22 सितंबर 2020 नई दिल्ली से पसूकाभास
शिक्षक पर्व के तहत नई शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए आयोजित वेबिनारों की श्रृंखला में 21 सितंबर 2020 को परीक्षा एवं मूल्यांकन सुधार विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार के संयोजक एनसीईआरटी के संयुक्त निदेशक प्रोफेसर श्रीधर श्रीवास्तव थे। मैसूरु के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के प्राचार्य प्रोफेसर यज्ञमूर्ति श्रीकांत, सीबीएससी के निदेशक(शैक्षिक) डा. जोसेफ इमैनुएल और राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित सुरेंद्र सिंह इस वेबिनार के मुख्य वक्ता थे। इस वेबिनार में वक्ताओं ने अपने पर्चों में कुछ महत्वपूर्ण विचार रखे।
प्रोफेसर श्रीधर श्रीवास्तव ने मूल्यांकन संबंधी सुधारों के बारे में एनईपी 2020 की महत्वपूर्ण सिफारिशों की विशेषताएं बताईं। उन्होंने स्वतंत्रता के पहले से लेकर अभी तक के मूल्यांकन प्रक्रिया के इतिहास की पड़ताल की। मूल्यांकन के संदर्भ में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)1968 में सिफारिश की गई थी कि मूल्यांकन का केंद्रीय तत्व प्रमाणपत्र हासिल करने के बदले सीखने की प्रक्रिया में सुधार लाने को बनाया जाए। एनईपी 1986 में सिफारिश की गई थी कि संयोग और वस्तुनिष्ठता के तत्वों और रटने की प्रक्रिया पर जोर कम किया जाए ,सतत और समग्र मूल्यांकन (सीसीई) को लागू किया जाए, अंकों के स्थान पर ग्रेड दिए जाएं और चरणबद्ध तरीके से सेकेंडरी स्तर पर सिमेस्टर व्यवस्था लागू की जाए। आज नई शिक्षा नीति 2020 (एनईपी -2020) में छात्रों के सीखने की प्रक्रिया को प्रधान बनाने और उनके विकास पर जोर दिया गया है।
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने एनईपी 2020 की व्याख्या करते हुए बताया कि यह, मूल्यांकन प्रक्रिया को नियमित, रचनात्मक और योग्यता आधारित बनाने पर जोर देती है जो छात्रों में सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ाए, छात्रों की योग्यता और उच्चस्तरीय कुशलता (विश्लेषण, आलोचनात्मक चिंतन और वैचारिक स्पष्टता आदि ) का विकास करे। एनईपी 2020 का लक्ष्य मूल्यांकन की संस्कृति में परिवर्तन लाना है।
उन्होंने एनईपी 2020 के उस प्रावधान की प्रशंसा की जिसमें प्रतिभाशाली छात्रों को समर्थन देने की बात कही गई है। प्रतिभाशाली छात्रों को सामान्य स्कूली पाठ्यचर्या के बाहर जाकर अन्य क्षेत्रों में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने की बात कही गई है।
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोगों को एनईपी 2020 को सफलतापूर्वक लागू कर 26 करोड़ (260 मिलियन) छात्रों, उनके अभिभावकों, अध्यापकों और स्कूल प्रणाली की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।
प्रोफेसर यज्ञमूर्ति श्रीकांत ने अपने भाषण का आरंभ राधाकृष्णन कमीशन (1948-49) की सिफारिशों से यह उद्धरण देते हुए किया, “यदि शिक्षा क्षेत्र में किसी एक सुधार की ज़रूरत है तो वह है परीक्षा व्यवस्था में सुधार।” उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि भारत समय के साथ परीक्षा द्वारा मानांकन से अब योग्यता मूल्यांकन की ओर बढ़ा है। फिर भी अभी और कई काम किए जाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि शोध से पता चला है कि छात्रों की सीखने की क्षमता उनकी सक्रिय भागीदारी से बढ़ती है। छात्र जब वाद विवाद, अभ्यास और अन्य को सिखाने के ज़रिए सीखते हैं तो वह ज्यादा याद रहता है।
प्रोफेसर श्रीकांत ने विकासात्मक मूल्यांकन के लाभ गिनाए। “कितना सीखा है उसका मूल्यांकन” और “सीखते समय मूल्यांकन” दोनों बेहद ज़रूरी हैं। उन्होंने कहा कि छात्र के विकासात्मक मूल्यांकन के लिए उसका समेकित पठन पाठन और मूल्यांकन एक बेहद महत्वपूर्ण औजार है। यह अध्यापकों पर प्रलेखीकरण के भार को कम करता है और छात्र केंद्रित और गतिविधि आधारित शिक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है। इसमें जोर कथ्य याद करने पर नहीं बल्कि क्षमता निर्माण पर रहता है। इस तरह का मूल्यांकन छात्र को डराने वाला न होकर उसे तनावमुक्त करने वाला होता है। विकास के दौरान किया जाने वाला यह मूल्यांकन इस मायने में भी उपयोगी है कि उससे इसका दायरा बहुत विस्तृत हो जाता है और छात्र अध्यापक द्वारा किए जाने वाले मूल्यांकन के अलावा स्व मूल्यांकन तथा अपने अन्य साथी छात्रों द्वारा किए गए मूल्यांकन को भी देखता है। यह मूल्यांकन उपलब्धि आधारित न होकर सीखने पर आधारित और अध्यापक में आस्था पैदा करने वाला होता है तथा परिणामस्वरूप छात्रों को प्रोत्साहित करने और उनमें आत्मविश्वास का संचार करने में सफल होता है।
डा. जोसेफ इमैनुएल ने मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार लाने की कार्य योजना पर इसे लागू करने वाली एजेंसी, खासतौर से सीबीएससी की दृष्टि से विचार किया। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि बोर्ड परीक्षा की मौजूदा प्रणाली में अंकों पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है। उन्होंने उन कदमों के बारे में जानकारी दी जो सीबीएससी इस दिशा में उठा रहा है। उन्होंने बताया कि सभी विषयों में आंतरिक मूल्यांकन किया जाता है और फाइनल परीक्षा में बोझ को बांटने के लिए इसे 20 प्रतिशत मान (वेटेज) दिया जाता है। इसके साथ ही सीबीएससी ने विभिन्न प्रकार के प्रश्न समूह भी बनाए हैं जैसे वस्तुनिष्ठ प्रश्न (एमसीक्यू और अन्य प्रकार), स्रोत आधारित और विषय आधारित प्रश्न आदि ताकि समझ और रटंत से ऊपर जाकर छात्रों में उच्चस्तरीय क्षमता निर्माण किया जा सके। उन्होंने बताया कि सीबीएससी ने अलग अलग प्रकार की सीखने की क्षमता वाले छात्रों का ध्यान रखते हुए दसवीं कक्षा में गणित विषय में द्विस्तरीय परीक्षा शुरू की है -बेसिक और स्तरीय (स्टैंडर्ड), जो छात्रों में तनाव के स्तर को कम करेगी। बारहवीं कक्षा में भी ऐसा ही एक माडल लागू किया जाएगा।
डा. जोसेफ इमैनुएल ने इसके अलावा श्रोताओं को यह भी बताया कि सीबीएससी क्षमता आधरित शिक्षा की दिशा में बढ़ने के लिए कुछ हैंडबुक्स और मैनुअल्स भी लाई है। सीबीएससी ने मूल्यांकन की प्रक्रिया में परिवर्तन लाने के लिए स्कूलों को साथ लिया है। वह प्रधानाचार्यों के लिए ऐसी हैंडबुक्स लाई है जिनमें ऐसे दिशा निर्देश दिए गए हैं जिनसे वे अध्यापन क्षेत्र में अगुआ बन सकते हैं। उन्होंने बताया कि हाल में सीबीएससी ने 21वीं सदी की कार्य कुशलता पर एक हैंडबुक जारी की है। इसके अलावा अध्यापकों और छात्रों के लिए भी “कौजिटो “और “दि क्वेश्चन बुक” की एक श्रृंखला जारी की है जिसमें छात्रों के लिए चिंतन या विचार कुशलता और साइंस तथा गणित विषयों के लिए अध्यापक सशक्तिकरण मैनुअल (टीचर्स एनर्जाइज्ड मैनुअल्स) (टीईआरएम) शामिल हैं ।
श्री सुरेंद्र सिंह ने एक अध्यापक के तौर पर मूल्यांकन के संदर्भ में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि परीक्षा का पैटर्न बहुत लंबे समय से बिना बदलाव के चला आ रहा है और अब छात्रों का एकमात्र लक्ष्य अच्छे अंक पाना ही रह गया है। समाज भी ऐसे छात्रों को प्राथमिकता देता है जो अच्छे अंक लाते हैं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि परीक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों का बहुमुखी विकास हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन का तरीका ऐसा होना चाहिए जिससे पठन पाठन की प्रक्रिया के दौरान छात्रों की क्षमता के समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त हो। हमारा ध्यान छात्रों के समग्र विकास के साथ साथ अन्य सभी संबद्ध क्षेत्रों के मूल्यांकन पर भी होना चाहिए।