बिना किसी स्थाई वेतन,पीएफ,बोनस व पेंशन पाये महंगाई की मार में भी काम की तलाश में बाजारों में प्रसन्न बैठे
#रोज_कमाना_फिर_रोज_खाने वाले
दिहाड़ी मजदूरों से जीने की सीख व सुध भी लेनी चाहिये।
देव सिंह रावत
आज सुबह जब मैं #लक्ष्मी_नगर और #शकरपुर बाजार से गुजर रहा था तो तुम मुझे दर्जनों युवा अधेड़ व्यक्ति बंद दुकानों के बाहर बैठे नजर आए।
इनमें से कईयों के पास सफेदी करने के डब्बे और ब्रूस भी थे।
मैं समझ गया है यह दिहाड़ी मजदूर हैं काम की तलाश में बैठे हुए हैं।
हर सुबह काम की तलाश में यह सड़क के किनारे या बाजार में बंद दुकान के बाहर बैठे नजर आते हैं।
इनके चेहरों पर किसी प्रकार का तनाव दुख नजर नहीं आता है ।जो कुछ भी मिलता है उसी में यह अपना वह अपने परिवार का गुजर-बसर कर जीते हैं ।फिर दूसरे दिन कान की तलाश में इन्हीं सड़क को बाजार में बैठे नजर आते हैं।
शायद ऐसा भी होता होगा कि जब किसी दिहाड़ी मजदूर को किसी रोज काम नहीं मिलता होगा। उस दिन वह अपने बच्चों परिवार का गुजर-बसर कैसे करता होगा?
इतनी महंगाई में भी असंगठित क्षेत्र के इन लाखों-करोड़ों में मजदूरों की फरियाद न सरकार सुनती है नहीं समाज।
इनके बच्चे परिवार कैसे शिक्षा चिकित्सा ग्रहण करते होंगे इतनी महंगाई में कैसे कमरे का किराया बिजली का वह पानी का बिल बच्चों के लिए साग सब्जी खाना इत्यादि का प्रबंध करते होंगे ?इसके बाबजूद लोग हमेशा मेहनत कर अपनी ईमानदारी से मेहनत कर अपने परिवार को जो मिलता है उसी में संतोष कर सुखमय जीवन जीते हैं।
ऐसा नहीं कि दिल्ली जैसे महानगरों में यह असंगठित क्षेत्र के मजदूर दिखाई देते हैं मैं ऋषिकेश किया था। वहां भी मुझे सैकड़ों मजदूर सुबह-सुबह सड़कों पर दिखाई दिये थे। रोजगार की तलाश में अधिकांश मुझे गैर उत्तराखंड ही नजर आए। ऐसे में प्रदेश में इन मेहनत लोगों का जीवन कितना विकट होता होगा। इसकी कल्पना सुविधाओं में जी रही लोग नहीं कर सकते।
शासन तंत्र का ध्यान इस तरफ कहां जाता होगा जो कुछ भी कल्याणकारी योजनाएं इनके नाम पर चलती है, वह भी नौकरशाही अपने प्यादों को आवंटित कर इन जरूरतमंदों को नजरअंदाज कर देते हैं।
देखकर आश्चर्य होता है कि
लाखों रुपए हर माह कमाने के बाद भी जिम्मेदारी न निभाने वाले #हुक्मरानों व #नौकरशाहों को
बिना किसी स्थाई वेतन,पीएफ,बोनस व पेंशन पाये महंगाई की मार में भी काम की तलाश में बाजारों में प्रसन्न बैठे
#रोज_कमाना_फिर_रोज_खाने वाले
दिहाड़ी मजदूरों से जीने की सीख व सुध भी लेनी चाहिये।
देश की सरकार को समाज के अंतिम पायदान पर जीवन बसर करने वाले इन मेहनतकश लोगों को कल्याण के लिए भी इस योजनाएं बननी चाहिए असंगठित क्षेत्र के लोगों के कल्याण के लिए न्यूनतम मजदूरी
कड़ाई से लागू की जानी चाहिए और सरकारी व असंगठित क्षेत्र के कामगारों की वेतन में दो गुना से अधिक किसी भी पद हालत में अंतर नहीं होना चाहिए।
वेतन की असमानता समाज में असंतोष के साथ अन्याय को भी मजबूत करता है।