आक्रांताओं का स्मरण/गौरवान्वित करने वाले नाम मिटाना है जरूरी
प्यारा उतराखण्ड डाट काम
भले ही भारत सरकार ने 74वें गणतंत्र दिवस के चंद दिन के अंदर ही राष्ट्रपति भवन में बने सुन्दर बाग मुगल गार्डन’ का नाम बदल कर आजादी के अमृतमहोत्व काल का स्मरण कराने वाला नामकरण कर इसे ’अमृत उद्यान’ कर दिया है।
पर 75 साल देर बाद उठाये इस सराहनीय कदम को भी गुलाम मानसिकता व भारतीय संस्कृति विरोधी लोेग खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पा रहे है। वे इसमें तमाम मीन मेख निकाल कर खुद को बेनकाब कर रहे हैं।
आज 29 जनवरी 2023 को राष्ट्रपति ने अमृत उद्यान को 31 जनवरी 2023 से 26 मार्च 2023 तक देश की आम जनता के लिए खोलने की घोषणा की। आज ही के दिन दिल्ली नगर पालिका के कर्मचारियों ने इस उद्यान के बाहर लगे मुगल गार्डन के नाम पट उठा उतार कर अमृत उद्यान नाम वाले पट लगा दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से देश को अपने संबोधन में यह वचन दिया था कि उनकी सरकार देश में विद्यमान गुलामी के प्रतीकों से मुक्त करेगी। इसी के तहत सरकार ने यह कदम भी उठाया।
मोदी सरकार द्वारा अमृत उद्यान का नामकरण करने वाले कदम का खुला स्वागत करते हुये देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिये वर्षों से सतत् ऐतिहासिक संघर्ष करने वाले भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा ‘होना तो यह चाहिये था कि अंग्रेजों से मुक्ति के तुरंत बाद 1947 में ही देश से भारत के दुश्मन रहे आक्रांताओं द्वारा थोपे गये नाम, भाषा, शासन,शिक्षा, चिकित्सा, न्याय पद्धतियों को हटा कर भारतीयकरण करना चाहिये था। भारत व भारतीय संस्कृति विरोधी रहे आक्रांताओं व अत्याचारियों सभी नाम, इतिहास, व्यवस्था जिससे उनको गौरवांन्वित करने वाले प्रतीकों की कलुषित छाया व स्मरण से देश के वर्तमान व भविष्य को मुक्त किया जाना चाहिये था।’
परंतु दुर्भाग्य है कि अंग्रेजों से मुक्ति के 75 साल बाद आज भी जब भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव भी मना रहा है उस समय भी देश का नाम भारत के स्थान पर अंग्रेजों द्वारा छुपा दिया इंडिया व भारत की भाषाओं की जगह पर अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का शर्मनाक राज चल रहा है। देश की शर्मनाक स्थिति है कि यहां शिक्षा रोजगार न्याय शासन सब अंग्रेजी भाषा के लिए आरक्षित है। इसीलिए भारतीय भाषा आंदोलन देश की सरकारों से देश में शिक्षा रोजगार शासन में भारतीय भाषाएं लागू करने व देश का नाम इंडिया किस स्थान पर केवल भारत करने की पुरजोर मांग कर रहा है। परंतु सरकार लोकतांत्रिक ढंग से शांतिपूर्ण आंदोलन की सुनवाई करने के बजाय पुलिसिया दमन से आंदोलन को खत्म करने का काम करती रही।
श्री रावत ने कहा कि अंग्रेजों ने अपने शासन के अंतर्गत भारत की राजधानी कोलकाता से बदलकर 1911 में दिल्ली में बनाई थी इसी के तहत उन्होंने दिल्ली में वायसराय के निवास के लिए रायसिना की पहाड़ी को काटकर एक भव्य भवन वायसराय हाउस (जिसे वर्तमान में राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता है )का निर्माण सन 1917 में प्रारंभ किया। इस भवन के निर्माण के साथ-साथ विख्यात अंग्रेजी वास्तुकार सर एडमिन लुटियन ने इसकी सुंदरता को चार चांद लगाने के लिए विशाल सुंदर फूलों का बगीचा 1928 में बनाया। मुगल गार्डन नाम से बने इस भव्य बगीचे में सैकड़ों प्रकार के फूलों को लगाया गया। जिसे अंग्रेज शासक केवल अपने विशिष्ट अतिथियों के लिए ही खोलते थे ।
26 जनवरी 1950 को भारत द्वारा गणतंत्र आत्मसात किये जाने पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का निवास बनने के साथ ही इस भवन का नाम वायसराय हाउस से बदलकर राष्ट्रपति भवन किया गया। इसके साथ ही बसंत ऋतु में ही राष्ट्रपति ने आम जनता के लिए राष्ट्रपति भवन स्थित 15 एकड़ जमीन पर बने इस मुगल गार्डन को खोल दिया।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति भवन स्थित इस अमृत उद्यान में सैकड़ों प्रजाति के गुलाबों , के अलावा हजारों प्रकार की अन्य प्रजातियों के भी फूल महकते रहते हैं। इसे देखने के लिए देश-विदेश के लाखों सैलानी हर साल बसंत ऋतु का बेसब्री से इंतजार करते हैं परंतु भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देव सिंह रावत ने कहा कि देशभक्त लोग, गुलामी के ऐसे प्रतीक को भी नजरअंदाज करते हैं। श्री रावत ने कहा कि अगर सरकार 1947 में ही राष्ट्रपति भवन के साथ मुगल गार्डन का नाम भी बदल देते तो देश को इस दंश की पीड़ा नहीं सहनी पड़ती। शासकों की इसी प्रकार की अक्षम में भूल के कारण आज भी देश की करोड़ों करोड़ों नौनिहाल युवा फिरंगी भाषा, फिरंगी नाम व झूठा इतिहास ढ़ो कर खुद व देश को बर्बादी गर्त में धकेलने के लिए मजबूर नहीं होते।