‘काले बाग की पहाड़ी’ नागोर्नो-काराबाख़ के लिए लड़ रहे हैं आर्मीनिया और अज़रबैजान
देव सिंह रावत
आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख इलाक़े को लेकर लगातार दस दिनों से भीषण लड़ाई हो रही है । दोनों तरफ से हजारों लोग बेमौत मारे गए और अरबों की संपत्ति तहस-नहस हो गई।
इस लड़ाई में तुर्की व पाकिस्तान जैसी आतंकी देशों व इस्लामिक देशों के संगठन द्वारा इस्लाम के नाम पर अजरबैजान समर्थन से यह लड़ाई विश्व के लिए सबसे घातक सिद्ध हो सकती है। क्योंकि आर्मीनिया ईसाई बाहुल्य देश है और अजरबैजान इस्लामिक देश है।
तुर्की व पाकिस्तान की धर्मांधता व आतंक पोषित प्रवृत्ति के कारण
इन दो देशों की जंग में इस्लाम के नाम पर सीरिया में आतंकी भी टर्की की आत्मघाती कट्टरपंथी प्रवृत्ति के कारण यहां सैकड़ों सीरियाई आतंकी भाड़े के सैनिक के रूप में अजरबैजान के समर्थन में आर्मीनिया से युद्ध लड़ रहे हैं।
ऐसी भी खबरें आ रही है कि टर्की वह पाकिस्तान भी इस लड़ाई में हथियारों व सैनिक भेज कर इस समस्या को विकराल बनाने के लिए खलनायक की भूमिका निर्वाह कर रहे हैं यह देख कर अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो सैन्य गठबंधन ने टर्की को कड़ी चेतावनी दी है हालांकि नाटो एक प्रकार से संसार में ईसाई सैन्य गठबंधन के रूप में कुख्यात है परंतु इसमें टर्की जैसे इस्लामिक देश भी है परंतु जब से टर्की में वर्तमान शासक सत्तासीन हुआ है तब से टर्की में इस्लामिक कट्टरपंथ का सरपरस्त बनने की आत्मघाती प्रवृत्ति देखने में आ रही है जिस प्रकार से टर्की ने भारत जैसी प्रजातांत्रिक देश का अंध विरोध करके पाकिस्तान से गलबहियाँ की है, उससे टर्की के इरादे पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं।
टर्की व पाकिस्तान पूरे विश्व में इस्लाम का परचम लहराने के लिए आतंकवादियों व कट्टरपंथियों को खुलेआम संरक्षण दे रहे हैं ।उससे विश्वशांति के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है अगर समय रहते हुए पाकिस्तान व टर्की की इस विश्व का हाथी प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह विश्व की अमन-चैन पर ग्रहण लगाने वाले ही बनेंगे
इस युद्ध में रूस के मित्र ईरान ने समझदारी का परिचय देते हुए पाकिस्तान और टर्की की आतंक कोशिश पुनीत का विरोध करते हुए तथा अरनिया से अपनी मित्रता को निभाते हुए आर्मीनिया का साथ देने की ऐलान कर दिया ईरान की इस घोषणा से टर्की व पाकिस्तान की इस्लाम परस्ती को ढो रहे इस्लामिक संगठनों के फतवे पर भी एक प्रकार से ग्रहण लग गया।
वहीं आर्मीनिया व अज़रबैजान
एक दूसरे पर घातक सैन्य हमले के साथ विनाशकारी मिसाइलों का प्रहार करके एक दूसरे के निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या कर रहे हैं प्रारंभिक चरण में अजरबैजान ने घातक हमले की परंतु बाद में आर्मेनिया ने भी मुंह तोड़ जवाब देकर अजरबैजान की चूलें हिला दी।
वही अज़रबैजान की प्रहारक अक्षमता
पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका ने इसराइल को उसे हथियार ना देने के लिए दबाव बढ़ा दिया है।
दोनों ही देश सोवियत संघ के अंग रहे जिसे अमेरिकी मित्र राष्ट्रों के षड्यंत्र से कई देशों में विभक्त किया गया इस दृष्टि से दोनों के ही रूस से करीबी संबंध है।
रूस भले ही दोनों देशों को अपने हथियारों का व्यापार करता है तथा दोनों से बहुत करीबी संबंध है। परंतु उसका पलडा भी अरमिनिया की तरफ ज्यादा चुका है।दोनों ही देश एक-दूसरे पर लड़ाई में आम लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं।
रूस,आर्मीनिया व अज़रबैजान. तीनों ही सोवियत संघ के गणराज्य थे।
1991 में सोवियत संघ टूटा और सभी 15 गणराज्य देश बन गए। रूस, सोवियत संघ का उत्तराधिकारी रूस बन गया।
दशकों पहले से जारी नागोर्नो-काराबाख़ केइस विवाद को लेकर एक बार फिर से दोनों देशों के बीच छिड़ी लड़ाई छिड गयी है।
आर्मीनिया और अज़रबैजान दक्षिण कॉकस के इलाक़े में स्थित एक क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख़ के लिए लड़ रहे हैं
।नागोर्नो-काराबाख़ यह कॉकस पर्वत शृंखला की हीनकॉकस पहाडियों में आता है। इसका ज़्यादातर हिस्सा पहाड़ी है और वनों से भरपूर है। इसका क्षेत्रफल लगभग ४,४०० वर्ग किमी है। अज़रबैजान इस अपना हिस्सा मानता है और औपचारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे उस देश का हिस्सा माना जाता है। यहाँ पर अज़रों की बजाए अर्मेनियाई लोगों की बहुतायत है और, आर्मीनिया की मदद से सन् १९९१ के बाद से नागोर्नो-काराबाख़ अपने-आप को वास्तविकता में अज़रबैजान से अलग कर चुका है और स्वतन्त्र राष्ट्र की तरह अपने मामले संभालता है। उसने अपना नाम “नागोर्नो-काराबाख़ गणतंत्र” रखा हुआ है जिस से अज़रबैजान को सख़्त आपत्ति है। इस मतभेद को सुलझाने के लिए अज़रबैजान और आर्मीनिया की सरकारों में समय-समय पर बातचीत के दौर चलते रहते हैं।
“नागोर्नो” शब्द रूसी भाषा के “नागोर्नी” म शब्द से लिया गया है जिसका मतलब है ऊँचा या पहाड़ी इलाक़ा। “काराबाख़” तुर्की भाषा से लिया गया है और मानना है के “कारा बाख़” का अर्थ हिन्दी से मिलता जुलता “काला बाग़” है। स्थानीय भाषाएँ इसी “पहाड़ी काला बाग़” नाम है।
इस विवाद के केंद्र में नागोर्नो-काराबाख का पहाड़ी इलाक़ा है जिसे अज़रबैजान अपना कहता है, हालांकि 1994 में ख़त्म हुई लड़ाई के बाद से इस इलाक़े पर आर्मीनिया का कब्ज़ा है।
1980 के दशक से अंत से 1990 के दशक तक चले युद्ध के दौरान 30 हज़ार से अधिक लोगों को मार डाल गया और 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे।
उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया, हालांकि 1994 में युद्धविराम के बाद भी यहां गतिरोध जारी है।
आर्मीनिया (आर्मेनिया): पश्चिम एशिया और यूरोप के काकेशस क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी देश है जो चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा है। १९९० के पूर्व यह सोवियत संघ का एक अंग था जो एक राज्य के रूप में था। सोवियत संघ में एक जनक्रान्ति एवं राज्यों के आजादी के संघर्ष के बाद आर्मीनिया को २३ अगस्त १९९० को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई, परन्तु इसके स्थापना की घोषणा २१ सितंबर, १९९१ को हुई एवं इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता २५ दिसंबर को मिली। इसकी राजधानी येरेवन है।
अज़रबैजान :- कॉकेशस के पूर्वी भाग में एक गणराज्य है, पूर्वी यूरोप और एशिया के मध्य में बसा हुआ। भौगोलिक रूप से यह एशिया का ही भाग है। इसके सीमांत देश हैं: अर्मेनिया, जॉर्जिया, रूस, ईरान, तुर्की और इसका तटीय भाग कैस्पियन सागर से लगता हुआ है। यह १९९१ तक भूतपूर्व सोवियत संघ का भाग था।
इसमें सबसे दिलचस्प बात ये है कि आर्मीनिया और अज़रबैजान जिन हथियारों और सैनिक साज़ो सामान के साथ लड़ रहे हैं वो उन्होंने रूस से ही ख़रीदे हैं, यानी रूस दोनों ही को हथियार देता है।
जहां आर्मीनिया की जनसंख्या 2008 में 32 लाख की करीब थी वहीं अज़रबैजान की जनसंख्या 2011 में 91 की लाख थी ।