संसद में अविश्वास प्रस्ताव रद्द कराकर राष्ट्रपति से की प्रधानमंत्री इमरान ने संसद भंग करने की सिफारिश
देव सिंह रावत
आज पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री इमरान खान की सलाह मानते हुए पाकिस्तान की संसद को भंग कर दिया है । इस प्रकार इमरान खान ने विदेशी साजिश के बहाने मध्यावधि चुनाव कराने का दाव चलकर संयुक्त विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव की बाद सत्तासीन होने की मनसा पर पानी फेर दिया है ।क्रिकेट की भाषा में कहें तो इमरान खान ने निर्णायक क्षणों में सियासी छक्का लगाकर विपक्षियों के अरमान चकनाचूर कर दिए हैं ।वही उन्होंने अपना मंत्रिमंडल भांग करने की साथ पाकिस्तान की संसद भी भंग करा दी है। अब वह 90 दिन के अंदर संसदीय चुनाव कराने के लिए कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर कार्य करेंगे। सूत्रों के अनुसार कुछ देर बाद पाकिस्तानी सेना देश की राजनीतिक वर्तमान हालत पर अपना बयान दे सकती है।
इससे पहले इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार विपक्ष द्वारा संसद में रखे अविश्वास प्रस्ताव को संसद के उपाध्यक्ष ने विदेशी साजिश करार देते हुए मतदान से पहले ही इसे खारिज कर दिया । इसके साथ ही संसद की कार्रवाही 25 अप्रैल तक स्थगित कर दी गई। इसके खिलाफ संयुक्त विपक्ष में गहरा आक्रोश है।
हालांकि ऐसी खबर आ रही है कि जिस समय संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान की तैयारियां हो रही थी उसी समय इमरान खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति के साथ मुलाकात कर रहे थे। ऐसा माना जाता है कि वह अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप सकते हैं ।इसके साथ यह भी खबर आ रही है कि आज ही इमरान खान पुनः देश को संबोधित करेंगे। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार संसद में अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कराने के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने राष्ट्रपति से संसद भवन करके नए सिरे से चुनाव कराने की सिफारिश की। जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार करते हुए संसद को भंग करने का ऐलान कर दिया है।
वहीं विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ने इमरान खान की कार्यवाही को गैर संवैधानिक बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय में फरियाद करने का ऐलान किया। इसके जवाब में इमरान खान ने विपक्षी दलों को ललकार से हुए कहा कि चुनाव से भागने वाली सियासी भगोड़ों को जनता से जनादेश हासिल करने का साहस नहीं है। वहीं इमरान खान ने कहा कि मेरे खिलाफ विदेशी साजिश की जा रही है। इसलिए जनता फैसला करें कि मैं सही हूं या विपक्ष वही इमरान खान की पार्टी ने ऐलान किया कि 90 दिन के अंदर पाकिस्तान में चुनाव होंगे।
मतदान में पराजित हो कर अपदस्थ होने के बजाय इमरान खान ने रणनीति के तहत अपना इस्तीफा देकर संसद भंग करके समयपुर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। जैसा कि यह जगजाहिर था कि अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने का साहस इमरान खान की सरकार में नहीं था क्योंकि 342 सदस्यीय पाकिस्तान संसद में बहुमत के लिए जरूरी है 172 सांसद। इस संख्या को जुटाने में इमरान खान की सरकार असफल लग रही थी। अविश्वास प्रस्ताव पर अगर मतदान होता तो विपक्ष को 199 इमरान खान की सरकार को 142 मत मिलते।
इस इस तरह 18 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने इमरान खान भी अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही 3 अप्रैल 2020 को इस्तीफा देकर सत्ता से बेदखल होते हैं। इस प्रकार पाकिस्तान के कोई भी प्रधानमंत्री अब तक अपना 5 वर्षीय कार्यकाल पूरा न करने के लिए अभिशापित रहे।
ऐसा कायस लगाया जा रहा है कि की संयुक्त विपक्ष शहनाज शरीफ( जो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई युवक पंजाब प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं) शेष कार्यकाल के लिए विपक्षी गठबंधन के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे। इमरान खान को घेरने में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलाल भुट्टो उनके पिता आसिफ जरदारी मरियम शरीफ सहित पूरा विपक्ष एकजुट रहा ।इसके कारण न केवल इमरान खान की सत्ता में सहयोगी दलों ने इमरान खान से नाता तोड़कर विपक्ष के साथ जुड़ गए। अपितु इमरान खां की अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के भी दो दर्जन के करीब सांसद विपक्ष के साथ जुड़ गए। इस प्रकार इमरान खान कि यह राजनीतिक पारी समाप्त हुई। परंतु इमरान ने चालाकी से विपक्ष को भी अपने कार्यकाल के शेष समय 879 होने का लुफ्त उठाने की मंशा पर एक प्रकार से पानी फेर दिया।
23 मार्च को संयुक्त विपक्ष ने इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखने का निर्णय लिया। विपक्ष के षड्यंत्र को पाकिस्तान विरोधी बताते हुए इसी के विरोध में इमरान खान ने 27 मार्च को पाकिस्तान में विशाल रैली का आयोजन भी किया और विपक्षी दलों पर आरोप लगाया कि वह भारत के किसी बड़े मित्र देश के दबाव में आकर पाकिस्तान की सरकार को अस्थिर करके पाकिस्तान को बर्बादी के गर्त में धकेलने के प्यादे बने हुए हैं।
इमरान खान सरकार के खिलाफ संयुक्त विपक्ष ने 28 मार्च को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया और प्रस्ताव पर आज 3 अप्रैल को मतदान किया गया। अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान से पहले इमरान खान ने 174 सदस्यों की सूची जाए जारी की। जो पूर्ण बहुमत से 2 सदस्य अधिक है। अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही संयुक्त विपक्ष ने संसद के अध्यक्ष के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। अध्यक्ष के खिलाफ दिए गए इस अविश्वास प्रस्ताव में 100 सांसदों के हस्ताक्षर किए गए। किसी कारण संसद के उपाध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पर फैसला देते हुए कार्यवाही का संचालन किया। दलीय संख्या की दृष्टि से पाकिस्तान में सत्तासीन होते समय पाठ इमरान की पार्टी के पास 199 सांसदों का समर्थन था। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के पास 56 सांसद व नवाज शरीफ के दल के पास 84 सांसदों का समर्थन था। इसके बाद बदले राजनीतिक घटनाक्रम में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दिन जहां इमरान की सहयोगी दलों ने भी इमरान से मुंह मोड़ लिया। वहीं इमरान की 2 दर्जन से अधिक सांसद विपक्ष के साथ जुड़ गई थी शायद इसी स्थिति को भांपते हुए इमरान ने संसद को भंग करने का चतुराई भरा निर्णय लिया ।
1952 में लाहौर में जन्मे इमरान खान ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमए की शिक्षा ग्रहण की। इमरान खान 18 वर्ष की उम्र में ही 1971 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बन गए थे।
1982 से 1982 तक उन्होंने पाकिस्तान क्रिकेट टीम की अगुवाई भी की। इसी दौरान 1992 में उन्होंने विश्व कप क्रिकेट कप जीतकर पाकिस्तान की सबसे चहेते बन गई थे। वह शुरू से ही पाकिस्तान की दिशा और दशा को ठीक करने के लिए राजनीति में आने के लिए मन बना चुके थे। इसी के तहत उन्होंने 1991 में कराची में अपनी मां की नाम से पाकिस्तान का सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल भी पूरे विश्व के सहयोगियों के सहयोग से बनाया पाकिस्तान की राजनीति में आने के इरादों को साकार करते हुए इमरान खान ने 1996 में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ दल का गठन किया इसी के तहत 2 018 में उनके दल ने अन्य सहयोगी दलों के सहयोग से पाकिस्तान की सत्ता की बागडोर संभाली।
पाकिस्तान मैं इमरान की सत्तासीन होने के बाद पाकिस्तान का सत्ता समीकरण बदल गया इमरान से पहले पाकिस्तान की राजनीति पूरी अमेरिका परस्त थी परंतु इमरान खान ने सत्तासीन होने के बाद पाकिस्तान को चीन के खेमे में रखकर अमेरिका से दूरियां बना दी इमरान सरकार की कारस्तानियों के कारण ही लोग उनको तालिबान खान के नाम से भी जानते हैं तालिबान खान के नाम से जाने जाने के पीछे इमरान खान का तालिबानी प्रेम रहा।
जिस समय पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान की तैयारियां हो रही थी ।पूरी इस्लामाबाद और संसद क्षेत्र को सेना व सुरक्षा बलों ने बहुत ही जबरदस्त सुरक्षा प्रबंध किए हुए थे इसी को देखते हुए शायद इमरान सरकार के गृह मंत्री शेख राशिद ने आशंका प्रकट की थी कि अविश्वास प्रस्ताव के बाद इमरान खान को गिरफ्तार किया जा सकता है। हालन की शेख राशिद अपनी सीखें व बयानो के कारण पूरे विश्व में पाकिस्तान की फजीहत करते रहने के लिए कुख्यात रहे परंतु इस समय उनकी आशंका निर्मूल नहीं है क्योंकि पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा से प्रधानमंत्री इमरान का रिश्ता सामान्य नहीं है का मूल कारण यह भी है कि पाकिस्तानी सेना पर आज भी अमेरिका का प्रभाव बना हुआ है वही इमरान खान अपने इस राजनीतिक असफलता की पीछे बिना नाम लिए हुए पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के पीछे अमेरिका को ही गुनाहगार बता रहे हैं जिस गोपनीय पत्र को इमरान खान सार्वजनिक करने वाले थे ऐसा माना जाता है उनको ऐसा करने से रोकने के पीछे सेना प्रमुख भाजपा का ही हाथ है। इस पूरे प्रकरण में सेना नहीं जिस प्रकार से तटस्थ रहने का ऐलान किया, उससे इमरान खान नाखुश है। राजनीति के अलावा इमरान खान का अपना पारिवारिक जीवन भी बहुत विवादस्त रहा। खासकर उनकी वर्तमान पत्नी बुशरा बीबी जो खुद को पीर बताकर जिस प्रकार से जादू टोना करती है, उसके चर्चे से पाकिस्तानी नहीं पूरे विश्व के राजनीतिज्ञ भी विज्ञ हैं। बुशरा बीबी से पहले इमरान खान की दो पूर्व पत्नियां भी इमरान खान की विवादित जीवन को समय-समय पर भी बेपर्दा करती रहती हैं।
इमरान खान सरकार के पतन के बाद साफ हो गया है कि इमरान खान पाकिस्तान को सही रास्ता देने में अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह असफल रहे। कट्टरपंथ धार्मिक उन्माद के साथ आतंकवाद पाकिस्तान अपने जन्म से ही विरासत में मिली परंतु जिस प्रकार से पाकिस्तान के तमाम इमरान से पूर्व प्रधानमंत्रियों ने पाकिस्तान को अमेरिका का प्यादा बनाकर भारत के खिलाफ निरंतर युद्ध व जिहाद रीड रखा है उससे पाकिस्तान के अमन-चैन के साथ वहां का विकास भी अवरुद्ध हो रखा है केवल इमरान खान के आने के बाद एक परिवर्तन यही हुआ कि इमरान खान से पूर्व पाकिस्तान अमेरिका का प्यादा था इमरान खान के शासन में पाकिस्तान अमेरिका को छोड़कर चीन का प्यारा बन गया है चीनी खैरात के कर्ज से पाकिस्तान आकंठ डूब कर उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। इमरान खान से आशा की जाती थी कि वह पाकिस्तान को भारत विरोधी दुराग्रह से ऊपर उठा कर विकास के पथ पर लेकर आगे बढ़ेंगे। परंतु यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक जमात से अधिक पूरे तंत्र पर पाकिस्तानी सेना का कब्जा है। सेना के ही इशारे पर पाकिस्तान में तमाम आतंकवादी संगठनों को पालक पुष्कर भारत के खिलाफ झोंका जाता है। पहले इस काम में अमेरिका का उसे खुला समर्थन था। जो अफगानिस्तान में सोवियत संघ की यही को उखाड़ने के लिए खड़ा किया गया था सोवियत संघ व अमेरिका के अफगानिस्तान से पिंड छुड़ाने के बाद अब यह आतंकी संगठन पाकिस्तान के जी का जंजाल बन गए हैं। वहीं दूसरी तरफ चीनी कर्ज और चीनी शिकंजे में जकड़ा पाकिस्तान अपनी बर्बादी के एक एक पल गिन रहा है। 2500000 लोगों के खून से बनी पाकिस्तान अपने जन्म के बाद कभी भी भारत की तरह लोकशाही में सुकून की सांस तक नहीं ले पाया। पाकिस्तानी शासकों की हैवानियत से बांग्लादेश को मुफ्त दिलाने में भारत का अहम योगदान रहा परंतु पाकिस्तान के हैवानियत से मुक्त होने के लिए दशकों से सिंध,बलूच, अहमदी संघर्ष कर रहे हैं। परंतु भारत विरोधी मानसिकता से ग्रसित पाकिस्तान कश्मीर का राग जप कर व आतंकियों को संरक्षण देकर अपने सर्वनाश को आमंत्रण दे रहा है। यह तय है कि पाकिस्तान में शासक चाहे सेना रहे या उसके लोकशाही का लबादा ओडे प्यादे रहे, सभी पाकिस्तान की जनता का जीवन स्तर सुधारने व चहुमुखी विकास करने के बजाए भारत विरोधी षडयंत्रों को ही हवा देने में लगे रहेंगे। यही अभिशाप पाकिस्तान की बर्बादी का विगत 75 साल से ही कारण बना हुआ है।
अब देखना यह है कि पाकिस्तान के आम चुनाव में इमरान खान फिर सत्तासीन होते हैं या विपक्ष संयुक्त रहकर इमरान खान की तिकड़म को विफल करते हुए इमरान के मंशा पर पानी फिरता है। या बिखर कर फिर इमरान की ताजपोशी की राह साफ करता है।