार व जघन्य हत्या के मामले में रिहा करने के खिलाफ दायर की गयी पुनर्विचार याचिकाओं  (अपराधिक) न 56-60/2023 में अपराधिक अपील न 611-615/2022 को खारिज कर दी। इन पुनर्विचार याचिकाओं को रद्द करते हुये भारत प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड,एस रविन्द्र भट व बेला एम त्रिवेदी की खण्ड पीठ ने कहा कि इन आरोपियों को रिहा करने के वाले मामले में पूर्व में दिये गये फैसले व सम्बंधित दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद हमें कोई तथ्यात्मक या कानूनी त्रुटी नजर नहीं आती। इस मामले में दर्ज पुनर्विचार याचिकाओं को रद्द करते हुये पीठ ने कहा कि फैसला सुनाये जाने के बाद अगर कोई घटना हुई भी, जिसका मौजूदा मामले से कोई संबंध नही है, तो वह समीक्षा याचिकाओं पर विचार करने का आधार नहीं होगी। इस मामले में याचिका दाखिल करने वालों में  पुनर्विचार याचिकाओं  (अपराधिक) न 56-60/2023 में  61/2023- अपराधिक अपील 611/2022 कुंवर सिंह नेगी बनाम दिल्ली राज्य व अन्य, डयारी न. 40179/2022 योगिता भयाना बनाम दिल्ली राज्य व अन्य, डायरी न 39804/2022 उतराखण्ड बचाओ आंदोलन  बनाम  राहुल व अन्य, डायरी न 40293/2022  उतराखण्ड लोक मंच बनाम राहुल व अन्य। इस पुनर्विचार याचिकाओं को रद्द करते हुये अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि ऐसे व्यक्ति की याचिका जो आपराधिक कार्यवाही में पक्षकार  नहीं था, विचारणीय नहीं है।
गौरतलब है कि 9फरवरी 2012 की रात को दिल्ली जनफगढ छावला क्षेत्र में अपने परिवार के साथ रहने वाली युवती रात को जब नौकरी से अपने निवास लौट रही थी तो छावला इलाके में पैदल अपने घर की तरफ जा रही युवती को  आरोपियों ने जबरन अपहरण कर अपनी कार में ले भागे। इस प्रकरण के कुछ दिन बाद युवती की लांश हरियाणा प्रदेश के रेवाडी जनपद के एक खेत में मिली। इस जघन्य कांड के विरोध में हजारों की संख्या में आक्रोशित लोगों ने दिल्ली पुलिस व गृहमंत्री का ध्यान आकृष्ठ करने के लिये संसद की चौखट पर मशाल जलूस, धरना प्रदर्शन आयोजित किया। इस मामले में भारी जनाक्रोश को देखते हुये त्वरित न्यायालयों में यह मामला चला। इस मामले में जांच अदालत व दिल्ली उच्च न्यायालय ने तीन आरोपियों को दोषी करार देते हुये तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त 2014 में ही निचली अदालत द्वारा इस विभत्स दुराचार व हत्याकाण्ड के सामुहिक हैवानों को दी गई  मौत की सजा को न्यायोचित मानते हुये उसी फैसले को अपनी मुहर लगा दी।
इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला 2014 से 2022 तक लटका रहा। इस मामले में हो रहे बिलम्ब से आक्रोशित जनता ने सर्वोच्च न्यायालय व संसद की चौखट पर कई बार  गुनाहगारों को त्वरित सजा देने की मांग की। परन्तु इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्षों तक जनता की फरियाद को  नजरांदाज करना, जनता को न्यायोचित नहीं लगा। क्योंकि दिल्ली दामिनि का प्रकरण में जिस तेजी से गुनाहगारों को सजा दी गयी थी, वह तेजी दिल्ली नजफगढ छावला की पीड़िता के मामले में कहीं दूर दूर तक देखने में नहीं आयी। इतने सालों तक इस काण्ड के गुनाहगारों को एक प्रकार से अभयदान क्यो? इसी प्रश्न को लेकर इस काण्ड का दिल्ली दामिनि काण्ड से भी अधिक जघन्य मानने वाले लोगों के गले नहीं उतरी।
जहां दिल्ली दामिनी की निर्मम हत्या प्रकरण नजफगढ़ की दामिनी 9 फरवरी 2012 के प्रकरण से 7 महीने बाद यानी 16 दिसंबर 2012 को घटित हुआ। 23 वर्षीय दिल्ली की दामिनी को देर रात बस से अगवा करके जहां उसके साथ दुराचार किया गया वहीं उसकी जगह हत्या भी की गई। इस जघन्य कांड के खिलाफ पूरे देश में भारी जन आंदोलन छिड़ गया था राष्ट्रपति भवन के सम्मुख से लेकर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर कई महीनों तक आंदोलन की धमक से सरकार एवं व्यवस्थाएं सहमति गई थी इसी जन दबाव में त्वरित अदालत में यह मामला चला इस मामले में भी नजफगढ़ की दामिनी के हत्यारों की तरह की सजा ए मौत की सजा 2014 ने  दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुना दी थी। दिल्ली दामिनी में जहां से अपराधी थे वही छावला नजफगढ़ की दामिनी में तीन आरोपी को फांसी की सजा हुई। दिल्ली दामिनी के एक अपराधी द्वारा आत्महत्या किए जाने एक मुख्य अभियुक्त को तिकड़म से नाबालिक मानकर फांसी की सजा से वंचित रखा गया। दिल्ली छावला दामिनी की तरह दिल्ली की दामिनी के आरोपियों ने भी 2014 में ही सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दी गई फांसी की सजा के खिलाफ गुहार लगाई थी। भारी जन दबाव के कारण जहां दिल्ली दामिनी के अपराधियों को सर्वोच्च न्यायालय ने  2017 मैं ही दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर अपनी मोहर लगाकर गुनहगारों की फांसी की सजा बरकरार रखी। दिल्ली दामिनी के गुनाहगारों को 7 साल 3 महीने 3 दिन में ही सजा मिल गई थी। वहीं दिल्ली की दामिनी के आरोपियों को न्याय देने में यानी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर अपना फैसला देने में वर्षों लग गये यानी 7 नवंबर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फांसी की सजा को पलटते हुए आरोपियों को बरी कर दिया था। आखिर सवाल यह है कि जब त्वरित न्यायालय में चले वाद को  8 साल तक लटकाकर गुनाहगारों को एक प्रकार से जीवन दान देने का कृत्य क्यों किया गया?
अगर वह निर्दोष से गुनहगार तो उनको इतनी लंबे समय तक जेल में क्यों रखा गया और अगर वह हत्या हुई तो उस हत्या के गुनाहगार कौन है ?इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को गुनहगारों को पकड़ने के लिए निर्देश क्यों नहीं दिये।
आखिर सर्वोच्च न्यायालय की यह देरी से लोगों को यह आभास होने लग गया था कि शायद ही गुनाहगारों को न्यायालय सजा देगी। लोगों की आशंका सच साबित तब हुई जब इस मामले में फैसला आया। 7 नवम्बर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने निचली व उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराते हुये मौत की सजा पाये हुये गुनाहगारों को मुक्त करने का फैसला दिया तो पीडिता के असहाय परिजनों के साथ न्यायालय पर विश्वास करने वाली देश की 138 करोड़ की जनता की आशाओं पर बज्रपात हुआ। सर्वोच्च न्यायाल ने इस मामले में पुलिस की जांच व जांच अदालत  के निर्णय पर प्रश्न उठाते हुये संदेह का लाभ जघन्य काण्ड के लिये उच्च न्यायालय से भी फांसी की सजा पाये गुनाहगारों को पर्याप्त सबूतों के अभाव में  उनको बरी कर दिया।
वहीं सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से गुनाहगारों का मनोबल बढ़ गया। ऐसा मनोबल बढ़ा कि जेल से रिहा होने के चंद दिनों बाद ही एक निर्दोष व्यक्ति की निर्मम हत्या कर डाली। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के विरोध में संसद की चौखट से लेकर दिल्ली सहित देश के अनैक शहरों में धरना प्रदर्शन हुआ। इस मामले में अनैक सामाजिक संगठनों ने भी नजफगढ छावला की पीडिता के गरीब माता पिता की स्थिति देखते हुये, इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करने का काम किया। उतराखण्ड समाज ने इस मामले में गढवाल भवन दिल्ली मेें बडी बैठक की। इसमें गढवाल हितैषिणी सहित तमाम संगठनों ने दिल्ली अधिवक्ता संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी अधिवक्त संदीप शर्मा की अध्यक्षता में एक कानून सहायता समिति का गठन करते  हुये निर्णय लिया कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। इसके साथ अन्य संस्थाओं ने भी सर्वोच्च न्यायालय में यह पुनर्विचार याचिका दाखिल की।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले व उसके बाद पुनर्विचार याचिका को रद्द करने के निर्णय से कानून पर विश्वास करने वाले लोगों को गहरा आघात लगा। इसका अहसास पीडिता के परिजनों व देश में सर्वोच्च न्यायालय में इन दिनों कठोर सजा देने से बचने की प्रवृति को देख कर इस बात की आशंका थी कि शायद ही सर्वोच्च न्यायालय पीडिता को न्याय दे पायेगा। इसी आशंका के चलते इस प्रकरण पर न्याय की गुहार लगाने के लिये पीडिता के परिजन सहित आम सामाजिक संगठन संसद की चौखट पर कई बार आंदोलन कर चूूके हैं। वहीं सबसे हैरानी की बात यह है कि इस प्रकरण पर न्याय की सतत गुहार लगाने से दिल्ली पुलिस जंतर मंतर पर इस काण्ड की पीडिता के परिजनों को रोक रही है। न्याय की आश में दर दर भटक रहे छावला नजफगढ दिल्ली की दामिनि के परिजन न केवल निराश है अपितु आक्रोशित भी है कि इस देश में यह कैसा लोकतंत्र व न्याय प्रणाणी, जहां फरियादी अपनी फरियाद तक नहीं सुना सकता व गुनाहगारों का संरक्षण किया जाता।

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