देश

आॅन लाइन ऐजुकेशन: पढाई या बर्बादी

देवकृष्ण थपलियाल

विधवा दीपा देवी पहाड के ही किसी प्राइवेट स्कूल में चतुर्थ श्रेणी आया का काम करतीं हैं, एक सडक हादसे में ड्राइवर पति के असमय गुजरनें के बाद दोंनों बच्चों के लालन-पालन का जिम्मा अब उसके सिर है, सो गाॅव छोडकर पास के कस्बे/बाजार में किसी तरह अपनीं नौंवी कक्षा में पढ. रही 14 साला बीटिया और 7 वीं में पढ. रहे 11 साल के बालक की किसी तरह  परवरिश कर रही है। कोरोना  संकट में पहले तो उसनें बच्चों को गाॅव में शिफ्ट किया, फिर किसी तरह गाॅव में परिवार के सभी सदस्यों का भरण-पोषण चल रहा है, पर अचानक ’आॅन लाइन‘ पढाई की माॅग नें उसकी पेशानी पर बल डाल दिया, मोबाइल नहीं है, या है तो सिर्फ बातचीत करनें के लिए है, आॅन लाइन पढाई के लिए मॅहगा और आधुनिक फोन चाहिए होगा ? पर अब जो हो उसनें आसपास से कर्ज लेकर 10,000 रू0 में मोबाइल खरीदा, ये सोचकर बच्चे कहीं पिछड न जायें, आॅन लाइन पढाई के चूकनें से बच्चों का नुकसान न हो ? परन्तु अब नजारा कुछ ओर है, आॅन लाइन पढाई के नाम से खरीदे गये मोबाइल सेट से बच्चों नें ’अपना काम’ शुरू कर दिया है, यानि पढाई का बहाना और तमाम तरह के खेल-तमाशे इंटरनेट से डाउनलोड ? जो बच्चे कल पढाई के साथ-साथ घर के कामों में माॅ का हाथ बॅटाते थे, वे गेम में मशरूफ हैं, मोबाइल की छिना-झपटी कितनीं बार माॅ को बीच-बचाव के लिए विवश कर देती है ? अब वह दोष भी दे तो किसे ? इस मजबूर माॅ के पास परेशान होंनें के सिवाय दूसरा रास्ता नहीं है ?  रजनीश प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं, अपनें दोंनों बच्चों को अच्छे संस्कार देंनें की फितरत से उन्होंनें बच्चों को शुरू से ही मोबाइल और टेलीविजन से आवश्यक दूरी बनाये रखी ? यही कारण है, उनके सभी बच्चे अपनी-अपनीं कक्षाओं में अव्बल रहे ! इसी बीच लाॅकडाउन में बच्चों को आॅन लाइन शिक्षण नें मोबाइल के इस्तेमाल को जरूरत से ज्यादा छूट दे दी, तो मास्टरजी भी इस बात से निंश्चित थे, कि ’’बच्चे पढाई ही कर रहे है’ं’ लेकिन मोबाइल सेट के प्रति इस विशेष आकर्षण को वे तब समझे जब बच्चों नें सारी हदें पार कर दीं ?
आश्चर्य नहीं होंना चाहिए कि मोबाइल के कारण घरों में न केवल बच्चों के पठन-पाठन में व्यवधान उत्पन्न हो रहा  है, बल्कि इससे कई तरह की सामाजिक-धार्मिक-राजनीतिक विद्वेष भी फैल रहे है, जिससे आम घरों के साथ-साथ समुदाय/जाति विशेष के प्रति भी नफरत फैलानें का काम किया जा रहा है ? अफवाह के जरिये किसी व्यक्ति, समुदाय, को निशाना बनाना आम बात हो गईं है। छात्र ओर युवा मन इन घटनाओं से ज्यादा विचलित होता है, ओर वही बिना सोचे-समझे अपराधों में लिप्त हो जाता है ? पारिवारिक सदस्यों के बीच में जो अन्र्तरंगता पहले दिखती थी, हॅसी-ठिठोली से सारा घर गुंजायमान रहता था वह आज मोबाइल में व्यस्तता के  कारण प्रायः गायब है, मोबाइल में सब के लिए कुछ न कुछ अवश्य है, जिसे खंगालनें का काम एक बार शुरू हुआ नहीं की लोग बेसुध हुऐ नहीं ? पारिवारिक सदस्यों का दूसरे से संपर्क पायः हाॅ अथवा ना होता है ? किसी की क्या समस्या, समाधान, प्रेम, सहानुभूति के स्थान पर नीरसता नें परिवार नामक संस्था को चैपट कर के रख दिया है।   पूर्व फौजी दीवान सिंह, जो रिटायरमेंट के बाद गाॅव के प्रधान रहे, कहते हैं, इसे विकास नहीं विनाश कहते हैं, पहलें टेलीविजन सीरियलों, नाटकों में परोसी जा रही  अश्लीलता नें बिगाडा  अब मोबाइल नें समूचे पारिवारिक-सामाजिक जीवन को तहस-नहस कर दिया है। इससे नौंनीहाल पढाई-लिखाई से मुॅह फेर ही रहे हैं  अनावश्यक गेंम, चेट व अपनें मन पंसद गानों में समय बर्बाद कर रहे हैं।  अपितू वे शारीरिक और मानसिक तौर पर भी कमजोर और लाचार साबित हो रहें हैं ? घर-गाॅवों की सीधी-साधी बहु-बेटियाॅ भी मोबाइल के मोह-जाल में फंस कर अपना मुल्यवान समय व्यर्थ गवाॅ रही हैं, जिससे पहाड में कई तरह की विकृतियाॅ देखनें सूननें को मिल रही हैं। अभी हाल के दिनों में ऐसे अनेक सामाचारों की बाढ आ गई जिसमें महिलाओं व युवतियों द्वारा अन्यत्र के बहकावे मे घर छोडना, सगाई तोड देना, भाग जानें जैसी दूर्घटनाऐं घटीं, जिसका खामियाजा परिवार जनों तथा दुधमुहे बच्चों से लेकर उस समाज तक नें झेला जिससे वे सम्बन्ध रखतीं हैं।
सरकार और बुद्विजीवी ’मिशन आॅन लाइन पढाई’ की कितनीं भी तारीफ करें, पर सच्चाई यहीं है, की इससे नफे की जगह नुकसान ज्यादा है, यह तत्कालिक व्यवस्था के लिए सहायक हो सकता है, परन्तु इससे स्थाई समाधान उम्मीद करना बेमानीं है ? कुछ उत्साही शिक्षकों द्वारा आॅनलाइन माध्यमों से अपनें रूचिकर छात्रों को पढाया गया है, उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की जानीं चाहिए, इन सद्प्रयासों से बच्चों को अच्छा मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है, परन्तु ये वे शिष्य थे जो पहले से भी गुरूजी के सम्पर्क में रहे हैं, कहनंे का मतलब है कि उन्हे पहले भी ऐसे मार्गदर्शन का लाभ लेते रहें है, किन्तु सारे छात्रों पर ये बात लागू नहीं हो सकती ? खासकर पहाडी क्षेत्रों में छात्रों को इसकी निर्भरता कम करनीं होगी ? सूदूर पहाडी क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क की अनियमितता एक बडी समस्या है, दूरस्त क्षेत्रों में अपनों की सूद-खबर लेंनी हो तो कई-कई किलोमीटर दूर किसी चोटी-टीले पर जाकर बातचीत करनीं पडती है,  संचार सेवा की निर्भरता विद्युत विभाग पर है, नियमित बीजली सेवा में व्यवधान पहाड की बडी समस्याओं में से एक है, सरारती तत्वों द्वारा विद्युत लाइनों के साथ छेडछाड, उन्हें क्षति पहॅुचानें विद्युत ट्राॅसफरों को जलानें की घटनाओं के कारण बीजली की निरंतरता को प्रभावित करता है,जिससे कई-कई दिनों तक लाईट न आनें से जरूरी काम ठप हो जाते हैं ? मोबाइल चार्ज, मोबाइल टावर्स चार्ज जैसे तमाम जरूरी उपकरण काम करना बंद कर देते हैं ? वहीं गरीब छात्रों के अभिवाहकों पर इतनें महॅगे फोंन देंनें में मुश्किलात तो होगी ही, साथ ही नियमित रूप से उसे रिचार्ज करना भी आसान नहीं होगा ? मोबाइल की मरम्मत उसके फंक्शन ठीक करनें के लिए नौसिखिये मैकनिक/दुकानदार उसे और बदत्तर कर छोड देते हैं, इससे अभिवाहकों को बडा आर्थिक नुकसान झेलना पडता है ? कई बार अपनें मोबाइलों को दूरूस्त करनें के लिए गाॅव से बाजार की तरफ आना पडता है, जिससे काफी पैसा खर्च करना पडता है ? दूसरा सवाल ’विश्वास’ का है, जो छात्र-छात्राऐं क्लास में आनें में जी चूराते हैं, खासकर बडी कक्षाओं अथवा डिग्री कालेजों में तो छात्रों का क्लास में न आना बडा फैशन बनता जा रहा है, ये समस्या  कई काॅलेज आते हैं पर क्लास में नहीं आते  रहे हों, क्या वे शिक्षक द्वारा प्रेषित की जा रही सामाग्री का अध्ययन कर पायेंगें ? इसमें संदेह हमेशा बना रहेगा ? अब तो आॅन-लाइन परीक्षा की बात होंनें लगी है, मैदानीं इलाकों में यह सम्भव है, परन्तु पहाडी क्षंेत्रों तमाम कठनाईयों के चलते सम्भव नहीं है ?
आॅन लाइन एजुकेशन के पक्ष में कितनीं भी दलीलें दी जाय परन्तु यह सच है, की किशोरों और नौजवानों नें इसका दूरूपयोग ज्यादा किया है। इससे श्रमशीलता घटी है, जो काम हमें मेहनत करके प्राप्त होता है वह उसे चंद मिनटों में इंटरनैट की सहायता से ढंूढ ले रहें हैं, कई बार शिक्षकों से पहले वे सवाल को हल करनें में सक्षम हो जाते हैं। कक्षाओं का वातावरण पहले की अपेक्षा अब गुणात्मक रूप से गिरा है। ज्ञान प्राप्ति के संसाधनों में जितनीं गिरावट आई है, उतनीं मुल्यों में गिरावट दर्ज की गईं हैं।

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