दुनिया देश

मोदी की वैश्विक राजनीति का लोहा मान रहेे है अमेरिका व रूस सहित पूरा विश्व

शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन में मोदी की  पुतिन  से वार्ता व चीन पाक के शासकों से न मिलने वाले कदम की सराहना   

 

देवसिंह रावत

इसी सप्ताह रूस-यूक्रेन व चीन-ताइवान के बीच चल रहे तनाव से विनाशकारी विश्व युद्ध से आशंकित पूरे विश्व की नजर शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति पुतिन व चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच होने वाली बेठक पर टकटकी लगाये हुये थी। परन्तु परमाणु महाविनाश की आशंका से सहमे विश्व को आशा की किरण दिखाई, इस सम्मेलन में भाग लेकर विश्व का असली रहनुमा बन कर उभरे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।  मोदी ने इस सम्मेलन में अपने संदेश से विश्व को परमाणु यद्ध की विनाश की भट्टी में झौंक रहे संसार की तमाम महाशक्तियों को साफ संदेश दिया कि आज का युग युद्ध का नहीं अपितु शांति व विकास का है। वैश्विक कल्याण  खा़़द्यान्न, ईंधन ऊर्जा व जलवायु परिवर्तन बनाये रख कर विश्व के देशों को जहां विश्व की प्राथमिताओं की दिशा भी दी।   भारतीय प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में अपने संबोधन में कही बात से अधिक महत्वपूर्ण बात रही। रूस के राष्ट्रपति पुतिन से दो टूक शब्दों में कहना कि आज का युग युद्ध का नहीं अपितु शांति का है। तो इसके प्रत्युतर में रूस के राष्ट्रपति पुतिन द्वारा यह कहना कि उनका देश अपने मित्र की चिंताओं को समझता है। वह युक्रेन युद्ध जल्द समाप्त करना चाहता है पर युक्रेन सहयोग नहीं दे रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री के इस संवाद को अमेरिका सहित पूरे विश्व में बेहद सराहा गया। रूस के राष्ट्रपति के समझ यह बात कह कर मोदी ने साबित कर दिया कि वह अपने मित्र को रूस व विश्व हित की बता कर अपने मित्रता का धर्म निभा रहा है। वहीं इसके साथ इस शिखर सम्मेलन में संयुक्त तस्वीर कार्यक्रम व शिखर सम्मेलन में चीन व पाक सहित संगठन के देशों के साथ मंच सांझा करने के बाबजूद जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी ने चीन व पाकिस्तान के शासन प्रमुखों से किसी प्रकार की व्यक्तिगत मुलाकात नहीं करके जहां भारतीय हितों व सम्मान की रक्षा की। वहीं दोनों देशों को भी साफ संदेश दे दिया है कि भारत के लिए अपने देश के हित व सम्मान सर्वाेच्च है। जिस प्रकार से चीन व पाकिस्तान भारतीय हितों पर कुठाराघात कर रहे हैं वह मित्रता तो रही दूर बात करने के योग्य नहीं है। हालांकि चीन ने भारत को रिझाने के लिये पुन्न भारत से लगी कुछ सीमाओं से सेना की वापसी का झांसा भी दिया। परन्तु नेहरू से मोदी तक के शासन में चीन द्वारा भारत की मित्रता के बदले विश्वासघात के कार्य किये जाने से भारतीय अब सजग हो गया। ताइवान के मामले में पूरे विश्व में बुरी तरह घिर चूके चीन जिस प्रकार से भारत को झांसा देने का प्रयास कर रहा है। परन्तु भारत द्रोही पाकिस्तान के आतंकियों को जिस प्रकार से वह विश्व मंचों में बचाव कर रहा है उससे भारतीय नेतृत्व चीन की धूर्तता अब झेलने के लिए तैयार नहीं है। यही साफ संदेश भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन में चीन व पाकिस्तान के हुक्मरानों से मुलाकात न करके दिया। जबकि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के अलावा टर्की व ईरान आदि के शासकों से मुलाकात कर इन देशों से भारत के द्विपक्षीय संबंधों के बारे में विस्तृत चर्चा की। केवल दूरी बनाये रखी तो चीन व पाकिस्तान से।  प्रधानमंत्री मोदी के इन कदमों से जहां विश्व में अमेरिका व रूस सहित देशों ने उनका लोहा माना वहीं चीन व पाकिस्तान को भी समझ में आ गया कि भारत न अमेरिका व न रूस का पिछल्लगू है । अपितु भारत अपने देश के हितों के साथ विश्व मानवता का ध्वजवाहक भी है।

उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार से भारत के अमेरिका के घोर विरोधी रूस व चीन के प्रभाव वाले शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन में सम्मलित होना रास नहीं आ रहा था। वेसे ही शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन के प्रणेता चीन को भी क्वाड में अमेरिका का सहयोगी बने भारत के शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन में भाग लेने की आशा ही नहीं थी। भारत के इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने का विश्वास था भारत के परम मित्र रूस को। विगत 7 दशकों से भारत के हर संकट, विकास आदि में सच्चे मित्र की तरह चट्टान की तरह भारत का साथ देने वाले रूस के विश्वास को भारत ने भी हर कदम पर समय की कसौटी पर खरा उतर कर सच्चे मित्रता का परिचय दिया। रूस की मित्रता के बंधन में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने इस शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण सदस्य चीन व उसके प्यादे पाक की आशाओं पर बिजली गिराते हुये व अमेरिका व नाटो सदस्यों की नाराजगी को नजरांदाज करते हुये शंधाई सहयोग संगठन की शिखर सम्मेलन में भाग लिया। प्रधानमंत्री मोदी का यह निर्णय जहां अमेरिका व नाटो के अलावा चीन व पाकिस्तान को भी चुभ रहा था। वहीं भारत के परम मित्र रूस को अपने सदाबहार मित्र भारत से मित्रता पर गर्व महसूस कर रहा था। भारत महसूस करता है कि जहां अमेरिका व उसके मित्र नाटों देश नाहक ही अपने वर्चस्व के लिए रूस को घेरने के लिए युक्रेन के राष्ट्रपति जैलेन्सकी को अपना मोहरा बना कर रूस के खिलाफ भडका कर जबरन लडा रहे है। वहीं अमेरिका व नाटों भारत जैसे तटस्थ व अनम परस्त देशों पर भी दवाब डाल कर रूस के खिलाफ उनके द्वारा लगाये गये एकतरफा प्रतिबंध को ढोये। जब भारत ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया और अपने मित्र रूस का साथ देते हुए उससे ईधन तेल आदि का व्यापार निरंतर करते रहे तो अमेरिका व उसके मित्र देश भारत को धमनाने लगे। भारतीय नेतृत्व ने इनकी गिदड धमकियों की परवाह न करते हुए जहां रूस को युद्ध के बजाय वार्ता की सलाह दी वहीं युक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान की। अमेरिका ने भारत को सबक सिखाने के लिए चीन के प्यादा बने अपने पूर्व प्यादे पाकिस्तान से फिर से गलबहियां करनी शुरू कर दी। भारतीय नेतृत्व ने अमेरिका व उसके मित्रों की इस चाल को भांप लिया। अमेरिका ने पाकिस्तान के सहयोग से ही अलकायदा के प्रमुख का सफाया किया। इस सहयोग का ईनाम अमेरिका ने उसके युद्धक विमानों में गुणवता में सुधार करने के साथ आर्थिक मदद भी शुरू कर दी। यही नहीं अमेरिका ने विश्व बेंक आदि संस्था से पाकिस्तान को सहयोग देने के लिए उसको निगरानी सूचि से बाहर करने का भी आश्वासन दिया। यही नहीं अमेरिका व उसके मित्रों के शह पर जिस प्रकार से कश्मीर मुद्दे को हवा देने का काम किया जा रहा है। उससे भारतीय नेतृत्व विज्ञ है। वह जानता है चीन भी पाकिस्तान का संरक्षक बना है। भारतीय नेतृत्व ऐसे चक्रव्यूह से बच कर भारतीय हितों की रक्षा के लिए मजबूती से खडे होने की सराहना पूरा विश्व कर रहा है।

रूस युक्रेन युद्ध में जिस प्रकार पूरी दुनिया दो भागों में विभाजित हो गयी। एक खेमा अमेरिका व नाटो संगठन के साथ युक्रेन के साथ खडा हो कर रूस को विश्व शांति का दुश्मन बता कर रूस को विश्व बिरादरी से बाहर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ, सुरक्षा परिषद व अन्य वैश्विक संस्थाओं में रूस को खलनायक साबित कर रहे थे। वहीं दूसरा खेमा रूस के पक्ष में चीन, बेलारूस, उतरी कोरिया, ईरान आदि देश खडे थे। परन्तु भारत दोनों खेमें में न हो कर जहां रूस को खलनायक भी नहीं बता रहा था व नहीं रूस पर अमेरिका व नाटों देशों की तरह व्यापारिक प्रतिबंध लगा रहा था। भारत का साफ नीति रही कि युद्ध नहीं वार्ता से विवादों का समाधान किया जाय। भारत ने रूस को अपनी चिंताओं व चीन पाक के षडयंत्र से भी अवगत करा दिया। इसी लिए भारत क्वाड का भी सदस्य है। रूस भारतीय चिंताओं से विज्ञ है। इस प्रकार जहां ताइवान व चीन के विवाद में भारत चीन को अपने पडोसियों से मित्रतापूर्ण संबंध रखने की सीख देते हुए विस्तारवादी संकीर्णता को त्यागने को बार बार कहता है। चीन भारत की सहदयता को कायरता समझ कर अपना ही अहित कर रहा है। क्योंकि इस समय चीन, ताईवान के विवाद में बुरी तरह घिर चूका है। वह पीछे हटता है तो उसकी कायरता समझी जायेगी और आगे बढ कर युद्ध करता है तो वह अपनी आत्महत्या ही करेगा। इसलिए  उसे अपने वजूद की रक्षा कैसे की जाती है यह भारत से सीखना चाहिये जो अमेरिका के साथ भी है और रूस के साथ भी है। इसी साल कश्मीर में होने वाले जी.20 सम्मेलन एक प्रकार भारत के विश्व परचम की पताका ही लहरायेगा। दो गुटों में बंटे संसार में भारत ही ऐसा देश है जो दोनों गुटों में सम्मान व हिस्सा ले कर भी तटस्थ है।

वही देश की जनता भी प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति से काफी प्रफुल्लित है। अगर मोदी सरकार रोजगार  प्रदान करते हुए महंगाई व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाये तो जनता और भी खुश होगी।

About the author

pyarauttarakhand5