झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की हमशक्ल जांबाज वीरांगना ने आक्रांता अंग्रेजों के छुडाये छक्के
{साभार : तीस साल वेंकय्या नायडू}
आपने झांसी का नाम सुना होगा…
पर क्या झांसी की झलकारी बाई का नाम सुना है?
वो झांसी की रानी की हमशक्ल थीं… और उन्होंने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
आज उनकी वीरगाथा!
इतिहासकारों का एक वर्ग ऐसा भी है जो 1857 के स्वाधीनता संग्राम को महज कुछ असंतुष्ट रजवाड़ों और सिपाहियों का विद्रोह मानता रहा है।
ऐतिहासिक तथ्यों से परे इससे अधिक और क्या हो सकता है!
वीर सावरकर ने उसे भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम माना जिसमें हर वर्ग, संप्रदाय, क्षेत्र लोगों ने, संकुचित सीमाओं से ऊपर उठ कर, कंधे से कंधा मिलाकर विदेशी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष किया।
इनमें से कई योद्धा तो समाज के दुर्बल वर्गों से आते थे लेकिन उनका संघर्ष गौरवशाली था। लेकिन ऐसे अनेक।वीरों का लोग आज नाम तक नहीं जानते। दुर्भाग्य से हमारे इतिहास ने भी इनके राष्ट्रप्रेम, संघर्ष और त्याग को भुला दिया।
ऐसे अनजान वीर योद्धाओं और वीरांगनाओं पर मेरी फेसबुक श्रृंखला में आज हम झांसी की वीरांगना झलकरी बाई के विषय में चर्चा करेंगे।
झलकरी बाई का जन्म 1830 में झांसी के पास बुन्देलखण्ड क्षेत्र के एक गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था।
कहा जाता है कि बचपन से ही इतनी साहसी थीं कि सिर्फ एक लाठी से ही जंगल में तेंदुए को मार गिराया। ऐसा भी कहा जाता है कि गांव के एक व्यापारी को तो डकैतों से बचाया।
इनकी वीरता से प्रभावित हो कर गांव वालों ने उनके विवाह का आयोजन झांसी की सेना के विख्यात योद्धा पूरन कोरी के साथ तय किया।
रानी लक्ष्मी बाई से झलकरी बाई की पहली मुलाकात किले में आयोजित गौरी पूजा के दौरान हुई। कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई अपने रूप से उनकी समानता देख कर चकित रह गईं… और जब उन्हें झलकरी बाई के साहसी कारनामों का पता चला तो उन्होंने इन्हें अपनी महिला वाहिनी, दुर्गा दल में शामिल कर लिया। अपने साहस, युद्धकला और नेतृत्व के गुणों के कारण शीघ्र ही झलकरी बाई दुर्गा दल की एक प्रमुख कमांडर बन गईं।
मार्च 1858 में जब अंग्रेज़ों ने झांसी पर हमला कर दिया, तब गर्वीली रानी ने उनके सामने झुकने से इनकार कर दिया….दोनों सेनाओं के बीच कई भीषण युद्ध हुए।
ऐसे ही एक युद्ध में अंग्रेज़ सेना नायक ह्यूग रॉस ने झांसी के किले की घेराबंदी कर दी। किसी प्रकार अंग्रेज़ किले में घुसने में सफल भी हो गए।
कहा जाता है झलकरी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई से सुरक्षित बाहर निकल जाने को कहा…. और स्वयं रानी जैसे वस्त्र और कवच पहन कर… घोड़े पर सवार हो झांसी की सेना का सामने से नेतृत्व करने लगीं।
रानी का हमशक्ल होने के कारण, अंग्रेज़ उन्हें ही रानी समझ बैठे और उन्हें ही पकड़ने के लिए अपनी ताकत झोंक दी।
झलकरी बाई अदम्य साहस और वीरता से लड़ीं लेकिन अंततः पकड़ ली गईं। अंग्रेज़ों को लगा कि उन्होंने रानी को पकड़ लिया है लेकिन रानी तो मौका देख, घेरा तोड़ कर किले से बाहर निकल चुकी थीं।
जब अंग्रेज़ों को पता चला कि उनके साथ चाल खेली गयी है…. तो उन्होंने झलकरी बाई को फांसी पर लटका दिया।
कहा जाता है कि झलकरी बाई के साहस को देख कर अंग्रेज़ जनरल ने कहा भी कि यदि भारत की एक प्रतिशत महिलाएं भी उनके जैसी साहसी हो जाएं तो अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना ही पड़ेगा।
झलकरी बाई के साहस और शौर्य, बुदेलखंड की गौरवशाली लोक परंपरा का हिस्सा हैं।
ऐसे न जाने कितने ही साहसी योद्धा , स्थानीय परम्पराओं और समुदायों में पूजनीय हैं, उन्हें शौर्य की प्रेरणास्रोत के रूप में पूजा जाता है लेकिन इतिहास की हमारी पुस्तकों में उनके वीर प्रसंग ही गायब हैं। अपने इतिहास को समग्रता में लिखने के लिए हमें हर क्षेत्र की वीर परम्परा का गहन अध्ययन करना होगा, उसे राष्ट्र के इतिहास में सम्मानित स्थान देना होगा।