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विश्वासघाती व आक्रांता चीन से वार्ता नहीं,अपितु शत्रु राष्ट्र घोषित कर मुंहतोड़ जवाब दे भारत

कल रात हुई लद्दाख -गलवान घाटी में चीनी व भारतीय सेना में झड़प में एक अधिकारी सहित 20भारतीय सैनिक शहीद व 43 चीनी मारे/घायल  
आतंकवाद समूल नाश करने व भारत की रक्षा के लिए चीन व पाक को आतंकी व दुश्मन देश घोषित करके सभी संबंध तोड़े सरकार

देवसिंह रावत
15 जून की रात को लद्दाख की गलवान घाटी में चीन व भारतीय सैनिकों में हुई हिंसक झडप में एक अधिकारी सहित भारत के 20 जांबाज शहीद हो गये। सेना द्वारा आज सुबह इसकी खबर जारी किये जाने से पूरे देश में आक्रोश फैल गया। सैन्य सुत्रों के अनुसार यह झडपें तब हुई जब भारतीय सीमा के अंदर  बढे चीनी सैनिक वार्ता में तय स्थान पर पीछे लोटने से इनकार करने लगे। इस हमले के बाद चीन इसके लिए जहां भारत को ही हमला करने का दोषी ठहराते हुए सीना जोरी दिखा कर एकतरफा कार्यवाही  न करने की भारत को उल्टा नसीहत रूपि धमकी भी दे रहा है। यही नहीं चीन इस घटना के बाद भी भारत से बैठक करने का झांसा दे रहा है। इस हमले में ऐसी भी खबर है कि चीन के भी 43 सैनिक मारे गये या घायल हुए।
चीन के इस हरकत के बाद आज 16 जून को भारत के रक्षा मंत्री ने देश के मुख्य रक्षा प्रमुख विपिन रावत व तीनों सेना प्रमुखों के साथ बेठक की। समझा जाता है कि चीन की इस कार्यवाही का भारत कैसे जवाब देगा इसकी रणनीति बनायी गयी हो। भारत इस बात से हैरान है कि एक तरफ चीन ने भारत को सैन्य वार्ताओं में उलझाये रखा वहीं चीन ने सीमा पर 1962 की तर्ज पर विश्वासघात करते हुए हमला किया। चीन के साथ इस प्रकार का हिंसक हमला 50 साल बाद हुआ। हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि आज 16 जून के तडके 7.30 बजे से इस घटना के बाद भारत व चीन में वार्ता का दौर भी जारी है।
चीन द्वारा बार बार इस प्रकार के विश्वासघात पर अंकुश लगाने का एक ही इलाज है कि भारत को चीन के साथ दोस्ती का राग तुरंत बंद करके विश्वासघाती चीन से सभी  संबंध तुरंत तोड़कर उसे आतंकी देश घोषित कर उसे मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। चीन व पाकिस्तान से दोस्ती के चक्कर में भारत पुन्न 1962 की तरह चीनी विश्वासघात का दंश ही झेलना पडेगा।
आज देश की जनता यह देख कर हैरान है कि एक तरफ पूरा विश्व चीन से फैले कोरोना महामारी के दंश से उबरने के लिए जुझ रहा है परन्तु वहीं चीन व पाकिस्तान दोनों देश भारत पर हमलावर हो रखे है। जहां चीन ने भारत के सिक्किम, लद्दाख व उतराखण्ड आदि सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य अतिक्रमण करके बार बार भारत को उकसा रहा है वहीं दूसरी तरफ उसका प्यादा बना पाकिस्तान कश्मीर सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य हमला कर ने की धृष्ठता कर रहा है। इसके साथ पाकिस्तान, भारत के अंदर अपने आतंकी भेज कर सैन्य शिविरों व सुरक्षा बलों पर आतंकी हमले निरंतरकर रहा है। देश की सरकारें चीन व पाक से मित्रता की गुहार ही लगाते नजर आ रही है। इसी कारण चीन व पाकिस्तान भारत के हजारों वर्ग किमी भू भाग पर काबिज होने के बाद भी भारत पर निरंतर हमलावर रहते है। यही नहीं दोनों भारत के अमन चैन को ग्रहण लगाने के लिए अपने प्यादों से भारत के विकास पर निरंतर ग्रहण लगा कर यहां आरजकता की गर्त में धकेलने की तमाम प्रयत्न करते है।
भारत सरकार को अब चीन व पाकिस्तान पर अगर अंकुश लगाना है तो तुरंत पाकिस्तान व चीन को आतंकी व दुश्मन देश घोषित करके दोनों से सभी प्रकार के संबंध तोड़ कर देश की रक्षा करने के अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। दोनों ने न केवल भारत की एकता अखण्डता को खतरे में डाल दिया है अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ देश के अमन चैन पर अपने प्यादों के द्वारा ग्रहण लगा दिया है। चीन व पाकिस्तान से एक पल के लिए दोस्ती रखनी भारतीय हितों को रोंदने के समान ही है।  भारत के हित तभी सध सकते हैं जब भारतीय हुक्मरानों के सर से चीन व पाक की दोस्ती का भूत उतरे और भारत सरकार चीन व पाक को आतंकी व दुश्मन देश घोषित कर दोनों से हर प्रकार के संबंध तोड़ दे। तभी देश सुरक्षित रहेगा और देश का अमन चैन के साथ अर्थव्यवस्था भी सुरक्षित रहेगा।
सबसे चैकांने वाली बात यह है कि जहां एक तरफ भारत हमेशा चीन व पाक से दोस्ती की पींगे बढ़ाता रहता है परन्तु पाक व चीन हमेशा भारत की बर्बादी के षडयंत्र पर षडयंत्र करते रहते। बार बार चीन व पाक के दंश से पीडित होने के बाबजूद भारतीय हुक्मरान न जाने किस मोह में दोनों भारतघातियों से दोस्ती की बीन बजाते रहते। वहीं चीन निरंतर भारतीय सीमा के अंदर घुस की भारत को उकसाने की धृष्ठता कर रहा है। यह घुसपेठ भूल से नहीं अपितु चीन की एक सोची समझी भारत विरोधी  रणनीति का एक हिस्सा है। चीनी सेना के चापरों की इस घुसपेठ से भारतीय सेना सहित देश के सामरिक विशेषज्ञों चैकान्ना हो गये है। यह इकलोती घटना नहीं जिसे सामान्य मानवीय भूल मान कर नजरांदाज किया जाय। जिस प्रकार से इसी माह चीनी सेना ने सिक्किम में भारतीय सीमा का अतिक्रमण करके भारतीय सेनिकों से झडप करने की धृष्ठता की। इसके साथ लद्दाख में ही चीन ने यह धृष्ठता की। इन घटना पर दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों ने वहां पर किसी तरह सुलझाया। सिक्किम में चीनी अतिक्रमण का मामला अभी शांत नहीं हुआ था कि चीन ने लद्दाख क्षेत्र में भी भारतीय सीमा का अतिक्रमण करने की धृष्ठता कर दी। लद्दाख क्षेत्र में भारतीय सीमा का उलंघन करने के एक पखवाडे के अंदर ही जिस प्रकार से चीन ने हिमाचल स्थित लाहौल स्पीति सीमावर्ती क्षेत्र में चीनी सेना के चापर हेलीकप्टरों ने भारतीय सीमा के अंदर 15 किमी तक घुसने की धृष्ठता की।भारत सेना ने इसका कड़ा विरोध किया। भारत सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लेकर चीन से इस मामला उठाया।
भारतीय ही नहीं पूरे विश्व के सामरिक विशेषज्ञ इस बात से हैरान है कि जब चीन पूरे विश्व में कोरोना महामारी फैलाने के खलनायक के रूप में कुख्यात होे कर एक तरह से अलग थलग पडा हुआ है। अमेेरिका, जर्मन, ब्रिटेन, फ्रांस व आस्टेलिया सहित कई देश चीन को कोरोना महामारी फैलाने का खलनायक मानते हुए कडा सबक सिखाने के लिए कमर कस दी है। बुहान सहित चीन से विश्व की तमाम कंपनिया अपने उद्योग धंधे समेट कर भारत की तरफ रूख करने का मन बना चूके है। अमेरिका सहित उसके मित्र राष्ट्र चीन का पूरी तरह से बहिष्कार करने का मन बना चूका है। यही नहीं भारत ने भी देश में चीनी निवेश पर एक प्रकार से अंकुश सा लगा दिया है। अमेरिका ने अपने युद्ध पौतों से चीन की घेराबंदी कर दी है। अमेेरिका लगातार चीन पर न केवल कोरोना फैलाने का गुनाहगार बताते हुए गंभीर नतीजे भुगतने की चेतावनी दे रहा है। इसके साथ अमेरिका चीन के बुहान स्थित जैविक हथियारों की अनुसंधानशालाओं की जांच भी करना चाहता है। इसकी अनुमति चीन देने को तैयार नहीं है। इस महामारी में न केवल चीन के एक लाख के करीब लोग मारे गये है अपितु उसकी अर्थव्यवस्था पर गंभीर नुकसान भी हो गया है। यही हाल यूरोप सहित विश्व के तमाम देशों का है। सभी चीन को सबक सिखाने के लिए मन बना चूके है।

इसी को भांप कर चीन ने अमेरिका व यूरोपीय देशों से उलझने के बजाय अमेेरिका के सबसे करीबी मित्र बने भारत को उकसा कर भारत को 1962 की तरह कडा सबक सिखाने का है। इसीलिए वह पाकिस्तान से भी शह दे कर उसे भारत पर आतंकी व सेना के सीधे हमले करवा रहा है। चीन ने न केवल पाकिस्तान से भारत पर हमला कर रहा है अपितु वह भारत की पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की मंशा को रौदने के लिए वह पाक द्वारा काबिज कश्मीर में सडक व बांध बनाने के साथ सैन्य अड्डो का भी विस्तार व निर्माण कर रहा है। इसके साथ वह चाहता है भारत उसके उकसाये में आ कर चीन से उलझने का काम करे। चीन अपने विस्तारवादी मनोवृति ंके कारण अपने डेढ दर्जन से अधिक पडोसी देशों की सीमाओं पर कब्जा करना चाहता है। वह नहीं चाहता कि भारत उसके आर्थिक ढांचे को किसी प्रकार से नुकसान पंहुचाने या उसके देश में कार्यरत कंपनियों को किसी भी सूरत में भारत में पलायन करने की बात भी सहन नहीं कर सकता। परन्तु चीन भूल गया कि भारत अब 1962 का भारत नहीं। भारत आज विश्व की एक बडी सामरिक व आर्थिक ताकत बन चूकी है। न ही भारत का नेतृत्व आज 1962 के नेतृत्व की तरह हिंदी चीनी भाई भाई के झांसे में आने वाला है।
जिस प्रकार से चीन अपने पडोसी देश कोरिया, वियतनाम, ताइवान, जापान, तिब्बत, भारत सहित अन्य पडोसियों को निरंतर परेशान करने की धृष्ठता करता रहता। चीन चाहता है कि भारत या तो उससे उलझे या पाकिस्तान द्वारा काबिज  कश्मीरी क्षेत्र में हमला करेगा तो चीन व पाकिस्तान मिल कर भारत पर हमला करेंगे। भारतीय नीतिकारक चीन व पाक की इस मंशा को भली भांति से समझते है। इसीलिए भारतीय नेतृत्व भी चीन के साथ पाक को भी उसी समय सबक सिखायेगा जब अमेरिका के नेतृत्व में पूरा विश्व चीन को सबक सिखायेगा। अमेरिका भी जानता है कि चीन के खिलाफ भारत ही उसका विश्वसनीय व ताकतवर सहयोगी हो सकता है। यह जरूर है देर सबेर ही सही अमेरिका हर हाल में चीन पर कडा अंकुश लगाते हुए उसे सबक सिखायेगा। यह अमेरिका को अपने अस्तित्व व बर्चस्व बचाने के लिए नितांत जरूरी है। अगर वह आज चीन पर अंकुश लगाने में अंकुश नहीं  लगायेगा तो चीन कुछ ही समय बाद उसके बर्चस्व को जमीदोज कर देगा। इसलिए अमेरिका व उसके मित्र संगठन नाटो के लिए चीन पर अंकुश लगाना नितांत जरूरी हो गया। यह तय है कि जो अमेरिका अपने हितों पर बाल भी बांका होने पर अफगानिस्तान, इराक, मिश्र, सीरिया  व लीबिया आदि देशों को तबाह कर सकता है तो वह अपने लाख नागरिकों की हत्या के जिम्मेदार चीन को कैसे माफ करेगा जिसने उसकी अर्थव्यवस्था की भी चूलें हिला दी। यह तय है चीन पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका व उसके मित्र देश ऐसा कदम उठायेंगे जिससे चीन की चैधराहट समाप्त हो सके। ठीक उसी समय भारत को भी चीन व उसके प्यादे पाक को कडा सबक सिखाना चाहिए।चीन व पाक से मित्रता का दंश देश को इन 73 सालों में नेहरू से लेकर मोदी के शासनकाल में भुगतना पडा। अगर आज भी देश के हुक्मरान चीन व पाक से दोस्ती के झांसे नहीं उबर पाये तो देश को इसकी बड़ी कीमत चूकानी पडेगी।

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