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हठधर्मिता और राजनीति छोड़ कर राष्ट्रहित के लिए किसानों की समस्याओं का समाधान निकालें सरकार व किसान आंदोलनकारी नेता

8 जनवरी को फिर होगी किसान समस्या व आंदोलन के समाधान के लिए सरकार को किसानों में वार्ता

किसान कानूनों को निरस्त करने व न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी संरक्षण देने की मांग पर भी आज 4 जनवरी को हुई सरकार और किसान नेताओं के बीच वार्ता में नहीं बनी बात।

प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम

आज 4 जनवरी को केंद्र सरकार व किसानों के बीच में आठवें दौर की बैठक भी बेनतीजा रही।
सरकार व  किसान  नेता इस बात पर सहमत हुए कि अब अगले दौर की बैठक 8 जनवरी को होगी।

किसान नेता राकेश टिकैत ने दो टूक कहा है कि जब तक तीनों  कृषि कानून वापस नहीं लिए जाएंगे तब तक सरकार से आंदोलनकारी किसानों का कोई समझौता नहीं होगा। किसानों का आंदोलन अपनी मांगों के मनाने तक जारी रहेगा।
इसलिए सरकार को चाहिए कि तुरंत इन 3 कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए फार्मूला तय करें ।वहीं कृषि मंत्री  ने दो टूक शब्दों में कहा कि ताली एक हाथ से नहीं बजती है ।सरकार के मन में किसानों का बहुत सम्मान है ।पूरे देश को देश के हितों को देखकर ही मोदी सरकार ने यह कानून बनाया।  खासकर किसानों के हित को देखकर ही बनाया गया ।
कृषि मंत्री ने कहा कि समस्या का कानूनी पहलू भी ध्यान रखकर निर्णय किए जा रहे हैं।
इस बैठक में न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अमलीजामा पहनाने पर भी चर्चा हुई ।कृषि मंत्री के अनुसार किसान तीनों कानूनों को वापस लेने पर अड़े रहने से वार्ता बेनतीजा निकली।
कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार के मन में किसानों की प्रति गहरा सम्मान है ।समस्या को कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखकर व देश के हित को ध्यान में रखकर ही निर्णय होोगा  ।
हालांकि कृषि मंत्री ने आशा प्रकट की कि अगली बैठक में इस समस्या का समाधान  निकल जाएगा।
अगली बैठक 8 जनवरी को दोपहर 2:00 बजे विज्ञान भवन में ही होगी।

किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली को चारों तरफ से घेराबंदी की हुई है। किसानों की मांग है कि सरकार द्वारा बनाई गये तीन कृषि कानूनों जिनको किसान काला कानून कह रहे हैं, तुरंत वापिस ले। किसानों की दूसरी मांग है कि सरकार उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी संरक्षण प्रदान करें ।इसके अलावा किसानों की दो अन्य मांगों पर सरकार ने सातवें दौर की वार्ता में सहमति दे दी है।  जो पराली व बिजली कानूनों को लेकर किसानों की जो आशंकाएं थी ।उसको निराकरण करने के लिए सरकार सहमत हो चुकी है ।अब दो महत्वपूर्ण मांगों पर जिसमें सरकार द्वारा बनाए गए  3 कृषि कानूनों की वापसी तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी संरक्षण प्रदान करने पर ही सारा गतिरोध खड़ा हुआ है।  आठवें दौर की वार्ता इन्हीं दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर हुई। किसान जहां तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं ।वहीं सरकार इन 3 कानूनों में किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए उसमें संशोधन करने के लिए तैयार है।

यही गतिरोध का प्रश्न आठवें दौर में भी जारी रहा ।किसान आंदोलन के लंबी खींचने से देश को हजारों करोड़ों का जो नुकसान हो रहा है और देश में लोकशाही पर जो प्रश्न खड़े उठ रहे हैं। उसको देखते हुए देश का आम जनमानस चाहता है कि सरकार व आंदोलनकारी किसान अपनी हठधर्मिता और राजनीति को दर किनारे रखकर राष्ट्र हित के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी संरक्षण देने का मांग तुरंत स्वीकार करें । किसानों को भी चाहिए कि वह तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग से हटकर इन 3 कानूनों में किसान हितों पर चोट करने वाली नियमों को संशोधन करने की सरकार की मांग स्वीकार करें।

इन दोनों बातों से देश का हित मजबूत होगा ।किसानों में खुशहाली आएगी और राष्ट्र में लोकशाही मजबूत होगी।
देश का आम जनमानस किसानों की जायज मांगों के साथ है और सरकार को भी चाहिए कि लोकशाही का सम्मान करते हुए आंदोलनकारी किसानों की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें और इस समस्या को अंतहीन वार्ता की भंवर से निकाले।

अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कि और कूच करने वाले किसान आंदोलन के 40 से अधिक दिनों के बादजूद अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकला।
इस भयंकर शीतलहर और लंबे आंदोलन के चलते हुए सड़कों पर ठिठुरते हुए 50 से अधिक किसान शहीद हो चुके है। इसे देखकर देश की जनता हैरान है।
देश की जनता चाहती है कि इस समस्या का युद्ध स्तर पर राष्ट्रीय व मानवीय दृष्टिकोण को रखते हुए तुरंत समाधान निकाला जाए।

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