7 फरवरी को तपोवन-रैंणी जो जोशीमठ चमोली में है वह आयी आपदा में रैंणी गांव स्थित माँ काली का मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। जिसके बाद 4 अप्रैल रविवार को जब ग्रामीणों की ओर से मन्दिर स्थल पर खुदाई की गई तो माँ काली की मूर्ति गर्भगृह स्थल पर ही श्रृंगार आभूषणों और वस्त्रों के साथ मिली।
इसे दैवीय चमत्कार माने या मानवीय आस्था लेकिन उत्तराखंड में दैवीय शक्तियों के वास के सनातन विस्वास को इस प्रकार की घटनाएं बलवती करती हैं।
लेकिन इस आपदा ने फिर एक बार इंसान को सोचने पर मजबूर कर दिया था की मानव द्वारा किये गए प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का अंजाम बहुत दर्दनाक होता है। अगर इंसान उतनी ही मात्रा में प्रकृति से संसांधन निकलने जितना उसके स्वयं के लिए पर्याप्त हो। तभी इंसान और प्रकीर्ति का मेल मिलाप सही से रह पायेगा नहीं तो भविष्य में भी ऐसी आपदाये आती रहेंगे और इंसान को सचेत करती रहेगी।