मन की बात की 90वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ (26.06.2022)
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। ‘मन की बात’ के लिए मुझे आप सभी के बहुत सारे पत्र मिले हैं, social media और NaMoApp पर भी बहुत से सन्देश मिले हैं, मैं इसके लिए आपका बहुत आभारी हूँ। इस कार्यक्रम में हम सभी की कोशिश रहती है कि एक दूसरे के प्रेरणादायी प्रयासों की चर्चा करें, जन-आंदोलन से परिवर्तन की गाथा, पूरे देश को बताएँ। इसी कड़ी में, मैं आज आपसे, देश के एक ऐसे जन-आंदोलन की चर्चा करना चाहता हूँ जिसका देश के हर नागरिक के जीवन में बहुत महत्व है। लेकिन, उससे पहले मैं आज की पीढ़ी के नौजवानों से, 24-25 साल के युवाओं से, एक सवाल पूछना चाहता हूँ और सवाल बहुत गंभीर है, और मेरे सवाल पर जरुर सोचिये। क्या आपको पता है कि आपके माता-पिता जब आपकी उम्र के थे तो एक बार उनसे जीवन का भी अधिकार छीन लिया गया था! आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? ये तो असंभव है। लेकिन मेरे नौजवान साथियो, हमारे देश में एक बार ऐसा हुआ था। ये बरसों पहले उन्नीस सौ पिचहत्तर की बात है। जून का वही समय था जब emergency लगाई गई थी, आपातकाल लागू किया गया था। उसमें, देश के नागरिकों से सारे अधिकार छीन लिए गए थे। उसमें से एक अधिकार, संविधान के Article 21 के तहत सभी भारतीयों को मिला ‘Right to Life and Personal Liberty’ भी था। उस समय भारत के लोकतंत्र को कुचल देने का प्रयास किया गया था। देश की अदालतें, हर संवैधानिक संस्था, प्रेस, सब पर नियंत्रण लगा दिया गया था। Censorship की ये हालत थी कि बिना स्वीकृति कुछ भी छापा नहीं जा सकता था। मुझे याद है, तब मशहूर गायक किशोर कुमार जी ने सरकार की वाह-वाही करने से इनकार किया तो उन पर बैन लगा दिया गया। रेडियो पर से उनकी entry ही हटा दी गई। लेकिन बहुत कोशिशों, हजारों गिरफ्तारियों, और लाखों लोगों पर अत्याचार के बाद भी, भारत के लोगों का, लोकतंत्र से विश्वास डिगा नहीं, रत्ती भर नहीं डिगा। भारत के हम लोगों में, सदियों से, जो लोकतंत्र के संस्कार चले आ रहे हैं, जो लोकतांत्रिक भावना हमारी रग-रग में है आखिरकार जीत उसी की हुई। भारत के लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से ही emergency को हटाकर, वापस, लोकतंत्र की स्थापना की। तानाशाही की मानसिकता को, तानाशाही वृति-प्रवृत्ति को लोकतांत्रिक तरीके से पराजित करने का ऐसा उदाहरण पूरी दुनिया में मिलना मुश्किल है। Emergency के दौरान देशवासियों के संघर्ष का, गवाह रहने का, साझेदार रहने का, सौभाग्य, मुझे भी मिला था – लोकतंत्र के एक सैनिक के रूप में। आज, जब देश अपनी आज़ादी के 75 वर्ष का पर्व मना रहा है, अमृत महोत्सव मना रहा है, तो आपातकाल के उस भयावह दौर को भी हमें कभी भी भूलना नहीं चाहिए। आने वाली पीढ़ियों को भी भूलना नहीं चाहिए। अमृत महोत्सव सैकड़ों वर्षों की गुलामी से मुक्ति की विजय गाथा ही नहीं, बल्कि, आज़ादी के बाद के 75 वर्षों की यात्रा भी समेटे हुए है। इतिहास के हर अहम पड़ाव से सीखते हुए ही, हम, आगे बढ़ते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, हम में से शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने, अपने जीवन में आकाश से जुड़ी कल्पनाएँ न की हों। बचपन में हर किसी को आकाश के चाँद-तारे उनकी कहानियाँ आकर्षित करती हैं। युवाओं के लिए आकाश छूना, सपनों को साकार करने का पर्याय होता है। आज हमारा भारत जब इतने सारे क्षेत्रों में सफलता का आकाश छू रहा है, तो आकाश, या अन्तरिक्ष, इससे अछूता कैसे रह सकता है! बीते कुछ समय में हमारे देश में Space Sector से जुड़े कई बड़े काम हुए हैं। देश की इन्हीं उपलब्धियों में से एक है In-Space नाम की Agency का निर्माण। एक ऐसी Agency, जो Space Sector में, भारत के Private Sector के लिए नए अवसरों को Promote कर रही है। इस शुरुआत ने हमारे देश के युवाओं को विशेष रूप से आकर्षित किया है। मुझे बहुत से नौजवानों के इससे जुड़े संदेश भी मिले हैं। कुछ दिन पहले जब मैं In-Space के headquarter के लोकार्पण के लिए गया था, तो मैंने कई युवा Start-Ups के Ideas और उत्साह को देखा। मैंने उनसे काफी देर तक बातचीत भी की। आप भी जब इनके बारे में जानेंगे तो हैरान हुए बिना नहीं रह पाएँगे, जैसे कि, Space Start-Ups की संख्या और Speed को ही ले लीजिये। आज से कुछ साल पहले तक हमारे देश में, Space Sector में, Start-Ups के बारे में, कोई सोचता तक नहीं था। आज इनकी संख्या सौ से भी ज्यादा है। ये सभी Start-Ups ऐसे-ऐसे idea पर काम कर रहे हैं, जिनके बारे में पहले या तो सोचा ही नहीं जाता था, या फिर Private Sector के लिए असंभव माना जाता था। उदाहरण के लिए, चेन्नई और हैदराबाद के दो Start-Ups हैं – अग्निकुल और स्काईरूट ! ये Start-Ups ऐसे Launch Vehicle विकसित कर रही हैं जो अन्तरिक्ष में छोटे payloads लेकर जायेंगे। इससे Space Launching की कीमत बहुत कम होने का अनुमान है। ऐसे ही हैदराबाद का एक और Start-Ups Dhruva Space, Satellite Deployer और Satellites के लिए High Technology solar Panels पर काम कर रहा है। मैं एक और Space Start-Ups दिगंतरा के तनवीर अहमद से भी मिला था, जो Space के कचरे को मैप करने का प्रयास कर रहे हैं। मैंने उन्हें एक Challenge भी दिया है, कि वो ऐसी Technology पर काम करें जिससे Space के कचरे का समाधान निकाला जा सके। दिगंतरा और Dhruva Space दोनों ही 30 जून को इसरो के Launch Vehicle से अपना पहला Launch करने जा रहे हैं। इसी तरह, बेंगलुरु के एक Space Start-Ups Astrome की founder नेहा भी एक कमाल के idea पर काम कर रही हैं। ये Start-Ups ऐसे Flat Antenna बना रहा है जो न केवल छोटे होंगे, बल्कि उनकी Cost भी काफी कम होगी। इस Technology की Demand पूरी दुनिया में हो सकती है।
साथियो, In-Space के कार्यक्रम में, मैं, मेहसाणा की School Student बेटी तन्वी पटेल से भी मिला था। वो एक बहुत ही छोटी Satellite पर काम कर रही है, जो अगले कुछ महीनों में Space में Launch होने जा रही है। तन्वी ने मुझे गुजराती में बड़ी सरलता से अपने काम के बारे में बताया था। तन्वी की तरह ही देश के करीब साढ़े सात सौ School Students, अमृत महोत्सव में ऐसे ही 75 Satellites पर काम कर रहे हैं, और भी खुशी की बात है, कि, इनमें से ज्यादातर Students देश के छोटे शहरों से हैं।
साथियो, ये वही युवा हैं, जिनके मन में आज से कुछ साल पहले Space Sector की छवि किसी Secret Mission जैसी होती थी, लेकिन, देश ने Space Reforms किए, और वही युवा अब अपनी Satellite Launch कर रहे हैं। जब देश का युवा आकाश छूने को तैयार है, तो फिर हमारा देश कैसे पीछे रह सकता है?
मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में, अब एक ऐसे विषय की बात, जिसे सुनकर आपका मन प्रफुल्लित भी होगा और आपको प्रेरणा भी मिलेगी I बीते दिनों, हमारे ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता नीरज चोपड़ा फिर से सुर्ख़ियों में छाए रहे। ओलंपिक के बाद भी, वो, एक के बाद एक, सफलता के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहें हैं I Finland में नीरज ने Paavo Nurmi Games में सिल्वर जीता। यही नहीं। उन्होंने अपने ही Javelin Throw के Record को भी तोड़ दिया। Kuortane Games में नीरज ने एक बार फिर गोल्ड जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। ये गोल्ड उन्होंने ऐसे हालातों में जीता जब वहाँ का मौसम भी बहुत ख़राब था। यही हौसला आज के युवा की पहचान है। Start-Ups से लेकर Sports World तक भारत के युवा नए-नए रिकॉर्ड बना रहे हैं I अभी हाल में ही आयोजित हुए Khelo India Youth Games में भी हमारे खिलाड़ियों ने कई Record बनाए। आपको जानकर अच्छा लगेगा कि इन खेलों में कुल 12 Record टूटे हैं – इतना ही नहीं, 11 Records महिला खिलाड़ियों के नाम दर्ज हुए हैं। मणिपुर की M. Martina Devi ने Weightlifting में आठ Records बनाए हैं I
इसी तरह संजना, सोनाक्षी और भावना ने भी अलग-अलग रिकार्ड्स बनाये हैं। अपनी मेहनत से इन खिलाडियों ने बता दिया है कि आने वाले समय में अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में भारत की साख कितनी बढ़ने वाली है। मैं इन सभी खिलाडियों को बधाई भी देता हूँ और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ भी देता हूँ।
साथियो, खेलो इंडिया यूथ गेम्स की एक और खास बात रही है I इस बार भी कई ऐसी प्रतिभाएं उभरकर सामने आई हैं, जो बहुत साधारण परिवारों से हैं I इन खिलाड़ियों ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया और सफलता के इस मुकाम तक पहुंचे हैं I इनकी सफलता में, इनके परिवार, और माता- पिता की भी, बड़ी भूमिका है I
70 किलोमीटर साइकिलिंग में गोल्ड जीतने वाले श्रीनगर के आदिल अल्ताफ के पिता टेलरिंग का काम करते हैं, लेकिन, उन्होंने अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी I आज, आदिल ने अपने पिता और पूरे जम्मू-कश्मीर का सिर गर्व से ऊँचा किया है I वेट लिफ्टिंग में गोल्ड जीतने वाले चेन्नई के ‘एल. धनुष’ के पिता भी एक साधारण कारपेंटर हैं I सांगली की बेटी काजोल सरगार उनके पिता चाय बेचने का काम करते हैं I काजोल अपने पिता के काम में हाथ भी बंटाती थीं, और, वेट लिफ्टिंग की प्रैक्टिस भी करती थीं। उनकी और उनके परिवार की ये मेहनत रंग लाई और काजोल ने वेट लिफ्टिंग में खूब वाह- वाही बटोरी है I ठीक इसी प्रकार का करिश्मा रोहतक की तनु ने भी किया है I तनु के पिता राजबीर सिंह रोहतक में एक स्कूल के बस ड्राईवर हैं I तनु ने कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतकर अपना और अपने परिवार का, अपने पापा का, सपना, सच करके दिखाया है I
साथियो, खेल जगत में, अब, भारतीय खिलाड़ियों का दबदबा तो बढ़ ही रहा है, साथ ही, भारतीय खेलों की भी नई पहचान बन रही है I जैसे कि, इस बार खेलो इंडिया यूथ गेम्स में ओलंपिक में शामिल होने वाली स्पर्धाओं के अलावा पाँच स्वदेशी खेल भी शामिल हुए थे I ये पाँच खेल हैं – गतका, थांग ता, योगासन, कलरीपायट्टू और मल्लखम्ब I
साथियो, भारत में एक ऐसे खेल का अन्तर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट होने जा रहा है जिस खेल का जन्म सदियों पहले हमारे ही देश में हुआ था, भारत में हुआ था I ये आयोजन है 28 जुलाई से शुरू हो रहे शतरंज ओलंपियाड का। इस बार, शतरंज ओलंपियाड में 180 से भी ज्यादा देश हिस्सा ले रहे हैं I खेल और फिटनेस की हमारी आज की चर्चा एक और नाम के बिना पूरी नहीं हो सकती है – ये नाम है तेलंगाना की Mountaineer पूर्णा मालावथ का I पूर्णा ने ‘सेवेन समिट्स चैलेंज’ को पूरा कर कामयाबी का एक और परचम लहराया है I सेवेन समिट्स चैलेंज यानि दुनिया की सात सबसे कठिन और ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ने की चुनौती I पूर्णा ने अपने बुलंद हौसलों के साथ, नॉर्थ अमेरिका की सबसे ऊँची चोटी, ‘माउंट देनाली’ की चढ़ाई पूरी कर देश को गौरवान्वित किया है I पूर्णा, भारत की वही बेटी है जिन्होंने महज 13 साल की उम्र में माउंट एवरेस्ट पर जीत हासिल करने का अद्भुत कारनामा कर दिखाया था I
साथियो, जब बात खेलों की हो रही है, तो मैं आज, भारत की सर्वाधिक प्रतिभाशाली क्रिकेटरों में, उनमें से एक, मिताली राज की भी चर्चा करना चाहूँगा I उन्होंने, इसी महीने क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की है, जिसने कई खेल प्रेमियों को भावुक कर दिया है I मिताली, महज एक असाधारण खिलाड़ी नहीं रही हैं, बल्कि, अनेक खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी रही हैं I मैं, मिताली को उनके भविष्य के लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाएं देता हूँ I
मेरे प्यारे देशवासियो, हम ‘मन की बात’ में waste to wealth से जुड़े सफल प्रयासों की चर्चा करते रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है, मिज़ोरम की राजधानी आइजवाल का। आइजवाल में एक खूबसूरत नदी है ‘चिटे लुई’, जो बरसों की उपेक्षा के चलते, गंदगी और कचरे के ढेर में बदल गई। पिछले कुछ वर्षों में इस नदी को बचाने के लिए प्रयास शुरू हुए हैं। इसके लिए स्थानीय एजेंसियां, स्वयंसेवी संस्थाएं और स्थानीय लोग, मिलकर, save चिटे लुई action plan भी चला रहे हैं। नदी की सफाई के इस अभियान ने waste से wealth creation का अवसर भी बना दिया है। दरअसल, इस नदी में और इसके किनारों पर बहुत बड़ी मात्रा में प्लास्टिक और पॉलिथीन का कचरा भरा हुआ था। नदी को बचाने के लिए काम कर रही संस्था ने, इसी पॉलिथिन से, सड़क बनाने का फैसला लिया, यानि, जो कचरा नदी से निकला, उससे मिज़ोरम के एक गाँव में, राज्य की, पहली प्लास्टिक रोड बनाई गई, यानि, स्वच्छता भी और विकास भी।
साथियो, ऐसा ही एक प्रयास पुडुचेरी के युवाओं ने भी अपनी स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए शुरू किया है। पुडुचेरी समंदर के किनारे बसा है। वहाँ के beaches और समुद्री खूबसूरती देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। लेकिन, पुडुचेरी के समंदर तट पर भी plastic से होने वाली गंदगी बढ़ रही थी, इसलिये, अपने समंदर, beaches और ecology को बचाने के लिए यहाँ लोगों ने ‘Recycling for Life’ अभियान शुरू किया है। आज, पुडुचेरी के कराईकल में हजारों किलो कचरा हर दिन collect किया जाता है, और उसे segregate किया जाता है। इसमें जो organic कचरा होता है, उससे खाद बनाई जाती है, बाकी दूसरी चीजों को अलग करके, recycle कर लिया जाता है। इस तरह के प्रयास प्रेरणादायी तो है ही, single use plastic के खिलाफ भारत के अभियान को भी गति देते हैं।
साथियो, इस समय जब मैं आपसे बात कर रहा हूँ, तो हिमाचल प्रदेश में एक अनोखी cycling rally भी चल रही है। मैं इस बारे में भी आपको बताना चाहता हूँ। स्वच्छता का सन्देश लेकर साइकिल सवारों का एक समूह शिमला से मंडी तक निकला है। पहाड़ी रास्तों पर करीब पौने दो सौ किलोमीटर की ये दूरी, ये लोग, साइकिल चलाते हुए ही पूरी करेंगे। इस समूह में बच्चे भी और बुज़ुर्ग भी हैं। हमारा पर्यावरण स्वच्छ रहे, हमारे पहाड़-नदियाँ, समंदर, स्वच्छ रहें, तो, स्वास्थ्य भी, उतना ही बेहतर होता जाता है। आप मुझे, इस तरह के प्रयासों के बारे में जरुर लिखते रहिए।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश में मानसून का लगातार विस्तार हो रहा है। अनेक राज्यों में बारिश बढ़ रही है। ये समय ‘जल’ और ‘जल संरक्षण’ की दिशा में विशेष प्रयास करने का भी है। हमारे देश में तो सदियों से ये ज़िम्मेदारी समाज ही मिलकर उठाता रहा है। आपको याद होगा, ‘मन की बात’ में हमने एक बार step wells यानि बावड़ियों की विरासत पर चर्चा की थी। बावड़ी उन बड़े कुओं को कहते हैं जिन तक सीढ़ियों से उतरकर पहुँचते हैं। राजस्थान के उदयपुर में ऐसी ही सैकड़ों साल पुरानी एक बावड़ी है – ‘सुल्तान की बावड़ी’। इसे राव सुल्तान सिंह ने बनवाया था, लेकिन, उपेक्षा के कारण धीरे–धीरे ये जगह वीरान होती गयी और कूड़े–कचरे के ढेर में तब्दील हो गयी है। एक दिन कुछ युवा ऐसे ही घूमते हुए इस बावड़ी तक पहुंचे और इसकी स्थिति देखकर बहुत दुखी हुए। इन युवाओं ने उसी क्षण सुल्तान की बावड़ी की तस्वीर और तकदीर बदलने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने इस mission को नाम दिया – ‘सुल्तान से सुर-तान’। आप सोच रहे होंगे, कि, ये सुर-तान क्या है| दरअसल, अपने प्रयासों से इन युवाओं ने ना सिर्फ बावड़ी का कायाकल्प किया, बल्कि इसे, संगीत के सुर और तान से भी जोड़ दिया है। सुल्तान की बावड़ी की सफाई के बाद, उसे सजाने के बाद, वहां, सुर और संगीत का कार्यक्रम होता है। इस बदलाव की इतनी चर्चा है, कि, विदेश से भी कई लोग इसे देखने आने लगे हैं। इस सफल प्रयास की सबसे ख़ास बात ये है कि अभियान शुरू करने वाले युवा chartered accountants हैं। संयोग से, अब से कुछ दिन बाद, एक जुलाई को chartered accountants day है। मैं, देश के सभी CAs को अग्रिम बधाई देता हूँ। हम, अपने जल-स्त्रोतों को, संगीत और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों से जोड़कर उनके प्रति इसी तरह जागरूकता का भाव पैदा कर सकते हैं। जल संरक्षण तो वास्तव में जीवन संरक्षण है। आपने देखा होगा, आजकल, कितने ही ‘नदी महोत्सव’ होने लगे हैं। आपके शहरों में भी इस तरह के जो भी जल-स्त्रोत हैं वहां कुछ-न-कुछ आयोजन अवश्य करें।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे उपनिषदों का एक जीवन मन्त्र है – ‘चरैवेति-चरैवेति-चरैवेति’ – आपने भी इस मन्त्र को जरुर सुना होगा। इसका अर्थ है – चलते रहो, चलते रहो। ये मंत्र हमारे देश में इतना लोकप्रिय इसलिए है क्योंकि सतत चलते रहना, गतिशील बने रहना, ये, हमारे स्वभाव का हिस्सा है। एक राष्ट्र के रूप में, हम, हजारों सालों की विकास यात्रा करते हुआ यहाँ तक पहुँचे हैं। एक समाज के रूप में, हम हमेशा, नए विचारों, नए बदलावों को स्वीकार करके आगे बढ़ते आए हैं। इसके पीछे हमारे सांस्कृतिक गतिशीलता और यात्राओं का बहुत बड़ा योगदान है। इसीलिये तो, हमारे ऋषियों मुनियों ने तीर्थयात्रा जैसी धार्मिक जिम्मेदारियाँ हमें सौंपी थीं। अलग-अलग तीर्थ यात्राओं पर तो हम सब जाते ही हैं। आपने देखा है कि इस बार चारधाम यात्रा में किस तरह बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। हमारे देश में समय-समय पर अलग-अलग देव-यात्राएं भी निकलती हैं। देव यात्राएं, यानी, जिसमें केवल श्रद्धालु ही नहीं बल्कि हमारे भगवान भी यात्रा पर निकलते हैं। अभी कुछ ही दिनों में 1 जुलाई से भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध यात्रा शुरू होने जा रही है। ओड़िसा में, पुरी की यात्रा से तो हर देशवासी परिचित है। लोगों का प्रयास रहता है कि इस अवसर पर पुरी जाने का सौभाग्य मिले। दूसरे राज्यों में भी जगन्नाथ यात्रा खूब धूमधाम से निकाली जाती हैं। भगवान जगन्नाथ यात्रा आषाढ़ महीने की द्वितीया से शुरू होती है। हमारे ग्रंथों में ‘आषाढस्य द्वितीयदिवसे…रथयात्रा’, इस तरह संस्कृत श्लोकों में वर्णन मिलता है। गुजरात के अहमदाबाद में भी हर वर्ष आषाढ़ द्वितीया से रथयात्रा चलती है। मैं गुजरात में था, तो मुझे भी हर वर्ष इस यात्रा में सेवा का सौभाग्य मिलता था। आषाढ़ द्वितीया, जिसे आषाढ़ी बिज भी कहते हैं, इस दिन से ही कच्छ का नववर्ष भी शुरू होता है। मैं, मेरे सभी कच्छी भाईयो-बहनों को नववर्ष की शुभकामनाएँ भी देता हूँ। मेरे लिए इसलिए भी ये दिन बहुत खास है – मुझे याद है, आषाढ़ द्वितीया से एक दिन पहले, यानी, आषाढ़ की पहली तिथि को हमने गुजरात में एक संस्कृत उत्सव की शुरुआत की थी, जिसमें संस्कृत भाषा में गीत-संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इस आयोजन का नाम है – ‘आषाढस्य प्रथम दिवसे’। उत्सव को ये खास नाम देने के पीछे भी एक वजह है। दरअसल, संस्कृत के महान कवि कालिदास ने आषाढ़ महीने से ही वर्षा के आगमन पर मेघदूतम् लिखा था। मेघदूतम् में एक श्लोक है – आषाढस्य प्रथम दिवसे मेघम् आश्लिष्ट सानुम्, यानि, आषाढ़ के पहले दिन पर्वत शिखरों से लिपटे हुए बादल, यही श्लोक, इस आयोजन का आधार बना।
साथियो, अहमदाबाद हो या पुरी, भगवान् जगन्नाथ अपनी इस यात्रा के जरिए हमें कई गहरे मानवीय सन्देश भी देते हैं। भगवान जगन्नाथ जगत के स्वामी तो हैं ही, लेकिन, उनकी यात्रा में गरीबों, वंचितों की विशेष भागीदारी होती है। भगवान् भी समाज के हर वर्ग और व्यक्ति के साथ चलते हैं। ऐसे ही हमारे देश में जितनी भी यात्राएं होती हैं, सबमें गरीब-अमीर, ऊंच-नीच ऐसे कोई भेदभाव नजर नहीं आते। सारे भेदभाव से ऊपर उठकर, यात्रा ही, सर्वोपरि होती है। जैसे कि महाराष्ट्र में पंढरपुर की यात्रा के बारे में आपने जरुर सुना होगा। पंढरपुर की यात्रा में, कोई भी, न बड़ा होता है, न छोटा होता है। हर कोई वारकरी होता है, भगवान् विट्ठल का सेवक होता है। अभी 4 दिन बाद ही 30 जून से अमरनाथ यात्रा भी शुरू होने जा रही है। पूरे देश से श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा के लिए जम्मू-कश्मीर पहुँचते हैं। जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोग उतनी ही श्रद्धा से इस यात्रा की ज़िम्मेदारी उठाते हैं, और, तीर्थयात्रियों का सहयोग करते हैं।
साथियो, दक्षिण में ऐसा ही महत्व सबरीमाला यात्रा का भी है। सबरीमाला की पहाड़ियों पर भगवान अयप्पा के दर्शन करने के लिए ये यात्रा तब से चल रही है, जब ये रास्ता, पूरी तरह, जंगलों से घिरा रहता था। आज भी लोग जब इन यात्राओं में जाते हैं, तो उसे धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर, रुकने-ठहरने की व्यवस्था तक, गरीबों के लिए कितने अवसर पैदा होते हैं, यानी, ये यात्राएं प्रत्यक्ष रूप से हमें गरीबों की सेवा का अवसर देती हैं और गरीब के लिए उतनी ही हितकारी होती हैं। इसीलिये तो, देश भी, अब, आध्यात्मिक यात्राओं में, श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बढ़ाने के लिए इतने सारे प्रयास कर रहा है। आप भी ऐसी किसी यात्रा पर जाएंगे तो आपको आध्यात्म के साथ-साथ एक भारत-श्रेष्ठ भारत के भी दर्शन होंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमेशा की तरह इस बार भी ‘मन की बात’ के जरिए आप सभी से जुड़ने का ये अनुभव बहुत ही सुखद रहा। हमने देशवासियों की सफलताओं और उपलब्धियों की चर्चा की। इस सबके बीच, हमें, कोरोना के खिलाफ सावधानी को भी ध्यान रखना है। हाँलाकि, संतोष की बात है कि आज देश के पास वैक्सीन का व्यापक सुरक्षा कवच मौजूद है। हम 200 करोड़ वैक्सीन डोज़ के करीब पहुँच गए हैं। देश में तेजी से precaution dose भी लगाई जा रही है। अगर आपकी second dose के बाद precaution dose का समय हो गया है, तो आप, ये तीसरी dose जरुर लें। अपने परिवार के लोगों को, ख़ासकर बुजुर्गों को भी precaution dose लगवाएँ। हमें हाथों की सफाई और मास्क जैसी जरुरी सावधानी भी बरतनी ही है। हमें बारिश के मौसम में आस-पास गन्दगी से होने वाली बीमारियों से भी आगाह रहना है। आप सब सजग रहिए, स्वस्थ रहिए और ऐसी ही ऊर्जा से आगे बढ़ते रहिए। अगले महीने हम एक बार फिर मिलेंगे, तब तक के लिए, बहुत-बहुत धन्यवाद ,नमस्कार।
*****