कोरोना के दंश से त्रस्त दिल्ली किसानों की घेराबंदी से हुई बेहाल
कडाके की ठण्ड में भी दिल्ली की घेराबंदी करने को मजबूर आशंकित व आक्रोशित किसानों को 5 दिसम्बर को मनायेगी मोदी सरकार
देवसिंह रावत
एक तरफ दिल्ली पर वैश्विक महामारी कोरोना का खतरा मंडरा रहा है। वहीं दूसरी तरफ सरकार के 3 नये कानूनों को तत्काल रद्द करने की मांग करते हुए लाखों किसानों ने भीषण ठण्ड की परवाह न करते हुए दिल्ली को विगत 8 दिनों ने चारों तरफ से घेर रखा है। किसान आंदोलन से इस ठण्ड में भी पूरे देश का माहौल गरमाया हुआ है। लाखों किसानों ने विगत 8 दिनों से अपनी मांग के समर्थन में दिल्ली चलो नारे के तहत दिल्ली को चारों तरफ से घेर लिया है। एक तरफ सरकार इस समस्या के समाधान के लिए किसानों की मांग पर कई दौर की वार्ता किसान नेताओं से कर रही है। अब सबकी नजर 5 दिसम्बर को दोपहर 2 बजे होने वाली सरकारी वार्ता पर टिकी है। वहीं दूसरी तरफ किसान संगठन दिल्ली की घेराबंदी और मजबूत करने में जुटे हैं।
दिल्ली की घेराबंदी किये जाने के बाद हुई सरकार के साथ किसान नेताओं की वार्ता के बाद जहां किसान अभी भी कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अडे हैं तो सरकार अब तक के अपने रूख में नरमी लाते हुए इन तीन कानूनों में संशोधन करने को तैयार हो गयी है। जहां भाजपा शुरू से ही इन तीन कृषि कानूनों को किसानों का हितरक्षक बता कर कांग्रेस सहित सप्रंग दलों को किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रही है। परन्तु किसानों के आंदोलन को न केवल देशव्यापी समर्थन मिल रहा है। अपितु पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सहित कई खिलाडियों व प्रतिभाओं ने सरकार द्वारा दिये गये अपने सम्मान वापस लोैटाने का ऐलान कर दिया।
किसानों द्वारा दिल्ली की घेराबंदी किये जाने के बाद हुई पहली, व तीन दिसम्बर को हुई सरकारी वार्ता के बाद भी जब सरकार इस समस्या का समाधान करने में असफल रही तो सरकार ने अब 3 दिसम्बर 2020 को विज्ञान भवन में 40 किसान संगठनों के नेताओं के साथ 8 घण्टे लम्ंबी वार्ता के बाद 5 दिसम्बर 2020 को अगली वार्ता का ऐलान कर दिया। किसानों के इस निर्णायक आंदोलन के समाधान के लिए जहां प्रधानमंत्री मोदी अपनी तरफ से किसानों को आश्वासन देते नजर आ रहे हैं। वहीं भाजपा के प्रमुख रणीतिकार व देश के गृहमंत्री ने भी इस समस्या के समाधान के लिए निरंतर प्रयासरत है। इसी दिशा में उन्होने आंदोलनरत किसानों से भी आंदोलन समाप्त कर या सरकार द्वारा तय स्थल बुराड़ी में आ कर सरकार से वार्ता करने का खुला अनुरोध किया। परन्तु जब किसानों ने यह अनुरोध ठुकरा दिया तो सरकार ने पहले से तय 3 दिसम्बर की वार्ता से पहले पहली दिसम्बर को भी वार्ता की। उसके बाद 3 दिसम्बर की भी वार्ता हो गयी। किसान संगठनों के ये प्रतिनिधि वार्ता में आमंत्रित किये गये। सरकार की तरफ से कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय, कृर्षि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव संजय अग्रवाल द्वारा पहली दिसम्बर को आयोजित हुई बैठक में आमंत्रित किया गया था।
डा दर्शन पाल (अध्यक्ष-क्रांतिकारी किसान यूनियन पंजाब), कुलवंत सिंह संधू(महामंत्री जमूहरी किसान सभा पंजाब), बूटा सिंह बुर्जगिल(अध्यक्ष भारतीय किसान सभा , दकोंदा), बलदेव सिंह निहालगढ़(महामंत्री-कुल हिंद किसान सभा पंजाब), निभाई सिंह धुदिके( अध्यक्ष -क्रीति किसान यूनियन), रूलदू सिंह मानसा(अध्यक्ष-पंजाब किसान यूनियन), मेजर सिंह पुन्नावल(महासचिव- कुल हिंद किसान सभा, पंजाब), इंद्रजीत सिंह कोट बुद्धा(अध्यक्ष-किसान संघर्ष कमेटी पंजाब), हरजिंदर सिंह टांडा(अध्यक्ष- आजाद किसान संघर्ष कमेटी पंजाब) व गुरूबक्श सिंह बरनाला(जय किसान आंदोलन) सहित 32 किसान नेताओं को सरकार ने न्यौता दिया था। सरकार के साथ 40 किसान नेताओं ने 7.30 घण्टे की लंबी वार्ता की। इसके बाद सरकार की तरफ से वार्ता में सम्मलित हुए केंद्रीय क्र्र्षि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि वार्ता साकारात्मक माहौल में हुई आगे की वार्ता 5 दिसम्बर को आयोजित की जायेंगी।
परन्तु सरकार के तमाम आश्वासन व वार्ताओं के बाद भी किसान टस से मस नहीं हुए। इसका नजारा 3 दिसम्बर को सरकार की 40 किसान नेताओं के साथ हुई 8घण्टे लम्ंबी वार्ता में देखने में मिला। इस लंबी बैठक में भोजन अवकास के दौरान किसानों ने सरकार की ओर से परोसा गया भोजन व बाद में परोसी गयी चाय भी स्वीकार न करते हुए अपने साथ लाये गये भोजन व बंगला साहिब गुरूद्वारा से आयी चाय ही ग्रहण की।
यह किसान आंदोलन तब भड़का जब किसानों के विरोध के बाबजूद मोदी सरकार ने तीन नये किसान कानून पारित किये। इसके विरोध में देशव्यापी किसान आंदोलन छिड़ गया। इस आंदोलन की तपीस सबसे अधिक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व उप्र में देखाई दे रही है। इस आंदोलन की आंच से मोदी सरकार भी अछूती नहीं रही। मोदी सरकार के सबसे पुराने घटक अकाली दल ने न केवल किसानों की मांग का समर्थन करते हुए मोदी सरकार से अपने मंत्री का इस्तीफा दिलाया अपितु राजग से अपना समर्थन भी वापस ले लिया। वहीं इस किसान आंदोलन की तपन हरियाणा सरकार भी अछूती नहीं है। सरकार द्वारा किसान कानूनों को पारित किये जाने से आक्रोशित किसानों ने इन तीन कानून को किसान विरोधी घोषित कर इन्हें तुरंत रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली कूच का ऐलान किया। इसे सरकार ने गंभीरता से लिया होता तो आज लाखों किसान न तो दिल्ली को घेरने के लिए मजबूर होते व नहीं इस आंदोलन के कारण दिल्लीवासियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता।
किसानों को उनकी इच्छा के अनुसार दिल्ली के जंतर मंतर या रामलीला मैदान में आने की इजाजत नहीं दे रही है। सरकार किसानों को बुराड़ी में एकत्रित होने की इजाजत दी। जिसे किसान संगठनों ने खुली जेल कह कर ठुकरा दिया। हालांकि हजारों की संख्या में किसान बुराड़ी मैदान में पंहुच भी गये । परन्तु किसान नेताओं ने बुराड़ी आने के बजाय दिल्ली को चोतरफा घेर कर दिल्ली प्रवेश की महत्वपूर्ण सड़को को जाम करके वहीं पर अपना आंदोलन शुरू कर दिया है। सरकार शुरू से ही किसानों से अपना आंदोलन समाप्त करने या बुराड़ी में एकत्रित होने का आवाहन कर रही है। किसानों ने न केवल सरकार के बुराड़ी जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया अपितु उन्होने दिल्ली को हरियाणा, राजस्थान, उप्र व राजस्थान से जोड़ने वाले प्रमुख चार मार्गो पर अनिश्चित कालिन धरना देकर दिल्ली की मजबूत घेराबंदी कर दी है। किसानों की मांग है कि सरकार 3 किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस ले या उनमें संशोधन करे। इसके साथ मंडियों को मजबूत करने के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य को बाध्यकारी बनाया जाय। इसके अलावा किसान आंदोलन, पराली जलाने आदि के दौरान किसानों पर दर्ज किये गये मुकदमों को वापस लेने तथा बिजली बिल आदि में तत्काल सुधार करे। किसानों उनके आंदोलन को हल्के में न ले वे चार महिने का राशन आदि लेकर आंदोलन में उतरे है।
कृषि कानून पर आमने-सामने सरकार और किसानों के बीच आज मंथन होना है. दोनों ही पक्ष अभी तक सख्त रुख अपनाए हुए हैं और अपनी जिद से पीछे नहीं हट रहे हैं. ऐसे में मंगलवार को बातचीत में क्या नतीजा निकलता है, इसपर नजरें हैं.कृषि कानून के मसले पर पिछले एक हफ्ते से दिल्ली और आसपास के इलाकों में किसानों ने डेरा जमाया हुआ है. किसानों के आंदोलन के कारण जाम की स्थिति है और कई तरह की परेशानी भी हो रही हैं, लेकिन किसान अपनी मांग पर अड़े हैं। दोनों ही ओर से कोई झुकने को तैयार नहीं है।
3 दिसम्बर को किसान व सरकार के बीच हुई 8 घण्टे लम्बी वार्ता के बाद सरकारी पक्ष का नेतृत्व कर रहे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों की चिंता जायज है। उनकी मांगों पर सरकार खुले मन से विचार कर रही है। सरकार किसी प्रकार के अहंकार में नहीं है। सरकार केवल किसानों के हितों के लिए समर्पित है। मंत्री ने आशा प्रकट किया कि 5 दिसम्बर की होने वाली महत्वपूर्ण बैठक में किसी निर्णय पर पंहुचा जा सकेगा। इसके साथ मंत्री ने किसानों से अपना सडक जाम आंदोलन समाप्त करने की पुन्न अनुरोध किया।
इसके साथ केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि किसान इस बात से गुमराह न हों की मोदी सरकार सरकारी मंडियों को खत्म कर रही है। श्री तोमर ने कहा कि उनकी सरकार मंडियों को और अधिक उपयोगी बनायेगी। इसके साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था पहले की तरह जारी रहेगी। श्री तोमर ने कहा कि सरकार नये कानूनों के प्रति उठ रही हर आशंका का निवारण करने के लिए तैयार है। इसके साथ कृषि उपज कीखरीद में पंजीकरण प्रावधान व ठेका खेती में किसान व कंपनी के बीच होने वाले विवाद में न्यायालय जाने की सुविधा भी प्रदान की जायेगी। श्री तोमर ने किसानों द्वारा नये कानून से कंपनी किसानों की जमीन को कब्जाने की आशंका को निर्मूल बताते हुए कहा कि सरकार उनकी आशंका को निर्मल करने के लिए तैयार है।
पंजाब सहित देश के अन्य प्रांतो से आये करीब 30 से अधिक किसान संगठनों ने दिल्ली-गुरुग्राम, दिल्ली-नोएडा, दिल्ली-गाजियाबाद, दिल्ली-मेरठ व सिंधु बॉर्डर पर सहित पर मजबूत घेराबंदी कर दी है। यहीं पर वे खाना बनाने के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे है।
किसान सरकार को आगाह भी कर रहे हैं कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वो लंबे समय तक दिल्ली की सड़कों पर डेरा जमाने के लिए तैयार हैं।
वहीं भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने भी सरकार से किसानों की मांगों को तुरंत मानने की मांग की। अन्यथा किसान दिल्ली को लंबे समय तब घेराबंदी करने के लिए किसान एकजूट है। इसके साथ उन्होने किसान नेताओं को भी आगाह किया कि किसान आंदोलन की आड़ में कोई भी अनाप शनाप बयानबाजी न करें। इससे देश के आम जनमानस से मिल रहा समर्थन पर ग्रहण लग जायेगा।
इसके साथ सरकार को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंद्रर सिंह की आशंका को भी हल्के में नहीं लेना चाहिए जिसमें उन्होने इस समस्या का शीघ्र निदान करने की गुहार लगायी थी। श्री सिंह ने आशंका प्रकट की थी कि इस आंदोलन के भडकने से देश की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है।
लोगों को आशा है कि आगामी 5 दिसम्बर की वार्ता में सरकार 3 किसान कानूनों से आशंकित व आक्रोशित किसानों की समस्याओं का निवाकरण करेगी। जिससे किसानों द्वारा की गयी दिल्ली की घेराबंदी के दंश से दिल्ली भी उबर जायेगी। सरकार को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाते हुए किसानों की आशंकाओं का तुरंत समाधान करना चाहिए।