21 दिवसीय भारत बंद का सदप्रयोग करते हुए अपने गांव (बिल्लेख-रानीखेत) में
देवसिंह रावत
#दिल्ली में लोग जहां #कोरोना_महामारी से त्रस्त होकर घरों में सहमें हुए हैं।
वहीं इस महामारी से बचाव के लिए 21 दिन के पूर्ण #भारत_बंद की घोषणा सुनते ही #उत्तराखंड को #हिमाचल की तरफ से प्रदेश बनाने के लिए कई वर्षों से समर्पित उद्यमी #गोपाल_उपरेती सपरिवार #उत्तराखंड अपने गांव (बिल्लेख रानीखेत) पहुंच गए । वे इन दिनों #रानीखेत में अपने विशाल बाग में विहार करते हुए अपने पेड़ पौधों की सेवा में जुटे हुए हैं।
कल ही रात अपने 5 फीट ऊंचे #धनिया की पौधे के साथ अपनी तस्वीर #गोपाल_उपरेती जी ने मुझे प्रेषित की।
मुझे गर्व होता है अपने साथी #गोपाल_उपरेती पर जो दिल्ली महा नगरी की चकाचौंध को छोड़कर प्रदेश को नई दिशा देने के लिए उत्तराखंड में उद्यान को बढ़ावा दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बिल्लेख निवासी गोपाल उप्रेती कई दशकों से दिल्ली मं भवन निर्माण उद्यमी है। दिल्ली में रहते हुए भी उनका मन सदैव अपनी जन्मभूमि उतराखण्ड में कुछ करने के लिए कचैटता रहता। उनके मन में सदैव उठता रहता था कि उतराखण्ड में हिमालच से बेहतर भौगोलिक संरचना होने के बाबजूद क्यों बदहाल है। हिमाचल अपने फलोद्यान से पूरे भारत का सिरमौर बना हुआ है। हिमाचल के लोग पलायन नहीं अपने खेत खलिहानों व बाग बगिचों में फल व साग सब्जियों का उत्पादन करके खुशहाल बने हुए है। वहीं उतराखण्ड के लोग 5 व दस हजार की नौकरी के लिए भी महानगरों में नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशापित है। प्रदेश गठन के 20 साल बाद भी प्रदेश की सरकारों ने हिमाचल की तरह प्रदेश के चहुमुखी विकास करने की दिशा में एक कदम भी ईमानदारी से नहीं बढाया। हिमाचल का सौभाग्य रहा कि वहां परमार जैसे स्वप्नदृष्टा भागीरथ व वीरभद्र जैसे विकास की गंगा को हिमाचल में उतारने वाला नेतृत्व मिला। परन्तु उतराखण्ड अपने गठन के 20 साल बाद भी परमार व वीरभद्र की तरह के नेतृत्व के लिए तरस रहा है।
प्रदेश की इसी दुर्दशा से व्यथित उतराखण्डी युवा उद्यमी गोपाल उप्रेती को आशा की किरण तब नजर आयी जब वे उतराखण्ड के चकरोता क्षेत्र के प्रसिद्ध फल उद्यमी व राजनेता स्व नैनसिंह रावत के विशाल सेब के बगीचे में गये। वहां ज्ञात हुआ कि इस बाग से लाखों रूपये की आय रावत परिवार को होती है। वहां देख कर गोपाल उप्रेती के दिमाग में आया कि चकरोता व रानीखेत की जलवायु अधिकांश एक सी है। क्यों न उनके गांव में भी ऐसे ही सेब के बाग हो सकते है। श्री उप्रेती चकरोता क्षेत्र के वरिष्ठ समाजसेवी स्व नैनसिंह रावत के बडे सुपुत्र वरिष्ठ आयकर आयुक्त रतन सिंह रावत के करीबी मित्र है, उन्हीं के साथ वे उनके पैतृक गांव गये। वहीं गोपाल उप्रेती ने संकल्प लिया कि वे अपने क्षेत्र में ही ऐसा ही समृद्ध बाग लगा कर प्रदेश को हिमाचल की तरह समृद्ध व आत्म निर्भर राज्य बनाने का संकल्प को साकार करेंगे। इस कार्य में रतन सिंह रावत ने उनको हर प्रकार से मार्गदर्शन व सहयोग दिया। अपने धून के पक्के गोपाल उप्रेती ने डेढ दशक में ही ऐसा कार्य किया आज उनकी गिनती उतराखण्ड के सबसे प्रगतिशील फलोद्यान उद्यमी के रूप में होती है। पंत कृर्षि विश्वविद्यालय सहित प्रदेश के साथ आज देश के कृर्षि उद्यान विशेषज्ञ उनसे प्रेरणा लेते है।
गोपाल उप्रेती का कहना है कि अगर सरकार सही दिशा में काम करे तो उतराखण्ड का पर्वतीय जनपद के हर लोग इसी फलोद्यान से समृद्ध हो सकते है। उन्हें नोकरी करने के लिए महानगरों का नारकीय जीवन जीने क लिए अभिशापित नहीं होना पडेगा अपितु वे कई युवाओं को अपने खेत खलिहानों में रोजगार दे सकते है।ं जैसे ही गोपाल उप्रेती ने दिल्ली में अपने परिजनों से अपने गांव में फलोद्यान लगाने की बात की तो उनके परिजनों ने सवाल किया कि वहां कहां होगा? बंदर सुअर चेार सब उजाड देगे। दिल्ली में ही अपना कारोबार बढाओ। परन्तु गोपाल अपने धून के पक्के थे। उन्होने अपने स्वप्न को जैसे ही साकार किया तो उनकी चर्चा ताडीखेत विकासखण्ड में ही नहीं अपितु जनपद से प्रदेश में होने लगी। उन्होने सेव का विशाल बाग लगाया। वहां पर अत्याधुनिक तकनीकी से कम समय में अधिक पैदावर देने वाले सेव वृक्षों ने पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी आकृष्ठ किया। अनैक युवा इस दिशा में काम करने के लिए गोपाल उप्रेती से प्रेरणा लेने लेने लगे। इसके साथ गोपाल उप्रेती ने अपने गांव में ही अच्छा आरामदायक आवास बनाया। अब गोपाल उप्रेती के गांव में ही फलोद्यान लगाने के निर्णय की सराहना कर रहे है। आज दिल्ली जैसे महानगरों में कोरोना त्रासदी में जहां लोग घरों में दुबके हुए हैं वहीं गोपाल उप्रेती अपने परिवार के साथ अपने फलोद्यान में सुध आब हवा में बाग बगिचे को संवार रहे हैं।
आज उतराखण्ड में विकास की गंगा बहा रहे गोपाल उप्रेती को देख कर मेरे मन मस्तिष्क में किशन गंज रेलवे कालोनी दिल्ली में रहते हुए विद्यार्थी गोपाल उप्रेती की तस्वीर बरबस मन मस्तिष्क में छा जाती थी। गोपाल उप्रेती में बचपन से ही कुछ सीखने की प्रवृति थी, बचपन में गोपाल मुझसे बहुत प्रभावित था और बढ़े भाई की तरह सदैव सम्मान देता था। उनके पूरे परिवार से मेरा आत्मीय संबंध है।
एक उतराखण्डी की तरह गोपाल उप्रेती में भी बचपन से आध्यात्म की तरफ गहरा झुकाव रहा। वे ग्वेल देवता के भी अनन्य भक्त है। उन्होने अपने गांव विल्लेख में भी ग्वेल देवता का रमणीक मंदिर बनाया है,उसी मंदिर में मूर्ति स्थापना के लिए में भी दो तीन दशक पहले उनके गांव गया था। आज अपने मिशन में समर्पित गोपाल उप्रेती को देख कर मुझे गहरा सकून मिलता है कि काश उतराखण्ड के युवा व राजनेता गोपाल उप्रेती की तरह प्रदेश के विकास के लिए ईमानदारी से समर्पित रहते तो प्रदेश चंद सालों में भारत का सिरमौर बन जाता।